हाल ही में चीन का चर्चित ‘टू सेशंस’ सम्मेलन समाप्त हो गया है. इस दौरान क़रीब 3000 प्रतिनिधियों ने नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (NPC) और चीन कीपीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस (CPPCC) में हिस्सा लिया था. इन सम्मेलनों से निकलकर आई ख़बरों का, आने वाले महीनों में चीन कीआर्थिक नीति के लिहाज़ काफ़ी गहरा असर पड़ने वाला है.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने ने वित्तीय और मौद्रिक नीतियों में बदलाव करके आर्थिक विकास को रफ़्तार देने के फ़ौरी क़दम उठाए हैं. लेकिन, चीन की आर्थिक नीतियों की दशा दिशा मोटे तौर पर निज क्षेत्र के कामकाज पर पार्टी का नियंत्रण बढ़ाने की रही है.
कोविड-19 महामारी के बाद मांग और निर्यात में कमी, अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक और तकनीकी मुक़ाबले और रियल एस्टेट एवं तकनीकीकंपनियों पर देश के भीतर और बाहर पड़ रहे नियामक दबावों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों से जूझ रही है. इन कारणों से चीन के निजीक्षेत्र को अलग अलग स्तर पर घाटा झेलना पड़ रहा है. इनमें, पश्चिमी देशों में चीन की कंपनियों पर निगरानी और ऑडिट को लेकर सख़्ती में वृद्धि सेलेकर निवेशकों के विश्वास में कमी तक कई कारण शामिल हैं. और, वैसे तो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने ने वित्तीय और मौद्रिक नीतियों में बदलाव करकेआर्थिक विकास को रफ़्तार देने के फ़ौरी क़दम उठाए हैं. लेकिन, चीन की आर्थिक नीतियों की दशा दिशा मोटे तौर पर निज क्षेत्र के कामकाज पर पार्टीका नियंत्रण बढ़ाने की रही है.
टू सेशंस की झलकियां
टू सेशंस के दौरान इस बात को लेकर जटिल परिचर्चाएं हुईं कि चीन की अर्थव्यवस्था किस दिशा में जा रही है. नेशनल पीपुल्स कांफ्रेंस के बाद अपनीप्रेस कांफ्रेंस में नवनियुक्त प्रधानमंत्री ली कियांग ने स्वीकार किया था कि, ‘चीन का विकास अभी भी असंतुलित और अपर्याप्त है’, और ’ये बात भी सहीहै कि इस साल विश्व अर्थव्यवस्था को लेकर उम्मीदें अच्छी नहीं हैं.’ इसी हिसाब से 16 मार्च को जारी किए गए चीनी सरकार के अहम दस्तावेज़ों जैसे किगवर्नमेंट वर्क रिपोर्ट और इंस्टीट्यूशनल रिफॉर्म प्लान में कम्युनिस्ट पार्टी और सरकारी संस्थानों के सुधार की महत्वाकांक्षी योजना पेश की गई है.
मिसाल के तौर पर, संस्थागत सुधार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि राज्य परिषद ने आर्थिक नीतियों पर अपना नियंत्रण गंवा दिया है और कम्युनिस्ट पार्टी कीकेंद्रीय समिति ही बाज़ारों के कामकाज और कारोबारों के लिए एक समान नीति निर्देशित कर रही है. स्पष्ट शब्दों में कहें तो सरकार, कम्युनिस्ट पार्टी सेहार गई है. हालांकि, ली कियांग ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में ये बात भी रेखांकित किया कि, ‘नई सरकार की ज़िम्मेदारी, पार्टी की केंद्रीय समिति द्वारा लिएगए अहम फ़ैसलों और योजनाओं को लागू करने, 20वीं पार्टी कांग्रेस में तय किए गए प्रेरणास्पद ब्लूप्रिंट को लागू की जा सकने वाली योजना मेंपरिवर्तित करने और अपने लोगों के साथ क़दम दर क़दम काम करते हुए इस ब्लूप्रिंट को एक ख़ूबसूरत हक़ीक़त में तब्दील करने की होगी.’ ये बात 24 मार्च को प्रकाशित किए गए राज्य परिषद के काम के नियम में दोहराई गई थी, जिसमें राज्य परिषद के कर्मचारियों की भूमिका को ‘राजनीतिकक्रियान्वयन’ और ‘सरकार के काम के हर क्षेत्र में पार्टी नेतृत्व के निर्देशों को वफ़ादारी से लागू करने’ के रूप में परिभाषित किया गया था.
