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ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान पर भारत की खुफिया बढ़त को साबित किया. इसे बरकरार रखने के लिए भारत को अब क्षेत्रीय संबंधों को बढ़ाने, दुष्प्रचार की रणनीति का मुकाबला करने और गुप्त कार्रवाई की आवश्यकता है.
Image Source: Getty
12 मई 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के लोगों को संबोधित किया. इस भाषण में प्रधानमंत्री ने एलान किया कि आगे भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान के द्वारा आतंकवाद के प्रायोजन को युद्ध की कार्रवाई समझा जाएगा. साथ ही प्रधानमंत्री ने ऑपरेशन सिंदूर- जो कि ऑपरेशन के दो हफ्ते पहले पहलगाम में पाकिस्तान की मदद से हुए आतंकी हमले के ख़िलाफ़ भारत का सोच-समझकर जवाब था- के दौरान न केवल भारत के लोगों के सामर्थ्य और एकता को उजागर किया बल्कि खुलकर देश की खुफिया सेवा के द्वारा निभाई गई भूमिका की भी प्रशंसा की.
ख़बरों के मुताबिक भारत के कार्टोसैट सैटेलाइट के नेटवर्क से रियल-टाइम में मिली जानकारी के आधार पर आकाशतीर प्रणाली ने पाकिस्तानी ड्रोन के झुंड की लहरों के ख़िलाफ़ लगभग शत-प्रतिशत सफलता की दर हासिल की.
जैसे-जैसे परिस्थितियां स्पष्ट हो रही है, वैसे-वैसे सबूत इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की खुफिया सेवाओं ने शानदार भूमिका निभाई. इन उपलब्धियों ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत की रणनीतिक बढ़त को और मज़बूत किया है और पाकिस्तान पर लंबे समय तक दबाव बनाए रखने और हाल के हफ्तों में मिली सफलताओं को और आगे बढ़ाने के उद्देश्य से भारत की सुरक्षा एजेंसियों के लिए रास्ता तैयार किया है.
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के आकाशतीर एयर डिफेंस सिस्टम की सफलता ने भारत की तकनीकी इंटेलिजेंस (TECHINT) की क्षमताओं के बढ़ते कौशल को दिखाया. ख़बरों के मुताबिक भारत के कार्टोसैट सैटेलाइट के नेटवर्क से रियल-टाइम में मिली जानकारी के आधार पर आकाशतीर प्रणाली ने पाकिस्तानी ड्रोन के झुंड की लहरों के ख़िलाफ़ लगभग शत-प्रतिशत सफलता की दर हासिल की. पाकिस्तान ने सीमा पर और भारत के भीतरी क्षेत्रों में नागरिक इलाकों को निशाना बनाने के लिए इन ड्रोन का इस्तेमाल किया था. भारत की बढ़ती तकनीकी ताकत का केवल प्रमाण होने से ज़्यादा आकाशतीर सिस्टम का इंजीनियरिंग और परिचालन (ऑपरेशनल) प्रदर्शन सक्रिय संघर्ष की स्थिति में उच्च स्तर की रणनीतिक खुफिया जानकारी (जिसका उदाहरण रियल-टाइम सैटेलाइट तस्वीरों को इकट्ठा करने और उसके प्रसंस्करण से मिलता है) और तत्काल सामरिक प्रयोग के बीच बिना किसी बाधा के एकीकरण को रेखांकित करता है. इसका नतीजा आशंका से कम संख्या में लोगों का हताहत होना और पाकिस्तानी सेना के द्वारा जीत का दावा करने के लिए कोई आधार तक नहीं होना है.
इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि आकाशतीर एयर डिफेंस सिस्टम की सफलता ने इंटेलिजेंस के एक किरदार के रूप में भारत की बढ़ती आज़ादी के बारे में बताया है. 1999 के कारगिल युद्ध के ठीक विपरीत, जब अमेरिका ने राजनीतिक लाभ के लिए 'चयनात्मक उपलब्धता' की नीति के माध्यम से भारत के गैर-सैन्य GPS रिसीवर की सटीकता को सक्रिय रूप से कम कर दिया था, आकाशतीर ने देश में विकसित नाविक (NAVIC) नैविगेशन सिस्टम का इस्तेमाल किया. इसकी वजह से अमेरिका जैसे किसी बाहरी किरदार के द्वारा संघर्ष में सार्थक भूमिका अदा करने की क्षमता काफी कम हो गई. 10 मई के शुरुआती घंटों में भारतीय वायुसेना ने रावलपिंडी में पाकिस्तानी वायुसेना के नूर ख़ान बेस पर हमला किया जो पाकिस्तान की परमाणु कमांड अथॉरिटी के सचिवालय यानी रणनीतिक योजना (स्ट्रैटजिक प्लांस) डिवीज़न से कुछ ही दूरी पर स्थित है. इस तरह ऑपरेशन सिंदूर के केंद्र में निहित पाकिस्तान के जवाबी हमला करने की क्षमता को कम करने के उद्देश्य को सफलतापूर्वक प्राप्त किया गया.
