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साल भर पहले हमारे नेताओं ने दोतरफा मकसद हासिल करने की बात कही थी. पहला, महामारी को काबू में करना और दूसरा, उतने ही जोरशोर से अर्थव्यवस्था को बचाने की कोशिश करना. इस पर लोवी इंस्टीट्यूट ने एक शानदार रिसर्च की है, जिसमें इस सिलसिले में तानाशाही से लेकर लोकतांत्रिक देशों के मॉडलों की विश्लेषण किया गया. इस विश्लेषण से जो बात सामने आई, वह यह है कि इनमें से किसी को पक्के तौर पर सही मॉडल नहीं माना जा सकता. हाल ही में कनाडा के मैकडॉनल्ड-लॉरिए इंस्टीट्यूट ने कनाडा के नाम और भी कई ख़राब रिकॉर्ड दर्ज हैं. जी-7 देशों में उसका सरकारी घाटा और बेरोजगारी दर सबसे अधिक और टीकाकरण की दर सबसे कम है.
महामारी के सिलसिले में हमें तीन लक्ष्य साफ-साफ पता हैं. पहला, सरकारों को जनता के हित को सर्वोपरि रखने की जरूरत है, दूसरा उनके पास महामारी को काबू में करने की रणनीति होनी चाहिए और तीसरा, उनके पास सामान्य स्थिति में लौटने की योजना होनी चाहिए. यह काम बड़े पैमाने पर कोरोना वायरस की जांच, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) की आपूर्ति सुनिश्चित करके और व्यापक टीकाकरण के जरिये हो सकता है. अफसोस की बात यह है कि कनाडा में इन तीनों ही लक्ष्यों को ठीक से हासिल करने की कोशिश नहीं हो रही है.
हाल ही में कनाडा के मैकडॉनल्ड-लॉरिए इंस्टीट्यूट ने COVID मिजरी इंडेक्स यानी कोविड विपदा सूचकांक प्रकाशित किया है. यह सूचकांक बताता है कि इस लिहाज से उत्तर अमेरिका का यह देश दुनिया के सबसे ख़राब देशों में शामिल है. इस बात की पुष्टि लोवी इंस्टीट्यूट के शोध से भी हुई है.
अब ज़रा इसकी तुलना वैश्विक वित्तीय संकट के वक्त जी-7 देशों में कनाडा के सफल प्रदर्शन से करिए. तब वह दुनिया में अकेला ऐसा देश था, जहां मध्यवर्ग का विस्तार हो रहा था ना कि वह सिकुड़ रहा था. प्रति व्यक्ति प्रवास दर (पर कैपिटा इमिग्रेशन रेट्स) के मामले में भी वह सबसे आगे था. वहां आर्थिक तरक्की हो रही थी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार समझौतों में 10 गुना की बढ़ोतरी हुई थी. सबसे बड़ी बात यह है कि इन समझौतों के विरोध में सड़क पर एक भी शख्स नहीं उतरा था.
कनाडा सरकार की भारी भूल
अफसोस कि यही बात महामारी को नियंत्रित करने और आर्थिक संभावना को लेकर नहीं कही जा सकती. कनाडा की सरकार वैक्सीन रिसर्च में अगुवा देशों को साथ लाकर ग्लोबल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की पहल कर सकती थी. इसी तरह का कदम वह निवेश के क्षेत्र में भी उठा सकती थी. इसके साथ वह अंतरराष्ट्रीय मैन्युफैक्चरिंग और वैक्सीन की डिलीवरी की व्यवस्था बनाने के क्षेत्र में भी पहलकदमी कर सकती थी, लेकिन उसने इसके उलट काम किए. कनाडा की वैक्सीन डिप्लोमेसी एकदम सुस्त पड़ी थी. इस मामले में सरकार की नींद तभी खुली, जब उसके निकम्मेपन की खबरें सुर्खियां बनने लगीं. यूं तो प्रति व्यक्ति कोविड की संभावित वैक्सीन की सप्लाई सुनिश्चित करने में वह दुनिया में सबसे आगे है. उसने वैक्सीन की 40 करोड़ खुराक का ऑर्डर दिया है, लेकिन समय पर इनकी डिलीवरी की ओर उसका ध्यान नहीं गया. 8 मार्च तक कनाडा में कोविड वैक्सीन के सिर्फ 25 लाख डोज दिए गए थे, जबकि अमेरिका में यह संख्या 9.2 करोड़ और इजरायल में 90 लाख थी. फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक कनाडा ने सिर्फ 6.6 फीसदी आबादी का टीकाकरण किया है और इस लिहाज से वह दुनिया में 42वें नंबर पर है.