इसीलिए, राज्य परिषद के अहम प्रशासनिक और लागू करने के उत्तरदायित्व बनाए रखे गए हैं. इससे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को संकट के वक़्त अपनीज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ने, ठीक तरीक़े से नीतियां लागू न करने पर सरकार को जवाबदेह ठहराने का मौक़ा मिलेगा, जबकि वो ख़ुद की तैयार की हुईनीतियों की कमियों के प्रति जवाबदेह बनने से बच जाएगी.
वित्तीय क्षेत्र में जिन संस्थागत सुधारों का ज़िक्र किया गया है, उनमें चीन के बैंकिंग एवं बीमा नियामक आयोग (CBIRC) के विघटन और उसकीज़िम्मेदारियां राष्ट्रीय वित्तीय नियामक प्रशासन नाम की नई संस्था के हवाले करने की बात भी शामिल है. सैद्धांतिक रूप से CBIRC की तुलना में इस नईसंस्था के पास अधिक अधिकार होंगे. बढ़ती फिनटेक कंपनियों और वित्तीय अस्थिरता को लेकर चिंताओं, और निजी अर्थव्यवस्था को लेकर केंद्रीय औरप्रांतीय नीतियों में एकरूपता के अभाव के बीच चीन की वित्तीय व्यवस्था के अन्य दो स्तंभों पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना (PBoC) और चाइनासिक्योरिटीज़ ऐंड रेगुलेटरी कमीशन (CSRC) की कुछ भूमिकाएं भी नई संस्था के हवाले कर दी गई है.
ऐसा ही एक सुधार, कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के तहत सामाजिक कार्य विभाग की स्थापना का है. इस विभाग की ज़िम्मेदारियों में, ‘जनता कीशिकायतों का निपटारा करना और लोगों की राय जानने’ के साथ साथ ‘मिश्रित मालिकाना हक़ और ग़ैर सरकारी कंपनियों में पार्टी के निर्माण का कार्यऔर नए तरह के आर्थिक एवं सामाजिक संगठन और समूहों में नए तरह के रोज़गार का सृजन करना’ होगा.
यह बात इस तथ्य से भी और स्पष्ट हो जाती है कि ली कियांग द्वारा ‘निजी क्षेत्र को बेहतर माहौल और विकास के लिए अधिक जगह’ देने का भरोसा देने के बावजूद, उन्होंने ‘दो अटल’ बातों को भी दोहराया था.
इन सभी सुधारों में जो एक बात समान है वो ये है कि राज्य परिषद की शक्तियों में काफ़ी कमी कर दी गई है. उसकी वित्तीय स्थिरता एवं विकास समितिको ख़त्म कर दिया गया है और उसकी जगह CPC की अगुवाई में वित्त के लिए केंद्रीय आयोग और उसके केंद्रीय एवं राज्य स्तरीय संगठनों की कार्यसमिति के ‘पार्टी निर्माण’ और सरकारी संपत्तियों की निगरानी एवं प्रशासन के आयोग को सामाजिक कार्य विभाग के हवाले कर दिया गया है.
नीतिगत मोर्चे पर ध्यान ‘उचित’ विकास और निजी क्षेत्र के विस्तार पर केंद्रित किया गया है. प्रेस को ली कियांग के बयान और पूर्व प्रधानमंत्री लीकचियांग की वर्क रिपोर्ट में रेखांकित की गई नीतिगत प्राथमिकताओं में ‘उद्यमिता की भावना की राह में रोड़े अटकाने वाली बाधाएं दूर करके निजी क्षेत्रके मज़बूत विकास’ को बढ़ावा देने की बातें कही गई है. हालांकि, वर्क रिपोर्ट में एक चेतावनी भी दी गई है कि, ‘रियल एस्टेट सेक्टर के बेलगाम विस्तार’ पर क़ाबू पाने की ज़रूरत है और नीतिगत संस्थानों को ‘पूंजी के अंधे विस्तार’ को हर हाल में रोकना होगा.
हो सकता है कि प्रधानमंत्री के तौर पर ली कियांग के शुरुआती बयान उम्मीद भरे और कारोबार के लिए मुफ़ीद हों, लेकिन, उन्हें किसी भी सूरत मेंकम्युनिस्ट पार्टी के निजी क्षेत्र में सरकार की दख़लंदाज़ी के मामले में कोविड-19 के पहले की यथास्थिति में लौटने के संकेत के तौर पर बिल्कुल नहींदेखा जाना चाहिए. ये बात उस राज्य परिषद के घटाए गए अधिकारों के रूप में भी ज़ाहिर होती है, जिसके अध्यक्ष ली चियांग ही हैं. यह बात इस तथ्यसे भी और स्पष्ट हो जाती है कि ली कियांग द्वारा ‘निजी क्षेत्र को बेहतर माहौल और विकास के लिए अधिक जगह’ देने का भरोसा देने के बावजूद, उन्होंने‘दो अटल’ बातों को भी दोहराया था. कम्युनिस्ट पार्टी, पहले के दौर में इस मुहावरे का इस्तेमाल, निजी क्षेत्र को लेकर अपनी नीतियों के संदर्भ में करतीरही है, जिसका मतलब उसकी ‘दूरगामी नीति’ है जिसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है. ये जुमला काफ़ी अलोकप्रिय रहा है.
