Author : Pratnashree Basu

Expert Speak Raisina Debates
Published on Apr 01, 2023 Updated 0 Hours ago

हिंद-प्रशांत में चीन की ग्रे-ज़ोन हरकतों का जवाब देने के लिए क्षेत्रीय सहयोग तंत्रों को कंधे से कंधा मिलाकर एक प्रारूप तैयार करना चाहिए. 

ड्रैगन के ग्रे-ज़ोन हथकंडे: क्या समंदर में चीनी चालबाज़ियों की काट करने वाले हथियार तैयार हो सकते हैं?

ये हमारी श्रृंखला द चाइना क्रॉनिकल्स का 140वां लेख है.


क़रीब-क़रीब साल 2010 के बाद से ही चीन लगातार वैश्विक क़ानूनी प्रणाली के आधार को कमज़ोर करने की चालें चलता आ रहा है. इस बुनियाद की हिफ़ाज़त करने के अंतरराष्ट्रीय समुदाय के निश्चय को भी वो निरंतर चोट पहुंचता रहा है. सामुद्रिक दायरे में पत्थरों, जलीय चट्टानों और द्वीपों पर अपना नियंत्रण मज़बूत बनाने के लिए चीन दीर्घकालिक प्रयास करता आ रहा है. समुद्री क़ानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS) के मुताबिक ये तमाम इलाक़े चीनी क्षेत्राधिकार के बाहर हैं. चीन इन स्थानों पर अपने “ऐतिहासिक अधिकारों” का हवाला देकर ऐसी करतूतों को अंजाम देता आ रहा है. इस सिलसिले में चीन ने दक्षिण चीन सागर (SCS) पर संप्रभुता के अपने दावे को पुख़्ता करने के लिए तमाम क़िस्म के हथकंडों (ग्रे-ज़ोन रणनीतियों) का इस्तेमाल किया है.

ग्रे-ज़ोन कार्रवाइयों के तहत कोई राज्यसत्ता अपने सामरिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए खुले तौर पर सैन्य टकरावों की बजाए भ्रामक हथकंडों का इस्तेमाल करती है.

ग्रे-ज़ोन कार्रवाइयों के तहत कोई राज्यसत्ता अपने सामरिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए खुले तौर पर सैन्य टकरावों की बजाए भ्रामक हथकंडों का इस्तेमाल करती है. हाल के वर्षों में चीन ने दक्षिण चीन सागर के साथ-साथ पश्चिमी प्रशांत के दूसरे इलाक़ों में ग्रे-ज़ोन चालबाज़ियों का इस्तेमाल बढ़ा दिया है. समुद्री इलाक़ों में चीन की भड़काऊ करतूतों की ख़ासियत के तौर पर ग्रे-ज़ोन कार्रवाइयों की तादाद निरंतर बढ़ती चली गई है. साथ ही भौगोलिक दायरों में भी इसका विस्तार हुआ है. चीन अपनी ग्रे-ज़ोन कार्रवाइयों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की नेवी (PLAN), चीनी तटरक्षक बलों (CCG) और चीनी सामुद्रिक लड़ाकों (CMM) का प्रयोग करता है. चीनी तटरक्षक बल दक्षिण-पूर्वी एशिया के द्वीप देशों के मछुआरों को निशाना बनाते हैं, जबकि चीनी सामुद्रिक लड़ाके चौतरफ़ा घेरेबंदी वाली रणनीतियों (swarm tactics) के ज़रिए इन छोटे-छोटे देशों की नौसेनाओं और तट रक्षकों पर धौंस जमाते रहते हैं. चूंकि ग्रे-ज़ोन से जुड़ी हरकतें औपचारिक संघर्ष छेड़ने वाली कार्रवाइयों से हमेशी ही थोड़ी कम तीव्रता वाले होते हैं, लिहाज़ा इलाक़े के देशों के लिए इनका प्रभावी रूप से जवाब दे पाना मुश्किल हो जाता है.

