Author : Abhilasha Purwar

Published on Nov 06, 2023 Updated 28 Days ago

हमारे प्राकृतिक पर्यावरण की स्थिरता को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता था. इस पहलू को हम अपने निजी, सामाजिक, वित्तीय और कारोबारी फ़ैसलों से जोड़कर भी नहीं देखते थे. 

एडवांस्ड एनालिटिक्स के ज़रिए जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलेपन का निर्माण

1.जलवायु के जोख़िम की क़ीमत तय करने की बढ़ती ज़रूरत

प्राकृतिक आपदाओं और भयंकर मौसम की घटनाओं जैसे कि बाढ़, जंगल की आग और सूखों की वजह से वित्तीय बाज़ारों में बढ़ती उथल-पुथल असल में जलवायु परिवर्तन की तेज़ रफ़्तार से जुड़ी हुई है. पिछले कुछ दशकों के दौरान शायद ही कभी संपत्ति के दूरगामी पोर्टफोलियो के निर्माण में ऐसी ऐसी घटनाओं का भी हिसाब किताब लगाया जाता था. क्योंकि, इससे जुड़े फ़ैसले लेने के लिए ज़रूरी आंकड़े या तो बहुत कम थे, या फिर उपलब्ध ही नहीं थे.

पिछले कुछ दशकों के दौरान शायद ही कभी संपत्ति के दूरगामी पोर्टफोलियो के निर्माण में ऐसी ऐसी घटनाओं का भी हिसाब किताब लगाया जाता था. क्योंकि, इससे जुड़े फ़ैसले लेने के लिए ज़रूरी आंकड़े या तो बहुत कम थे, या फिर उपलब्ध ही नहीं थे.

हमारे प्राकृतिक पर्यावरण की स्थिरता को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता था. इस पहलू को हम अपने निजी, सामाजिक, वित्तीय और कारोबारी फ़ैसलों से जोड़कर भी नहीं देखते थे. लेकिन, अब वो सोच पुरानी पड़ चुकी है. दुनिया भर में हम पहले ये मानकर व्यवहार करते थे कि आख़िरी पायदान के इंसान तक ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों की पहुंच स्थायी तौर पर बनी रहेगी. लेकिन, हाल की घटनाओं ने हमारी इस सोच की जड़ें तक हिला दी हैं. मिसाल के तौर पर 2022 की गर्मियों में जब यांग्त्सी नदी में जल स्तर गिरा तो इसका असर चीन के सिचुआन सूबे में औद्योगिक उत्पादन पर पड़ा. यही नहीं, जुलाई 2022 में आई भयंकर बाढ़ ने भारत के कई इलाक़ों में तबाही मचाई. इससे बहुत नुक़सान हुआ. ब्यास, यमुना और ब्रह्मपुत्र जैसी अहम नदियों में पानी के स्तर ने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले, और पुलों, सड़कों और घरों के ध्वस्त होने से हिमाचल प्रदेश को तो एक अरब डॉलर से भी अधिक का नुक़सान हुआ. जुलाई 2023 में बाढ़, हीटवेव और जंगल में आग लगने की घटनाएं उत्तरी पूर्वी अमेरिका, दक्षिणी कोरिया, तुर्किए, कनाडा और ग्रीस में भी देखी गईं.

बड़े पैमाने पर मची ये तबाही, जलवायु परिवर्तन की वजह से शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के मूलभूत ढांचे पर होने वाले बुरे असर की झलक भर है. इससे रियल एस्टेट के पोर्टफोलियो में निवेशक का हौसला डिगता है, बीमा कंपनियों के लिए जलवायु परिवर्तन का जोख़िम बढ़ता है और समुदायों की स्थिरता पर भी बुरा असर पड़ता है. कारोबार चलाने के लिए जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोख़िमों की भविष्यवाणी की जाती है, जिनसे आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा पड़ती है, संचालन का ख़र्च बढ़ जाता है और इससे जुर्माने और दूसरे कारणों से पूंजी का नुक़सान होता है. आने वाले समय में कंपनियों को जलवायु परिवर्तन से अपने कामगारों की सेहत और सुरक्षा पर पड़ने वाले घातक दुष्प्रभावों का सामना भी करना पड़ेगा. पर्यावरण के इन तमाम संकटों की वजह से भारी वित्तीय और मानवीय क़ीमत, लंबे समय से चले आ रहे चलन के फ़ौरी फ़ायदों की तुलना में दूरगामी तौर पर घाटा पहुंचाने वाली है. इसीलिए, ऐसे समाधानों की ज़रूरत है जो, डेटा इंटेलिजेंस और क्वांटिटेटिव मॉडलिंग के ज़रिए किसी प्राकृतिक आपदा के आने से पहले उसकी आशंका के साथ साथ इसका पता भी लगा सकें कि वो आपदा कितनी गंभीर या हल्की होगी.

