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ऐसा लगता है कि सस्पेंस फिल्म निर्माता अल्फ्रेड हिचकॉक ने बजट 2025 के नाम से बनी एक फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी है. हिचकॉक का स्टाइल ऐसा था कि दर्शक को ‘खोज’ के लिए इंतज़ार करना पड़ता था. मसलन ये कि एक बम धमाका होने वाला है, पर सवाल ये है कि कब. बजट के पैराग्राफ 6 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एलान किया कि वो मध्यम वर्ग पर ध्यान केंद्रित करेंगी. लेकिन, बजट में उन्होंने मध्यम वर्ग का दोबारा ज़िक्र किया जाकर पैराग्राफ 161 में. इस दौरान, इस फ़ायदे के संभावित लाभार्थी लगातार अपनी टीवी स्क्रीन से चिपके रहे और उन्होंने वित्त मंत्री का एक घंटे चौदह मिनट का पूरा भाषण सुन डाला, जो इत्तिफ़ाक़ से सीतारमण का सबसे छोटा बजट भाषण था.
सीतारमण का आठवां आम बजट, मध्यम वर्ग के लिए यक़ीन से परे है. बजट में मध्यम वर्ग को जो राहत दी गई है, उससे सरकार को राजस्व की हानि तो होगी, पर बजट अपने वित्तीय लक्ष्य हासिल करने को लेकर पूरी तरह से संवेदनशील है.
सीतारमण का आठवां आम बजट, मध्यम वर्ग के लिए यक़ीन से परे है. बजट में मध्यम वर्ग को जो राहत दी गई है, उससे सरकार को राजस्व की हानि तो होगी, पर बजट अपने वित्तीय लक्ष्य हासिल करने को लेकर पूरी तरह से संवेदनशील है. इस बजट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से होने वाली बातचीत के लिए राह आसान हुई है. क्योंकि बजट में टैरिफ और सीमा शुल्क में काफ़ी सुधार किए गए हैं. इस तरह, बजट ने प्रधानमंत्री की अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ होने वाली बातचीत की ज़मीन भी तैयार की है, और सौदेबाज़ी के लिए खुलेपन का भी संकेत दिया है. हालांकि, बजट में ऐसे एलान नहीं किए गए, जिससे विकास या फिर उन विनियमनों को बढ़ावा मिले, जिनकी तरफ़ 2025-26 के आर्थिक सर्वेक्षण ने इशारा किया था.
आयकर की दर को 12 लाख रुपए (स्टैंडर्ड डिडक्शन के 75 मिलाकर वेतनभोगी तबक़े के लिए 12.75 लाख) तक ले जाकर, वित्त मंत्री ने एक लाख रुपए महीने तक कमाने वालों के हाथ में सालाना 80 हज़ार या (6,666 रूपए महीने) की रक़म सौंप दी है. आयकर की बुनियादी दर में ये बढ़ोत्तरी किसी भी परिवार की अपेक्षाओं से परे है. आम तौर पर आयकर की दरों में थोड़ा-थोड़ा करके ही बदला किया जाता है. 2014 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कर मुक्त आमदनी की दर बढ़ाकर 2.5 लाख की थी. 2019 में निर्मला सीतारमण ने इसे बढ़ाकर 5 लाख और फिर 2023 में और बढ़ाते हुए सात लाख किया था. जो लोग 50 लाख रुपए सालाना कमाते हैं, उनके हाथ में अब अतिरिक्त 1,10,000 (या 9,167 रूपए महीने) होंगे.