हिंद-प्रशांत में चीन की ग्रे-ज़ोन कार्रवाइयां

आम तौर पर चीन की ग्रे-ज़ोन कार्रवाइयों में तमाम तरह के हथकंडे शामिल रहते हैं. इनमें कूटनीतिक दबाव, आर्थिक ज़ोर-ज़बरदस्ती, सैन्य धमकियां, अर्द्धसैनिक गतिविधियां, दुष्प्रचार से जुड़े हथकंडे और समुद्री सरहदों से छेड़छाड़ शामिल हैं. कूटनीतिक दबावों के तहत ताइवान को राजनयिक तौर पर अलग-थलग करने के लिए चीन अपने कूटनीतिक रसूख़ का इस्तेमाल करते हुए दक्षिण चीन सागर में अपने क्षेत्रीय दावों को आगे बढ़ाता है. इलाक़े के देशों पर दबाव डालने के लिए चीन अपनी आर्थिक ताक़त का इस्तेमाल करता रहता है. वो इन तमाम देशों पर अपने भू-क्षेत्रीय दावों का पालन करने का दबाव बनाता है, साथ ही इन दावों से सहमति नहीं जताने वाले देशों के लिए बाज़ार पहुंच सीमित करने पर मजबूर करता है. सैन्य धमकियों के दायरे में चीन द्वारा अपनी फ़ौजी परिसंपत्तियों के इस्तेमाल से जुड़ी क़वायदें आती हैं. वो अपने तट रक्षकों और नौसेना समेत तमाम सैन्य शक्तियों के ज़रिए दूसरे देशों को धमकाकर भू-क्षेत्रों पर अपने दावे और धौंस जमाता रहता है. चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप तैयार कर उन्हें सैन्य अड्डों में तब्दील कर दिया है. इलाक़े में अपनी सैन्य शक्ति को आगे बढ़ाने के लिए वो इन्हें कार्रवाई की अग्रिम चौकी के तौर पर इस्तेमाल करता है. चीनी तट रक्षकों के जहाज़ों के ज़रिए दूसरे देशों के मछली पकड़ने वाले जहाज़ों और तेल निकालने वाली व्यवस्थों को प्रताड़ित करने और डराने-धमकाने का काम किया जाता है.    

चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप तैयार कर उन्हें सैन्य अड्डों में तब्दील कर दिया है. इलाक़े में अपनी सैन्य शक्ति को आगे बढ़ाने के लिए वो इन्हें कार्रवाई की अग्रिम चौकी के तौर पर इस्तेमाल करता है.

हाल के वर्षों में इन हथकंडों में एक और औज़ार जुड़ गया है. दरअसल चीन ने ख़ुफ़िया जानकारियां जुटाने के नाम पर मानव-रहित प्रणालियों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. हालांकि इस चाल से औपचारिक युद्ध से कमतर सैन्य कार्रवाइयों का दायरा और बढ़ जाता है. चीन ने 2020 में हिंद महासागर में महासागर विज्ञान से जुड़े आंकड़े जुटाने के लिए समंदर के अंदर ड्रोन्स का एक बेड़ा तैनात कर दिया था. दक्षिण-पूर्वी एशिया के समुद्री क्षेत्र में चीन द्वारा समुद्र के भीतर ड्रोन ग्लाइडर्स का इस्तेमाल किए जाने के कई अन्य उदाहरण मौजूद हैं.

ग्रे-ज़ोन कार्रवाइयों को अमल में लाने के पीछे चीन के कई सामरिक उद्देश्य हैं. इनमें अपने भू-क्षेत्रीय दावों की सुरक्षा करने के साथ-साथ हिंद-प्रशांत के समुद्री दायरे में अपने प्रभाव का विस्तार करने का मक़सद भी निश्चित रूप से शामिल है. चीन के आर्थिक और सामरिक हितों के लिहाज़ से दक्षिण चीन सागर एक अहम क्षेत्र है. यहां तेल और प्राकृतिक गैस के साथ-साथ मछलियों का विशाल भंडार है. ये पूरा क्षेत्र समुद्री व्यापार के लिहाज़ से बेहद अहम है. यही वजह है कि चीन के लिए अपनी ग्रे-ज़ोन कार्रवाइयों को अंजाम देने का ये सबसे प्रमुख और तात्कालिक अहमियत वाला इलाक़ा बन गया है. इसी तरह ताइवान जलसंधि में चीन की ग्रे-ज़ोन हरकतों का मक़सद ताइवान की संप्रभुता को कमज़ोर करना है. इन तमाम हथकंडों का अंतिम लक्ष्य चीन की मुख्यभूमि के साथ ताइवान का दोबारा एकीकरण करना है. पूर्वी चीन सागर में चीन की ग्रे-ज़ोन कार्रवाइयों का उद्देश्य अपने भू-क्षेत्रीय दावों को सुरक्षित करना और विवादित सेनकाकु/डिआओयू द्वीपों में जापान की संप्रभुता को कमज़ोर करना है. पूर्वी चीन सागर में चीन की ग्रे-ज़ोन चालबाज़ियों में कई हरकतें शामिल हैं. चीन यहां विवादित जल-क्षेत्र की गश्त के लिए अपने सामुद्रिक क़ानून लागू करवाने वाली एजेंसियों के जहाज़ों का इस्तेमाल करता है. वो जापान की मछली पकड़ने वाली नौकाओं को प्रताड़ित करता है और उन इलाक़ों पर अपने दावे जताता है.

वियेतनाम ने भी पिछले कुछ वर्षों में चीन द्वारा ग्रे-ज़ोन चालबाज़ियों के इस्तेमाल का जवाब दिया है. इसकी सबसे ताज़ा मिसाल हाल ही में देखने को मिली.

