कोरियाई प्रायद्वीप के पहले से ही उलझे सुरक्षा संबंधी डायनेमिक्स क्षेत्र की हाल की घटनाओं के मद्देनजर और ज्यादा जटिल होते जा रहे हैं। जहां एक ओर उत्तर कोरिया लगातार मिसाइल परीक्षण कर रहा है, वहीं दूसरी ओर दक्षिण कोरिया द्वारा व्यापक घरेलू अस्थिरता के बाद नई सरकार का चयन किए जाने के बीच क्षेत्र में अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। दक्षिण कोरिया के दीर्घकालिक सहयोगी, अमेरिका ने हाल ही में उत्तर कोरिया द्वारा बार-बार की जा रही उकसावे की कार्रवाइयों की प्रतिक्रिया में दक्षिण कोरिया के सियोंग्जू में शक्तिशाली एंटी मिसाइल-टर्मिनल हाई आल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (टीएचएएडी) स्थापित की है। इससे बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय चिंता उत्पन्न हो गई है, क्योंकि चीन टीएचएएडी को विशेषकर दक्षिण चीन सागर में अपनी सैन्य कार्रवाइयों के लिए खतरे के तौर पर देख रहा है। टीएचएएडी की स्थापना के बाद चीन ने अपना मुखर विरोध प्रदर्शित करने के लिए अपने यहां कारोबार कर रही अनेक दक्षिण कोरियाई कम्पनियों को बंद कर दिया और बोहाई सागर पर मिसाइल का परीक्षण किया। हालांकि इस समस्या की जड़ उत्तर कोरिया की दुष्ट प्रकृति और अंतर्राष्ट्रीय नियमों एवं समझौतों के प्रति उसकी अवहेलना में देखी जा सकती है। चीन को समझना होगा कि टीएचएएडी की तैनाती जैसी रक्षात्मक व्यवस्थाओं की वजह उत्तर कोरिया का आक्रामक परमाणु रुख है। अगर चीन दक्षिण कोरिया पर प्रहार करने की जगह कोरियाई प्रायद्वीप के विषय में अपनी नीति की फिर से रणनीति तय करे और उत्तर कोरिया के संबंध में अपनी स्थिति का फायदा उठाए, तो यह सभी पक्षों के लिए लाभकारी होगा।
टीएचएएडी प्रणाली शॉर्ट, मीडियम और इंटरमीडिएड रेंज वाली बेलिस्टिक मिसाइलों का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने के लिए बनाई गई है। इसमें मुखास्त्र या वॉरहैड नहीं होता, लेकिन यह अपनी ओर बढ़ने वाली मिसाइल को नष्ट करने के लिए की इम्पैक्ट की कायनैटिक एनर्जी का इस्तेमाल करती है। टीएचएएडी कोरिया गणराज्य में 2017 के राष्ट्रपति चुनाव से चंद हफ्ते पहले जल्दबाजी में तैनात की गई थी। इन चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार श्री मून जाये-इन को जीत मिली। श्री मून के पूर्ववर्ती कंजर्वेटिव नेता पार्क गुएन-हाये ने इसकी तैनाती को सहमति दी थी। अमेरिका का दावा है कि टीएचएएडी अनिश्चित मिसाइल परीक्षणों और उत्तर कोरिया द्वारा संचालित किसी भी संभावित हमले दक्षिण कोरिया की हिफाजत करेगी।
टीएचएएडी कोरिया गणराज्य में 2017 के राष्ट्रपति चुनाव से चंद हफ्ते पहले जल्दबाजी में तैनात की गई थी। इन चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार श्री मून जाये-इन को जीत मिली। श्री मून के पूर्ववर्ती कंजर्वैटिव नेता पार्क गुएन-हाये ने इसकी तैनाती को सहमति दी थी।
