Author : Sukrit Kumar

Published on Sep 10, 2018 Updated 0 Hours ago

हिन्द महासागर में चीन की सभी पहलों, उसके सामरिक मंसूबों और गठजोड़ों पर भारत सतर्क निगाह रखता है। पहले कभी स्वेच्छा से एक बड़े भाई के रूप में न कि हितैषी शक्ति के रूप में दक्षिण एशिया के देशों की मदद करने में तत्पर रहने वाले भारत की आज यह आवश्यकता बन गयी है कि वह चीनी मंसूबों के प्रत्युत्तर में रणनीतिक-साझेदारी, संवाद, सहयोग व सहायता के लिए आगे आये। भारत और मालदीव के असहज संबंधों के पीछे कहीं ना कहीं चीन और उसका वहां पर बढ़ता प्रभुत्व दिखाई पड़ता है | लिहाजा भारत को इसका समाधान निकालते हुए काफी सावधानी बरतनी होगी और सतर्क रहना होगा क्योंकि राष्ट्रपति यामीन का चीन के प्रति नज़रिया बेहद सकारात्मक है।

हिन्द महासागर में चीन: भारत-मालदीव सम्बन्ध

मालदीव भारत के मुख्य भूमि से दक्षिण-पश्चिम तट के करीब हिन्द महासागर में स्थित द्वीप समूह से बना एक देश है। इस द्वीपसमूह में कुल 1192 द्वीप हैं जिनमें से दो सौ द्वीपों पर लोग बसे हुए हैं। शेष द्वीपों का उपयोग पर्यटन या कृषि के लिए किया जाता है। मालदीव लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।[i] वर्ष 2017 तक वर्ल्ड बैंक के अनुसार मालदीव की जनसंख्या तकरीबन 4.36 लाख थी।[2] क्षेत्रफल और आबादी दोनों की दृष्टि से मालदीव दक्षिण एशिया में सबसे छोटा देश है। मालदीव की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 1.5 मीटर की है। ऐतिहासिक रूप से, इस देश को भारतीय उपमहाद्वीप से जोड़ा गया है। मालदीव के संविधान में इस्लाम धर्म के अलावा अन्य किसी भी धर्म की मान्यता या पहचान नहीं है। मालदीव के सभी लोग सुन्नी मुसलमान हैं। 1965 में मालदीव ने यूनाइटेड किंगडम से स्वतंत्रता प्राप्त की और 1968 में एक गणराज्य बन गया। मालदीव 1965 में संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना। यह दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। मालदीव कॉमनवेल्थ, इस्लामी सहयोग संगठन और गुट निरपेक्ष आंदोलन का भी सदस्य है।

मालदीव के प्रतिनिधियों ने 1975 तक संयुक्त रूप से संयुक्त राष्ट्र सत्र में भाग लिया। अपनी विदेश नीति में मालदीव ने इस अवधि के दौरान थर्ड वर्ल्ड के देशों के ढ़ांचे का अनुसरण करते हुए तथा गुट-निर्पेक्षता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों को अपनाया। यह निशस्त्रीकरण, परमाणु अप्रसार, परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध, हिन्द महासागर को शांति का क्षेत्र और औपनिवेशिक देशों की आजादी का पक्षधर रहा है।

मालदीव की भू-रणनीतिक अवस्थिति

मालदीव हिन्द महासागर में सामरिक रूप से काफी महत्वपूर्ण जगह पर स्थित है। वर्तमान समय में मालदीव हिन्द महासागर भारत और चीन के बीच एक उभरती प्रतिद्वंदिता का केंद्र बन रहा है जिसमें हो सकता है कि अमेरिका दोनों देशों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाये। परंपरागत रूप से, हिन्द महासागर को नियंत्रित करने की इच्छा रखने वाली सभी बड़ी शक्तियो- पुर्तगाल, नीदरलैंड, ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका और सोवियत संघ ने मालदीव को एक सैन्य अड्डे के रूप में देखा है। द्वित्तीय विश्व युद्ध के दौरान मालदीव के दक्षिणी भाग के लगभग सभी द्विपों का इस्तेमाल ब्रिटिश रॉयल नेवी अपने सैन्य अड्डे के लिए करती थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान का सिंगापुर और इंडोनेशिया में बढ़ते प्रभाव के कारण ब्रिटेन ने गन द्वीप पर अपनी नौसैनिक अड्डे की स्थापना की थी। 1965 में मालदीव ब्रिटेन से स्वतंत्र हुआ । उसके बाद अपनी ईस्ट ऑफ स्वेज पॉलिसी को ध्यान मे रखते हुए 1971 में ब्रिटिश रॉयल वायु सेना ने इस स्थान को खाली कर दिया। ब्रिटेन के यहां से जाने के बाद ईरान के शाह, लीबिया के मोहम्मद गद्दाफी और सोवियत संघ ने गन द्वीप पर डिएगो गार्सिया में अमेरिका के सैन्य उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए अपनी दिलचस्पी दिखाई थी।