2.ब्लूस्काई एनालिटिक्स के समाधान

ब्लू स्काई एनालिटिक्स ने एक ऐसा प्लेटफॉर्म, तकनीक और मूलभूत ढांचा तैयार किया है जिससे दुनिया भर के वित्तीय, बीमा सेक्टर, रियल एस्टेट, सरकारी और अलाभकारी क्षेत्रों के ग्राहकों को जलवायु परिवर्तन से जुड़ा इंटेलिजेंस मुहैया कराया जा सकता है, जो भरोसेमंद और आसानी से उपलब्ध होने वाला है. हमारे बिज़नेस मॉडल में तीन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है: i) संपत्ति की निगरानी, ii) कार्बन बाज़ार, और iii) जलवायु परिवर्तन के जोख़िम का विश्लेषण. इस काम में डिजिटल पब्लिक गुड्स और तकनीकी मूलभूत ढांचे से भी मदद ली जाती है. इस सफर के दौरान हमने यूज़र्स के अनुभव और निर्णय लेने की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए तमाम भागीदारों से सहयोग किया है.

हमारे समाधान से यूज़र्स को पर्यावरण और जलवायु के तमाम आंकड़ों की कल्पना करने में मदद मिलती है. इनमें जंगलों में कार्बन के भंडार, नदियों में पानी का स्तर और सात दिनों तक जंगल की आग का पूर्वानुमान लगाना शामिल है.

अपने पहले साल के दौरान हमने सैटेलाइट के आंकड़े जुटाने और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से एल्गोरिद्म के ज़रिए पूर्वानुमान के मॉडल तैयार करने जैसे कि कि हमारे उत्पाद SpaceTime™ या फिर क्लाइमेट डेटा हब को बनाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया है. हमारे समाधान से यूज़र्स को पर्यावरण और जलवायु के तमाम आंकड़ों की कल्पना करने में मदद मिलती है. इनमें जंगलों में कार्बन के भंडार, नदियों में पानी का स्तर और सात दिनों तक जंगल की आग का पूर्वानुमान लगाना शामिल है. संपत्ति के प्रबंधन की व्यवस्था, ख़ास परिसंपत्तियों के लिए उपयोगी इंटेलिजेंस मुहैया कराती है, जैसे कि बिजली के मूलभूत ढांचे, बिजली की लाइनें, तेल की पाइपलाइनें या फिर कार्बन क्रेडिट के लिए क्षण की शिकार ज़मीन. ग्राहक इस आंकड़े को एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (APIs) के ज़रिए अपनी पसंदीदा फ्रीक्वेंसी और रिजॉल्यूशन में देख सकते हैं.

3.बड़े स्तर पर करने की चुनौतियां और अहम सेक्टरों के लिए सुझाव

हमने जो प्रमुख समस्याएं झेली हैं, उनमें काम को पैसे में बदलने का मसला शामिल है. दूसरे शब्दों में हमें ऐसे ग्राहक जुटाने में दिक़्क़तें पेश आई हैं, जो जलवायु के इस जोख़िम की पहले से जानकारी पाने के लिए पैसे दे सकें. उदाहरण के लिए, हमारी तकनीक बाढ़ का पूर्वानुमान लगाने, बारिश का मॉडल तैयार करने, नदियों में संभावित जल स्तर की जानकारी देने और आने वाले समय की आपदा की पहले से सूचना देने में सक्षम है. ये तकनीक हादसों को रोक सकती है. समय से पूर्व लोगों को बचाने में मदद कर सकती है और क़र्ज़ देने वालों व बीमा करने वालों को मूल्यवान जानकारी दे सकती है. मगर, सवाल ये खड़ा होता है कि इस अहम इंटेलिजेंस को पाने की लागत कौन चुकाएगा. बैंकों को लोन माफ करने के लिए ख़ास तरह के आंकड़े चाहिए होते हैं. वहीं, बीमा कंपनियां एक साल आगे की संभावनाएं जानना चाहती हैं. सार्वजनिक मूलभूत ढांचे के रख-रखाव की सरकारी प्रक्रिया लंबी और उबाऊ होती है. इससे उन्हें लागू करने में दिक़्क़तें आती हैं. पैसे बनाने के लिए ज़रूरी मानक हासिल करने के लिए एक व्यापक मॉडल चाहिए होता है, जो कई अतिरिक्त मानकों पर भी खरा उतर सके. अगर ये सब कुछ जनता की पहुंच में हो, तो अनगिनत ज़िंदगियों को बचाया जा सकता है.

