आतंकवाद एक लगातार बदलता खतरा है जिसने मानवता पर जख्म का एक बड़ा निशान छोड़ा है. ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2023 के अनुसार 2022 में आतंकवादी हमले ज़्यादा घातक हो गए हैं. 2022 में प्रत्येक हमले के दौरान औसतन 1.7 लोगों की मौत हुई जबकि 2021 में ये आंकड़ा 1.3 था. हिंसक संघर्ष अक्सर आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं. 2022 में संघर्ष से प्रभावित देशों में 88 प्रतिशत से ज़्यादा आतंकी हमले और आतंकवाद से 98 प्रतिशत मौतें हुईं. इस रिपोर्ट के अनुसार साहेल रीजन (अफ्रीका का एक क्षेत्र) व्यवस्था और बुनियादी ढांचे के कारणों से आतंकवाद का केंद्र (एपिसेंटर) बना हुआ है. इस क्षेत्र के लोगों को संघर्ष की तरफ ले जाता है यहां का खराब सामाजिक-आर्थिक विकास और जोशपूर्ण (वाइब्रेंट) एवं हिस्सेदारी वाले लोकतंत्र की कमी. प्राकृतिक संसाधनों, खाद्य पदार्थों, पानी, बदलती जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी), जातीय पहचान, बाहरी दखल, भू-राजनीतिक वर्चस्व और इसी तरह की अन्य चीजों के लिए यहां हमेशा लड़ाई चलती रहती है जो अलग-अलग देशों को संघर्ष की तरफ ले जाती है और इसके बदले ये क्षेत्र आतंकवादी संगठनों के लिए फलने-फूलने की जगह बन जाता है. इस तरह अलग-अलग देशों को सहयोग करना चाहिए और इस लड़ाई में हाथ मिलाना चाहिए.
आतंकवाद की परिभाषा
2009 में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक अदालत पर रोम सम्मेलन में इस तथ्य को लेकर दुख जताया गया कि “आतंकवाद और ड्रग्स के अपराधों की कोई सामान्य रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है जिसे कोर्ट के अधिकार क्षेत्र के भीतर शामिल करने पर सहमति बन सके”. सामान्य परिभाषा की इस कमी की वजह से अलग-अलग देशों को अपनी शर्तों के अनुसार आतंकवाद को परिभाषित करना पड़ा जिससे टेररिज्म का अलग-अलग मतलब निकाला गया. इसके बावजूद व्यापक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ऐसी गतिविधि को आतंकवाद के तौर पर परिभाषित करता है जिसमें धमकी या हिंसा के जरिए लोगों या सरकारों पर दबाव बनाया जाता है और जिसकी वजह से लोगों की मौत होती है, वो गंभीर रूप से घायल होते हैं या उन्हें बंधक बनाया जाता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 16 समझौते टेररिज्म के मुद्दे से जुड़े हुए हैं. लेकिन कई बार चर्चा, बहस और विचार-विमर्श के बाद भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय आतंकवाद की एक सामान्य परिभाषा को लेकर सहमत नहीं हो पाया है. 1996 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 49वें सत्र के दौरान भारत ने आतंकवाद से निपटने के लिए एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय कानून का प्रस्ताव दिया था. संयुक्त राष्ट्र (UN) को लिखी गई चिट्ठी में इस बात पर ध्यान दिया गया था कि एक व्यापक कानून की सख्त ज़रूरत है जो कानूनी तौर पर अनिवार्य हो और जो आतंकवाद से जुड़े सभी समझौतों को एक करता हो. इसमें कहा गया कि अक्सर टेररिस्ट किसी एक देश में अपने अभियानों को अंजाम देते हैं और फिर दूसरे देश में पनाह ले लेते हैं. इसलिए इस बात की काफी आवश्यकता है कि इस मामले में एक अंतर्राष्ट्रीय कानून को पारित किया जाए.
संयुक्त राष्ट्र (UN) को लिखी गई चिट्ठी में इस बात पर ध्यान दिया गया था कि एक व्यापक कानून की सख्त ज़रूरत है जो कानूनी तौर पर अनिवार्य हो और जो आतंकवाद से जुड़े सभी समझौतों को एक करता हो.