कोविड महामारी में कनाडा के ख़राब रिकॉर्ड का सिलसिला नब्बे के दशक से जुड़ा है. तब वहां की दो वैक्सीन बनाने वाली इकाइयों- कनॉट लैब्स और IAF बायोकेम को क्रमशः सनोफी और ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GSK) को बेच दिया गया. इससे घरेलू स्तर पर वैक्सीन बनाने की क्षमता प्रभावित हुई. जानकारों ने तब आगाह किया था कि इससे वैक्सीन की सुरक्षित और नियमित आपूर्ति बाधित होगी, एक के बाद एक आई सरकारों ने इस कमी को दूर करने का प्रयास नहीं किया, न ही इसे अपनी प्राथमिकता में शामिल किया.
कनाडा में जब हालात गंभीर होने लगे तो प्रधानमंत्री ट्रूडो ने चीन की तरफ मदद की ख़ातिर हाथ फैलाया. ऐसे में चीन ने वही किया, जिसकी उससे आशंका रहती है. उसने अपनी वैक्सीन कूटनीति के बदले हुवावेई के अधिकारी मेंग वांगझू को कनाडा की जेल से रिहा करने की मांग की.
महामारी की शुरुआत हुई तो ट्रूडो सरकार को अहसास हुआ कि उसने एक महत्वपूर्ण और कामयाब व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया है. वहीं, जब दुनिया भर की सरकारों ने अपने नागरिकों को बचाने के लिए देश की सीमाएं बंद करना शुरू किया, तब कनाडा की स्वास्थ्य मंत्री पैटी हाजडु अपनी विचारधारा का राग अलाप रही थीं: वह कॉन्सपिरेसी थिअरीज को ग़लत बताने, आलोचकों पर नस्लवाद के आरोप लगाने, चीन के प्रोपेगेंडा को दोहराने और राष्ट्रहित से जुड़े महत्वपूर्ण फैसलों को विश्व स्वास्थ्य संगठन पर थोपने में व्यस्त थीं, जिससे उनकी विश्वसनीयता ख़त्म हो रही थी.
चीन पर दांव लगाना विफल
कनाडा में जब हालात गंभीर होने लगे तो प्रधानमंत्री ट्रूडो ने चीन की तरफ मदद की ख़ातिर हाथ फैलाया. ऐसे में चीन ने वही किया, जिसकी उससे आशंका रहती है. उसने अपनी वैक्सीन कूटनीति के बदले हुवावेई के अधिकारी मेंग वांगझू को कनाडा की जेल से रिहा करने की मांग की. जब कनाडा के कानून की वजह से ऐसा नहीं पाया तो उसने चीन की कंपनी कैनसिनो के साथ कनाडा की करोड़ों डॉलर की वैक्सीन डील तुड़वा दी. हैरानी की बात यह है कि प्रधानमंत्री ने इसके तुरंत बाद किसी अन्य वैक्सीन की सप्लाई की पहल नहीं की. वह चाहते तो चीन की कंपनी से कहीं अधिक भरोसेमंद वैक्सीन सप्लायरों से समझौता कर सकते थे.