यह हमारे देश के लक्षद्वीप समूह से महज 700 किमी. दूर है।[3] मालदीव, फारस की खाड़ी, अदन की खाड़ी और मलक्का जलडरूमध्य जैसे महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समुद्री जलमार्गों के निकट स्थित है जिससे होकर चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और भारत जैसे कई देशों को ऊर्जा की आपूर्ति होती है। भारत का करीब 95 फीसदी अंतरराष्ट्रीय व्यापार हिन्द महासागर के द्वारा ही होता है।[4] इसलिए यह समझा जा सकता है कि इसके मार्गों को सुरक्षित करना भारत के लिए भू- आर्थिक दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण है। हिन्द महासागर क्षेत्र में 40 से ज्यादा देश और दुनिया की करीब 40 फ़ीसदी आबादी है। चीन ने एंटी पायरेसी अभियान के नाम पर दस साल पहले हिन्द महासागर में अदन की खाड़ी तक अपने नौसैनिक जहाज भेजने शुरू किए। इसकी वजह से मालदीव का महत्व लगातार बढ़ता गया और अब यह अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति का केंद्र बन गया है।

भारत-मालदीव संबंध

मालदीव के साथ भारत के सदियों पुराने व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। जब-जब इस द्वीपीय देश पर कोई संकट आया है तो भारत ने बिना कोई देर किए सबसे पहले मदद की है। मिसाल के तौर पर 1988 में जब मालदीव में तख्तापलट की कोशिश हुई तो इसे भारत ने नाकाम किया था। तब अब्दुल्ला लुतूफी नाम के विद्रोही नेता ने श्रीलंकाई विद्रोहियों की मदद से तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम की सत्ता पलटने की कोशिश की थी। इस संकट से निपटने के लिए मालदीव ने भारत और अमेरिका समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की गुहार लगाई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तुरंत भारतीय वायु सेना को मालदीव की मदद का निर्देश दिया। भारतीय वायुसेना के ऑपरेशन में सारे विद्रोही या तो ढ़ेर कर दिए गए या फिर गिरफ्तार। भारत की इस कार्रवाई कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तारीफ हुई। भारतीय वायुसेना के उस अभियान को 'ऑपरेशन कैक्टस' के नाम से जाना जाता है।[5]

इसी तरह दिसंबर 2014 में माले में वॉटर सप्लाइ कंपनी के जेनरेटर कंट्रोल पैनल में भीषण आग लग गई थी। इस वजह से पूरे देश में पेयजल का अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया। मालदीव सरकार ने भारत सरकार से मदद मांगी। भारत ने तत्काल मदद करते हुए आईएनएस सुकन्या को पानी के साथ माले के लिए रवाना किया। इसके अलावा आईएनएस दीपक को 1000 टन पानी के साथ माले भेजा गया। भारतीय वायुसेना ने भी अपने एयरक्राफ्ट्स के जरिए सैकड़ों टन पानी माले पहुंचाया था। भारत के इस अभियान को 'ऑपरेशन नीर' नाम से जाना जाता है।[6] मालदीव में चीन की बढ़ती रुचि ने ही भारत को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह मालदीव से प्रति रक्षा संबंधों को मजबूत बनाये और अवसंरचनात्मक विकास में उसे सहयोग दे। इस क्रम में भारत द्वारा मालदीव को निम्नलिखित सहायता प्रदान की गई है ।

