Author : Shoba Suri

Expert Speak Terra Nova
Published on Jun 14, 2025 Updated 0 Hours ago

जिस प्रकार से शहरें, खपत एवं कचरों का केंद्र बन रही है, ऐसे में वहां भोजन के ज़रिये पैदा होने वाले खाद्य अपशिष्ट (फूड वेस्ट) को नीतियों, तकनीक एवं प्रोद्यौगिकी, और सामूहिक कर्तव्यों की मदद से ही भविष्य के लिए, टिकाऊ, समावेशी एवं खाद्य-सुरक्षित शहरों का निर्माण हो सकता है. 

टिकाऊ शहरों का निर्माण: खाद्य अपशिष्टों (फूड वेस्ट) में कमी लाने के लिए जरूरी रणनीति!

Image Source: Getty

ये लेख ‘विश्व पर्यावरण दिवस 2025:सर्कुलर शहरों में वेस्ट मैनेजमेंट’ सीरीज़ का हिस्सा है.


एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2025 के आते-आते  पूरे विश्व की लगभग 58 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही है, और बढ़ते शहरीकरण, जनसांख्यिकीय परिवर्तन एवं बढ़ती आबादी की वजह से, इसके 2050 तक  बढ़कर 68 प्रतिशत तक पहुंच जाने के अनुमान है. 

यह परिवर्तन, भोजन की बढ़ती मांग, संसाधनों की कमी, एवं कृषि के तरीकों में आने वाली बाधा की वजह से एक जटिल चुनौती उत्पन्न कर रही है. भोजन से पैदा होने वाला कचरा या खाद्य अपशिष्ट एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है, क्योंकि इसमें शहरों का योगदान सबसे बड़े और अहम् योगदानकर्ता की हो रही है. वर्ष 2024 के फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार, पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष, एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर खाद्य पदार्थ नष्ट किये जा रहे हैं, जो कि भूख से प्रभावित लगभग 783 मिलियन लोगों का पेट भरने का काम कर सकता है.    

भोजन से पैदा होने वाला कचरा या खाद्य अपशिष्ट एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है, क्योंकि इसमें शहरों का योगदान सबसे बड़े और अहम् योगदानकर्ता की हो रही है.

साल 2022 में वैश्विक खाद्य कूड़ों अथवा अपशिष्ट संबंधी अनुमानों पर किये गए एक अध्ययन से ये तथ्य उभर कर सामने आया है कि इसमें परिवारों का योगदान 79 प्रतिशत तक है, और इसके बाद 36 प्रतिशत योगदान खाद्य सेवा अथवा फूड सर्विस सेक्टर का और 17 प्रतिशत योगदान रिटेल सेक्टर का है. इसके अलावा,13.2 प्रतिशत खाद्य अवशेष अथवा अपशिष्ठ की उत्पत्ति आपूर्ति शृंखला या सप्लाई चेन के अंतर्गत – कटाई से खुदरा बाज़ार पहुंचने तक के दौरान होती है. नीचे दिए चित्र में सप्लाई चैन में प्रयुक्त विभिन्न कारकों की ओर इशारा है जिनसे खाद्य अपशिष्ट उत्पन्न होता है. शहरी खाद्य कूड़े अथवा अपशिष्ठ तिगुना खतरा पैदा करते हैं,  पहला पर्यावरण का क्षरण, दूसरा खाद्य असुरक्षा, और तीसरा खाद्य नुकसान एवं अपशिष्टों में कमी लाने की एसडीजी की प्रगति को धीमा करना. इसका  लक्ष्य  उपभोक्ता एवं खुदरा स्तरों पर वैश्विक खाद्य कूड़ों एवं कचरों के उत्पादन को कम करना एवं आगामी 2030 के वर्ष तक आपूर्ति शृंखला के दौरान खाद्य नुकसान को सीमित करना है. फूड वेस्ट का, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 8 से 10 प्रतिशत का योगदान है, जो जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचा रही है — क्योंकि ये  खाद्य अपशिष्ट अथवा कूड़ा – दुनिया की एक तिहाई कृषिभूमि और 24 प्रतिशत ताज़े शुद्ध जल संसाधन  का इस्तेमाल कर लेता है.   