जब वैक्सीन के लिए सिर्फ चीन पर दांव लगाना विफल हो गया, तब ट्रूडो सरकार ने 17 करोड़ कनाडाई डॉलर की लागत से नेशनल रिसर्च काउंसिल (NRC) को अपग्रेड करने का वादा किया. तब तक काफी देर हो चुकी थी. इसके तहत पहले मॉन्ट्रिएल में एक नया प्लांट बनाने की बात कही गई. यह भरोसा दिलाया गया कि यह अपग्रेडेड प्लांट नवंबर 2020 तक शुरू हो जाएगा और इससे हर महीने वैक्सीन के 2.5 लाख डोज तैयार किए जा सकेंगे. फरवरी 2021 आते-आते सरकार ने मान लिया कि इस प्लांट से 2021 के आखिर तक कोई वैक्सीन नहीं मिलने जा रही. प्लांट के कंस्ट्रक्शन और इसके लिए हेल्थ कनाडा की ओर से जरूरी जांच में देरी हो रही है.
इतना ही नहीं, जब कनाडा के निजी क्षेत्र की ओर से वैक्सीन की खातिर साझेदारी का प्रस्ताव आया तो ट्रूडो सरकार से उसकी भी अनदेखी की. उसने मॉन्ट्रिएल की PnuVax और कैलेगरी की प्रॉविडेंस थेरेप्यूटिक्स को इंडस्ट्री कनाडा के 60 करोड़ कनाडाई डॉलर के स्ट्रैटिजिक इनोवेशन फंड से किसी भी तरह की मदद देने से मना कर दिया. यह पैसा कोविड वैक्सीन की रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए अलग रखा गया था. PnuVax हेल्थ कनाडा के मानकों को पूरी करती है और वह कोविड वैक्सीन के करोड़ों डोज तैयार कर सकती थी.
पहले इस देश को जी-7 की सबसे बेहतरीन अर्थव्यवस्था का दर्जा मिला हुआ था. कनाडा मातृ, नवजात और शिशु स्वास्थ्य के मामले में पूरी दुनिया के लिए मिसाल था. लेकिन आज वह ऐसा देश बन चुका है, जिसने बेशर्मी से विकासशील देशों की औरतों और बच्चों से सदियों में एक बार आने वाली महामारी के दौर में वैक्सीन का हक छीन लिया है.
घरेलू स्तर पर वैक्सीन की आपूर्ति का इंतजाम नहीं होने पर ट्रूडो को फिर से विदेश का रुख करना पड़ा. इसके बाद प्रधानमंत्री ने 11 सदस्यों की जो कोविड-19 टास्कफोर्स बनाई थी, उसकी सलाह से वैक्सीन की आपूर्ति के लिए नए समझौतों पर बातचीत और मोलभाव शुरू हुआ. पिछली गर्मियों में जब कोरोना वैक्सीन्स को शुरुआती मंजूरी मिली तो जिस मंत्रालय पर इन्हें खरीदने की जिम्मेदारी थी, उसे स्वास्थ्य मंत्रालय ने अंधेरे में रखा. इससे यह सवाल खड़ा हुआ कि महामारी के दौरान कनाडा की कैबिनेट कर क्या रही थी! सच तो यह है कि ट्रूडो सरकार ने अप्रैल 2021 में जाकर ही वैक्सीन आपूर्ति के बड़े समझौते किए.