आने वाले समय में निजी कंपनियों का भविष्य
जब से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने कुछ आर्थिक रियायतों का ऐलान किया था, जिसकी शुरुआत ज़ीरो कोविड नीति को ख़त्म करने से हुई थी, तो नीतिगत माहौल अब रियल एस्टेट और डिजिटल अर्थव्यवस्था वाले उद्योगों में पूंजी निवेश और प्रतिबंधों में रियायत की ओर थोड़ा सा झुका है. मिसाल के तौर पर, दिसंबर 2022 में चीन के केंद्रीय आर्थिक कार्य सम्मेलन के बाद जारी बयान में कहा गया था कि चीन ऐसे उपाय लागू करेगा जिससे ‘प्रॉपर्टी डेवलप करने वालों की वित्तीय ज़रूरतें पूरी की जा सके, औद्योगिक पुनर्संरचना की जा सके और संपत्तियों और देनदारियों में सुधार लाया जा सके.’ इसके बाद, जनवरी 2023 में दावोस में चीन के पूर्व उप-प्रधानमंत्री लियू हे ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भरोसा दिलाया था कि उनका देश अर्थव्यवस्था में ‘चहुंमुखी खुलेपन’ को बढ़ावा देना जारी रखेगा. इसके अलावा उन्होंने रियल एस्टेट सेक्टर में बड़े पैमाने पर ‘पूंजी निवेश’ करने का वादा भी किया था.
अभी हाल ही में यानी फरवरी 2023 में चीन के सिक्योरिटीज़ रेग्युलेटरी कमीशन ने घोषणा की थी कि वो, ‘IPO की समीक्षा की अपनी भूमिका से पीछे हटेगा’, और इसका मक़सद, IPO की क़ीमतों को बाज़ार और शेयर बाज़ारों के हवाले कर देगा और विदेशी कंपनियों को पारदर्शिता की गारंटी देगा. आज ली कियांग को प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने के बाद और अलीबाबा के पूर्व CEO जैक मा के लगभग एक साल बाद चीन के सार्वजनिक जीवन में दोबारा वापस आने से सकारात्मक नीतियों का शोर और बढ़ गया है. 2020 में ‘लगातार फैलते वित्तीय सेवाओं के बाज़ार’ के ख़िलाफ़ चीनी सरकार की कार्रवाई के बाद, अपना IPO वापस लेने के लिए मजबूर किए जाने के बाद जनवरी 2023 में जैक मा ने अलीबाबा की वित्तीय तकनीक सेवा एंट ग्रुप पर से अपना नियंत्रण छोड़ दिया था. इसके साथ साथ, 2021 में उन्हें एकाधिकार विरोधी नियमों के उल्लंघन के आरोप में 275 अरब डॉलर का जुर्माना भी भरना पड़ा था. हालांकि, हाल ही में हांगझाऊ के एक स्कूल में कार्यक्रम के दौरान दोबारा सार्वजनिक रूप से दिखाई देकर जैक मा शायद ये संकेत देना चाहते हैं कि सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है.
लेकिन उससे भी बड़ी ख़बर 28 मार्च को अलीबाबा की तरफ़ से किया गया ऐलान है, जिसमें कंपनी ने ख़ुद को छह अलग अलग कंपनियों में बांटने कीघोषणा की थी. भविष्य में इनमें से पांच कंपनियों के पास ये विकल्प होगा कि वो अपना IPO ला सकेंगी. ख़बर के मुताबिक़ ये फ़ैसला ख़ुद जैक मा नेलिया है, जो अभी भी अलीबाबा के बड़े अधिकारियों और फ़ैसला लेने वालों के ऊपर काफ़ी असर रखते हैं. और शायद उन्होंने ये सोचा है कि कंपनी कोऐसे हिस्सों में बांटना न केवल चीन के एकाधिकार विरोधी बयानों के अनुरूप होगा, बल्कि इससे छोटी कंपनियों को अपने लिए पूंजी जुटाने में भीआसानी और लचीलापन हासिल होगी. चूंकि इस ऐलान के फ़ौरन बाद अलीबाबा के शेयरों में कम समय के लिए ही सही मगर तगड़ा उछाल देखा गयाथा. ऐसे में विश्लेषकों का कहना है कि हो सकता है कि चीन की तकनीकी व्यवस्था में विदेशी कंपनियां दोबारा भरोसा कर रही हों और अब वो जैक माकी वापसी को नियमों में ढील के संकेत के तौर पर देख रहे हों.
