Author : Mannat Jaspal

Published on Nov 23, 2022 Updated 0 Hours ago

यह उचित समय है कि हम COP एजेंडे में लॉस एंड डैमेज फाइनेंस को आधिकारिक रूप से संस्थागत बनाकर कोरी बयानबाज़ी को छोड़ें और मुकम्मल कार्रवाई की ओर बढ़ें.

COP27: बिखरती उम्मीद, भटकती कार्रवाई!
यह लेख, 'समान' लेकिन 'विभिन्न' उत्तरदायित्व निभाने का लक्ष्य: COP27 ने दिखाई दिशा! नामक श्रंखला का हिस्सा है

मिस्र के शर्म अल-शेख (Sharm el-Sheikh) में इस साल COP27 सम्मेलन पर बड़ी उम्मीदें रही. इस बार का सम्मेलन जलवायु कार्रवाई और लॉस एंड डैमेज (L&D) पर जवाबदेही तय करने के लिहाज़ से बेहद अहम रहा. ज़ाहिर है कि इस मुद्दे पर सिर्फ़ बातचीत से कुछ हासिल नहीं होने वाला है. भारत समेत दूसरे विकासशील देशों के लिए लॉस एंड डैमेज चर्चा का एक प्रमुख मुद्दा है. अगर जलवायु परिवर्तन से होने वाले वित्तीय नुकसान की बात करें तो यह लॉस एंड डैमेज वर्ष 2050 तक भारत के जीडीपी का लगभग 1.8 प्रतिशत सालाना होने की उम्मीद है. इसलिए, इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं है कि जलवायु सम्मेलन में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव इस लॉस एंड डैमेज फाइनेंस के विषय पर “रचनात्मक और सक्रिय रूप से” संलग्न होने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उन्होंने लॉस एंड डैमेज के लिए वैकल्पिक वित्तपोषण व्यवस्था सुनिश्चित करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया, विशेष रूप से यह देखते हुए कि वैश्विक पर्यावरण सुविधा, ग्रीन क्लाइमेट फंड और अनुकूलन निधि सहित यूएनएफसीसीसी फ्रेमवर्क के तहत मौजूदा वित्तीय तंत्र आपदाग्रस्त राष्ट्रों के लॉस एंड डैमेज दावों को प्राथमिकता देने के लिए बेहद कम होने साथ-साथ अपर्याप्त भी हैं.

भले ही इन आपदाओं के विनाशकारी असर को समाप्त करने या कम करने के लिए विकासशील देशों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से होने वाले वार्षिक “शेष नुकसान” को रोका नहीं जा सकता है. इस क्षेत्र को वर्ष 2030 तक 290 से 580 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2050 तक 1-1.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक की लॉस एंड डैमेज लागत का सामना करना पड़ सकता है.

दुनिया भर में अभूतपूर्व तरीक़े से जलवायु आपदाओं के बढ़ने से ना केवल मानव जीविका और उत्तरजीविता पर गहरा असर पड़ा है, बल्कि इनकी वजह से निम्न और मध्यम आय वाले देशों को विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है. अकेले वर्ष 2008 और 2018 के बीच, एशिया में कुल वित्तीय नुकसान सबसे अधिक 49 बिलियन अमेरिकी डॉलर दर्ज किया गया. इसके बाद अफ्रीका में 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर और लैटिन अमेरिका एवं कैरिबियन देशों में 29 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वित्तीय नुकसान देखने को मिला. भले ही इन आपदाओं के विनाशकारी असर को समाप्त करने या कम करने के लिए विकासशील देशों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से होने वाले वार्षिक “शेष नुकसान” को रोका नहीं जा सकता है. इस क्षेत्र को वर्ष 2030 तक 290 से 580 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2050 तक 1-1.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक की लॉस एंड डैमेज लागत का सामना करना पड़ सकता है.

वित्तपोषण बेहद ज़रूरी

जलवायु आपदा के बाद समुदायों को इससे उबरने में मदद करने के लिए निवारण और अनुकूलन के अलावा जलवायु कार्रवाई पर एक महत्वपूर्ण तीसरे स्तंभ के रूप में उभरने के लिए लॉस एंड डैमेज वित्तपोषण बेहद ज़रूरी है. अगर वर्तमान क्लाइमेट फाइनेंस आर्किटेक्चर की बात करें तो इसके महत्व को समझा ही नहीं जा रहा है, ऐसे में इसके दायरे में आने वाले लॉस एंड डैमेज की क्षतिपूर्ति करने की बात तो छोड़ ही दें. इसकी वजह शायद इसे स्थापित करने के बाद से ही इसको लेकर होने वाली चर्चाओं को दबाने के लिए होने वाली राजनीति में छिपी है. इससे ज़ाहिर है कि इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे को क़रीब से देखने और समझने की ज़रूरत है.

