ये लेख हमारी चाइना क्रॉनिकल्स सीरीज़ की 163वीं किस्त है
अप्रैल में एशिया के वार्षिक सम्मेलन के बोआओ मंच से अपने भाषण के दौरान, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने महत्वाकांक्षी ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव (GSI) का ऐलान किया था. उन्होंने इस पहल को दुनिया की सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से निपटने की एक व्यापक रूप-रेखा के तौर पर पेश किया था. इन चुनौतियों में वैश्विक सुरक्षा को बनाए रखना, क्षेत्रीय संगठनों के बीच समन्वय को बढ़ाना और पारंपरिक संघर्षों से लेकर जलवायु परिवर्तन और साइबर सुरक्षा जैसी तमाम चुनौतियों से पार पाना था. चीन का अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में शामिल होना एक दुर्लभ बात हुआ करती थी. वो हमेशा ही निरपेक्ष दर्शक बनने और अपने लचीलेपन को बनाए रखने को तरज़ीह देता रहा था. ऐसे में वैश्विक सुरक्षा के मसलों को लेकर चीन के रुख़ और इसके पीछे का असल मक़सद, काफ़ी चर्चा परिचर्चा का विषय बन गया.
GSI चीन द्वारा सुरक्षा मुहैया कराने वाले एक अग्रणी देश के तौर पर उसकी भूमिका को संस्थागत बनाने का प्रयास है. दूसरे शब्दों में कहें तो ये चीन की वो कूटनीतिक प्रतिष्ठा हासिल करने की दिशा में पहला क़दम है
इसके बावजूद, सुरक्षा पर चीन का ज़ोर देना कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए. 2013 में जब से चीन ने अपने बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का ऐलान किया था, तब से ही उसने सीमित संवाद की अपनी पारंपरिक भूमिका से आगे जाकर अलग अलग संघर्षों में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी थी और मध्यस्थ के तौर पर अधिक प्रभावी भूमिका निभाने लगा था. आज जब चीन का आर्थिक दबदबा दुनिया में बढ़ता जा रहा है, तो वो दक्षिणी एशिया. अफ्रीका, मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका में ज़्यादा से ज़्यादा राजनीतिक प्रभाव हासिल करने का प्रयास बढ़ा रहा है. इसीलिए, GSI चीन द्वारा सुरक्षा मुहैया कराने वाले एक अग्रणी देश के तौर पर उसकी भूमिका को संस्थागत बनाने का प्रयास है. दूसरे शब्दों में कहें तो ये चीन की वो कूटनीतिक प्रतिष्ठा हासिल करने की दिशा में पहला क़दम है, जिसके तहत वो दुनिया के अलग अलग संघर्षों पर अपना असर डाल पाने में अधिक सक्षम बन सकेगा. एलिज़ाबेथ सी. इकॉनमी अपनी क़िताब ‘दि वर्ल्ड एकॉर्डिंग टू चाइना’ में ये राय व्यक्त करती हैं कि चीन का अंतिम लक्ष्य न केवल मौजूदा विश्व व्यवस्था को अपने मुताबिक ढालना है, बल्कि उसकी जगह चीन केंद्रित एक नई विश्व व्यवस्था का निर्माण करना भी है.
चीन का संघर्षों के प्रबंधन का तरीक़ा अभी भी मुख्य रूप से अपने सुरक्षा संबंधी और आर्थिक हितों पर केंद्रित है. इसकी ख़ूबी भागीदारी करना और सीधे तौर पर शामिल होने से बचना है. हालांकि, चीन एक ऐसा नया ढांचा खड़ा करने की ज़मीन तैयार करने के प्रयास में बड़ी गहराई से से भाग ले रहा है, जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के उभार में योगदान देगा. ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव चीन के नवजीवन के संचार की दिशा में एक निर्णायक क़दम है, जिसे सुरक्षा के एक वैकल्पिक ढांचे के निर्माण का ख़्वाब देखने वाला ‘चाइना ड्रीम’ भी कहा जाता है.
