Expert Speak Raisina Debates
Published on May 13, 2025 Updated 0 Hours ago

वर्तमान में चीन के रणनीतिक गलियारों में भारत को लेकर जो विचार-विमर्श चल रहा है, उससे दक्षिण एशिया में तेज़ी से बदल रही भू-राजनीति और सुरक्षा से जुड़े हालातों के बारे में गहन जानकारी हासिल होती है.

दक्षिण एशिया में उथल-पुथल: चीनी नजरिए से स्थिति का मूल्यांकन

Image Source: Getty

दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक लिहाज़ के पिछले कुछ दिन काफ़ी उथल-पुथल भरे रहे हैं. अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के हाई-प्रोफाइल भारत दौरे से लेकर पहलगाम में आतंकवादी हमले और फिर दक्षिण एशिया में युद्ध की बढ़ती संभावनाओं तक पूरे क्षेत्र में घटनाक्रम तेज़ी से बदला है. इतना ही नहीं, आने वाले दिनों में हालात क्या करवट लेंगे, इसके बारे में भी कुछ स्पष्ट नहीं है. जेडी वेंस की भारत यात्रा और कश्मीर में हुए आतंकी हमले के बीच क्या संबंध है? पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर अपनी डांवाडोल स्थिति और घरेलू मोर्चे पर तमाम चुनौतियों से घिरे होने के बावज़ूद इतना बड़ा ख़तरा क्यों मोल लेगा? ऐसे कई सवाल हैं, जो भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के रणनीतिक गलियारों में उठ रहे हैं. हालांकि, इस सवालों का कोई साफ-साफ जवाब नहीं मिल रहा है. अगर बीजिंग में दक्षिण एशिया में हुए इन घटनाक्रमों को लेकर चल ही चर्चाओं पर गौर करें, तो इस बारे में काफ़ी-कुछ पता चलता है.

 चीन के रणनीतिक हलकों में वेंस की भारत यात्रा को ट्रंप प्रशासन की एक शातिर चाल के रूप में देखा जा रहा है और उन्हें लगता है कि इसके पीछे अमेरिका का मकसद चीन को अलग-थलग करना है.

जेडी वेंस की भारत यात्रा

 ज़ाहिर है कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की भारत यात्रा से चीन को ज़बरदस्त झटका लगा है और इसने उसे ख़ासी चिंता में डाल दिया है. चीन के रणनीतिक हलकों में वेंस की भारत यात्रा को ट्रंप प्रशासन की एक शातिर चाल के रूप में देखा जा रहा है और उन्हें लगता है कि इसके पीछे अमेरिका का मकसद चीन को अलग-थलग करना है. कुछ चीनी रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जिस समय अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध चरम पर है, उस दौरान वेंस की भारत यात्रा ट्रंप प्रशासन के तुरुप के इक्के की तरह है, यानी इसके ज़रिए उसने अपना सबसे बड़ा दांव चला है. उनके मुताबिक़, ऐसा प्रतीत होता है कि जहां एक ओर व्हाइट हाउस बढ़ाए हुए टैरिफ पर रोक लगाने की अपनी 90 दिन की समय सीमा के भीतर दुनिया के तमाम देशों के साथ व्यापार समझौतों को लेकर तोलमोल करने की कोशिश कर रहा है, ताकि वैश्विक स्तर पर छिड़े व्यापार युद्ध का रुख उसके पक्ष में मुड़ जाए. वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ट्रंप प्रशासन की ओर से की जा रही ऐसी कोशिशों को पता लगाने का भरपूर प्रयास कर रहा है. यानी चीन विभिन्न देशों के साथ अमेरिका के व्यापार समझौतों के अरमानों पर पानी फेरने में शिद्दत से जुटा है. चीन ऐसा इसलिए कर रहा है, ताकि अमेरिकी सरकार को उसके साथ उसकी शर्तों पर बातचीत के लिए विवश होना पड़े.