कनाडा की कोविड-19 टास्कफोर्स के सदस्यों पर वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों के मामले में हितों के टकराव के आरोप भी लगे हैं. वैक्सीन खरीदने के लिए जो समझौते किए गए हैं, उन्हें लेकर भी कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई है. उनकी कीमत, आपूर्ति, ज़ुर्माना और समझौते की शर्तें काफी हद तक पता नहीं है. सबसे अधिक अफसोस की बात तो यह है कि कनाडा के नागरिकों के लिए वैक्सीन का इंतजाम करने का दबाव बढ़ने पर ट्रूडो सरकार ने विकासशील देशों की तयशुदा आपूर्ति पर धावा बोल दिया. पहले इस देश को जी-7 की सबसे बेहतरीन अर्थव्यवस्था का दर्जा मिला हुआ था. कनाडा मातृ, नवजात और शिशु स्वास्थ्य के मामले में पूरी दुनिया के लिए मिसाल था. लेकिन आज वह ऐसा देश बन चुका है, जिसने बेशर्मी से विकासशील देशों की औरतों और बच्चों से सदियों में एक बार आने वाली महामारी के दौर में वैक्सीन का हक छीन लिया है.
न कोई बज़ट और न ही कोई आर्थिक योजना
महामारी से निपटने के मामले को देखें तो ट्रूडो सिर्फ वैक्सीन खरीदने और उसकी आपूर्ति में ही असफल नहीं हुए हैं, कनाडा की अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन बिजनेस के बंद होने और बड़े पैमाने पर छंटनी के कारण 2020 में अब तक का सबसे ख़राब रहा. इसकी जीडीपी में 5.4 फीसदी की गिरावट आई, जो हाल के वर्षों में सबसे तेज सालाना गिरावट है. बेरोजगारी बढ़कर 9.4 फीसदी पर जा पहुंची. विकसित देशों में यह सबसे ख़राब दरों में से एक है. प्रधानमंत्री ट्रूडो के वित्त मंत्री बिल मॉरेनो तो एक नैतिक घोटाले के शिकार हो गए और उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा. वहीं, जिस गवर्नर जनरल की उम्मीदवारी का उन्होंने समर्थन किया था, वह ऑफिस उत्पीड़न के एक मामले की भेंट चढ़ गईं. इन वजहों से कनाडा के पास आज न तो बज़ट है और न ही आर्थिक योजना. आज से पहले इतने लंबे वक्त तक देश बिना बज़ट या आर्थिक योजना के नहीं रहा है.
विदेश नीति की बात करें तो उसमें ट्रूडो सरकार का रिकॉर्ड पहले भी अच्छा नहीं था. इस मामले में वह एक के बाद एक ग़लतियां करती रही. चीन के साथ साझेदारी का तो यूं भी बुरा अंजाम होना था, इसके बाद भी उसने चीन या भारत-प्रशांत साझेदारी को लेकर अपनी स्पष्ट राय नहीं बनाई है. अमेरिका में जो बाइडेन के चुने जाने पर ट्रूडो किसी चमचे की तरह खुश हुए और इसका सार्वजनिक तौर पर इजहार भी किया. फिर भी बाइडेन सरकार ने सत्ता में आते ही कनाडा के साथ एक एनर्जी पाइपलाइन की मंजूरी को पलट दिया. ना ही अमेरिका ने वैक्सीन दिलाने में कनाडा की मदद की. और तो और उसने अमेरिका के 1.9 लाख करोड़ डॉलर के आर्थिक पैकेज में कनाडा की कंपनियों की भागीदारी भी रोक दी.
अगर कनाडा की सरकार की आज न ही उसके दोस्त और ना ही उसके प्रतिद्वंद्वी इज्जत कर रहे हैं तो उसे अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करना होगा. आज दुनिया खेमों में जिस तरह से बंटी है, उसमें उसे अपने हितों की रक्षा को लेकर चौकस होने की ज़रूरत है.
पिछले महीने कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन करके वैक्सीन के मामले में मदद मांगी थी. बड़ी बात यह है कि भारत ने 2 करोड़ डोज वैक्सीन का जो वादा किया था, उसमें से 5 लाख की पहली खेप कनाडा को भेज दी गई है. सच तो यह है कि जिस तरह से कनाडा ने क्वॉड पर चीन के साथ सैन्य सहयोग किया या भारत की लोकतंत्र को लेकर आलोचना की, उसमें भारत के प्रधानमंत्री का ट्रूडो की फोन कॉल रिसीव करना ही बड़ी बात थी. हैरानी की बात है कि इस बीच ट्रूडो ने हांगकांग में चीन के लोकतंत्र का गला घोंटने या उइगरों के नरसंहार पर चुप्पी साधे रखी.