पीले सागर में भी चीन अपनी समुद्री ग्रे-ज़ोन कार्रवाइयों को अंजाम देता आ रहा है. ये इलाक़ा भी समुद्री व्यापार के लिहाज़ से एक अहम रास्ता है. यहां चीन की हरकतों के चलते पड़ोसी देशों (ख़ासतौर से दक्षिण कोरिया और जापान) के साथ तनाव का वातावरण पैदा हो गया है. पीले सागर में चीन की चालबाज़ियों में अपनी संप्रभुता की धौंस जमाना और विवादित क्षेत्रों पर नियंत्रण क़ायम करने की हरकतें शामिल हैं. दरअसल यहां चीन और दक्षिण कोरिया के विशेष आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) की सीमाएं अब भी साफ़ नहीं हैं. चीन इन विवादित इलाक़ों की गश्त के लिए अर्द्धसैनिक बलों, मछलियां पकड़ने वाली नौकाओं और असैनिक जहाज़ों का इस्तेमाल करता है. वो विदेशी जहाज़ों को यहां प्रवेश करने से रोकता है. इतना ही नहीं चीन इन क्षेत्रों में तेल की खुदाई करने वाले प्लेटफ़ॉर्म और तमाम अन्य क़िस्म के बुनियादी ढांचे खड़ा करता आ रहा है, जिससे हालात और पेचीदा हो गए हैं.  

ग्रे-ज़ोन हथकंडों का जवाब

अपने-आप में इन कार्रवाइयों से कोई सियासी या भू-आर्थिक लक्ष्य हासिल नहीं हो सकते. हालांकि ये विरोधी पक्ष को चिंता में डालने या उन्हें थकाने का अहम लक्ष्य ज़रूर पूरा करते हैं. इसके ज़रिए लगातार टकराव का दौर शुरू हो जाता है. हालांकि इन क़वायदों से अनचाहा तनाव बढ़ने का ख़तरा भी रहता है. ग्रे-ज़ोन चालबाज़ियों को बार-बार दोहराए जाने से स्वीकार्य क़वायदों के दायरे में विस्तार का मक़सद पूरा होता है. लिहाज़ा हिंद-प्रशांत में समुद्री सुरक्षा सहयोग ढांचों में ऐसे तमाम उपायों को शामिल किए जाने की दरकार है जो नियम-आधारित व्यवस्था को बरक़रार रखने और उन्हें मज़बूत बनाने में अहम साबित हो सकें. इस क़वायद में क्षमता-निर्माण से जुड़े उपायों को शामिल किया जा सकता है. इस सिलसिले में 2021 में फिलीपींस द्वारा शुरू किए गए “टास्क फ़ोर्स ट्रेनिंग” कार्यक्रम की मिसाल ली जा सकती है. दरअसल सुदूर पश्चिमी पालावान द्वीपसमूह से 170 नॉटिकल मील दूर स्थित व्हिटसन रीफ़ में चीनी समुद्री लड़ाका बल द्वारा संचालित 220 फिशिंग बोट्स के जवाब में फिलीपींस ने इसकी शुरुआत की थी. पश्चिमी फिलीपींस सागर (NTF-WPS) में राष्ट्रीय टास्क फ़ोर्स द्वारा ग़ैर-सैनिक गश्त की ये पहली मिसाल थी. साथ ही स्कारबॉरो समूह के पास क़ानून का पालन कराने वाली कार्रवाइयों के हिसाब से समग्र सामुद्रिक अभ्यासों को भी अंजाम दिया गया. निगरानी रखने वाली इन तमाम गतिविधियों के ज़रिए फिलीपींस के मछुआरों और वहां के वातावरण की सुरक्षा सुनिश्चित की गई. वियेतनाम ने भी पिछले कुछ वर्षों में चीन द्वारा ग्रे-ज़ोन चालबाज़ियों के इस्तेमाल का जवाब दिया है. इसकी सबसे ताज़ा मिसाल हाल ही में देखने को मिली. 2019 में अनुसंधान के काम में जुटे चीनी जहाज़ वैनगार्ड बैंक की कार्यवाइयों को वियेतनाम ने अपने तट रक्षक बलों के ज़रिए बाधित कर दिया था.

निश्चित रूप से इस क्षेत्र में व्यक्तिगत रूप से एक-एक देश द्वारा जवाबी कार्रवाई किए जाने की दरकार है. बहरहाल, चीन सैनिक और आर्थिक तौर पर काफ़ी मज़बूत है, लिहाज़ा उसके और अन्य देशों के बीच असंतुलन बना रहेगा. ऐसे में क्षेत्रीय सहयोग के तंत्रों (जैसे IORA और क्वॉड) और तालमेल के दूसरे मिनीलैटरल प्लेटफ़ॉर्मों को साझा उपायों की संभावनाएं मुहैया कराने वाले ढांचे की पड़ताल और संरचना तैयार करनी चाहिए. इसके साथ-साथ ख़ुफ़िया गतिविधियों, निगरानी और टोह लगाने से जुड़े बुनियादी ढांचों के दायरे का भी विस्तार करना चाहिए. इससे इलाक़े की क्षेत्रीय जागरूकता को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी. साथ ही इन देशों की ओर से चीन को ये स्पष्ट संदेश जाएगा कि चीन चाहे जिस तरह से इन चालबाज़ियों को अंजाम दे, इस इलाक़े के देश अपने पैर पीछे नहीं खींचने वाले.   

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