 

यही वजह है कि जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की बातचीत अंतिम दौर में पहुंचती है और अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट इसको लेकर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हैं, तो बीजिंग को दर्द होने लगता है. चीनी रणनीतिक हलकों में इस समझौते को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि जब अमेरिका के ज़्यादातर सहयोगी देश उसके साथ व्यापार समझौते को लेकर सोच-विचार कर रहे हैं, तब आख़िर भारत को अमेरिका के साथ व्यापार समझौता करने की इतनी ज़ल्दी क्यों है. कहा जा रहा है कि ब्रिटेन और जापान जैसे देश, जिन्हें अमेरिका का सबसे नज़दीकी सहयोगी माना जाता हैं, वे भी अमेरिका के साथ व्यापार समझौता करने में कोई हड़बड़ी नहीं दिखा रहे हैं और इसको लेकर बेहद एहतियात बरत रहे हैं. चीनी गलियारों में यह भी चर्चा है कि यूरोपीय संघ भी अमेरिका से दूरी बनाने की कोशिश में लगा है और इसीलिए चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को लेकर EU में लगाए जाने वाले आयात शुल्क के मुद्दे पर बीजिंग के साथ "दोस्ताना बातचीत" कर रहा है. चीनी रणनीतिकारों का कहना है कि भारत एकदम से अलग तरह का व्यवहार कर रहा है और अमेरिका साथ व्यापार समझौते को लेकर उसका बर्ताव सभी देशों से बिलकुल अलग है.

 

नई दिल्ली द्वारा स्टील के आयात पर 12 प्रतिशत का आयात शुल्क लगाने के ऐलान पर भी चीन में नाराज़गी दिखी. संयोग से यह घोषणा भी अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के दौरे के समय की गई. ज़ाहिर है कि भारत ने स्टील के आयात पर जो 12 प्रतिशत का शुल्क लगया है, उसका मुख्य मकसद अपने घरेलू स्टील उद्योग को चीन से आयात होने वाले सस्ते स्टील से बचाना है. जबकि चीन मानता है कि भारत ने ऐसा अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार युद्ध में ट्रंप प्रशासन के पक्ष में खड़े दिखने के लिए किया है. चीनी रणनीतिकारों का मानना है कि ट्रेड वॉर शुरू होने के बाद से भारत की व्यापार नीति में यह पहला अहम बदलाव है. वे इस बात से भी चिंतित हैं कि भारत की यह रणनीति दूसरे देशों को भी ऐसा करने के लिए उकसाएगी. इसी तरह, एयर इंडिया उन बोइंग विमानों को ख़रीदने की योजना बना रही है, जिन्हें चीनी कंपनियों के लिए बनाया गया था, लेकिन अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध को बाद चीन ने उन्हें ख़रीदने से इनकार कर दिया था. इस ख़बर ने भी चीन में खलबली मचा दी है. चीन को यही भी चिंता सता रही है कि भारत प्रौद्योगिकी, ऊर्जा और सुरक्षा सहयोग के बदले में अमेरिका से होने वाले आयात पर लगाए जाने वाले टैरिफ को कम कर देगा. इसके अलावा, भारत अमेरिका से उसके कृषि उत्पादों को ख़रीदने पर भी रज़ामंदी जता सकता है. ऐसा होने पर अमेरिका के साथ बीजिंग के व्यापार युद्ध की धार कुंद हो जाएगी और इस लड़ाई में वह रणनीतिक रूप से अमेरिका से पिछड़ जाएगा. उदाहरण के तौर पर सोयाबीन जैसे अमेरिकी कृषि उत्पादों पर चीन ने भारी-भरकम शुल्क थोपा है और वह अमेरिका की जगह पर ब्राज़ील से सोयाबीन का आयात कर रहा है. चीन के इस क़दम से अमेरिका के कृषि उत्पाद उद्योग को भारी नुक़सान हो रहा है. बीजिंग इस बात को लेकर बेहद चिंतित है कि अगर अमेरिकी सोयाबीन और वहां के दूसरे कृषि उत्पादों को भारत ने ख़रीदना शुरू कर दिया, तो इससे अमेरिका को राहत मिलेगी, साथ ही ट्रंप प्रशासन पर दबाव बनाने की चीनी रणनीति को ज़बरदस्त धक्का लगेगा.