इसमें कोई मतभेद नहीं है कि समुद्र के बढ़ते स्तर से छोटे-छोटे द्वीपों वाले विकासशील देशों के लिए भूमि, आजीविका और संप्रभुता के नुकसान के साथ ही उनके अस्तित्व के लिए एक वास्तविक ख़तरा पैदा हो रहा है. सकारात्मक सामूहिक कार्रवाई के जवाब में अलायंस ऑफ स्माल आईलैंड स्टेट्स  (एओएसआईएस) के साथ एक गठबंधन उभरा और वर्ष 1992 में उसने यूएनएफसीसीसी फ्रेमवर्क के अंतर्गत लॉस एंड डैमेज के लिए एक स्वायत्त स्थिति की मांग की. हालांकि, इसे सदस्य देशों से पर्याप्त समर्थन हासिल करने में सफलता नहीं मिली. विकसित देश इस बात को लेकर आशंकित थे कि लॉस एंड डैमेज को स्वीकार करने से बड़ी मात्रा में होने वाले उत्सर्जन के लिए उनकी जवाबदेही क़ानूनी तौर पर वैध हो जाएगी. इसके अलावा बड़े विकासशील देशों को सीमित क्लाइमेट फाइनेंस और प्रौद्योगिकी प्रवाह को मोड़ने का डर था, वहीं अरब राष्ट्रों ने इसे अपने हित में पाया, क्योंकि इससे उनकी तेल उत्पादन की स्थिति पर कई असर नहीं था और इसलिए इस बारे में बड़ी-बड़ी बातें करना उनके लिए आसान था.

यह बेहद अहम है कि जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से संवेदनशील देशों के पास फाइनेंस के अनुमानित और विश्वसनीय स्रोतों तक पहुंच हो और मानवीय सहायता के मामले में “दान की अनियमित एवं अव्यवस्थित कार्रवाई के लिए बंधन” नहीं हो.

वर्ष 2007 के बाली एक्शन प्लान के अंतर्गत लॉस एंड डैमेज को लेकर यूएनएफसीसीसी की स्थापना के बाद से लगभग 15 साल लग गए, जिसे बातचीत के लिए संयुक्त राष्ट्र के मसौदे में शामिल किया गया था. बाली एक्शन प्लान में बीमा और लॉस एंड डैमेज के माध्यम से आपदा के ज़ोख़िम में कमी के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है, हालांकि, अनुकूलन पॉलिसी के अंतर्गत इसे शामिल किए जाने पर बातें होती रहीं. बाद में वर्ष 2012 में इस मामले पर बहुत बहस और रस्साकशी के बाद दोहा जलवायु वार्ता में लॉस एंड डैमेज पर एक अंतरराष्ट्रीय तंत्र स्थापित करने पर सहमति बनी थी. लेकिन इस तंत्र के कार्यक्षेत्र को लेकर थोड़ी-बहुत स्पष्टता के साथ इसे फिर से सुधार फ्रेमवर्क के तहत स्थापित किया गया था.

वर्ष 2013 में COP19 के दौरान UNFCCC द्वारा लॉस एंड डैमेज के लिए इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) द्वारा प्रस्तुत किए गए मजबूत साक्ष्य विश्लेषण को संस्थागत रूप से मान्यता प्राप्त करने के लिए, वारसॉ इंटरनेशनल मैकेनिज्म फॉर लॉस एंड डैमेज (WIM) की स्थापना के साथ, हालांकि फाइनेंस या इक्विटी जैसे विचारों के लिए आकस्मिक क़दम उठाया गया था. आख़िरकार COP21 में लॉस एंड डैमेज को पेरिस समझौते के एक अलग अनुच्छेद 8 के रूप में प्रतिस्थापित किया गया. फाइनेंस पर एक लिहाज़ से आपत्ति के बावज़ूद केवल “सहकारी और सुविधात्मक” आधार पर विस्तारित करने के बाद भी जलवायु से संबंधित बातचीत में इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में मनाया गया.

क्लाइमेट डिप्लोमेसी का परिदृश्य जटिल

यह स्पष्ट है कि लॉस एंड डैमेज पर बहस में बहुत लंबा समय लगा है. लॉस एंड डैमेज को जलवायु परिवर्तन और मौसम के लिहाज़ से लचीलेपन के साथ अपनी बहुप्रतीक्षित स्वतंत्र स्थिति प्रदान करने के लिए लॉबिंग में वर्षों ख़र्च करने के बावज़ूद, औद्योगिक देशों ने इस मामले पर रुकावट डालने वाली रणनीति अपनाईं, उम्मीदों को लटकाया, और तो और इस सबके बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. देखा जाए तो पूरी बहस एक प्रकार से कई दुविधाओं के बीच फंस गई है. ऊल-जलूल तर्कों के ज़रिए फाइनेंस प्रदान करने यानी पैसा देने की विकसित देशों की अनिच्छा को जानबूझकर कर छिपाया जा रहा है. आधिकारिक मसौदे में जिन शब्दों का उपयोग किया गया है वे बेहद काल्पनिक और अव्यवहारिक हैं. मसौदे की यह भाषा वित्त के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव के साथ ही, जलवायु लचीलेपन के फलस्वरूप क्लाइमेट डिप्लोमेसी के पूरे परिदृश्य को ही पेचीदा बना देती है. जिस प्रकार लॉस एंड डैमेज को देयता या मुआवजे के साथ मिलाने के लिए ग्लोबल नॉर्थ द्वारा साफ तौर पर इनकार किया गया है, वह पश्चिमी दुनिया की कुटिल सोच को सामने लाता है. ज़ाहिर है कि ऐसा करके पश्चिमी देश अपने कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि के लिए भुगतान करने से बचना चाहते हैं और इस बोझ को जलवायु परिवर्तन के लिए कम से कम ज़िम्मेदार देशों पर डालना चाहते हैं.