  • भारत मालदीव के साथ प्रशिक्षण और संयुक्त सैन्य अभ्यास के जरिए उसके समुद्र तट की निगरानी करने के साथ-साथ उसको सैन्य उपकरणों की आपूर्ति भी करता रहा है। दोनों देशों के तटरक्षक 1991 से दोस्ती नामक संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास आयोजित करते रहे हैं। वर्ष 2012 में इस अभ्यास में श्रीलंका के शामिल हो जाने से इसका विस्तार हुआ और अब यह त्रिपक्षीय अभ्यास बन गया है। इस अभ्यास का उद्देश्य प्रमुख रूप से राष्ट्रों के मध्य संबंधों को और मजबूत करना, पारस्परिक परिचालन क्षमता में वृद्धि करना और भारत, मालदीव तथा श्रीलंका के तटरक्षकों के बीच सहयोग बढ़ाना है। दोस्ती 12वीं संयुक्त अभ्यास भारतीय तटरक्षक बलों, मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बलों और श्रीलंका के तट रक्षक बलों द्वारा मालदीव की राजधानी माले में अक्टूबर 2014 को संचालित हुआ। इस अभ्यास का प्रमुख उद्देश्य समुद्री खोज और बचाव कार्य, मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्य तथा समुद्री लुटेरों के खिलाफ ऑपरेशन पर केंद्रित था।[7] पहली बार सेशेल्स और मारीशस के नौसैनिक प्रतिनिधियों द्वारा इस अभ्यास को देखा गया।
  • भारत और मालदीव के मध्य, रक्षा संबंधों में द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास का महत्वपूर्ण स्थान है। पिछले वर्ष दोनों देशों के मध्य संयुक्त सैन्य अभ्यास एकुवेरिन, 2017 आयोजित हुआ। एकुवेरिन अभ्यास की शुरुआत वर्ष 2009 में हुई थी। मालदीव की भाषा में ‘एकुवेरिन’ का अर्थ ‘मित्र’ होता है।[8]
  • 2006 में भारत ने मालदीव में स्मगलरों, गन रनर्स और आतंकवादियों के अभियानों के खिलाफ कार्य करने के लिए उसे 260 टन के तेजी से हमला करने वाले हवाई जहाज आईएनएस तिलानचैंग (INS Tillanchang) उपलब्ध कराया था।[9] भारत द्वारा मालदीव को 2013-14 तक दो नौसैनिक एडवांस्ड लाइट हेलीकाप्टर ‘ध्रुव’ प्रदान किया गया। इस पर मालदीव का मानना था कि एडवांस्ड लाइट हेलीकाप्टर ‘ध्रुव’ की प्राप्ति से उसके कोस्टगार्ड (तटरक्षकों) को खोज, बचाव कार्य और लोगों को असुरक्षित स्थान से हटाने (Evacuation) में मदद मिलेगी।
  • यह विचारणीय है कि भारत की नौसैना ने मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स के क्षमता निर्माण में विशेष योगदान किया है। मालदीव के अपवर्जित आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में पेट्रोलिंग के लिए भारत जहाज व एयरक्राफ्ट्स भेज चुका है, साथ ही मालदीव ने हिन्द महासागर क्षेत्र में निगरानी व चौकसी (Surveilance) और एन्टीपायरेसी पेट्रोल करके सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।
  • इसके अलावा मालदीव ‘इंडियन ओशेन नेवल सिम्पोजियम’ (IONS) जैसे फोरमों में सहभाग करता है और ‘मिलन’ जैसे सैन्य अभ्यासों में भी उसने अपनी भागीदारी दर्ज करायी है। भारत का एक एडवांस्ड लाइट हेलीकाप्टर (ALH) दक्षिणी मालदीव के अडू (Addu) में प्रचालनीय अवस्था (Operational Stage) में है।
  • मालदीव ने आठ दिवसीय नौसैनिक अभ्यास ‘मिलन’ में शामिल होने का भारत का निमंत्रण ठुकरा दिया है। भारतीय नौसेना के प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने संवाददाताओं से कहा, ‘मालदीव को मिलन अभ्यास में शामिल होने के लिए निमंत्रित किया गया था लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया है’।[10]