अफ्रीका में विवादों के निपटारे के लिए चीन के अलग अलग सिद्धांत
पिछले कुछ वर्षों के दौरान चीन ने अफ्रीका में तो विशेष रूप से वैश्विक सुरक्षा मुहैया कराने वाले देश के तौर पर अपनी भूमिका का निर्माण बहुत मज़बूती से किया है. GSI की घोषणा से एक महीने पहले मार्च 2022 में चीन ने ‘आउटलुक ऑन पीस ऐंड डेवलपमेंट इन दि हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ का प्रस्ताव रखा था. इसका मक़सद इथियोपिया और हॉर्न ऑफ अफ्रीका में चीन की अगुवाई में शांति प्रक्रिया को बढ़ावा देना था. इस वक़्त चीन के मध्यस्थता के तौर तरीक़ों और अफ्रीका के लिए GSI के संभावित परिणामों को लेकर काफ़ी परिचर्चाएं छिड़ी हुई हैं.
निश्चित रूप से पिछले कई वर्षों के दौरान अफ्रीका के साथ अपने रिश्तों में चीन ने अंदरूनी राजनीति में दख़लंदाज़ी न करने की नीति को अपनाया है और अपना ज़ोर सिर्फ़ आर्थिक पहलुओं पर बनाए रखा है. इस नीति की जड़ें शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के उन पांच सिद्धांतों (पंचशील) से जुड़ी हुई हैं, जिनका एलान चाऊ एनलाई ने 1954 में किया था. हालांकि, इथियोपिया, माली, सोमालिया और अब नाइजर जैसे अफ्रीका के अलग अलग इलाक़ों में चीन की हालिया कूटनीतिक भागीदारी ये उजागर करती है कि अब चीन संघर्ष वाले इलाक़ों में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का इरादा रखता है. कुछ विद्वान इसे दख़लंदाज़ी न करने से सक्रिय भागीदारी की ओर आई तब्दीली कहते हैं. ज़ाहिर है कि इस व्यावहारिक रवैए, यानी चीन की ख़ूबियों वाली दख़लंदाज़ी न करने की नीति ने चीन की विदेश नीति के निर्माताओं को दख़लंदाज़ी न करने के बजाय सक्रिय भागीदारी का स्तर तय करने का मौक़ा दिया है.
संघर्षों के समाधान को लेकर अपनी व्यवस्था में चीन एक सामरिक अस्पष्टता को बनाए रखता है. जो दख़लंदाज़ी, प्रभाव और दखल देने का बड़ी सावधानी से तैयार किया गया मिश्रण है. यही नहीं, चीन हर देश के मामले का अलग तरह से मूल्यांकन करके अपनी सामरिक स्वायत्तता को बनाए रखना चाहता है और उन संघर्षों का ख़ुद चुनाव करना चाहता है जिनमें वो भागीदार बनना चाहता है. इसके साथ साथ चीन संघर्षों के निपटारे की व्यवस्था को भी अपने हितों, प्राथमिकताओं और सीमाओं के आधार पर संचालित करता है.
चीन हर देश के मामले का अलग तरह से मूल्यांकन करके अपनी सामरिक स्वायत्तता को बनाए रखना चाहता है और उन संघर्षों का ख़ुद चुनाव करना चाहता है जिनमें वो भागीदार बनना चाहता है.
अफ्रीका में इस समय चीन मुख्य रूप से बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव के अंतर्गत किए गए अपने निवेशों को सुरक्षित बनाने के साथ साथ व्यापारिक संबंध क़ायम रखने को लेकर ज़्यादा फ़िक्रमंद है. निश्चित रूप से अफ्रीका से चीन की संसाधनों की ज़रूरतें पूरी होती हैं, जो उसकी ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण हैं, और वो ये सुनिश्चित करना करना चाहता है कि उसकी औद्योगिक गतिविधियां बिना किसी बाधा के जारी रहें. चीन उन देशों में स्थिरता बनाए रखने में दिलचस्पी रखता है, जहां उसने निवेश कर रखा था. ये ठीक उसी तरह है, जैसे जिन देशों को निवेश की दरकार है वो चीन के साथ एक स्थिर संबंध बनाए रखना चाहते हैं. इस तरह, अफ्रीका के संघर्षों के समाधान में चीन की भागीदारी के पीछे मुख्य रूप से उसके राजनीतिक और आर्थिक हित तो हैं ही. इसके अलावा, चीन की एक ख़्वाहिश ये भी है कि दुनिया में उसकी छवि एक असरदार मध्यस्थ की बने.