दूरदर्शिता की कमी
अगर ट्रूडो ने भारत जैसे देशों से इसी तरह के समझौते की दूरदृष्टि दिखाई होती तो 2021 में आते ही वह किस स्थिति में होता, इसका तो बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है. दिलचस्प बात यह है कि मई 2020 में उसे इसकी सलाह भी मिली थी. हाल ही में क्वॉड की शिखर बैठक में दुनिया की खातिर वैक्सीन सप्लाई चेन में भारत की केंद्रीय भूमिका का ऐलान हुआ. आज जब वैक्सीन हासिल करने की होड़ में पारंपरिक रूप से सहयोगी रहे देश भी प्रतिद्वंद्वी बन गए हैं, तब दुनिया के लोकतांत्रिक देशों के बीच इस तरह का सहयोग और निवेश किसी खुशख़बरी से कम नहीं.
अगर ट्रूडो ने भारत जैसे देशों से इसी तरह के समझौते की दूरदृष्टि दिखाई होती तो 2021 में आते ही वह किस स्थिति में होता, इसका तो बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है. दिलचस्प बात यह है कि मई 2020 में उसे इसकी सलाह भी मिली थी.
2003 में जब सार्स और 2009 में एच1एन1 महामारी फैली थी, उससे कनाडा को बड़ा सबक मिला था. उसे देखते हुए ट्रूडो सरकार को वैक्सीन पर रिसर्च और डेवलपमेंट, लॉजिस्टिक्स और इसकी मैन्युफैक्चरिंग की खातिर वैश्विक स्तर पर सहयोग और तालमेल करना चाहिए था. महामारी के दौर में कनाडा के अलग-अलग विभागों के बीच तालमेल न होने की बातें भी सामने आईं. अक्सर इस ओर ध्यान भी दिलाया गया. यह लोगों के स्वास्थ्य और आर्थिक प्राथमिकता दोनों से जुड़ा था, इसलिए सरकारी अफसरों को पूरे संकट के दौरान वित्त विभाग के बड़े अधिकारियों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जानकारी देनी चाहिए थी.
क्या आप जानते हैं कि जी-7 में कनाडा इकलौता देश है, जिसकी संसद ने सामान्य तौर पर काम करना शुरू नहीं किया है, जबकि वहां के लोगों को आज जवाबदेह सरकार की सबसे अधिक जरूरत है. हो यह रहा है कि संसद सत्र या प्रधानमंत्री की नियमित बैठकों को टाला जा रहा है. किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विपक्ष की भूमिका को स्वीकार किया जाना चाहिए, तभी जनता को सक्षम और ज़वाबदेह सरकार मिल पाती है.
यूं तो कनाडा के नागरिकों के लिए जल्द और असरदार वैक्सीन मिलने के वादे के पूरा होने की कोई गारंटी नहीं थी, लेकिन ट्रूडो सरकार की ग़लतियों के कारण इसे लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी. वैक्सीन को लेकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग न लेने और उसके ख़राब फैसलों के कारण मुश्किल और बढ़ी. महामारी के दौर में कोई सरकार कितनी निकम्मी हो सकती है, इसे आप कनाडा की सरकार को देखकर समझ सकते हैं. इस पूरे संकट के दौरान जिस बात की दाद देनी होगी, वह कनाडा के लोगों के लड़ने का दमखम है. वे सदियों में एक बार आने वाले इस संकट के दौर में मजबूती से डटे हुए हैं. आज वे उस संकट की ज़ंजीरों से आजाद होने का इंतज़ारर कर रहे हैं, जिसे उनकी ही सरकार ने और गहरा कर दिया है.
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