Expert Speak Raisina Debates
Published on Oct 17, 2024 Updated 0 Hours ago

चीनी का इरादा स्पष्ट है. जब तक नेपाल बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर नहीं करता, तब तक नेपाल में मेगा परियोजनाओं में चीन का सहयोग अधर में रहेगा.

नेपाल में BRI लागू करने की कोशिश में नाकाम रहा चीन

पिछले कुछ वर्षों में चीन की नेपाल नीति का केंद्रीय घटक बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) बना हुआ है. चीन चाहता है कि बीआरआई के तहत परियोजनाओं के निष्पादन के लिए 'कार्यान्वयन योजना' को जल्द अंतिम रूप दिया जाए. हाल के दिनों में, चीन ने नेपाल में BRI की सफलता दिखाने के लिए अधिक मुखर रुख़ अपनाया है क्योंकि BRI के तहत एक भी परियोजना उसके निकटतम पड़ोसी देश यानी नेपाल में क्रियान्वित नहीं की गई है. हालांकि 2017 में बेल्ट एंड रोड पहल के तहत सहयोग पर समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद बीआरआई परियोजनाओं पर बातचीत अटकने लगी थी, विवाद पैदा होने लगे थे. यही वजह है कि बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर ज़ोर देना नेपाल में चीन की सभी हालिया उच्च-स्तरीय यात्राओं का प्रमुख एजेंडा बना हुआ है.

चीन ने 2020 की शुरुआत में कार्यान्वयन योजना को आगे बढ़ाया था लेकिन इस पर बातचीत में न्यूनतम प्रगति देखी गई. कोविड-19 महामारी और तत्कालीन नेपाली कांग्रेस (एनसी)के नेतृत्व वाली सरकार के कड़े रुख़ ने बीआरआई के तहत परियोजनाओं पर बातचीत को रोक दिया. नेपाल का कहना था कि बीआरआई परियोजना को चीन के वाणिज्यिक ऋण के प्रस्ताव की बजाए अनुदान और रियायती ऋण के माध्यम से वित्त पोषित किया जाना चाहिए. नवंबर 2022 में आम चुनाव के बाद, नेपाल में वामपंथी गठबंधन सरकार के गठन के साथ, चीन ने बीआरआई कार्यान्वयन योजना को आगे बढ़ाने की अपनी कोशिशें तेज़ कर दी. सितंबर 2023 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पुष्प कुमार दहल 'प्रचंड' चीन की यात्रा पर गए. इस दौरान जारी संयुक्त बयान में इस बात का उल्लेख किया गया था कि दोनों पक्ष जल्द से जल्द बीआरआई कार्यान्वयन योजना को अंतिम रूप देने के लिए चर्चा में तेज़ी लाएंगे. उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में पदभार संभालने के तुरंत बाद नारायण काजी श्रेष्ठ 9 दिन की चीन यात्रा पर गए. नारायण काजी श्रेष्ठ को चीन के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले एक प्रभावशाली उच्च पदस्थ सीपीएन (माओवादी-सेंटर) नेता के रूप में जाना जाता है. कथित तौर पर उनकी यात्रा का उद्देश्य इस बातचीत को अंतिम रूप देना था, लेकिन इस योजना पर हस्ताक्षर नहीं किए जा सके, हालांकि, श्रेष्ठ ने इसे जल्द ही अंतिम रूप देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की.

सितंबर 2023 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पुष्प कुमार दहल 'प्रचंड' चीन की यात्रा पर गए. इस दौरान जारी संयुक्त बयान में इस बात का उल्लेख किया गया था कि दोनों पक्ष जल्द से जल्द बीआरआई कार्यान्वयन योजना को अंतिम रूप देने के लिए चर्चा में तेज़ी लाएंगे.