इस साल डीपीआरके यानी उत्तर कोरिया द्वारा अनेक बार मिसाइलों का परीक्षण किया गया है, जिनमें से ज्यादातर जापान के सागर में जा समाई हैं। फरवरी में, लैंड बेस्ड केएन 15 मिसाइल दागी थी और उसने 310 मील तक की दूरी तय की थी। उत्तर कोरिया के लिए यह उल्लेखनीय उपलब्धि थी, क्योंकि यह मिसाइल लांचर से दागी गई उसकी पहली सॉलिड-फ्यूल्डिड मिसाइल थी। मार्च के शुरूआती दिनों में उसने पांच मीडियम-रेंज वाली स्कड-टाइप मिसाइले दागीं। इनमें से तीन जापानी विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र के दायरे में जलक्षेत्र में जा गिरीं। इसके बाद उसने कुछ परीक्षण और किए, जो नाकाम रहे। उत्तर कोरिया के सबसे सफल परीक्षणों में से एक मई में किया गया इंटरमिडिएड रेंज बेलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण था। इसने 700 किलोमीटर से ज्यादा की क्षैतिज या हॉरिजेंटल दूरी तय की और दक्षिण कोरिया में तैनात टीएचएएडी द्वारा इसका पता लगाया गया। इस परीक्षण प्रक्षेपण ने इंटर कॉन्टीनेन्टल बेलिस्टिक मिसाइल मसलन री-एंट्री टैक्नोलॉजी और बेहतर इंजन परफॉर्मेन्स की क्षमता विकसित करने में उत्तर कोरिया की उल्लेखनीय प्रगति की ओर इशारा किया। इनके बारे में विशेषज्ञों का दावा है कि ये अमेरिका को निशाना बना सकती हैं।
कोरिया गणराज्य को पूरे क्षेत्रीय हालात का विश्लेषण करने से पहले घरेलू स्तर पर बदली राजनीतिक वास्तविकता का आकलन करने की जरूरत है। उदारवादी उम्मीदवार मून जाये-इन की जीत देश में लगभग दशक भर तक चले कंजर्वेटिव शासन की समाप्ति का प्रतीक है। उदारवादी सरकारें 1998 और 2008 के बीच सत्ता में रहीं, उस दौरान अंतर-कोरियाई संबंधों में काफी स्थिरता थी। उत्तर कोरिया के प्रति दक्षिण कोरिया की “सनशाइन पॉलिसी” ने दोनों देशों के बीच व्यापक कूटनीतिक और आर्थिक सहयोग प्राप्त किया था और तत्कालीन राष्ट्रपति किम-दाये-जंग को शांति का नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कराया था। श्री मून जाये-इन दरअसल किम के उत्तराधिकारी राष्ट्रपति रोह-मू-ह्यून के चीफ ऑफ स्टाफ के रूप में सेवाएं दे चुके हैं, उन्होंने इसी नीति को आगे बढ़ाया। राष्ट्रपति मून की उत्तर कोरिया के साथ बातचीत दोबारा शुरू करने की इच्छा को “सनशाइन पॉलिसी 2.0” का नाम दिया गया, यह डीपीआरके के साथ दो-तरफा संबंध था-एक ओर बातचीत शुरू करने की कोशिश करना तथा दूसरी ओर दबाव एवं प्रतिबंध बरकरार रखना। उनके इस रुख के कारण आलोचक, विशेषकर पुरानी पीढ़ी के आलोचकों ने उन पर उत्तर का समर्थक होने का ठप्पा लगा दिया। कंजर्वेटिव सरकार के विपरीत, उनके प्रशासन ने अमेरिका के साथ दक्षिण कोरिया के संबंधों में बदलाव लाने की कोशिश की। जब क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सुरक्षा की बात आई, तो श्री मून ने अमेरिका पर निर्भरता कम करने का आह्वान किया।
दक्षिण कोरिया में टीएचएएडी की स्थापना के फौरन बाद, चीन सरकार ने अपेक्षा के मुताबिक हो-हल्ला मचा दिया। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने इसकी तैनाती पर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हुए चेतावनी दी कि चीन अपने हितों की रक्षा के लिए “आवश्यक उपाय करने को तैयार है।” चीन को आशंका है कि चीनी इलाका भी टीएचएएडी की निगरानी के दायरे में आ जाएगा, जिससे अमेरिका, दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियों सहित उसकी सैन्य गतिविधियों पर नजर रख सकेगा। चीन सबसे ज्यादा इस बात को लेकर चिंतित है कि टीएचएएडी, क्षेत्र में उसकी रणनीतिक बढ़त को बेअसर कर देगी और भविष्य में संघर्ष होने की स्थिति में अमेरिका को बहुत बड़ा फायदा पहुंचाएगी। अमेरिकी अधिकारियों ने तत्काल चीन का विरोध करते हुए इस ओर संकेत किया कि टीएचएएडी आक्रामक नहीं, बल्कि एक रक्षात्मक हथियार है और यह चीन या रूस की रणनीतिक प्रतिरोधकता को प्रभावित नहीं करेगी।