11 मई के बाद से नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) और इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) ने देश भर में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (ISI) की मदद करने वाले कई संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार किया है. पकड़े गए आरोपियों की पृष्ठभूमि भारत में पाकिस्तान की उभरती खुफिया प्राथमिकताओं पर प्रकाश डालती है. साथ ही ये भी बताती है कि इन उभरते ख़तरों का जवाब देने के लिए भारत की काउंटरइंटेलिजेंस सेवाओं को क्या कदम उठाने चाहिए.
पुलिस सूत्रों के अनुसार सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर ज्योति मल्होत्रा की गिरफ्तारी इस बात की तरफ इशारा करती है कि ISI शांति और युद्ध- दोनों समय में दुष्प्रचार फैलाने के लिए असरदार एजेंट्स की भर्ती करने पर ज़्यादा ध्यान दे रही है.
पुलिस सूत्रों के अनुसार सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर ज्योति मल्होत्रा की गिरफ्तारी इस बात की तरफ इशारा करती है कि ISI शांति और युद्ध- दोनों समय में दुष्प्रचार फैलाने के लिए असरदार एजेंट्स की भर्ती करने पर ज़्यादा ध्यान दे रही है. सामरिक रूप से महत्वपूर्ण सूचना तक पहुंच रखने वाले निचले स्तर के मैनेजर के साथ-साथ भारत में रणनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में कम पैसा कमाने वाले लोगों की भर्ती पर ISI के पारंपरिक ध्यान के अलावा इस तरह के प्रयास जारी रहने की उम्मीद है. अतीत में इसके उदाहरण ब्रह्मोस के पूर्व इंजीनियर निशांत अग्रवाल और मुजीब रहमान हैं जिसे ऑपरेशन सिंदूर के चरम पर होने के दौरान INS विक्रांत की गतिविधियों के बारे में खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए एक सरकारी अधिकारी का रूप धारण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
शुरुआती संकेतों से पता चलता है कि भारत की काउंटर इंटेलिजेंस सेवाओं को इन चुनौतियों की जानकारी है और इनका मुकाबला करने के लिए उन्होंने कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. ऐसा लगता है कि इनमें से कुछ प्रयासों के फल पहले से ही मिल रहे हैं. इसका उदाहरण है पिछले दिनों गुजरात में ‘साइबर आतंकवाद’ और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सरकारी वेबसाइट्स पर पाकिस्तान के साइबर हमलों में मदद करने के आरोप में 18 साल के एक युवक की गिरफ्तारी. इसके साथ-साथ भारतीय अधिकारियों ने तीसरे पक्षों के द्वारा पाकिस्तानी दुष्प्रचार को बढ़ावा देने के आरोप में भी कार्रवाई की है और इसे सबसे बड़ी काउंटरइंटेलिजेंस की चिंता समझा गया है. भारत सरकार ने चीन और तुर्की के सरकारी मीडिया संगठनों की सोशल मीडिया प्रोफाइल पर प्रतिबंध लगा दिया है क्योंकि वो संघर्ष के दौरान ISI से जुड़े नैरेटिव को बढ़ावा दे रहे थे.
लड़ाई पर मौजूदा रोक के दौरान साझेदार देशों के साथ खुफिया मेल-जोल के ज़रिए ज़्यादा-से-ज़्यादा सामरिक लाभ हासिल करना भी भारत के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है. हाल के दिनों में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी से बात की. 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद दोनों देशों के बीच ये पहली आधिकारिक बातचीत थी. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल ने भी ईरान के NSA अली अकबर अहमदियान से बात की. दोनों देश पाकिस्तान पर अविश्वास करते हैं और इस क्षेत्र में पाकिस्तान की अस्थिर करने वाली भूमिका को लेकर एक जैसी राय रखते हैं. पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान के बीच संबंध अब तक की सबसे ख़राब स्थिति में हैं और ईरान का पाकिस्तान के साथ सीमा पर झड़प के साथ-साथ जासूसी का भी इतिहास रहा है. साझा चिंताओं की आपसी पहचान मौजूदा मेल-जोल के ढांचे का विस्तार करने के लिए अनुकूल हो सकती है. इससे भारत को पाकिस्तान पर अधिक दबाव डालने और देश की नीति के साधन के रूप में आतंकवाद का इस्तेमाल करने की उसकी क्षमता पर रोक लगाने में मदद मिलेगी. हालांकि इन देशों के साथ खुफिया जानकारी साझा करने के लिए कोई भी समझौता करते समय इस जोख़िम का हिसाब रखना होगा कि चीन तक पहुंच के ज़रिए पाकिस्तान किसी भी गुप्त सूचना को हासिल कर सकता है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान और ईरान- दोनों देश हाल के वर्षों में चीन के साथ नज़दीकी बढ़ा रहे हैं.
