Author : Abhijit Singh

Published on Aug 25, 2022 Updated 26 Days ago

भारत के सुरक्षा अधिकारियों को चिंता है कि चीन जहाज़ के दौरे का इस्तेमाल भविष्य में श्रीलंका में अपने युद्धपोतों की तैनाती के लिए एक मिसाल के तौर पर करेगा.

चीन के ‘जासूस जहाज़’ से भारत के सामने धर्मसंकट

श्रीलंका में चीन के एक रिसर्च जहाज़ की मौजूदगी ने भारत में कुछ हद तक घबराहट पैदा कर दी है. कुछ दिन पहले जब भारतीय विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि अंतरिक्ष और सैटेलाइट पर नज़र रखने वाले चीन के जहाज़ युवान वांग-5 के दौरे पर सावधानी से नज़र रखी जा रही है तो भारत को आम तौर पर ये भरोसा था कि श्रीलंका ऐसी किसी बात की इजाज़त नहीं देगा जो भारत के सुरक्षा हितों पर चोट पहुंचाएगी. भारत के अधिकारियों ने युवान वांग-5 की खुफ़िया जानकारी इकट्ठा करने की बताई जा रही क्षमता को लेकर अपनी चिंता जताई थी. 

अब भारत का ये भरोसा टूट चुका है. सुरक्षा कारणों का हवाला देकर चीन को अपने रिसर्च जहाज़ के हम्बनटोटा बंदरगाह के दौरे को टालने के लिए कहने के कुछ दिनों के बाद श्रीलंका अपने फ़ैसले से पलट गया.

अब भारत का ये भरोसा टूट चुका है. सुरक्षा कारणों का हवाला देकर चीन को अपने रिसर्च जहाज़ के हम्बनटोटा बंदरगाह के दौरे को टालने के लिए कहने के कुछ दिनों के बाद श्रीलंका अपने फ़ैसले से पलट गया. इसके पीछे की वजह अभी भी साफ़ नहीं है लेकिन ऐसा लगता है कि श्रीलंका के अधिकारियों को ये दलील देकर तैयार कर लिया गया कि हम्बनटोटा बंदरगाह जाने वाले जहाज़ को एक युद्धपोत की श्रेणी में नहीं रखा गया है और इसलिए इसके वहां जाने पर कोई रोक नहीं है. अंतरिक्ष और सैटेलाइट पर नज़र रखने वाले जहाज़ के तौर पर युवान वांग-5 भारत की “एकता, अखंडता और सुरक्षा” के लिए कोई ख़तरा नहीं है, कम-से-कम इस तरह से तो बिल्कुल नहीं कि 1987 के भारत-श्रीलंका संधि का उल्लंघन होता है. 1987 की संधि में दोनों देशों ने इस बात पर सहमति जताई थी कि वो अपने-अपने देश में एक-दूसरे के लिए ख़तरा बनने वाली विदेशी गतिविधियों को रोकेंगे. 

इस बात की संभावना है कि श्रीलंका की सरकार अपने प्रमुख विकास साझेदार चीन के दबाव के आगे झुक गई. श्रीलंका की तरफ़ से शुरुआत में चीन के जहाज़ को आने देने से इनकार ने चीन को नाराज़ कर दिया. चीन के अधिकारियों ने एक रिसर्च जहाज़ की सिर्फ़ “भराई” रोके जाने की “बेमतलब कोशिश” के लिए श्रीलंका की आलोचना की. चीन ने “उपयुक्त पक्षों” (अस्पष्ट रूप से भारत की तरफ़ ज़िक्र) से चीन के समुद्री वैज्ञानिक रिसर्च मिशन को संदर्भ में देखने और “सामान्य एवं वैध समुद्री गतिविधि में हस्तक्षेप से बाज आने” का अनुरोध किया. 

भारत के लिए वास्तविकता ये है कि चीन के पास हम्बनटोटा बंदरगाह 99 वर्षों के लिए है और वो इसका इस्तेमाल अपने मनमुताबिक ग़ैर-सैन्य गतिविधि करने के लिए स्वतंत्र है.