हालांकि क्षेत्र में प्रबल प्रभाव वाली स्थिति की दोबारा पुष्टि करने के लिए चीन की ओर से कोरियाई प्रायद्वीप के आसपास के जलक्षेत्र में किए गए नई किस्म की मिसाइल के परीक्षण को इस तैनाती की जवाबी प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया।एक दुर्लभ हाई प्रोफाइल घोषणा में, रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट (मिसाइल) फोर्स ने अपनी ऑपरेशनल क्षमता बढ़ाने और “खतरों से कारगर ढंग से निपटने के लिए” बोहाई सागर में गाइडेड मिसाइल का सफल परीक्षण किया है। इसके अलावा चीन ने दक्षिण कोरिया की कम्पनी लोट्टे की अपने देश में मौजूद रिटेल फेसिलिटीज को बंद करके प्रहार किया। उसकी इस प्रतिक्रिया के पीछे अस्पष्ट कारण यह था कि लोट्टे ने टीएचएएडी की स्थापना के लिए जमीन उपलब्ध कराई थी। चीन ने मनोरंजन क्षेत्र में दक्षिण कोरियाई फिल्मों के खिलाफ रुख अपनाया और पर्यटन के क्षेत्र में भी बदले की कार्रवाई की। दक्षिण कोरियाई वस्तुओं की ऑनलाइन बिक्री बंद करवा दी। दक्षिण कोरिया के रिजॉट आइलैंड जेजू में चीनी पर्यटकों की संख्या में बेतहाशा कमी आई। बैंक ऑफ कोरिया के रिसर्च डिपार्टमेंट के डायरेक्टर जनरल श्री चेंग मिन का अनुमान है कि चीन के बहिष्कार से दक्षिण कोरिया की आर्थिक वृद्धि पर असर पड़ेगा।
चीन इस बात को लेकर चिंतित है कि टीएचएएडी क्षेत्र में उसकी रणनीतिक बढ़त को बेअसर कर देगी और भविष्य में संघर्ष होने की स्थिति में अमेरिका को बहुत बड़ा फायदा पहुंचाएगी।
हालांकि दक्षिण कोरिया के खिलाफ कड़ी आर्थिक प्रतिक्रिया से दोनों कोरियाई देशों के बीच जारी दीर्घकालिक संकट का कोई समाधान निकल पाना असम्भव है। चीन को अपनी कोरियाई नीति तैयार करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखने की जरूरत है। अमेरिका पर झल्लाने और दक्षिण कोरिया पर प्रतिबंध लगाने की बजाए, चीन, उत्तर कोरिया पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सकता है और उसे बातचीत के लिए राजी कर सकता है। चीन को, एशिया प्रशांत की प्रबल ताकतों में से एक होने के नाते क्षेत्रीय स्थायित्व सुनिश्चित करना चाहिए तथा क्षेत्र की समग्र आर्थिक और विकास संबंधित प्रगति के लिए नहीं, तो कम से कम अपने ही लाभ की खातिर ही सही सैन्य विस्तार नहीं करना चाहिए।
चीन का उत्तर कोरिया के साथ समग्र विदेशी व्यापार पर नियंत्रण है और विवादास्पद रूप से वह उसका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सहयोगी है। चीन ने उत्तर कोरिया के बारे में बड़ी सतर्क भूमिका निभाई है। उसने डीपीआरके खिलाफ कड़े अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का कड़ा विरोध किया है और जहां एक ओर किम योंग-उन के शासन का समर्थन किया है, लेकिन साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कुछ प्रतिबंधों का समर्थन यह दर्शाने के लिए किया गया है कि ऐसा अंतर्राष्ट्रीय सर्वसम्मति और नियमों को ध्यान में रख कर किया गया है।