 

चीन की प्रतिक्रिया

 चीनी पर्यवेक्षक भारत से इस बात को लेकर भी गुस्से में हैं कि चीन ने नई दिल्ली को अमेरिका के साथ व्यापार समझौता बातचीत से दूर रहने की सख़्त चेतावनी दी थी और कहा था कि "दूसरों के हितों को नुक़सान पहुंचाकर अस्थायी लाभ हासिल करना उसी तरह है जैसे बाघ से उसकी खाल के लिए सौदा करना और यह पैंतरा हमेशा उल्टा ही पड़ेगा." इसके अलावा चीनी राजदूत ने भी भारत को आश्वासन दिया था. बावज़ूद इसके भारत ट्रंप प्रशासन के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते के मुहाने पर पहुंच चुका है और उम्मीद जताई जा रही है कि अगले 90 दिनों के भीतर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता मुकम्मल हो जाएगा. चीनियों के मुताबिक़ भारत के इस क़दम से कई दूसरे विकासशील देशों की सोच भी बदल सकती है. ज़ाहिर है कि ये देश फिलहाल अमेरिका के “पारस्परिक टैरिफ” का पलटवार करने की रणनीति बनाने में जुटे हैं. चीनी रणनीतिकारों के मुताबिक़, “दुनिया के हर देश ने राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी और व्यापार नीति की आलोचना की है, लेकिन सिर्फ़ भारत ही ऐसा देश है, जो इसे एक मौक़े के रूप में देखता है.” चीन के शंघाई इंस्टीट्यूट्स फॉर इंटरनेशनल स्टडीज़ (SIIS) के निदेशक और रिसर्चर लियू ज़ोंगयी जैसे चीनी विशेषज्ञों ने भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के उस बयान पर नाराज़गी जताई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका और चीन बीच छिड़ा व्यापार युद्ध “आपूर्ति श्रृंखला की निष्पक्षता के लिहाज़ से एकदम सही है” और भारत के लिए यह एक सुनहरा मौक़ा है.

 चीनी विशेषज्ञों के अनुसार अमेरिका के साथ भारत ने व्यापार समझौते के लिए निर्णायक क़दम बढ़ा दिए हैं और इस प्रकार से ट्रम्प प्रशासन के साथ मिलकर “चीनी हितों को चोट पहुंचाने” में भारत सबसे आगे रहा है, इसलिए भारत को “कड़ा सबक सिखाने” की ज़रूरत है.

बीजिंग में एक प्रचलित कहावत है कि जो भी व्यक्ति सबसे पहले आवाज़ बुलंद करे उसे समाप्त कर देना चाहिए (枪打出头鸟). चीनी विशेषज्ञों के अनुसार अमेरिका के साथ भारत ने व्यापार समझौते के लिए निर्णायक क़दम बढ़ा दिए हैं और इस प्रकार से ट्रम्प प्रशासन के साथ मिलकर “चीनी हितों को चोट पहुंचाने” में भारत सबसे आगे रहा है, इसलिए भारत को “कड़ा सबक सिखाने” की ज़रूरत है. चीनी लोगों के बीच आमतौर पर भारत पर शिकंजा कसने के लिए जिन बातों पर चर्चा की जाती है, या कहें कि संभावित विकल्प माना जाता है, उनमें भारत के विनिर्माण उद्योग की कमर तोड़ने के लिए कड़े निर्यात प्रतिबंध थोपना और पाकिस्तान समेत दक्षिण एशिया के देशों को नई दिल्ली के विरुद्ध एकजुट करना शामिल है.

 

इसके अलावा ‘मिडिल ईस्ट का मुद्दा’ भी चीनी गलियारों में प्रमुखता के उठाया गया है. कई चीनी रणनीतिकारों का कहना है कि चीन और मिस्र के बीच पहले संयुक्त सैन्य अभ्यास की वजह से ही जेडी वेंस ने भारत का दौरा किया. इसके अलावा, चीन की नज़र हाल ही में सऊदी अरब में प्रधानमंत्री मोदी के ऐतिहासिक ज़ोरदार स्वागत पर टिकी रहीं, साथ ही पीएम मोदी के सऊदी अरब दौरे से पहले फरवरी के मध्य में इजराइल के एक बड़े व्यापार प्रतिनिधिमंडल का भारत दौरा भी चीन की आंखों में खट गया है. चीनी लोगों का मानना है कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति की भारत यात्रा का मुख्य मकसद "यूएस-यूरोप-इजराइल-भारत" आर्थिक गलियारे यानी भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) की योजना को गति देना और उस पर गंभीरता से काम करना था, साथ ही चीन की अहम बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के विस्तार में रोड़े अटकाना था. चीनियों का यह भी कहना है कि वेंस की यात्रा का उद्देश्य स्वेज नहर, बाब अल-मंडेब जलडमरूमध्य और होर्मुज जलडमरूमध्य सहित सभी प्रमुख समुद्री मार्गों पर नियंत्रण हासिल करना भी था.