9/11 के बाद दुनिया
9/11 के आतंकी हमलों की वजह से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने प्रस्ताव 1373 को अपनाया. इस प्रस्ताव के जरिए UN काउंटर-टेररिज्म कमेटी की स्थापना हुई जिसमें UNSC के 15 सदस्य शामिल होते हैं जो प्रस्ताव पर अमल की निगरानी करते हैं. सितंबर 2005 में सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 1624 को अपनाया जिसमें अन्य बातों के अलावा सभी देशों से अपील की गई है कि वो कानून के माध्यम से आतंकवादी घटनाओं को रोकने और शह देने से मना करेंगे. 2005 में संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव कोफी अन्नान की अध्यक्षता में समन्वय और सूचना साझा करने वाली संस्था के रूप में काउंटर-टेररिज्म इम्प्लीमेंटेशन टास्क फोर्स का गठन किया गया. इस संगठन में UN के अलग-अलग विभागों, विशेष एजेंसियों, फंड और अन्य इकाइयों जैसे कि इंटरपोल से 24 प्रतिनिधियों को शामिल किया गया. संयुक्त राष्ट्र ने सितंबर 2006 में वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति को एक प्रस्ताव और एनेक्सचर के रूप में अपनाया. ये आतंकवाद के विरुद्ध राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कोशिशों को बढ़ाने का बुनियादी साधन है. 2021 में संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 2617 पारित किया जिसमें सभी रूपों में आतंकवाद को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरों में से एक होने को दोहराया गया. प्रस्ताव में ये भी कहा गया कि किसी भी तरह की आतंकवादी घटना आपराधिक और अनुचित है, भले ही उसके पीछे की वजह कुछ भी हो. प्रस्ताव में आगे ये भी माना गया कि दहशतगर्दी को केवल सैन्य ताकत, कानून लागू करने के उपायों और इंटेलिजेंस से ही हराया नहीं जा सकता है बल्कि इसके बदले कानून के शासन, मानवाधिकार की रक्षा और मूलभूत स्वतंत्रता, अच्छी शासन व्यवस्था, सहिष्णुता एवं हर समुदाय को साथ लेकर चलने को बढ़ावा देने की आवश्यकता है.
साइबरस्पेस, गेमिंग और नारकोटिक्स
सोशल मीडिया कट्टरपंथ और देश विरोधी तत्वों को बढ़ावा देने का सबसे असरदार जरिया बन गया है. साइबर स्पेस की अनूठी वर्चुअल विशेषता साइबर अपराधियों का पता लगाना मुश्किल बनाती है. पहले आतंक भौतिक क्षेत्रों तक सीमित था लेकिन अब सूचना तकनीक के विकास के साथ आतंकवाद चेहराविहीन बन गया है. दुनिया के किसी भी कोने में सबसे नया बग बनाया जा सकता है और बड़ी आसानी से इसे महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर में इंस्टॉल किया जा सकता है. ये देश के आर्थिक बुनियादी ढांचे को पंगु बना देगा और इसकी ताकत कमजोर हो जाएगी.
प्रस्ताव में ये भी कहा गया कि किसी भी तरह की आतंकवादी घटना आपराधिक और अनुचित है, भले ही उसके पीछे की वजह कुछ भी हो.
चरमपंथी गेमिंग और गेमिंग से जुड़े कंटेंट का भी फायदा उठाने की कोशिश करते हैं. आतंकी संगठनों ने अलग-अलग गेम जैसे कि 2003 में जारी अल-क़ायदा का क्वेस्ट फॉर बुश, हिज्बुल्लाह की स्पेशल फोर्स सीरीज और दाएश (ISIS) के बच्चों वाले गेम हुरूफ के जरिए अपनी विचारधारा का प्रचार किया है. 2011 के ओस्लो अटैक को अंजाम देने वालों का दावा है कि उन्होंने कॉल ऑफ ड्यूटी जैसे वीडियो गेम का इस्तेमाल करके शूटिंग की प्रैक्टिस की थी. हाल के समय में क्राइस्टचर्च और बफेलो में आतंकी हमलों का लेट्स प्ले वीडियो की तरह लाइव स्ट्रीम किया गया और इसमें काफी मशहूर फर्स्ट-पर्सन शूटर गेम्स के विज़ुअल स्टाइल को दोहराया गया. माना जाता है कि दुनिया भर में लगभग 3 अरब गेम से जुड़े लोग हैं और गेमर्स की औसत उम्र 34 साल है. इस तरह गेम से जुड़े लोग उस उम्र समूह के मुताबिक आदर्श हैं जिन्हें आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है.
2020 में 15-64 साल के दुनिया भर के 28 करोड़ 40 लाख लोगों, जिनमें से बहुतायत संख्या पुरुषों की है, ने ड्रग्स का इस्तेमाल किया. इसका मतलब ये है कि उस उम्र समूह के लोगों में 18 में से 1 व्यक्ति या 5.6 प्रतिशत व्यक्ति ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं और 2010 के मुकाबले इसमें 26 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इनमें से करीब 20 करोड़ 90 लाख लोगों ने भांग का इस्तेमाल किया, 6 करोड़ 10 लाख लोगों ने अफीम का इस्तेमाल किया, 3 करोड़ 40 लाख लोगों ने एंफीमेटामाइन का उपयोग किया, 2 करोड़ 10 लाख लोगों ने कोकीन का इस्तेमाल किया और 2 करोड़ लोगों ने एक्सटेसी (MDMA) का उपयोग किया. ड्रग्स सिंडिकेट आतंकी संगठनों को सबसे ज़्यादा पैसा मुहैया कराने वालों में से एक हैं. भारत में मादक पदार्थों के इस्तेमाल के विस्तार और पैटर्न को लेकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सर्वे के अनुसार 10-17 साल के उम्र वर्ग में लगभग 20 लाख लोग भांग का इस्तेमाल करते हैं, 40 लाख लोग अफीम का उपयोग करते हैं और 2 लाख लोग कोकीन का प्रयोग करते हैं. ड्रग्स का इस्तेमाल युवाओं को टारगेट करने के लिए किया जाता है और उन्हें भविष्य में आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए कमजोर बनाया जाता है. ड्रग्स अक्सर सीमा पार तस्करी के जरिए भारत में लाया जाता है और सीमा पर बसे राज्य सबसे बुरी तरह प्रभावित हैं. इस अवैध ड्रग्स तस्करी के नतीजे के रूप में जम्मू और कश्मीर सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में से एक है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार, ये अनुमान है कि 2019-20 में जम्मू-कश्मीर की 1.25 करोड़ आबादी में से कम-से-कम 10 लाख लोग यानी कुल जनसंख्या में 8 प्रतिशत लोग मादक पदार्थों की लत के शिकार हैं. ड्रग्स लेने वाले कुल लोगों में से 1.67 प्रतिशत महिलाएं हैं. इस तरह नारकोटिक्स, सोशल मीडिया और गेमिंग को अक्सर आबादी के एक बड़े हिस्से के बीच चरमपंथी विचारधारा का प्रसार बढ़ाने में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों में से एक के रूप में देखा जाता है.
