प्राकृतिक आपदाओं की कोई सीमा नहीं होती. यही बात जलवायु परिवर्तन के असर को लेकर भी लागू होती है. लेकिन इस तरह की किसी भी बात में दो मूलभूत भ्रांतियां हैं. पहली ये कि जलवायु परिवर्तन क़ुदरती तबाही की तुलना में काफ़ी व्यापक और ज़्यादा जटिल घटना है और दूसरी ये कि जलवायु की तबाही का असर हर जगह एक जैसा नहीं होता है. ये सवाल कि इस संकट से कौन प्रभावित हुआ है और किस हद तक, इसका निर्धारण किसी व्यक्ति की सामाजिक-आर्थिक स्थिति से होता है और पहले से मौजूद असमानता के कारण हालात बिगड़ते हैं. इस तरह की एक असमानता लैंगिक है जिसका हम इस लेख में पता लगाने की कोशिश करेंगे.