  • अगस्त 2009 में भारतीय रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। समझौते के तहत, दोनों देश मालदीव की सुरक्षा को मजबूत करने के उद्देश्य से रक्षा सहयोग को मजबूत करने पर सहमत हुए हैं। भारत मालदीव के 26 एटॉलो में 26 रडार का नेटवर्क स्थापित करेगा, जो कि भारतीय तटीय कमांड से जुड़ा होगा। इसके अलावा, भारत एक वायुसेना स्टेशन भी स्थापित करेगा जहां से डोर्नियर विमान निगरानी के लिए उड़ानें भरेगा। यह स्टेशन भारतीय सैन्य हेलीकाप्टरों की भी मेज़बानी करेगा। भारत ने मालदीव के 25-बिस्तर वाले एक सैन्य अस्पताल का निर्माण करेगा।[11]
  • जुलाई 1982 में मिनिकॉय द्वीप पर भारत और मालदीव के बीच एक छोटा विवाद हुआ। हालांकि, बाद में मालदीव ने स्पष्ट किया कि यह मिनिकॉय पर कोई राजनीतिक दावा नहीं लगा रहा था और केवल सांस्कृतिक समानता की बात कर रहा था। 1976 में मालदीव के बीच एक समुद्री समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत को मिल गया था।
  • भारत मालदीव संयुक्त आयोग की पांचवी बैठक की सह अध्यक्षता करने के लिए सुषमा स्वराज अक्टूबर 2015 को मालदीव का दौरा किया। संयुक्त आयोग की स्थापना 1986 में आर्थिक और तकनीकी सहयोग पर समझौते के तहत की गई थी जो पहली बार 1990 में माले में संपन्न हुआ था। नवंबर 2011 में हस्ताक्षर किए गए सहयोग के लिए फ्रेमवर्क समझौते में संयुक्त आयोग को रक्षा और सुरक्षा संबंधी मुद्दों को शामिल करने के लिए आनिवार्य किया गया था।
  • भारत और मालदीव ने मुंबई में 26/11 के हमले के बाद भारतीय भूमि पर किसी भी भावी समुद्री आतंकवादी हमला को रोकने के लिए क्षेत्रीय आतंकवाद तंत्र भी शुरू किया है। इस तरह के आतंकवाद विरोधी कार्यवाही में गुप्त सूचनाओं को एक दूसरे से साझा करना शामिल है जिसका उद्देश्य विशेष रूप से अलकायदा और इस्लामिक राज्य इराक और सीरिया (ISIS) जैसे आतंकवादी संगठनों द्वारा किए जा सकने वाले किसी भी तरह के दुर्भाग्यपूर्ण कार्रवाई को खत्म करने के उद्देश्य से बनाया गया है।
  • भारत मालदीव रक्षा संबंधों में ऐतिहासिक विकास देखने को मिला जब राष्ट्रपति यामीन ने अप्रैल 2016 में भारत के दौरे पर आए। उस दौरान भारत-मालदीव के बीच एक द्विपक्षीय रक्षा कार्य योजना पर हस्ताक्षर हुआ। यह एक प्रकार का द्विपक्षीय रक्षा सहयोग है। इस योजना में योजना मुख्य रुप से बंदरगाहो का विकास, निरंतर प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण, उपकरणों की आपूर्ति और समुद्री निगरानी शामिल है। इस सुरक्षा सहयोग में सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ मालदीव पुलिस और सुरक्षा बलों की प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण के लिए सूचना का आदान प्रदान सम्मिलित है। दोनों पक्षों ने यह भी कहा कि वे दक्षिण एशिया में सीमा पार आतंकवाद और कट्टरपंथियों के कारण बढ़ते खतरों से अवगत हैं। राष्ट्रपति यामीन इस बात पर भी सहमत हुए कि वह भारत की सामरिक और सुरक्षा आवश्यकता के प्रति संवेदनशील है।[12]

आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध

भारत और मालदीव अपने आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध को बढ़ाने के लिये 1981 में एक व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो आवश्यक वस्तुओं के निर्यात के संबंध में था। मामूली शुरुआत से बढ़ते हुए, भारत-मालदीव द्विपक्षीय व्यापार अब 700 करोड़ रुपये है। मालदीव में भारतीय निर्यात में कृषि उत्पादन, चीनी, फल, सब्जियां, मसाले, चावल, गेहूं का आटा, कपड़ा, दवाएं और दवाएं, विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग और औद्योगिक उत्पाद, बालू और पत्थर, निर्माण के लिए सीमेंट आदि शामिल हैं। भारत मालदीव से प्रमुख रूप से धातुओं का आयात करता है।

द्विपक्षीय व्यापार ($ मिलियन में)

अवधि भारतीय निर्यात भारतीय आयात कुल
2010 125.5 2.5 127.5
2011 147.8 2.6 150.4
2012 147.7 2.8 150.5
2013 154.0 2.3 156.3
2014 170.6 2.9 173.5
2015 205.0 1.6 206.6

भारतीय दूतावास, मालदीव

कुछ अन्य विकासोन्मुखी सहायतायें

भारत मालदीव के विकास साझेदारी में अग्रणी देशों में से एक रहा है। भारत ने इस द्वीप राष्ट्र में कई प्रमुख संस्थानों की स्थापना की है।

इंदिरा गांधी मेमोरियल अस्पताल (आईजीएमएच): 200 बिस्तर के अत्याधुनिक अस्पताल को एक प्रमुख संस्थान माना जाता है।

इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी संकाय (एफईटी): संस्थान में विभिन्न तकनीकी / व्यावसायिक विषयों में एक वर्ष में कई सौ छात्रों को प्रशिक्षित करने की क्षमता है और देश में अग्रणी तकनीकी संस्थानों में से एक है।

आतिथ्य और पर्यटन अध्ययन के भारत-मालदीव मैत्री संकाय: यह संस्थान पर्यटन अध्ययन में मालदीवियों को प्रशिक्षण देने में देश की अग्रणी संस्थान है।

मालदीव में चीन का बढ़ता प्रभाव

मालदीव अब चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है। चीन और मालदीव ने फ्री ट्रेड अग्रीमेंट (FTA) पर दस्तखत किए थे।[13] चीन ने मालदीव में एक पुल बनाने के लिए अनुदान और ऋण सहायता प्रदान की है। चीन-मालदीव फ्रेंडशिप ब्रिज मालदीव के माले और हुल्हुमाले के द्वीपों को जोड़ता है। यह 1.39 किमी लंबी पुल है। चीन मालदीव में साझा महासागरीय वेधशाला (जॉइंट ओशियन अब्जवटरी) स्टेशन स्थापित करने की राह तलाश रहा है जो भारत सरकार के लिए सुरक्षा से जुड़ी नई चिंता पैदा कर सकता है।[14] चीन ने मालदीव में नौसैनिक अड्डे (Naval Base) स्थापित करने में रुचि दिखायी है। चीन ने मालदीव में हुए जल संकट के समय जल आपूर्ति कर मजबूत संबंध बनाने की दिशा में कार्य करने का संकेत दिया है। चीन मालदीव के इवावंधू, मारवा और मारंधू द्वीपों में बुनियादी ढ़ाँचे के विकास में गहरी दिलचस्पी दिखाई है। चीन मालदीव में मारन्धू और इहावन्धू द्वीपों (Maarandhoo and Ihavandhoo Islands) में ट्रांसशिपमेंट बंदरगाहों (Transhipment Ports) के विकास में रुचि रखता है। इसके अलावा चीन मालदीव के दूसरे सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डे हानीमाधू (Hanimaadhoo) के विकास में भूमिका अदा करना चाहता है। मालदीव के मारन्धू, इहावन्धू और हानीमाधू द्वीप मालदीव के उत्तर में हा अलिफ एटाल (Ha Alif Atoll) में स्थित है।

 मालदीव रणनीतिक रूप से जिस समुद्री ऊंचाई पर स्थित है वह चीन के लिए सामरिक रूप से काफ़ी अहम है। चीन की मालदीव में मौजूदगी हिन्द महासागर में उसकी रणनीति का हिस्सा है। 2016 में मालदीव ने चीनी कंपनी को एक द्वीप 50 सालों की लीज महज 40 लाख डॉलर में दे दिया था।[15] इस गतिरोध के बीच समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक चीनी न्यूज़ वेबसाइट के हवाले से बताया कि चीनी युद्धपोत मालदीव की तरफ़ बढ़ गए हैं। भारतीय नेवी ने भी इस बात की पुष्टि की कि चीनी युद्धपोत सुंडा और लैम्बोक जलडमरुमध्य से आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि चीनी युद्धपोत की हिन्द महासागर में तैनाती कोई नहीं बात नहीं है। चीन का जिबुती में पहले से ही एक सैन्य ठिकाना है।

चीन इन द्वीपों में अपनी उपस्थिति इसलिए चाहता है क्योकि ये द्वीप भारत व श्रीलंका के सबसे नजदीक स्थित हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में इसके अलावा यह बात भी चर्चा का विषय बनी कि चीन ने मालदीव के माराओ द्वीप (Marao Islands) में एक ‘नौसैनिक सबमरीन अड्डा’ स्थापित करने की योजना बनायी है। चीन हाल के समय में पूर्वी अफ्रीका, सेशेल्स, मारीशस, मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और कंबोडिया के साथ समुद्री व अन्य संपर्क साधने की कोशिश में लगा रहा है।[16]