हालांकि चीन प्रतिबंधों के लिए कभी ज्यादा जोर नहीं देगा, क्योंकि उसे आशंका है कि शासन के ध्वस्त होने जाने के बाद अमेरिका समर्थित दक्षिण कोरियाई सरकार की अगुवाई में प्रायद्वीप के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। इस तरह, चीन उत्तर कोरिया पर ज्यादा दबाव बनाने से बचता आया है और इसके विपरीत वह व्यापार में कमी लाकर और ताकत दिखाकर दक्षिण कोरिया के लिए उच्च मानक या लक्ष्य तय करता आया है। हालांकि उत्तर कोरिया के परमाणु खतरे पर काबू पर पाना चीन सहित सभी देशों की प्राथमिकता होना चाहिए। यह दलील दी जा सकती है कि चीन को लड़ाकू डीपीआरके से फायदा पहुंच सकता है, क्योंकि वह क्षेत्र में अमेरिकी मौजूदगी से निपटना सुनिश्चित करेगा। हालांकि यह संतुलन बनाने की स्थायी कार्रवाई नहीं है, क्योंकि उत्तर कोरिया बेहद अनिश्चित और अविश्वसनीय है।
चीन ने उत्तर कोरिया की परमाणु महत्वाकांक्षा के प्रति शिथिल रवैये के संकेत दिए हैं। उसने 2003 में छह पक्षीय वार्ता की शुरूआत की थी, जो 2009 में डीपीआरके के बहिष्कार के बाद अपनी राह से भटक गई। यह वार्ता उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करने के लक्ष्य के साथ चीन, अमेरिका, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, जापान को रूस को शामिल करते हुए शुरू की गई थी। बरसों तक उत्तर कोरिया के उकसावे और अनुचित मिसाइल परीक्षणों की वजह से इस वार्ता में बार-बार रुकावटे आती रहीं। और तो और उत्तर कोरिया ने अपने बयानों का ही पालन करने से इंकार कर दिया। 2012 में, डीपीआरके ने घोषणा की कि वह अमेरिका से भोजन के बदले में परमाणु परीक्षण रोक देगा, लेकिन इसके फौरन बाद ही उसने लम्बी दूरी तक मार करने वाली एक मिसाइल का परीक्षण किया। हालांकि चीन ने उत्तर कोरिया को नियंत्रित करने की दिशा में कुछ कम प्रयास नहीं किए। उसे इस दुष्चक्र से बचने और उसे तोड़ने तथा उत्तर कोरिया से व्यवस्थित तरीके से निपटने की जरूरत है।
जब तक उत्तर कोरिया अपनी मिसाइलों का परीक्षण करता रहेगा और परमाणु तनाव बढ़ाता जाएगा, तब तक अमेरिका और उसके सहयोगी टीएचएएडी जैसी प्रतिरोधक कार्रवाइयां करना जारी रखेंगे। इसलिए चीन के लिए बेहतर यही होगा कि वह संबंधित पक्षों के बीच वार्ता शुरू कराए और जब जरूरी हो, तो व्यवहार में तब्दीली लाने के लिए प्रेरित करते हुए उत्तर कोरिया पर कूटनीतिक और आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए। दक्षिण कोरिया की कमान राष्ट्रपति मून के हाथ में है, इसलिए यह वार्ता शुरू करने का बिल्कुल मुनासिब समय है। उत्तर कोरिया, चीन द्वारा बनाए गए दबाव पर कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करेगा, इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। चीन ने हाल ही में मिसाइल परीक्षणों के खिलाफ विरोध प्रकट करने के लिए उत्तर कोरिया से कोयले का आयात बंद किया है। यदि चीन कोरियाई प्रायद्वीप में स्थिरता चाहता है तो यह उसका उत्तरदायित्व है कि वह इन प्रतिबंधों को बरकरार रखे।
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