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बांग्लादेश में राजनीतिक अशांति की वजह से रेडीमेट और गारमेंट्स इंडस्ट्री में स्थितियां बदल रही हैं. वैश्विक बाजार ने अब बांग्लादेश की बजाए दूसरे देशों को सामान का ऑर्डर देना शुरू कर दिया है. भारत इसके एक प्रमुख लाभार्थी के रूप में उभर रहा है.
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बांग्लादेश की आर्थिक मुश्किलें कोविड-19 महामारी के बाद से ही तेज़ी से बढ़ने लगीं थीं, लेकिन अब ये बहुत गंभीर स्थिति में पहुंच चुकी हैं. कोरोना महामारी के दौरान वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा उत्पन्न हुई थी. इसने बांग्लादेश को विशेष रूप से प्रभावित किया, क्योंकि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था निर्यात पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. बांग्लादेश के कुल निर्यात आय में रेडीमेड और गारमेंट उद्योग (आरएमजी) करीब 80 प्रतिशत योगदान देता है. हालांकि 2021 और 2022 में इस क्षेत्र ने सुधार के संकेत दिए थे लेकिन बढ़ती मुद्रास्फीति और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान फिर जल्द ही सामने आ गए. 2024 के मध्य तक, मुद्रास्फीति 11 प्रतिशत से अधिक हो गई थी. खाने-पीने की चीजों के दाम तो और भी ज़्यादा बढ़ गए. इसने बांग्लादेश को एक अनिश्चित आर्थिक स्थिति में पहुंचा दिया.
बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 21.8 अरब डॉलर पर आ गया है. ये सिर्फ 2.5 महीने के आयात के लिए पर्याप्त है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 2027 तक के लिए जो मानक तय कर रखे हैं, उसके मुताबिक हर देश के पास 3.6 महीने के आयात के लिए विदेश मुद्रा भंडार होना चाहिए.
बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 21.8 अरब डॉलर पर आ गया है. ये सिर्फ 2.5 महीने के आयात के लिए पर्याप्त है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 2027 तक के लिए जो मानक तय कर रखे हैं, उसके मुताबिक हर देश के पास 3.6 महीने के आयात के लिए विदेश मुद्रा भंडार होना चाहिए. इस हिसाब से बांग्लादेश लक्ष्य से काफ़ी पीछे है. मज़बूरन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने के लिए आईएमएफ जैसे बाहरी उधारदाताओं की तरफ रुख़ किया है. उसने चीन से भी आसान शर्तों पर 5 अरब डॉलर का ऋण देने का अनुरोध किया. हालांकि, ये ऋण केवल अल्पकालिक राहत ही प्रदान करेंगे और ये लोन सख़्त शर्तों के साथ आते हैं. अगर बांग्लादेश अपने वित्तीय और औद्योगिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुधार नहीं करता तो उसके यहां और ज़्यादा आर्थिक अस्थिरता का ख़तरा है. इससे बांग्लादेश के लोगों और उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकते हैं.
इसके अलावा, बढ़ती बेरोजगारी और विदेश में रहने वाले बांग्लादेशियों की तरफ से भेजे जाने वाले पैसों के घटते प्रवाह ने लाखों बांग्लादेशी परिवारों की स्थिति को अधिक खराब कर दिया है. इन फौरी चिंताओं से परे, बांग्लादेश का बैंकिंग क्षेत्र लंबे समय से गैर-निष्पादित ऋण, भ्रष्टाचार और कमज़ोर नियामक निरीक्षण जैसी संरचनात्मक समस्याओं से जूझ रहा है. इससे आर्थिक स्थिरता में और बाधा आ रही है. इन संरचनात्मक कमज़ोरियों ने देश के आरएमजी क्षेत्र को अस्थिर कर दिया. इसकी वजह से श्रमिकों में भी असंतोष बढ़ रहा है. वेतन में बढ़ोत्तरी नहीं होने और बिगड़ते कामकाजी हालातों के कारण विरोध प्रदर्शन तेज़ हो गए हैं. अगस्त 2024 में राजनीतिक अस्थिरता बिगड़ गई. 15 साल तक सत्ता में रहने के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया. इस दौरान हुए हिंसक प्रदर्शनों की वजह से कारखाने बंद हो गए. इसका नतीजा ये हुआ है कि अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों ने अपने ऑर्डर भारत और श्रीलंका समेत अन्य देशों में स्थानांतरित कर दिए. इसने भी बांग्लादेश की दीर्घकालिक स्थिरता और आर्थिक दृष्टिकोण के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं.