लेकिन, जैसी की हमने ऊपर चर्चा की थी कि टू सेशंस में प्रस्तावित व्यापक वित्तीय संस्थागत सुधारों के बाद ली कियांग के ‘दो अटल’ नीतियों में कोईबदलाव न होने के बयान (जो कम्युनिस्ट पार्टी को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़, देश के निजी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के मार्गदर्शन का अधिकार देते हैं) औरसरकार की भूमिका सिर्फ़ पार्टी की विचारधारा को लागू करने तक सीमित रखने को देखते हुए, हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि निजी क्षेत्र में कम्युनिस्टपार्टी नियमों के नाम पर दखलंदाज़ी करती रहेगी.
निजी क्षेत्र में सुधार के व्यापक प्रयासों के अंतर्गत निजी कंपनियों के लिए ‘पार्टी निर्माण’ की नीतियों को अनिवार्य बनाया जा सकता है. इसमें कंपनियोंके भीतर पार्टी के समूह और उनसे जुड़े ज़मीनी संगठनों का गठन शामिल हो सकता है. 2020 में सरकारी कंपनियों के मामले में ऐसा नियम पहले ही लागूकिया जा चुका है, जब पहली बार ‘दो अटल सिद्धांतों’ को अभिव्यक्त किया गया था.
इस मामले में शी जिनपिंग का निजी क्षेत्र के साथ बर्ताव अपने आप में बहुत कुछ कहता है. 6 मार्च को NPC की बैठक के दौरान निजी कारोबारियों कीनुमाइंदगी करने वाले सरकारी सलाहकारों के एक समूह से बात करते हुए, शी जिनपिंग ने स्पष्ट किया था कि, ‘हमारी पार्टी के लिए लंबे समय तक राजकरने के लिए निजी क्षेत्र एक अहम ताक़त है’ और ‘हम सदैव ही निजी कंपनियों और निजी उद्यमियों को अपने ही दल के साथ मानते हैं.’
चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के मुताबिक़, पिछले साल की तुलना में जनवरी 2022 से सालाना तय निजी निवेश केवल 0.8 प्रतिशत बढ़ा है. ये हाल तब है जब चीन, निजी क्षेत्र की स्वायत्तता और आर्थिक नीतियों को लेकर लगातार सकारात्मक संकेत देने की कोशिश कर रहा है.
इससे भी बड़ी बात ये कि जिनपिंग ने निजी क्षेत्र के लिए जो भूमिका उचित समझी थी, उसके मुताबिक़ निजी कंपनियों को चाहिए कि वो खपत, रोज़गार और सरकारी आमदनी को बढ़ाएं जिससे ऊंचे दर्जे की प्रगति और साझा समृद्धि के व्यापक राष्ट्रीय हितों को साधा जा सके. निजी कंपनियों को‘विश्व स्तर पर चमकने’ के लिए कहकर जिनपिंग ने उन्हें खुली छूट देने का संकेत नहीं दिया था, बल्कि इसका मतलब निजी कंपनियों को एक तानाशाहीव्यवस्था में शानदार आर्थिक बहाली के वैश्विक उदाहरण बनने के कम्युनिस्ट पार्टी की बड़ी महत्वाकांक्षाओं में शामिल करना था. और, इस बात को सहीसंदर्भ में समझने के लिए ये देखना होगा कि शी जिनपिंग ने ये संदेश उस वक़्त दिया था, जब वो निवेशकों का भरोसा बढ़ाने और बाज़ार की अपेक्षाओं मेंनई जान डालने की बातें कर रहे थे.
इसके नतीजे भी स्पष्ट दिख रहे हैं. चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के मुताबिक़, पिछले साल की तुलना में जनवरी 2022 से सालाना तय निजीनिवेश केवल 0.8 प्रतिशत बढ़ा है. ये हाल तब है जब चीन, निजी क्षेत्र की स्वायत्तता और आर्थिक नीतियों को लेकर लगातार सकारात्मक संकेत देने कीकोशिश कर रहा है. सरकार ने ख़ुद माना है कि 2023 में विकास दर और सिकुड़ेगी, जो इस वित्तीय वर्ष में GDP का केवल 5 प्रतिशत है. ऐसे में इस बातकी संभावना कम ही है कि हम उस दौर को वापस आते देखेंगे, जब नियामक दख़लंदाज़ी से पहले की स्थिति बनेगी और कुल आर्थिक प्रगति में निजीक्षेत्र के लिए कुछ ज़्यादा ही सकारात्मक संकेत देने की बातों पर कुछ विश्वास किया जा सके.
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