 

चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि जिस प्रकार से यमन में अमेरिका हूती विद्रोहियों पर कार्रवाई कर रहा है, ईरान पर एक नया परमाणु समझौता करने के लिए दबाव बना रहा है, जिस तरह से गाज़ा की लड़ाई में उसने खुलकर इजराइल का साथ दिया है और जिस प्रकार से वह भारत के साथ गलबहियां कर रहा है, ये सारी बातें साफ ज़ाहिर करती हैं अमेरिका इस पूरे क्षेत्र में अपने रणनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में मज़बूती से आगे बढ़ रहा है. चीनी रणनीतिकारों के मुताबिक़ वर्तमान में जब रूस काफ़ी अर्से से यूक्रेन के साथ युद्ध में फंसा हुआ है और मध्य पूर्व में यानी सीरिया-लेबनान में अपनी इकलौती सामरिक मौज़ूदगी से हाथ धो बैठा है, ऐसे में चीन और अमेरिका दोनों की कोशिश मिडिल ईस्ट में अपनी पकड़ को मज़बूत करने पर है. हालांकि, यह समय ही बताएगा कि मध्य पूर्व से जुड़े मसलों में अमेरिका पहले अपना दबदबा स्थापित करता है, या फिर चीन इसमें बाजी मारता है. चाइना इंस्टीट्यूट्स ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस (CICIR) के वरिष्ठ शोधकर्ता लू चुन्हाओ जैसे चीनी रणनीतिक विशेषज्ञ IMEC परियोजना में दरकिनार किए गए तुर्किये, मिस्र और ईरान जैसे देशों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि इनके और बीजिंग के साझा क्षेत्रीय हित हैं. यानी मौज़ूदा हालातों में इनके साथ चीन के रिश्तों में मज़बूती की पूरी गुंजाइश है, क्यों ये देश भारत की IMEC परियोजना से ख़ुश नहीं हैं. 

 ज़ाहिर है कि बीजिंग के रणनीतिक गलियारों में जो तरह-तरह के विचार-विमर्श चल रहे हैं, उन पर भारत को ध्यान देना चाहिए और हर नज़रिए से इनका विश्लेषण करना चाहिए. 

आगे की राह 

 ज़ाहिर है कि बीजिंग के रणनीतिक गलियारों में जो तरह-तरह के विचार-विमर्श चल रहे हैं, उन पर भारत को ध्यान देना चाहिए और हर नज़रिए से इनका विश्लेषण करना चाहिए. सबसे पहले तो जिस तरह से पिछले दिनों पहलगाम में हुए आतंकी हमले और 7 अक्टूबर, 2023 को इजराइल पर हुए हमास के हमले में समानता नज़र आ रही है, उसके मद्देनज़र भारत को इस तथ्य की गहनता से जांच-पड़ताल करनी चाहिए कि पहलगाम अटैक कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच चली आ रही आपसी खींचतान और दुश्मनी का नतीज़ा है, या फिर इसके पीछे की प्रमुख वजह महाशक्तियों के बीच छिड़ी वर्चस्व की जंग है. जिस दूसरी बात पर भारत को ध्यान देने की ज़रूरत है, वो वैश्विक स्तर पर आर्थिक साझेदारी है. दरअसल, जिस प्रकार से चीन व्यापार और आयात शुल्क को लेकर बेहद संज़ीदा है, ऐसे में भारत को दुनिया भर में अपनी आर्थिक गतिविधियों के विस्तार का नए सिरे से आकलन करना चाहिए. इसके अलावा, इस बारे में पुख्ता रणनीति बनानी चाहिए कि चीन और पाकिस्तान की ओर से खड़ी की गई चुनौतियों और ख़तरों का मुक़ाबला करने में वह अपनी आर्थिक कूटनीति का किस प्रकार बेहतर तरीक़े से इस्तेमाल कर सकता है.


अंतरा घोषाल सिंह ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Author

Antara Ghosal Singh

Antara Ghosal Singh

Antara Ghosal Singh is a Fellow at the Strategic Studies Programme at Observer Research Foundation, New Delhi. Her area of research includes China-India relations, China-India-US ...

Read More +