Building Sustainable Cities Strategies For Food Waste Reduction

छाया स्त्रोत: विश्व संसाधन संस्थान 

भोजन एवं कृषि संस्थान के अनुसार, “अगर खाद्य अपशिष्ट एक देश होता, तो वो अमेरिका एवं चीन के बाद, ग्रीनहाउस गैस का शायद सबसे तीसरा बड़ा उत्सर्जक होता.” खाद्य अपशिष्टों एवं कूड़ों से भरे ज़मीन, मीथेन गैस पैदा करते हैं, जो कि एक ग्रीनहाउस गैस है और 20 वर्षों में बने कार्बन डाइऑक्साइड गैस से 84 गुना अधिक शक्तिशाली होता है. वैश्विक स्तर पर, भोजन से उत्पन्न कचरे से ग्लोबल अर्थव्यवस्था पर सालाना 1 ट्रिलियन डॉलर के बराबर का अतिरिक्त बोझ होता है. खाद्य अपशिष्ट में कमी लाने से, इकोसिस्टम पर कम दबाव पड़ेगा, जैव-वैविध्य का संरक्षण सुनिश्चित होगा, एवं कृषि योग्य भूमि एवं ताज़े पानी के स्त्रोतों के अत्याधिक दोहन भी कम होंगे, जिनपर शहरों के विस्तार के कारण अनावश्यक दबाव बढ़ता जा रहा है. इतनी अधिक मात्रा में बर्बाद होता भोजन, कहीं न कहीं आर्थिक नुकसान का प्रतीक है और साथ ही वो पर्यावरण के लिए भी काफी नुकसानदायक है. कम कूड़ा उत्पन्न करना, रिसाइकलिंग एवं संसाधन के इस्तेमाल से जिम्मेदार खपत एवं टिकाऊ पोषण का सुनिश्चित होता है.     

फ़्रांस वो सबसे पहला देश था, जिसने सुपरमार्केट्स पर अतिरिक्त भोजन को फेंकने पर रोक लगा दी थी, इसके बजाये उन्हें ये कहा गया था कि वे ये अतिरिक्त भोजन गरीबों और ज़रूरतमंदों में बाटें.

अरबों की बचत

शुरूआती स्तर पर ही खाद्य कूड़ों अथवा अपशिष्ट को रोकने से अर्थव्यवस्था, व्यवसाय, उपभोक्ता, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को फायदा पहुंचता है. एक अनुमान के अनुसार, अगर दुनियाभर में साल 2030 तक 25 – 30 प्रतिशत भी खाद्य कचरों में कमी ला पाने में सफलता मिल जाती है तो इससे प्रतिवर्ष 120 – 300 बिलियन डॉलर की बचत हो सकती है. 

सभी बढ़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए इसे लागू करने का मतलब यही होगा कि ब्रिटेन एवं अमेरिका में रहने वाले परिवारों के लिए प्रतिवर्ष  क्रमश: कम से कम 850 डॉलर से 1800 डॉलर तक की बचत होगी. बात जब खाध्य कचरों अथवा अपशिष्ट की होती है तो ये बताना भी ज़रूरी है कि, उच्च, मध्यम एवं निम्न या फिर न्यूनतम आय वाले देशों में, घरेलू खाद्य अपशिष्ट का मात्र 7 किलोग्राम/व्यक्ति/वर्ष का ही अंतर होता है. जापान एवं ब्रिटेन ने खाद्य अपशिष्ट उत्सर्जन को 18 से 31 प्रतिशत तक कम करने की दिशा में परस्पर सहयोगात्मक प्रयास भी किये हैं. दक्षिण कोरिया, फ़्रांस और पेरू के संदर्भ में हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में ये पाया गया है कि वहां लैंडफिल भरने के भेजे जाने वाले खाद्य कचरों में काफी कमी आयी है. दक्षिण कोरिया ने अपने यहां ‘PAYT’ के नाम से, एक काफी कठोर खाद्य अपशिष्ट कानून को लागू किया है, जिसके अंतर्गत “पे एज़ यू थ्रो” सिस्टम को माना जाता है. फ़्रांस वो सबसे पहला देश था, जिसने सुपरमार्केट्स पर अतिरिक्त भोजन को फेंकने पर रोक लगा दी थी, इसके बजाये उन्हें ये कहा गया था कि वे ये अतिरिक्त भोजन गरीबों और ज़रूरतमंदों में बाटें. जिसका नतीजा ये हुआ कि साल 2016 से 2019 तक वहां सुपरमार्केट द्वारा गरीबों को दान किये जाने वाले भोजन के प्रतिशत में 24% की बढ़त देखी गयी, साथ ही बांटे जाने वाले खाने की गुणवत्ता में भी काफी सुधार देखा गया. वहीं दूसरी ओर पेरू ने, खाद्य असुरक्षा को दूर करने एवं खाद्य अपशिष्ट को नियंत्रित करने के उद्देश्य से एक खाद्य दान नीति लागू की है. भारत ने 2018 में, ‘दि कंप्लसरी फूड वेस्ट रिडक्सन बिल’, लागू करने का काम किया, जिसका उद्देश्य पैकेजिंग और प्रोसेसिंग के बाद खाद्य और पेय पदार्थों से पैदा होने वाले कचरे को कम करने के साथ-साथ, 2025 तक खाद्य अपशिष्ट 30 प्रतिशत तक कम करना था.        