वास्तव में ऑपरेशन सिंदूर ने भारत को प्रमुख सहयोगियों के लिए खुफिया संपर्क साझेदार के रूप में अपने असर का विस्तार करने का एक छोटा सा अवसर मुहैया कराया है. ये लाभ की ऐसी स्थिति है जिसका इस्तेमाल तत्काल कूटनीतिक या आर्थिक फायदे के लिए किया जा सकता है.
वास्तव में ऑपरेशन सिंदूर ने भारत को प्रमुख सहयोगियों के लिए खुफिया संपर्क साझेदार के रूप में अपने असर का विस्तार करने का एक छोटा सा अवसर मुहैया कराया है. ये लाभ की ऐसी स्थिति है जिसका इस्तेमाल तत्काल कूटनीतिक या आर्थिक फायदे के लिए किया जा सकता है. पाकिस्तान के द्वारा इस्तेमाल की गई चीन की PL-15E मिसाइल और तुर्की में बने ड्रोन को भारत ने मार गिराया था. इनका मलबा भारत को एक अवसर प्रदान करता है कि वो चीन और तुर्की की हथियार प्रणाली को समझ सके. इस खुफिया जानकारी का इस्तेमाल भारत कर सकता है या दिलचस्पी रखने वाले वैश्विक साझेदारों के साथ इस जानकारी का आदान-प्रदान किया जा सकता है. सूत्रों से पता चलता है कि फ्रांस और फाइव आईज़ अलायंस के सदस्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका) ने इस तरह की खुफिया जानकारी हासिल करने में पहले ही अपनी दिलचस्पी जता दी है.
हालांकि ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से पाकिस्तान को रोकने में जो बढ़त हासिल हुई है, अगर उसे मज़बूत करना है तो भारत को खुफिया क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है. वैसे तो हर रणनीति का विशेष ब्यौरा उसके संदर्भ और उद्देश्य के अनुसार अलग-अलग होगा लेकिन एक आक्रामक रुख- जिसमें मानवीय और तकनीकी स्रोतों के माध्यम से खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के साथ-साथ छल और गतिज संचालन (काइनेटिक ऑपरेशन) का सक्रिय इस्तेमाल शामिल है- पाकिस्तान के राज्य प्रायोजित आतंकवाद के ख़िलाफ़ हाल में स्थापित प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने के लिए सबसे उपयुक्त हो सकता है.
भविष्य में किसी भी तरह के दुस्साहस से पाकिस्तान को रोकने के लिए एक प्रमुख घटक है तुर्की और चीन के साथ उसके पुराने रणनीतिक मेल-जोल को लेकर स्पष्ट समझ विकसित करना जिसे ऑपरेशन सिंदूर ने और अधिक लोगों के ध्यान में ला दिया. ऐसे में भारत को इस तरह की खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के प्रयासों का विस्तार करना चाहिए कि तीनों देशों के हित कहां और कैसे मिलते या अलग होते हैं, विशेष रूप से पाकिस्तान के द्वारा आतंकवाद के प्रायोजन के संबंध में. इसके लिए किसी अलग देश- जहां पाकिस्तान, चीन और तुर्की के हित और गतिविधियां सबसे स्पष्ट रूप से एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं- में खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए अधिक संसाधन लगाने की आवश्यकता पड़ सकती है. विशेष रूप से मध्य एशिया और कॉकेशस महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं क्योंकि तुर्की और चीन- दोनों ने यहां अपनी आर्थिक और राजनीतिक मौजूदगी का विस्तार किया है. साथ ही पाकिस्तान ने हाल के दिनों में यहां भारत विरोधी आतंकियों की भर्ती की है और उनको प्रशिक्षित किया है. पाकिस्तान के हित और नीतियां उसके दो सबसे नज़दीकी रणनीतिक साझेदारों से सबसे ज़्यादा कहां मिलती हैं या अलग होती है, उसका पता लगाने से भारत के नीति निर्माताओं को उन प्रमुख कमज़ोरियों की पूरी तस्वीर मिल सकती है. इनका इस्तेमाल ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत में चाही गई दीर्घकालिक प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने के लिए अलग-अलग तरीकों, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, के माध्यम से किया जा सकता है. क्षेत्रीय साझेदारों के साथ संपर्क इस रणनीति (जिसका उल्लेख पहले किया गया है) को आगे बढ़ाने में मदद तो कर सकता है लेकिन खुफिया जानकारी इकट्ठा करने की प्राथमिकताओं में एकतरफा अभियानों पर भी ज़ोर दिया जाना चाहिए क्योंकि क्षेत्र की कई सरकारों की आंतरिक सुरक्षा कमज़ोरियां हैं और तुर्की एवं चीन- दोनों के साथ उनका भू-राजनीतिक मेल-जोल बढ़ रहा है.