बांग्लादेश में राजनीतिक अशांति की वजह से रेडीमेट और गारमेंट्स इंडस्ट्री में स्थितियां बदल रही हैं. वैश्विक बाजार ने अब बांग्लादेश की बजाए दूसरे देशों को सामान का ऑर्डर देना शुरू कर दिया है. भारत इसके एक प्रमुख लाभार्थी के रूप में उभर रहा है. आपूर्ति श्रृंखला में आ रही बाधाओं से चिंतित अंतर्राष्ट्रीय परिधान (अपैरल) ब्रांड अब अपने ऑर्डर भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु में तिरुप्पुर निटवेयर हब को देने शुरू कर दिए हैं. सितंबर 2024 में दो हफ्ते के भीतर, भारत को जर्मनी के KiK, नीदरलैंड के ज़ीमैन और पोलैंड के पेप्को जैसे प्रसिद्ध ग्लोबल ब्रांड्स से करीब 4.5 अरब (लगभग 54 मिलियन डॉलर) के ऑर्डर प्राप्त हुए. रेमंड जैसी भारतीय कंपनियां भी बांग्लादेश संकट से पैदा हुए शून्य का फायदा उठाने की कोशिश कर रही हैं. रेमंड के पास भी कपड़ों की आपूर्ति की पूछताछ के लिए आने वाले सवालों में काफ़ी वृद्धि हुई है. विश्वसनीय आपूर्तिकर्ताओं की तलाश में अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों ने भारत का रुख़ किया है. भारत में श्रम की उपलब्धता और विशाल उत्पादन क्षमता इन अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों को एक स्थिर विकल्प प्रदान करती है. ये बदलाव भारत के लिए वैश्विक बाज़ार में अपने गारमेंट उद्योग की हिस्सेदारी बढ़ाने का शानदार अवसर मुहैया करा रहा है, जो कई साल लगभग 3 प्रतिशत के आसपास है.
भारत की सबसे बड़ी ताकत ये है कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में युवा कार्यबल है. बांग्लादेश का आरएमजी क्षेत्र करीब चालीस लाख श्रमिकों को रोजगार देता है, जिनमें से कई महिलाएं हैं. बांग्लादेश लंबे समय से वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी इसलिए बना रहा, क्योंकि उसकी श्रम लागत काफ़ी कम है. 18 से 35 आयु वर्ग कार्यबल के बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है. इसमें से 92.4 प्रतिशत श्रमिक 35 साल से कम आयु के हैं और सिर्फ 7.6 फीसदी 35 से ऊपर हैं. युवा श्रमिकों की ये डेमोग्राफी कपड़ा उद्योग की भौतिक मांगों के कारण महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे युवा वयस्कों का प्राथमिक श्रम पूल बनाता है. हालांकि, भारत में 18-35 आयु वर्ग के लोगों की संख्या 50 करोड़ के आसपास होने का अनुमान है. ये संख्या बांग्लादेश की कुल आबादी से भी बहुत ज़्यादा है. इससे भारत बढ़ी हुई मांग को खपाने के लिए अच्छी स्थिति में है. भारत का कार्यबल और प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उत्पादन करने की क्षमता इसे वैश्विक बाज़ार में बढ़त दिलाती है.
भारत में 18-35 आयु वर्ग के लोगों की संख्या 50 करोड़ के आसपास होने का अनुमान है. ये संख्या बांग्लादेश की कुल आबादी से भी बहुत ज़्यादा है. इससे भारत बढ़ी हुई मांग को खपाने के लिए अच्छी स्थिति में है.
भारत में परिधान उत्पादन में बदलाव और इसकी मांग में वृद्धि देश के लिए एक महत्वपूर्ण समय पर आया है क्योंकि भारत खुद इस वक्त बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है. 2024 के मध्य तक, भारत की बेरोजगारी दर 8 प्रतिशत से ऊपर थी. बेरोजगारी की दर निम्न और मध्यम-कुशल श्रमिकों में ज़्यादा दिख रही थी. ऐसे में आरएमजी सेक्टर में बढ़ते ऑर्डर की ये नई लहर नौकरियां पैदा करने का अवसर पेश कर रही है, खासकर तमिलनाडु, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में, जहां कपड़ा उद्योग रोजगार दिलाने वाला एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है. ज़्यादा आरएमजी उत्पादन को अवशोषित करने से भारत अपनी बेरोजगारी की चुनौतियों को भी कम कर सकता है, खासकर उन युवा श्रमिकों को अधिक फायदा होगा, जो काम कुशलता और सीमित अवसरों के साथ नौकरी के बाज़ार में प्रवेश करते हैं. हालांकि, गारमेंट उद्योग में आए इस उछाल को सावधानी से संभालना चाहिए क्योंकि इससे वेतन में ठहराव या कम-कुशल नौकरियों पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ने का ख़तरा है और ये मांग में संभावित गिरावट पैदा कर सकती है. भारत के लिए कई चुनौतियां हैं. उत्पादकता भी बढ़ानी है और ये भी सुनिश्चित करना है कि दीर्घकालिक लक्ष्य के साथ रोजगार सृजन की तत्काल आवश्यकता को संतुलित किया जाए. इसके साथ ही श्रमिकों को प्रशिक्षित भी करना है, जिससे वो वैश्विक मानकों के हिसाब से उच्च गुणवत्ता के उत्पाद बना सकें.