मध्य वर्ग के हाथों में लड्डु
मध्यम वर्ग के हाथ में आने वाली ये अतिरिक्त रक़म ख़र्च करने और इस तरह खपत की मांग को बढ़ाने में काम आ सकती है. या फिर, बचत की शक्ल में ये पैसा बैंक या फिर बाज़ार में निवेश किया जा सकता है. किसी भी स्थिति में, ये अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा होगा. बजट के दिन वैसे तो सेंसेक्स और निफ्टी में कोई ख़ास बदलाव नहीं हुआ. लेकिन, फास्ट मूविंग कंज़्यूमर गुड्स (FMCG) कंपनियों के शेयरों में 2.9 प्रतिशत, कंज़्यूमर ड्यूरेबल्स के शेयर में 2.5 फ़ीसद और रियल एस्टेट कंपनियों के शेयरों में 3.6 प्रतिशत का उछाल देखा गया. इससे पता चलता है कि करदाताओं के हाथ में जो अतिरिक्त पैसे आयकर में रियायत से आएंगे, वो टूथपेस्ट, साबुन और बिस्कुट ख़रीदने, एयर कंडिशनर और रेफ्रिजरेटर ख़रीदने और मकान ख़रीदने में लग सकते हैं. इससे मध्यम वर्ग की ये शिकायत भी दूर हो गई है कि उसकी कोई सियासी आवाज़ नहीं है. अब सरकार ने जो मध्यम वर्ग के प्रति जो आर्थिक सद्भावना दिखाई है, वो अगले हफ़्ते होने वाले दिल्ली विधानसभा के चुनाव में क्या असर करेगी, वो देखने वाली बात होगी.
हालांकि, सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है. देश में पांच से 30 लाख सालाना आमदनी वाले 9.8 करोड़ परिवार हैं. इनमें से केवल 1.5 करोड़ परिवार ही आयकर अदा करते हैं. अगर इस संख्या को करदाताओं द्वारा अदा किए जाने वाले टैक्स के समानुपात में देखें, तो मध्यम वर्ग 7.8 लाख करोड़ टैक्स नहीं दे रहा है. बजट में आयकर में जिस छूट का प्रस्ताव रखा गया है, उससे सरकार को एक लाख करोड़ रुपए का नुक़सान होगा. अगर टैक्स चुराने वाले या टैक्स देने से बचने वालों को आयकर के दायरे में लाया जाए, तो इसकी भरपाई हो सकती है. ऐसे में निर्मला सीतारमण के लिए ये एक बढ़िया मौक़ा है कि वो इस तबक़े पर ध्यान दें. 30 लाख या फिर उससे ऊपर की आमदनी वाले जो लोग टैक्स नहीं दे रहे हैं, उनको भी आयकर के दायरे में लाया जाना चाहिए. उनके द्वारा लगभग 23.4 लाख करोड़ रुपए टैक्स नहीं दिया जा रहा है.
देश में पांच से 30 लाख सालाना आमदनी वाले 9.8 करोड़ परिवार हैं. इनमें से केवल 1.5 करोड़ परिवार ही आयकर अदा करते हैं. अगर इस संख्या को करदाताओं द्वारा अदा किए जाने वाले टैक्स के समानुपात में देखें, तो मध्यम वर्ग 7.8 लाख करोड़ टैक्स नहीं दे रहा है.
मध्यम वर्ग को ये भारी छूट देने के बावजूद, वित्त मंत्री सीतारमण 2025 के बजट को वित्तीय तौर पर उत्तरदायी बनाए रखने में कामयाब रही हैं. इस बार के बजट में वित्तीय घाटा GDP का 4.8 प्रतिशत रखा गया है, जो पिछले साल के अनुमानित लक्ष्य से न केवल एक प्रतिशत कम है, बल्कि वित्त वर्ष 2025-26 के लिए इसके और भी कम होने यानी 4.4 फ़ीसद रहने का अनुमान लगाया गया है. इसको इस तरह से समझें कि 2020 में कोविड-19 महामारी के बीच लाए गए बजट में सरकार का वित्तीय घाटा बढ़कर 9.2 फ़ीसद पहुंच गया था. हालांकि, उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट आ रही है. 2021 के बजट में वित्तीय घाटा घटकर 6.8 प्रतिशत, 2022 में 6.4 फ़ीसद, 2023 मे 5.8 प्रतिशत और 2024 में वित्तीय घाटा, GDP का 5.1 प्रतिशत रह गया था. वित्त मंत्री के तौर पर निर्मला सीतारमण ने वित्तीय रूप से संतुलन और राजनीतिक रूप से समझदारी दिखाई है.