ऐसा लगता है कि युवान वांग-5 के दौरे का दो ढंग से मतलब लगाया जा सकता है. एक मतलब ये है कि खुलेपन और पारदर्शिता के युग में समुद्र में टोह लगाना एक वैध गतिविधि है. कुछ भारतीय विश्लेषकों ने भी टिप्पणी की है कि दोस्त और शत्रु एशियाई समुद्री तट में नियमित रूप से जासूसी की गतिविधियों को अंजाम देते हैं, इस दौरान क्षेत्रीय देश अपने-अपने समुद्री इलाक़े में विदेशी निगरानी पर नज़र रखते हैं. भारत के लिए वास्तविकता ये है कि चीन के पास हम्बनटोटा बंदरगाह 99 वर्षों के लिए है और वो इसका इस्तेमाल अपने मनमुताबिक ग़ैर-सैन्य गतिविधि करने के लिए स्वतंत्र है. 

हिंद महासागर में चीन की रणनीति

लेकिन युवान वांग-5 की तैनाती को चीन की बदलती हिंद महासागर की रणनीति के संदर्भ में भी देखा जा सकता है. चीन भले ही इस क्षेत्र में भौतिक रूप से अपना दबदबा नहीं बढ़ाए लेकिन वो अपने सामरिक उद्देश्यों के लिए यहां अच्छा माहौल बना सकता है. चीन यदा-कदा ही हिंद महासागर में अपनी नौसेना की शक्ति का प्रदर्शन करता है; उसके दृष्टिकोण का उद्देश्य कुछ हद तक सैन्य मौजूदगी का धीरे-धीरे विस्तार करके समुद्री तटों में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाना है. बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर में चीन युद्धपोत नहीं बल्कि सर्वे और रिसर्च जहाज़ भेजता रहा है. इसका मक़सद क्षेत्र में अपनी मौजूदगी को दिखाना है. चीन की योजना भारत और बंगाल की खाड़ी के इर्द-गिर्द बसे देशों को ये दिखाना है कि चीन की गतिविधियां विश्व में चीन के बढ़ते महत्व के अनुसार हैं. उसने इस क्षेत्र के देशों को ये भरोसा फिर से देने की कोशिश की है कि जब तक अभियान से जुड़े कारणों के लिए ज़रूरी नहीं हो, तब तक वो विदेशी बंदरगाहों में जहाज़ों की तैनाती से परहेज करेगा. 

लेकिन इसके बावजूद चीन हमेशा पश्चिमी प्रशांत और हिंद महासागर- दोनों जगह अपना दायरा बढ़ाने की कोशिश करता है. दक्षिणी चीन सागर में चीन समुद्री सेना का इस्तेमाल अपनी संप्रभुता के हितों के लिए हानिकारक बनने वाली किसी भी तरह की गतिविधि के मामले में चेतावनी देने के लिए करता है. हिंद महासागर में चीन की नीति धीरे-धीरे और लगातार अतिक्रमण की है जिससे चीन की सामरिक स्थिति का विस्तार होता है और स्वाभाविक प्रभाव वाले क्षेत्रों के बाहर चीन के अधिकारों एवं हितों को दृढ़तापूर्वक कहा जाता है. ये तरीक़ा आवश्यक रूप से क्षेत्रीय शक्तियों के लिए ख़तरा नहीं है बल्कि ये चाहे-अनचाहे ढंग से उन देशों की चीन के साथ मुक़ाबला करने की क्षमता को कमज़ोर करता है. भले ही चीन स्वाभाविक रूप से बुरा चाहने वाला न हो लेकिन उसकी रणनीति कई तरह से दूसरे देशों के हितों के लिए नुक़सानदेह दिखती है. 

श्रीलंका के विशेषज्ञ दावे के साथ कहते हैं कि चीन “हम्बनटोटा बंदरगाह का व्यावसायिक और सैन्य- दोनों इस्तेमाल कर रहा है”. इस कवायद का मक़सद द्वीपीय देश में चीन की सामरिक गतिविधियों के लिए बेहतर माहौल तैयार करना है. 