इसके उलट हमने साथ ही साथ एक और उत्पाद भी उन्हीं इंजीनियरों और लागत की मदद से विकसित किया है, जिसको कई ग्राहकों द्वारा अपनाया गया है और इस उत्पाद में लगातार तेज़ विकास देखा जा रहा है. इसमें स्थायी राजस्व कमाने की संभावना है, जिससे हमें साल दर साल इसका प्रदर्शन और इसकी विश्वसनीयता बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. जो बात स्पष्ट है वो ये है कि इन आंकड़ों का जलवायु, समाज और इंसानों की ज़िंदगियों पर गहरा असर पड़ सकता है. लेकिन, अक्सर ये उत्पाद फंड की कमी का शिकार होते हैं और भुगतान की शर्त की वजह से इनका उपयोग कम ही हो पाता है.

जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में तमाम आविष्कारों के लिए दान की लचीली सुविधा की ज़रूरत साफ़ दिख रही है. फिर चाहे वो अलाभकारी संगठन हों, मुनाफ़े पर चलने वाली कंपनियां, छोठे या मध्यम दर्जे के उद्योग या फिर किसी एक इंसान द्वारा चलाई जाने वाली कंपनी ही क्यों न हो.

ऐसे बहुत से आविष्कारों को दान से फंड मिलता है. फिर भी ऐसी कोशिशों को बार बार मिल सकने वाले भरोसेमंद राजस्व के स्रोतों के बग़ैर चलाना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है. इसका नतीजा ये होता है कि कई सरकारों, स्पेस एजेंसियों, अलाभकारी संगठनों, सलाहकार कंपनियों और CSR टीम के कई प्रोजेक्ट अधूरे रह जाते हैं. क्योंकि ये सारी परियोजनाएं एक दूसरे से जुड़ी नहीं होतीं और एक दूसरे के अनुभव का इस्तेमाल नहीं कर पातीं. हमारी धरती के लिए तकनीक का विकास करना महत्वपूर्ण है. लेकिन, इसकी राह और बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने के साथ साथ जलवायु परिवर्तन के जोख़िमों से निपटने की सेवाएं देने वालों के लिए राजस्व का टिकाऊ स्रोत हासिल करना मुश्किल बना हुआ है. 

इसीलिए, जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में तमाम आविष्कारों के लिए दान की लचीली सुविधा की ज़रूरत साफ़ दिख रही है. फिर चाहे वो अलाभकारी संगठन हों, मुनाफ़े पर चलने वाली कंपनियां, छोठे या मध्यम दर्जे के उद्योग या फिर किसी एक इंसान द्वारा चलाई जाने वाली कंपनी ही क्यों न हो. हालांकि, जो मदद भी मिलती है, वो भी ओपेन सोर्स या फिर CC-BY के लाइसेंस जैसी शर्तों के साथ आती है. यही नहीं, इन उत्पादों, परियोजनाओं और सेवाओं को लंबी अवधि का बनाने के लिए इनका रख-रखाव भी अहम हो जाता है. इसीलिए, मदद की लचीली सुविधा अहम हो जाती है और शुरुआती आविष्कार एवं रिसर्च व विकास के लिए फंड का आवंटन ज़रूरी हो जाता है, जिससे तकनीक के साथ प्रयोग करने और उत्पाद एवं बाज़ार के बीच संबंध स्थापित हो सके. इसके साथ साथ, सीड टू सीरीज़ A/B के चरणों के लिए मदद में बढ़ोत्तरी भी इन चुनौतियों से निपटने में दूर तलक मददगार साबित हो सकती है.