श्रमिकों की विशाल संख्या वैश्विक परिधान उद्योग में भारत को एक प्राकृतिक लाभ प्रदान करता है. इससे निर्माताओं को उत्पादन लागत कम करने और अधिक अंतर्राष्ट्रीय ऑर्डर आकर्षित करने का फायदा मिलता है. ये बदलाव बुनियादी आर्थिक सिद्धांतों के अनुरूप है, जहां श्रम की मांग स्थिर रहने पर श्रम आपूर्ति में वृद्धि की वजह से मजदूरी लागत कम हो सकती है. हेक्सचर-ओहलिन मॉडल ये भविष्यवाणी करता है कि जो देश उत्पादन के लिए अपने प्रचुर कारकों का गहन और कुशलता से इस्तेमाल करते हैं, वो उन उद्योगों में विशेषज्ञ होंगे. ये थ्योरी भी गारमेंट इंडस्ट्री में भारत की बढ़ती प्रमुखता का समर्थन करती है.
फिर भी, ये कहा जा सकता है कि परिधान उद्योग के ऑर्डर में इस बदलाव से भारत को अल्पावधि में लाभ होगा, लेकिन इसके संभावित ज़ोखिम भी हैं. श्रम उत्पादकता में अनुकूल वृद्धि के बिना, वेतन में स्थिरता आ सकती है. इससे दीर्घकालिक आर्थिक लाभ सीमित हो सकते हैं. इसके अलावा, जो क्षेत्र शुरू में बढ़े हुए आरएमजी ऑर्डर से फायदा उठा रहे हैं, उन्हें इस विकास को बनाए रखने के लिए उत्पादन कुशलता में सुधार और नवाचार को बढ़ावा देने में भी निवेश करना चाहिए. कम लागत वाले श्रम पर बहुत अधिक भरोसा करने से वैश्विक परिधान उद्योग में मूल्य श्रृंखला पर चढ़ने की भारत की क्षमता में बाधा आ सकती है.
बांग्लादेश की आरएमजी पर निर्भरता बहुत ज़्यादा है. उसने अपनी अर्थव्यवस्था का निर्यात विविधीकरण नहीं किया. यही वजह है कि उसकी अर्थव्यवस्था बाहरी झटकों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है. ऐसे में अपने आर्थिक भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए बांग्लादेश को तत्काल सुधारों को लागू करना चाहिए,
आखिर में यही कहा जा सकता है कि रेडीमेड और गारमेंट उद्योग में बांग्लादेश को जो प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिली थी, वो ऐतिहासिक रूप से कम श्रम लागत पर आधारित थी. अब ये बढ़त ख़तरे में है क्योंकि वैश्विक ब्रांड अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता ला रहे हैं, जिससे बांग्लादेश का तुलनात्मक लाभ कम हो रहा है. बांग्लादेश में आरएमजी क्षेत्र में 40 लाख से ज़्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं. अगर मांग में गिरावट आएगा तो इससे बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ेगी. इसका असर खुदरा, आवास और सेवाओं जैसे संबंधित क्षेत्रों पर भी पड़ेगा. उच्च मुद्रास्फीति, घटता विदेशी मुद्रा भंडार और राजनीतिक अस्थिरता ने स्थिति को और खराब कर दिया है. बांग्लादेश की आरएमजी पर निर्भरता बहुत ज़्यादा है. उसने अपनी अर्थव्यवस्था का निर्यात विविधीकरण नहीं किया. यही वजह है कि उसकी अर्थव्यवस्था बाहरी झटकों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है. ऐसे में अपने आर्थिक भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए बांग्लादेश को तत्काल सुधारों को लागू करना चाहिए, राजनीतिक परिदृश्य को स्थिर करना चाहिए. अपनी अर्थव्यवस्था को आर्थिक रूप से ज़्यादा व्यावहारिक उद्योगों की तरफ ले जाते हुए दूसरे विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में निवेश करना चाहिए.
सौम्या भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं. इसके साथ ही वो ओआरएफ में वर्ल्ड इकोनॉमीज़ एंड सस्टेनेबिलिटी के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी (CNED) के प्रमुख भी हैं.
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Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...
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