श्रीलंका में चीन की गतिविधियां जायज़ हैं या नहीं, इसे मापने का पैमाना ये होगा कि चीन की कार्रवाई श्रीलंका के सामरिक विशेषज्ञों को स्वीकार है या नहीं. इनमें से ज़्यादातर का नज़रिया ये कहता हुआ दिखाई देता है कि चीन की तैनाती विवादित है. श्रीलंका के विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन का लक्ष्य श्रीलंका के कर्ज़ में डूबे होने का फ़ायदा उठाकर अपने सामरिक महत्व को दिखाना है. 

श्रीलंका के विशेषज्ञ दावे के साथ कहते हैं कि चीन “हम्बनटोटा बंदरगाह का व्यावसायिक और सैन्य- दोनों इस्तेमाल कर रहा है”. इस कवायद का मक़सद द्वीपीय देश में चीन की सामरिक गतिविधियों के लिए बेहतर माहौल तैयार करना है. 

भारत की सुरक्षा चिंताएं

इस तरह भारत की चिंता सिर्फ़ ये नहीं है कि युवान वांग-5 एक जासूसी वाला जहाज़ हो सकता है. भारत के सुरक्षा अधिकारियों की चिंता है कि चीन जहाज़ के दौरे का इस्तेमाल भविष्य में श्रीलंका में अपने युद्धपोतों की तैनाती के लिए एक तरह के उदाहरण के तौर पर करेगा, चीन जहाज़ से सामान उतारने और लादने का काम बता देगा. पहले से ही पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (प्लान) हिंद महासागर के क्षेत्र (आईओआर) में साजो-सामान का अड्डा सक्रिय रूप से तलाश रही है. ख़बरों के मुताबिक़ पाकिस्तान के ग्वादर में दो तरह के इस्तेमाल की सुविधा तैयार करने के बाद चीन केन्या, कंबोडिया, सेशेल्स और मॉरिशस में भी इसी तरह की सुविधा बनाने की योजना तैयार कर रहा है. भारतीय समीक्षकों को संदेह है कि चीन के द्वारा इस तरह की तैनाती हिंद महासागर में सुरक्षा और आर्थिक सहायता मुहैया कराने वाले देश के रूप में अपना भरोसा स्थापित करने की एक बड़ी योजना का हिस्सा है. 

ख़बरों के मुताबिक़ पाकिस्तान के ग्वादर में ‘दो तरह के इस्तेमाल’ की सुविधा तैयार करने के बाद चीन केन्या, कंबोडिया, सेशेल्स और मॉरिशस में भी इसी तरह की सुविधा बनाने की योजना तैयार कर रहा है.

युवान वांग-5 का श्रीलंका दौरा भारत के सामने एक बड़ा नैतिक धर्मसंकट है: क्या उसे अपने समुद्री किनारे में एक संदेहास्पद मानी जा रही विदेशी गतिविधि को अनुमति, सिर्फ़ इसलिए कि इसे एक सिद्धांत पर आधारित (वैज्ञानिक रिसर्च) अभियान को बढ़ावा देने वाला कहा जा रहा है, देनी चाहिए? क्या चीन को बिना किसी रोक-टोक के तटीय क्षेत्र के देशों की सुरक्षा चिंताओं के आगे इस्तेमाल करने वाले देश के अधिकारों पर विशेषाधिकार देने वाले अंतर्राष्ट्रीय नियमों की एक संस्था की सवारी करने की अनुमति दी जा सकती है? संक्षेप में, भारत को निश्चित रूप से क़ानून (और औचित्य) के तहत ज़रूरी कार्रवाई और अपने नज़दीकी समुद्र में विशेष अधिकार की मांग के बीच चुनना चाहिए- विशेष रूप से उस परिस्थिति में जब अंतर्राष्ट्रीय नियम भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डालने वाली विदेशी गतिविधियों के बारे में पूरी तरह परवाह नहीं करते हैं. ये एक शरारतभरी समस्या है जिसका कोई आसान जवाब नहीं है लेकिन भारत को निश्चित रूप से कार्रवाई करनी चाहिए. समय बड़ा बलवान है. 

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