माले के इंटरनैशनल एयरपोर्ट का मसला भी मालदीव में चीन के बढ़ते दखल को बताता है। माले एयरपोर्ट को बनाने का ठेका एक भारतीय कंपनी को मिला था लेकिन वह ठेका रद्द करके चीन की एक कंपनी को दे दिया गया। अभी हाल ही में मालदीव के एक सरकार समर्थक अखबार माने जानेवाले अखबार ने चीन को मालदीव का नया बेस्ट फ्रेंड और भारत को 'शत्रु देश' बताया था।

मालदीव की राजनीतिक हालात

मालदीव की हालिया राजनीतिक संकट को जानने और समझने से पहले मालदीव के

इतिहास और उन चेहरों को जानने की जरूरत है जो इस पूरे घटनाक्रम में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।

मौमून अब्दुल गयूम- 30 साल तक मालदीव के शासक रहे । 2008 में लोकतंत्र की बहाली हुई। मालदीव के चुनाव में मोहम्मद नशीद के हाथ में सत्ता आई।

मोहम्मद नशीद- 2008- 2012 तक सत्ता पर काबिज रहे। लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम के कारण अब्दुल यामीन ने गद्दी संभाली। नशीद ने आरोप लगाया था कि बंदूक के दम पर उन्हें सत्ता से हटाया गया था। मौजूदा राष्ट्रपति यामीन ने आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले में नशीद पर मामला चलाया। नशीद को 13 साल की सजा हुई। 2015 में तबीयत खराब होने के बाद उन्हें इंग्लैंड जाने की इजाजत मिली। फिलहाल अब वो श्रीलंका में रह रहे हैं।

अब्दुल यामीन- मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम के चचेरे भाई हैं। यामीन के खिलाफ अब्दुल गयूम आंदोलन चलते रहे हैं। हाल ही में मालदीव सुप्रीम कोर्ट ने नशीद समेत 9 लोगों को गिरफ्तारी को गैर कानूनी बताते हुए लोगों की रिहाई के आदेश दिए गए थे। इसका अर्थ ये था कि अब्दुल यामीन अल्पमत में आ जाती और उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ती। लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताकर न केवल जजों को गिरफ्तार किया बल्कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम को भी गिरफ्तार करवाया।

भारत के लिए मालदीव का महत्व

भारत इस क्षेत्र का आर्थिक, रणनीतिक और सैनिक दृष्टि से मजबूत एवं भरोसेमंद देश होने के नाते क्षेत्र की शांति और सुरक्षा की जिम्मेदारी इसी पर है। इसके लिए भारत को सुरक्षा और प्रतिरक्षा के क्षेत्र में मालदीव के साथ सहयोग कायम करना होगा।

चीन का मालदीव के साथ बढ़ता आर्थिक सहयोग भारत के लिए चिंता की बात है। मालदीव के विदेशी कर्ज में करीब 70 फीसदी हिस्सा चीन का हो गया है। इसके पहले दशकों तक मालदीव के भारत के साथ करीबी रिश्ते रहे हैं। वहां चीन का दूतावास 2011 में ही खुला है। भारत इसके काफी पहले 1972 में ही वहां अपना दूतावास खोल चुका था। इसलिए अब भारत को चीन के इस दबदबे को कम करने के लिए कोई कदम उठाना ही होगा। चीन के कर्ज जाल में श्रीलंका को फंसते देखकर मालदीव को सबक लेना चाहिए और भारत के साथ अपने रिश्तो में फिर से गति लानी चाहिए और भारत के लिए मालदीव के साथ अपने रिश्ते को सुधारने का यह एक मौका है।

भारत के लिए सबसे ज़्यादा चिंताजनक बात तो यह रही कि पाकिस्तानी सेना की तरफ़ से घोषणा की गई कि पाकिस्तानी युद्धपोत मालदीव के एक्सक्लूसिव इकनॉमिक ज़ोन की देखरेख करेंगे। कई अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक इस बात को मानते हैं कि मालदीव में पाकिस्तान की एंट्री चीनी हितों को साधने के लिए है।