अन्य चुनौतियों में ग्राहकों को उनकी ज़रूरतों, प्राथमिकताएं और पूर्वाग्रहों से निपटने पूरी करने के लिए जागरूक करना भी शामिल है, जिसमें काफ़ी समय लग सकता है. सैटेलाइट के आंकड़े को बड़े पैमाने पर हासिल करना भी एक और बाधा है; छोटे स्तर के आंकड़े हासिल करने से महंगे उत्पाद बनते हैं और उनकी सेवाएं भी अच्छी नहीं होतीं. वहीं, बड़े स्तर के आंकड़ों के लिए अच्छी कस्टमर सर्विस, क़ीमत और जल्दी से मुनाफ़े में आना ज़रूरी होता है. यही नहीं, डेटा के सटीक होने और मॉडल के भरोसेमंद होने को लेकर चल रही मौजूदा बहस के साथ साथ जलवायु के जोख़िमों, कार्बन बाज़ार और ESG के मानकों की वजह से डेटा और इंटेलिजेंस की विश्वसनीयता सुनिश्चित करना एक जटिल काम हो जाता है. यहां ये बात उल्लेखनीय है कि ये चुनौतियां सिर्फ़ हमारे संगठन के सामने नहीं खड़ी हैं, बल्कि पूरे सेक्टर को इनसे मुक़ाबला करना पड़ रहा है.

अलाभकारी संगठनों और मुनाफ़े के लिए काम करने वाली संस्थाओं के बीच सहयोग महत्वपूर्ण है. शुरुआती रिसर्च एवं विकास के साथ प्रोटोटाइप तैया करने के लिए आसानी से मदद उपलब्ध कराने की ज़रूरत है.

जलवायु तकनीक के ऐसे उद्यमों के विस्तार को बढ़ावा देने के लिए, टिकाऊ विकास और राजस्व हासिल करने वाली जलवायु तकनीक की कंपनियों की मिसालों को पेश करने से प्रेरणा मिलेगी और अन्य स्टार्ट-अप और संस्थापकों का भी मार्गदर्शन हो सकेगा. सरकार अपनी ओर से पर्याप्त मदद करते हुए सही नीतिगत संकेत देने के साथ साथ, क्लाइमेट इंटेलिजेंस को लेकर प्रतिबद्धता दिखाए, तो निजी क्षेत्र को इन अहम समाधानों को अपनाकर परिवर्तन लाने को प्रोत्साहन मिलेगा. वैसे तो इस उद्योग में सही भुगतान कर पाने की क्षमता वाले अंतिम ख़रीदार तो बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं और बीमा क्षेत्र (BFSI) हो सकते हैं. मगर, ऐसे आंकड़ों के प्रति भरोसा जगाने, विश्वसनीयता स्थापित करने और निजी क्षेत्र को शिक्षित करके इसको अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार तार्किक रूप से इनकी पहली ख़रीदार बन सकती है. बैंकों और बीमा करने वालों के लिए नीतियां या फिर जानकारी देने की अनिवार्यता वाले दिशा-निर्देश भी इसको अपनाने और गहरा प्रभाव डालने में अहम योगदान दे सकते हैं.

4.निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के क्षरण से निपटने के लिए इसके जोख़िम से जुड़े इंटेलिजेंस को विकसित करना एक बड़ी चुनौती है, जिसमें पूंजी के विविध स्रोतों- यानी सरकारी, निजी, मदद, हिस्सेदारी और क़र्ज़- के साथ साथ मानवीय विशेषज्ञता की भी बड़े पैमाने पर ज़रूरत है, जिससे मौजूदा व्यवस्थाओं को परिवर्तित किया जा सके और विश्व स्तर पर नई व्यवस्थाएं विकसित की जा सकें. अलाभकारी संगठनों और मुनाफ़े के लिए काम करने वाली संस्थाओं के बीच सहयोग महत्वपूर्ण है. शुरुआती रिसर्च एवं विकास के साथ प्रोटोटाइप तैया करने के लिए आसानी से मदद उपलब्ध कराने की ज़रूरत है. इससे मुनाफ़े वाली कंपनियां खड़ी करने के लिए प्रोटोटाइप से कमाई का रास्ता खुलेगा. अगर सही तरीक़े से लागू किया जाए, तो जलवायु परिवर्तन के जोख़िमों का विश्लेषण करने वाले आकंड़े, इंटेलिजेंस और मॉडल तैयार करने वाली कंपनियों के लिए नए नए तरीक़ों से फंडिंग की व्यवस्था करने से लंबी अवधि में मूल्य निर्माण हो सकेगा, जिससे आगे चलकर हम कम कार्बन वाले भविष्य का निर्माण कर सकेंगे.

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