बीआरआई कार्यान्वयन योजना को नेपाल में व्यापक समर्थन पिछले जून में मिला. प्रचंड के नेतृत्व वाली निवर्तमान सरकार ने नेपाल-चीन राजनयिक परामर्श बैठक के 16वें दौरे के दौरान बीआरआई के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने की अंतिम तैयारी तेज़ कर दी. चीन द्वारा भेजे गए समझौते को संबंधित मंत्रालयों के इनपुट के साथ राष्ट्रीय योजना आयोग द्वारा अंतिम रूप दिया गया था. परामर्श बैठक से ठीक पहले, विदेश मंत्रालय ने योजना के मसौदे को आखिरी मंजूरी के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को भेज दिया. लेकिन अन्य दलों के साथ-साथ नेपाली कांग्रेस (एनसी) और राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) के सांसदों ने इसकी कड़ी निंदा की. उनका कहना था कि विपक्षी दलों से बातचीत और योजना के मसौदे पर व्यापक सहमति बनाए बिना ही सरकार इस पर हस्ताक्षर करने की तैयारी कर रही है. आखिरकार सरकार को पीछे हटना पड़ा.

ये चीन के लिए बड़ा झटका था. इससे नेपाल में अपने एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए वामपंथी सरकार का लाभ उठाने की चीन की प्रवृत्ति रुक गई. अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए चीन अक्सर करीबी वैचारिक झुकाव वाली वामपंथी पार्टियों का इस्तेमाल करता है. ये तथ्य इस बात से स्पष्ट है कि नेपाल में अधिकांश बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का ठेका काठमांडू में वामपंथी नेतृत्व वाले प्रशासन के दौरान ही चीनी कंपनियों को दिया गया है.

अब नेपाल में सीपीएन-यूएमएल अध्यक्ष केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में सत्तारूढ़ गठबंधन में हाल में पुनर्गठन हुआ है. नेपाली कांग्रेस इसमें प्रमुख गठबंधन सहयोगी की भूमिका निभा रही है और वो विदेश मंत्रालय पर नियंत्रण रखती है. ज़ाहिर है सत्ता प्रतिष्ठान में ये बदलाव बीआरआई योजना के जल्द क्रियान्वयन पर किसी भी समझौते के बारे में अनिश्चितता का संकेत देता है. हालांकि चीन ये कोशिश करेगा कि ओली और उनके विश्वासपात्रों के ज़रिए इस योजना को आगे बढ़ाया गाए, लेकिन बीआरआई के तहत परियोजनाओं के वित्तपोषण के तौर-तरीकों और शासन तंत्र पर नेपाली कांग्रेस की कड़ी आपत्ति आगे के विकास में बाधा बनेगी.

कम से कम, जब तक सत्ता में मौजूदा गठबंधन बरकरार रहेगा, नेपाल में बीआरआई का कार्यान्वयन अधर में लटका रहेगा.

कार्यान्वयन योजना पर इतना हंगामा क्यों है?

बीआरआई के तहत सहयोग पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर 2017 में हुए थे. इसके कुछ ही महीने बाद यानी 2018 की शुरुआत में नेपाल ने केपी ओली प्रशासन के दौरान इस पहल के तहत कार्यान्वयन के लिए 35 परियोजनाओं की एक सूची प्रस्तावित की. चीन द्वारा इसे कम करने की मांग की गई. आखिर परियोजनाओं की संख्या घटाकर नौ कर दी गई. लेकिन परियोजनाओं के चयन, उनके वित्त पोषण और कार्यान्वयन के तौर-तरीकों पर बातचीत आगे नहीं बढ़ सकी. इसी गतिरोध के बीच, नेपाल ने पिछले साल बीआरआई के तहत प्रस्तावित एक जलविद्युत परियोजना का ठेका एक भारतीय ठेकेदार को दिया था. दूसरा अनुबंध एक भारतीय राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम को दिया जा रहा है.

बीआरआई पर एक और समझौता करने की चीन की ख्वाहिश और उसका तर्क हैरान करने वाला है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हाल ही में कार्यान्वयन योजना में अंतिम रूप दिए गए मसौदे में बीआरआई ढांचे के तहत सहयोग के कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्र शामिल हैं. हालांकि इन परियोजनाओं की फंडिंग और कार्यान्वयन के तौर-तरीकों पर कोई विवरण नहीं दिया गया है. चीन के अधिकारियों का तर्क है कि कार्यान्वयन योजना द्विपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने के रास्ते खोलेगी और नेपाल में बीआरआई के तहत परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए उत्प्रेरक के रूप में काम करेगी. हालांकि, ये स्पष्ट नहीं है कि परियोजना का चयन और वित्त पोषण के तंत्र पर बातचीत के बिना एक और सामान्य समझौता परियोजनाओं के कार्यान्वयन को कैसे सुविधाजनक बनाएगा?