स्थायी व टिकाऊ शहरों के निर्माण के दौरान एक साझा ज़िम्मेदारी के तौर पर उनका दोबारा रिमॉडलिंग करना ज़रूरी है. खाद्य अपशिष्ट एक सामाजिक, पर्यावरणीय एवं नैतिक मुद्दा है, जिसमें सभी के योगदान की आवश्यकता है. 

यूएनईपी द्वारा जारी 2021 के एक रिपोर्ट में, उपभोक्ता स्तर पर खाद्य कूड़ों में कमी लाने के लिए, हरे और डिजिटल टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की सलाह दी गई है. घरेलू खाद्य अपशिष्ट अथवा कूड़ों की बर्बादी रोकने के लिये स्मार्टफोन ऐप आधारित उपाय जैसे – बचे हुए भोजन को ज़रूरतमंदों से साझा करना, उनके पुन:र्वितरण एवं पुन:उपयोग की पहल - विश्व स्तर पर आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं. जैसे, कई युरोपीय देशों में ‘टू गुड टू गो’ संचालित हो रही एक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत रेस्त्रां या होटलों से बचे या नहीं बिके भोजन को इकट्ठा किया जाता है. उसी प्रकार से ‘फूड बैंक’ मॉडल में भी पुन:र्वितरण के उद्देश्य से अतिरिक्त या बचा हुआ भोजन विभिन्न स्त्रोत से इकट्ठा किया जाता है. भारत में, नो फूड वेस्ट  जैसे पहल, अतिरिक्त बचे भोजन को ज़रूरतमंदों के बीच वितरित करने का काम करती है. खाद्य अपशिष्टों एवं भूख़ के खिलाफ की जंग में देश के भीतर, रोटी बैंक और सामुदायिक फ्रिज जैसी कई अन्य योजनाएं भी इस दिशा में अपना योगदान दे रहीं हैं. भोजन साझा करने, पुनर्वितरण और खाद्य अपशिष्ट में कमी लाने के मकसद से मोबाइल एप्लीकेशन के उपयोग पर किये गए एक अध्ययन के अनुसार इससे लोगों में सामूहिक भावना संचार और फूड वेस्ट के प्रति नज़रिये में बदलाव पाया गया है. 2020 में किये गये एक अध्ययन, जिसका शीर्षक,‘अर्बन वेस्ट: अ फ्रेमवर्क की एनालाइज़ पॉलिसीज़ एंड इनिशियेटिव्स’, जो 16 यूरोपीय देशों के 40 शहरों में फैला हुआ था, उसमें ये पाया गया कि खाद्य अपशिष्टों में कमी लाने में शहरों की भूमिका केंद्रीय स्तर की है, और 2030 के एजेंडे को हासिल करने की दिशा में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालता है रौशनी डालता है.      

आगे बढ़ते हुए, स्थायी व टिकाऊ शहरों के निर्माण के दौरान एक साझा ज़िम्मेदारी के तौर पर उनका दोबारा रिमॉडलिंग करना ज़रूरी है. खाद्य अपशिष्ट एक सामाजिक, पर्यावरणीय एवं नैतिक मुद्दा है, जिसमें सभी के योगदान की आवश्यकता है. खाद्य अपशिष्टों को कम करने के लिये एक बहु-स्तरीय नीति, प्रशासनिक उपायों, तकनीकी समाधान, शैक्षणिक एवं व्यावहारिक  बदलाव, और तमाम प्रगति का बेहतर मूल्यांकन करने के लिए ज़रूरी निगरानी को शामिल किये जाने की आवश्यकता है. C40 Good Food Cities Declaration साल 2030 तक एक टिकाऊ फूड सिस्टम या खाद्य व्यवस्था लाने के लिये प्रतिबद्ध है. ऐसा करने के लिये वो 2015 की आधार रेखा से भोजन के नुकसान व कचरे को 50% तक कम करने के लिये प्रतिबद्ध है. इस तरह से, शहरी खाद्य अपशिष्ठ में न केवल कमी पाया जा सकता है, बल्कि यह एक टिकाऊ एवं समावेशी शहर के निर्माण के लिये भी अत्यंत ज़रूरी है.   


The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.