आगे का रास्ता
भारत सरकार ने UNSC में सुधार को तेज़ करने के लिए पहल की है. ये महत्वपूर्ण है क्योंकि सुधार लाए जाने के बाद जो लोकतांत्रिक सुरक्षा परिषद बनेगी वो ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) के हितों का ध्यान रखेगी. इसके अलावा, हमें गेमिंग इंडस्ट्री के भीतर सेल्फ-रेगुलेशन को सुनिश्चित करना चाहिए ताकि गेम चरमपंथी विचारधारा के प्रसार का माध्यम नहीं बनें. टेरर फंडिंग पर नज़र रखनी होगी और उसे खत्म करना होगा. क्रिप्टो और डार्क नेट के ज़्यादा इस्तेमाल पर सख्ती से नज़र रखनी होगी. साइबर पुलिसिंग को मजबूत करना होगा. अज्ञात खतरों के ख़िलाफ़ अहम बुनियादी ढांचों की सुरक्षा करनी होगी. दुनिया भर के देशों को खुफिया जानकारी साझा करने के तौर-तरीकों को मज़बूत करना होगा. आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक सख्त अंतर्राष्ट्रीय संधि पर बातचीत को आगे बढ़ाना होगा. सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि UN चार्टर में फेरबदल करना चाहिए और किसी भी देश में आतंकी हमले को मानवता पर हमले की तरह मानना चाहिए. जब सामूहिक जवाबदेही होगी तभी कोई देश आतंकवाद को सरकार की नीति के साधन के तौर पर इस्तेमाल करने से बाज आएगा. गवर्नेंस के सभी क्षेत्रों में बहुपक्षीय हिस्सेदारी को बढ़ाना होगा. खेल जैसी गतिविधियों के बारे में पाया गया है कि ये लोगों के बीच भाईचारे की भावना सिखाती है और लोगों को चरमपंथ से दूर रखती है. संसाधनों पर व्यक्तिगत अधिकार को सामुदायिक स्वामित्व की भावना में बदलने की आवश्यकता है और ट्रस्टीशिप के सिद्धांत को मजबूत करना होगा. सिविल सोसायटी संगठनों और सरकारों को अलग-अलग देशों के लोगों के बीच अधिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना चाहिए. आतंकवाद का ये रवैया होता है कि वो संघर्ष से जूझ रहे उन देशों में अपने पैर फैलाता है जहां गवर्नेंस की कमजोर व्यवस्था, खराब आपराधिक न्याय प्रणाली और कमजोर अर्थव्यवस्था है. इसलिए हर देश को इन कमजोर देशों की पहचान करने के लिए सामूहिक तौर पर काम करने और ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि इस तरह के देश हर क्षेत्र में प्रगति का एक महत्वपूर्ण स्तर हासिल कर सकें. प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार ये दोहराया है कि दुनिया को इस सीख को अपनाना चाहिए कि “नाथि शांति परमसुखम” यानी शांति से बढ़कर कोई आनंद नहीं है और “एकम सद विप्रा बहुधा वदंति, वसुधैव कुटुंबकम” यानी सत्य एक है और संत इसे अलग-अलग नामों से बुलाते हैं, पूरा विश्व एक परिवार है. अगर पूरी दुनिया इस सिद्धांत को सामूहिक रूप से अपनाती है तो हम शांति देखेंगे और दुनिया में भाईचारा वास्तविकता में बदल जाएगा. केवल सहयोग, पारस्परिक मेलजोल और अलग-अलग देशों के बीच विश्वास की बहाली से ही हम आज के समय में वैश्विक आतंकवाद का मुकाबला कर सकते हैं.
सुमालता अंबरीश संसद (लोकसभा) सदस्य हैं. साथ ही वो आतंकवाद से मुकाबले और हिंसक चरमपंथ को लेकर इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन की उच्च-स्तरीय सलाहकार समिति की सदस्य भी हैं.
आदर्श कुनियिल्लम पॉलिसी एनेलिस्ट हैं.
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