बीआरआई पर एक और समझौता करने की चीन की ख्वाहिश और उसका तर्क हैरान करने वाला है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हाल ही में कार्यान्वयन योजना में अंतिम रूप दिए गए मसौदे में बीआरआई ढांचे के तहत सहयोग के कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्र शामिल हैं.

नेपाल के बुनियादी ढांचे के विकास को लेकर किए समझौतों में पारदर्शिता की कमी चीनी भागीदारी की एक सामान्य विशेषता है. ज़्यादातर द्विपक्षीय बीआरआई सौदे शुरू से ही गोपनीयता में डूबे हुए हैं. बीआरआई पर शुरुआती एमओयू को दोनों देशों ने अभी भी गोपनीय रखा है. 2022 में एक मीडिया हाउस द्वारा दस्तावेज़ लीक होने के बाद एमओयू के कुछ विवादास्पद प्रावधान जांच के दायरे में गए थे. प्रचंड के नेतृत्व में हाल ही में निवर्तमान सरकार ने एक बार फिर इसी तरह के कदम उठाए और संसदीय चर्चा के लिए सांसदों के कई आह्वान के बावजूद, बिना विचार-विमर्श के कार्यान्वयन योजना के मसौदे को ख़त्म कर दिया. नेपाल की वामपंथी नेतृत्व वाली सरकारें अपने चीनी समकक्ष के साथ व्यवहार करते समय लोकतांत्रिक मानदंडों, पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रक्रियाओं को नजरअंदाज कर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के साथ अपनी वैचारिक समानता को प्राथमिकता देती हैं. बीआरआई परियोजना भी इससे अछूती नहीं है.


चीन के एकतरफा दावे

2017 में नेपाल बहुत धूमधाम से बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में शामिल हुआ था. बीआरआई को नेपाल के बुनियादी ढांचे की कमी को हल करने के लिए रामबाण के रूप में देखा गया था. अधिकांश नेपालियों ने बीआरआई को एक परियोजना-आधारित बुनियादी ढांचा पहल के रूप में माना. उन्हें इसकी साथ रणनीतिक और भू-राजनीतिक उद्देश्यों का बहुत कम एहसास था. लेकिन चीन ने जब बीआरआई के तहत नेपाल में कुछ परियोजनाओं की एकतरफा लेबलिंग कर दी तो नेपाली नागरिकों का संदेह बढ़ गया और इसने उन्हें परियोजना को लेकर सतर्क दृष्टिकोण रखने को प्रेरित किया.

 
पिछले महीने, नेपाल में चीन के राजदूत ने सोशल साइट एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर नेपाल में बीआरआई परियोजनाओं के 'नए बैच' की घोषणा करने का एक विवादास्पद दावा किया था. हाल ही में चीन की अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग एजेंसी (सीआईडीसीए) के उपाध्यक्ष ने नेपाल की यात्रा की. इस दौरान दोनों देशों ने लंबे समय से रुकी हुई चार परियोजनाओं को शुरू करने के लिए आदान-प्रदान पत्र पर हस्ताक्षर किए. इन परियोजनाओं की सहायता के लिए चीन प्रतिबद्ध है. इससे पहले, चीनी दूतावास ने आश्चर्यजनक रूप से बीआरआई के तहत एक प्रमुख परियोजना के रूप में चीनी ऋण से निर्मित पोखरा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की घोषणा की थी. नेपाली अधिकारियों ने दो टूक शब्दों में चीन के दावे को खारिज़ कर दिया, क्योंकि हवाई अड्डे के लिए ऋण को लेकर बातचीत 2013 में बीआरआई की परिकल्पना से पहले ही शुरू हो गई थी.

हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर सहयोग को लेकर दोनों देशों में गतिरोध बना हुआ है. इस बीच, चीन ने कथित तौर पर बीआरआई ढांचे के तहत 'छोटी लेकिन स्मार्ट' परियोजनाओं के माध्यम से भागीदारी का विस्तार किया है. जुलाई 2023 में, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) ने बीआरआई की दसवीं वर्षगांठ के मौके पर 'सिल्क रोडस्टर' प्लेटफॉर्म की घोषणा की. सिल्क रोडस्टर में प्रशिक्षण, कौशल विकास, और छात्रवृत्ति जैसे घटकों को शामिल किया गया है. इसमें अल्पकालिक आदान-प्रदान के माध्यम से व्यावहारिक सहयोग और लोगों से लोगों के बीच आदान-प्रदान को बढ़ावा देने की बात कही गई है. इसके अलावा, 2023 के आखिरी महीनों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए तीसरे बीआरआई फोरम के परिणाम दस्तावेज़ में चीन की प्रमुख पहल के एक हिस्से के रूप में दो छोटी परियोजनाओं का उल्लेख किया गया. इसमें चीनी गैर सरकारी संगठनों द्वारा कार्यान्वित शिक्षा और स्वच्छता से संबंधित पहल शामिल हैं.

चीन का दावा है कि बीआरआई को नेपाल में लागू किया गया है, जबकि नेपाल का कहना है कि बीआरआई के तहत किसी भी परियोजना का क्रियान्वयन नहीं हो पाया है.

खास बात ये है कि नेपाल ने आधिकारिक तौर पर ये बात कही है कि बीआरआई के तहत उसके यहां एक भी परियोजना शुरू नहीं हुई है. नेपाल ने अधूरे वित्त पोषण और कार्यान्वयन के तौर-तरीकों को इसकी वजह बताया है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि नेपाल के साथ किसी भी द्विपक्षीय भागीदारी को चीन बीआरआई पहल के एक हिस्से के रूप में वर्गीकृत करने के लिए उत्सुक दिखाई देता है. चीन ने सार्वजनिक रूप से अन्य वैश्विक पहलों के साथ-साथ बेल्ट एंड रोड पहल की सफलता के लिए पड़ोस को एक प्रदर्शन क्षेत्र के रूप में स्थापित करने का अपना इरादा बताया है. रणनीतिक रूप से और महत्वपूर्ण पड़ोसी के रूप में नेपाल उसकी प्राथमिकता है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2019 में नेपाल की राजकीय यात्रा की थी. चीन के लिए इस दौरान हुए समझौतों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना भी प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है. इस समझौते का उद्देश्य ट्रांस-हिमालयी बहुआयामी कनेक्टिविटी नेटवर्क के व्यापक ढांचे के भीतर बीआरआई के कार्यान्वयन में तेजी लाना था. इसके अलावा, अमेरिकी प्रभाव का मुकाबला करने के लिए चीन अपने रणनीतिक प्रभाव की पुष्टि करना चाहता है. चीन ऐसा इसलिए करना चाहता है क्योंकि वे नेपाल में मिलेनियम चैलेंज कोऑपरेशन (एमसीसी) समझौते पर मुहर लगने को नहीं रोक पाया था.

 

निष्कर्ष

 

चीन का दावा है कि बीआरआई को नेपाल में लागू किया गया है, जबकि नेपाल का कहना है कि बीआरआई के तहत किसी भी परियोजना का क्रियान्वयन नहीं हो पाया है. चीनी की ये मंशा स्पष्ट दिखती है कि जब तक नेपाल बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर नहीं करता, तब तक बड़ी परियोजनाओं में चीनी सहयोग अधर में रहेगा. चीन की प्रतिबद्धताएं कुछ छोटे पैमाने की परियोजनाओं तक ही सीमित रहेंगी. हालांकि, वित्तीय और कार्यान्वयन के तौर-तरीकों को अंतिम रूप देना, और नेपाल के हितों को समायोजित करने की चीन की इच्छा बीआरआई के कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण रहेगी. खासकर अन्य बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों के बराबर अनुदान और आसान शर्तों पर ऋण देना इसके लिए चीन की प्राथमिकता होगी. हालांकि बीआरआई को लेकर नेपाल में जो शुरुआती आशावाद और उत्साह था, वो धीरे-धीरे कम हो गया है, लेकिन अगर चीन अभी भी नेपाल की चिंताओं को दूर करने में लचीलापन दिखाता है तो बीआरआई के आगे बढ़ने की उम्मीद है. हालांकि, वर्तमान परिस्थितियों में बीआरआई का अधर में रहना तय है.

 



अर्पण गेलाल नेपाल के सेंटर फॉर सोशल इनोवेशन एंड फॉरेन पॉलिसी (CESIF) में रिसर्च और प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर हैं.

 

 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.