वैश्विक स्तर पर बढ़ती जलवायु आपदाओं को देखते हुए, AOSIS को G77 और चीन द्वारा शामिल किया गया है, जो कि 134 विकासशील देशों का एक गठबंधन है और संभावित जलवायु परिवर्तन से होने वाली तबाही में अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद के लिए वित्तीय सहायता की मांग कर रहा है. यह बेहद अहम है कि जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से संवेदनशील देशों के पास फाइनेंस के अनुमानित और विश्वसनीय स्रोतों तक पहुंच हो और मानवीय सहायता के मामले में “दान की अनियमित एवं अव्यवस्थित कार्रवाई के लिए बंधन” नहीं हो. इसके अलावा, अगर विकासशील देशों को यूं ही अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है, तो उन्हें अपने छोटे से राजकोषीय बजट में जलवायु आपदाओं की तात्कालिक ज़रूरत पर प्राथमिकता देनी होगी और ऐसा होने पर संबंधित एनडीसी और अनिवार्य रूप से सार्वभौमिक जलवायु लक्ष्यों की प्रगति पटरी से उतर जाएगी.

पिछले साल ग्लासगो में COP26 के दौरान G77 एवं चीन द्वारा लॉस एंड डैमेज फाइनेंस फैसिलिटी (LDFF) के लिए एक प्रस्ताव पेश किया गया था, ताकि कमज़ोर देशों को लॉस एंड डैमेज फाइनेंस के एक निर्बाध और समर्पित प्रवाह को सुनिश्चित किया जा सके और जिसे “पॉल्यूटर पे” यानी जो देश जितना प्रदूषण फैलाए उसके उतने अधिक योगदान के सिद्धांत के आधार पर रकम को जुटाया जा सके. अप्रत्याशित रूप से अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और इसके बजाए तीन साल की ‘वार्ता’ की पेशकश की. मिस्र में जलवायु सम्मेलन विकासशील देशों की इस मांग पर फिर से विचार करेगा, जो यूएनएफसीसीसी फ्रेमवर्क के अंतर्गत लॉस एंड डैमेज को आधिकारिक रूप से संबोधित करने के लिए एक वित्त सुविधा स्थापित करने हेतु आम सहमति बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं.

राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (एनडीसी) को लॉस एंड डैमेज की मांगों को ना सिर्फ़ शामिल करना शुरू करना चाहिए, बल्कि पूर्व में उल्लेख किए गए वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र के तहत स्थापित सैंटियागो नेटवर्क फॉर लॉस एंड डैमेज को फाइनेंस के स्तर को निर्धारित करने में मदद करने के लिए देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करने और जलवायु प्रभावों का प्रबंधन करने के लिए आवश्यक सहयोग की ज़िम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए.

भले ही लॉस एंड डैमेस को पहली बार COP27 एजेंडे में आधिकारिक तौर पर शामिल किया गया है, लेकिन इस विषय पर कोई भी जलवायु वार्ता, जो चर्चा से फाइनेंस के तत्व को बाहर करती हैं, वो पेरिस समझौते में शामिल इक्विटी और सामान्य लेकिन अलग-अलग ज़िम्मेदारियों (CBDR) के सिद्धांतों की एक तरह से खिल्ली उड़ाना होगा. विकासशील देशों की चिंताओं को खोखले वादों और बरगलाने वाली बातों से दूर करने के प्रयासों से अब इस मुद्दे की गंभीरता को लेकर कोई कमी नहीं आएगी. ग्लोबल नॉर्थ को लॉस एंड डैमेज फाइनेंस पर चुप्पी साधने से लेकर कड़ी कार्रवाई करने तक का जवाब देना चाहिए, जो ना केवल नई हैं, बल्कि मौज़ूदा प्रतिबद्धताओं के अतिरिक्त हैं. COP27 लॉस एंड डैमेज फाइनेंस को COP वार्ताओं में एक स्थायी एजेंडा आइटम के रूप में संस्थागत बनाने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर है और ऐसा करने से यह बहुपक्षवाद में विश्वसनीयता को ना केवल फिर से स्थापित करेगा, बल्कि “कार्यान्वयन COP” के रूप में पहचाने जाने के लिए अपनी क्षमता और योग्यता को भी सिद्ध करेगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.