क्षेत्रीय साझेदारों के साथ संपर्क इस रणनीति को आगे बढ़ाने में मदद तो कर सकता है लेकिन खुफिया जानकारी इकट्ठा करने की प्राथमिकताओं में एकतरफा अभियानों पर भी ज़ोर दिया जाना चाहिए क्योंकि क्षेत्र की कई सरकारों की आंतरिक सुरक्षा कमज़ोरियां हैं और तुर्की एवं चीन- दोनों के साथ उनका भू-राजनीतिक मेल-जोल बढ़ रहा है.
इसी तरह जवाबी-OSINT (ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस) की क्षमताओं को भी प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई है क्योंकि पाकिस्तानी दुष्प्रचार का नुकसानदेह प्रभाव है और तुर्की एवं चीन का सरकारी मीडिया इसे अक्सर बढ़ाता है. जिस तरह 26/11 हमले का नतीजा दो साल बाद NIA की स्थापना के रूप में निकला, जिसका मुख्य उद्देश्य आतंकवाद विरोधी मुद्दों से निपटना और भारत की अलग-अलग सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित करना है, उसी तरह एक विशेष जवाबी-OSINT एजेंसी दुष्प्रचार के विरुद्ध उसी तरह का लक्ष्य प्राप्त करने में मदद कर सकती है. स्वीडन की मनोवैज्ञानिक रक्षा एजेंसी से सबक सीखा जा सकता है जिसकी स्थापना 2022 में रूस और चीन के दुष्प्रचार अभियान से उत्पन्न ख़तरे का जवाब देने के लिए की गई थी. इसी तरह की भारतीय एजेंसी सहयोगी संगठनों जैसे कि नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन (NTRO जो कि भारत की प्रमुख तकनीकी खुफिया एजेंसी है और जिसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एक अहम भूमिका निभाई) के साथ मिलकर काम कर सकती है या प्राइवेट सेक्टर की पहल के साथ भी तालमेल कर सकती है जैसे कि संघर्ष के दौरान पाकिस्तान के डिजिटल ख़तरा पैदा करने वाले किरदारों की प्रकृति और उनकी कमज़ोरियों की जांच करने के लिए डेटा सिक्युरिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के द्वारा गठित टास्क फोर्स.
इसी तरह भारतीय खुफिया एजेंसियां गुप्त कार्रवाइयों- धोखे का जवाब और गतिज संचालन दोनों में- इसके माध्यम से ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हासिल बढ़त को बरकरार रख सकती हैं. निशाना बनाकर पाकिस्तानी आतंकवादियों को मारने से न केवल ऐसे संगठनों के नेतृत्व को ख़त्म करने के उद्देश्य को पूरा किया जा सकता है बल्कि ये संकेत भी मिलता है कि ऐसे देश की उदारता पर भरोसा करना बेकार है जो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम नहीं है. छल और जवाबी जासूसी के रचनात्मक उपयोग के माध्यम से असर पैदा करने वाले एजेंट्स की भर्ती करने के पाकिस्तान के प्रयासों से निपटने के लिए भारतीय काउंटरइंटेलिजेंस सेवाओं के द्वारा उठाए गए सक्रिय कदम- शायद ऊपर बताए गए, काल्पनिक जवाबी-OSINT सेवाओं के साथ तालमेल करके- दुश्मन के रणनीतिक दायरे के भीतर असमंजस काफी हद तक बढ़ा सकते हैं. इस तरह का दृष्टिकोण जासूसी के लिए भारतीय नागरिकों की भर्ती के माध्यम से हासिल किसी भी बढ़त को नियंत्रित करने का काम करेगा.
इसमें कोई शक नहीं है कि भारत की खुफिया सेवाओं ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत अपने रणनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लेकिन इन सफलताओं को बरकरार रखने को सुनिश्चित करने के लिए एक अधिक सक्रिय रणनीति- जो हाल की कामयाबियों की रफ्तार पर आधारित हो- को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. धैर्य, आत्मविश्वास, रणनीतिक स्पष्टता और स्वस्थ संदेह का मेल-जोल हाल के हफ्तों में स्थापित प्रतिरोधक क्षमता (डिटरेंस) को बनाए रखने में भारत की बहुत ज़्यादा मदद कर सकता है.
(आर्चिश्मान गोस्वामी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशंस प्रोग्राम में एम फिल के छात्र हैं.)
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Archishman Ray Goswami is a Non-Resident Junior Fellow with the Observer Research Foundation. His work focusses on the intersections between intelligence, multipolarity, and wider international politics, ...
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