आज जब चीन दुनिया में ताक़तवर देशों की पायदान में ऊंचाइयों को छूने की ओर अग्रसर है, तो उसने अपनी दशकों पुरानी दख़ल न देने की नीति की भी समीक्षा करनी शुरू की है. निश्चित रूप से हमने पिछले साल अपनी ख़ास ख़ूबियों वाली मध्यस्थता के ज़रिए चीन द्वारा संघर्ष के निपटारे में दख़ल देने के कई उदाहरण देखे थे. मार्च 2023 में चीन ने ईरान और सऊदी अरब के संबंध सुधारने में कामयाबी से मध्यस्थ की भूमिका अदा की थी. इसके अलावा, उसी महीने में चीन के सार्वजनिक सुरक्षा के मंत्री वैंग शियाओहोंग ने म्यांमार का दौरा किया और तख़्तापलट के नेता मिन ऑन्ग ह्लाइंग से मुलाक़ात की थी. इसके साथ साथ शी जिनपिंग ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने के लिए मॉस्को का दौरा किया था. आख़िर में फिलिस्तीन और इज़राइल के संघर्ष के निपटारे के लिए चीन के प्रस्ताव का लेख और फ़िलिस्तीन के आपस में झगड़ने वाले तमाम समूहों को एकजुट करके उनके बीच समझौता कराने में चीन की भागीदारी और दिलचस्पी ये दिखाती है कि वो दुनिया में शांति व्यवस्था बनाने में अपनी बड़ी भूमिका प्रदर्शित करने में काफ़ी दिलचस्पी ले रहा है. फिलिस्तीन में चीन ने हमास और फतह के बीच ये समझौता कराया कि जब ग़ज़ा में इज़राइल का युद्ध समाप्त हो जाएगा तो दोनों मिलकर एक ‘राष्ट्रीय मेल-मिलाप वाली सरकार’ बनाएंगे. तालिबान, हमास और हिज़्बुल्लाह जैसे ग़ैर सरकारी संगठनों के साथ संपर्क बढ़ाने की चीन की कोशिशें भी ये दिखाती हैं कि वो अपनी मध्यस्थता की नीति को अमेरिका अथवा पश्चिमी देशों की अगुवाई वाले समाधान के तरीक़ों से अलग रखना चाहता है. इन सफलताओं से चीन को इस बात का हौसला मिलेगा कि वो अफ्रीका में अधिक सक्रिय भूमिका निभाए और अफ्रीकी नेताओं के साथ बात करके उन्हें ऐसे समझौतों की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें, जो उसके हितों के अनुरूप है.
निष्कर्ष
पिछले साल एक फोन कॉल के दौरान शी जिनपिंग ने ताइवान के साथ अमेरिकी संबंध को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से कहा था कि, ‘जो लोग आग से खेलते हैं, वो झुलस जाते हैं’. चीन अपने और दूसरे देशों के लिए दख़लंदाज़ी नहीं करने का भाषण बहुत देता है. फिर भी उसने खुलकर अफ्रीका में दख़लंदाज़ी करनी शुरू कर दी है.
अब तक तो चीन ने संघर्षों के समाधान में अपनी मध्यस्थता के लिए मेज़बान देश की सरकार के साथ सलाह मशवरे का रास्ता ही अपनाया है.
अब तक तो चीन ने संघर्षों के समाधान में अपनी मध्यस्थता के लिए मेज़बान देश की सरकार के साथ सलाह मशवरे का रास्ता ही अपनाया है. हालांकि, अगर कुछ संघर्षों में ये उभरकर आता है कि उनसे चीन के आर्थिक या सुरक्षा संबंधी हितों को ख़तरा है, तो शायद वो अपने पारंपरिक तौर-तरीक़ों से पल्ला झाड़ ले और सीधे तौर पर दख़ल देना शुरू कर दे. ये बात अफ्रीका में सबसे ज़्यादा दिखने की आशंका है. क्योंकि, चीन बहुत से संसाधनों की ज़रूरत के लिए अफ्रीका पर निर्भर है. अफ्रीका को चीन के इस नवसंचार को गंभीरता से लेना चाहिए. पर, हो सकता है कि अफ्रीका को एक ऐसे नए चीन का सामना करने के लिए तैयार होना पड़े, जो अपने हितों के आधार पर संघर्षों के समाधान में अधिक सक्रियता से हिस्सा लेने लगेगा.
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