मालदीव में करीब 25,000 भारतीय रहते हैं, जो दूसरा सबसे बड़ा विदेशी समुदाय है। मालदीव से भारत में भी बड़ी संख्या में वहां के नागरिक शिक्षा, उपचार और कारोबार के लिए आते हैं। भारत में उच्च शिक्षा या उपचार के लिए लॉन्ग टर्म वीजा हासिल करने वाले मालदीव के नागरिकों की संख्या दिनोदिन बढ़ रही है।

निष्कर्स

चीन ने मालदीव में भारत को अपने कूटनीतिक चाल से मात दी है। चीन मालदीव को अपने बढ़ते कर्ज का डर दिखाकर अपनी तरफ लाने की कोशिश करेगा। फिर भी यदि मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप जरूरी है तो भी इसके लिए भारत नहीं बल्कि अमेरिका या ब्रिटेन को वहां अपनी फौजें भेजनी चाहिए। इसके दो कारण हैं पहला ये कि भारत के पास अमेरिका या ब्रिटेन की तरह वहां गँवाने के लिए बहुत कुछ नहीं है और दूसरा लोकतंत्र की रक्षा अमेरिका और ब्रिटेन की विदेश नीति का हमेशा से एक अहम पहलू रहा है। हिन्द महासागर में चीन का बढ़ता प्रभुत्व केवल भारत ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश-अमेरिकी नौसैनिक वर्चस्व के लिए भी बड़ा खतरा है। हिन्द महासागर में अमेरिका आज भी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है। हिन्द महासागर के बीचोंबीच स्थित ब्रिटिश नियंत्रण वाले द्वीप दिएगो गार्सिया में अमेरिका का बहुत महत्वपूर्ण सैन्य अड्डा है। अमेरिका द्वारा इराक, अफगानिस्तान से लेकर सीरिया पर बमबारी करने में इसकी अहम भूमिका रही है।

यामीन सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। साथ ही साथ भारत को भी इस बात पर विचार करना चाहिए कि रिश्ते इतनी बुरी तरह क्यों खराब हो गए हैं। कुछ साल पहले तक मालदीव ने ‘पड़ोसी पहले’ नीति की पुष्टि की थी लेकिन यह भी सच है कि मालदीव ही एक ऐसा पड़ोसी देश है जहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक नहीं पहुंचे हैं। वर्ष 2012 में जब श्री नशीद को वहां से हटा दिया गया था तो यह भारतीय दूतावास ही था जहां पर उन्होंने शरण मांगी थी। अब द्विपक्षीय विश्वास को बहाल करने का समय है।


लेखक ORF नई दिल्ली में रिसर्च इंटर्न हैं।


नोट्स एवं संदर्भ ग्रंथ सूची

[1] Anand Kumar, Multi-party Democracy in Maldives and the Emerging Security Environment in the Indian Ocean Region (New Delhi: Pentagon Press, 2016), P. 1.

[2] "Maldives",The World Bank, 2017.

[3] Rajeswari Pillai Rajagopalan, "India’s Maldives Headache", The Diplomate,February 23, 2018

[4] Saji Abraham, China's Role in the Indian Ocean: Its Implications on India's National Security (Delhi: Vij Books India Pvt Ltd, 2015), P. 39.

[5] Vishnu Gopinath, “Operation Cactus: The Day India Saved the Maldives”, The Quint, Feb 6, 2018.

[6] “Maldivian crises: Indian Navy’s prompt First response”, Indian Navy, Dec 07, 2014.

[7] Dinakar Peri, “Trilateral Coast Guard exercise ends”, The Hindu, Nov 1, 2014.

[8] Sushant Kulkarni, “2017 ‘Ekuverin’: 8th India-Maldives joint military exercise to conclude today”, The Indian Express, Dec 28, 2017.

[9] “Maldivian ship arrives in Vizag for refit”, The Hans India, July 13, 2018.

[10] “Maldives declines India's invite for naval exercise”, Rediff News, February 27, 2018

[11]"India bringing Maldives into its security net", Manu Pubby, Indian Express, Aug 13, 2009.

[12]"President Yameen to make official visit to India”, Maldives Independent, Aprill 8, 2016.

[13]Sudha Ramachandran, “The China-Maldives Connection”, The Diplomat, Jan 25, 2018.

[14]Juvina Lai, “China and Maldives build ocean observatory, spark new security concerns with India”, Taiwan News, Feb 27, 2018.

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