बजट की रकम में बढ़त
इस बार का बजट 50.65 लाख करोड़ है, जो पिछले साल की तुलना में पांच प्रतिशत अधिक है. पिछले 11 वर्षों के दौरान आम बजट सालाना 10.5 की चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है, यानी 2014-15 में 16.8 लाख करोड़ का बजट अब तीन गुना बड़ा हो गया है. इस दौरान ब्याज का भुगतान और पेंशन के ख़र्च कहीं ज़्यादा तेज़ गति यानी 11.5 फ़ीसद सालाना की दर से बढ़ रहे हैं. इनको तार्किक बनाकर और कम करने की आवश्यकता है.
सरकार की मुख्य आमदनी का स्रोत व्यक्तिगत आयकर दाता हैं. सरकार को होने वाली कुल आमदनी में निजी आयकर दाताओं का योगदान 2018 के बजट में 16 प्रतिशत था, जो इस साल के बजट में बढ़कर 22 फ़ीसद हो गया है. इसी दौरान, कॉरपोरेट टैक्स की हिस्सेदारी 19 फ़ीसद से घटकर 17 प्रतिशत रह गई है. वहीं, गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स 23 प्रतिशत से घटकर 18 फ़ीसद रह गए हैं. इसी तरह सरकार का सबसे ज़्यादा ख़र्च क़र्ज़ पर ब्याज देने का है, जो 18 फ़ीसद से बढ़कर 20 प्रतिशत हो गया है.
2025 के बजट ने प्रधानमंत्री मोदी की डॉनल्ड ट्रंप से बातचीत की आधारशिला भी रख दी है. 2024 के बजट की तरह इस बार भी व्यापार कर की सात दरों को ख़त्म करने का प्रस्ताव रखा गया है. इससे न केवल भारत के लिए अमेरिका से सौदेबाज़ी करना आसान होगा, बल्कि ये क़दम घरेलू कारोबारियों के लिए भी लाभप्रद होगा, क्योंकि वो व्यापार कर के दायरे से बाहर होने वाली इन वस्तुओं में से कुछ को अपनी आपूर्ति श्रृंखला की बीच की कड़ी की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं. अब इन सारे क़दमों को लेकर अमेरिका का क्या रुख़ रहता है, वो देखने वाली बात होगी. लेकिन एक बात तो साफ़ है कि भारत ने उस बातचीत की अपेक्षा में जो कुछ क़दम उठाए हैं, उससे वो मज़बूत स्थिति में होगा.
2025 के बजट ने प्रधानमंत्री मोदी की डॉनल्ड ट्रंप से बातचीत की आधारशिला भी रख दी है. 2024 के बजट की तरह इस बार भी व्यापार कर की सात दरों को ख़त्म करने का प्रस्ताव रखा गया है.
अफ़सोस की बात ये है कि बजट में विकास दर बढ़ाने को लेकर कोई सीधी बात नहीं की गई है. 2025 के आर्थिक सर्वेक्षण में विनियमन के लिए कई सुझाव दिए गए थे. लेकिन, बजट में इनमें से किसी का भी ज़िक्र नहीं देखने को मिला. एकमात्र अवसर ये था जब जनविश्वास 2.0 के ज़रिए सिर्फ़ 100 प्रावधानों की आपराधिकता ख़त्म की जाएगी. (जनविश्वास 1.0 के अंतर्गत केंद्र सरकार के दायरे में आने वाले 5,126 अनुपालनों में से केवल 113 में जेल की सज़ा का प्रावधान ख़त्म किया गया था.) अब अगर हम चार श्रम क़ानूनों की बात करें, तो उनके ज़रिए आपराधिक अभियोग के लगभग 2,500 प्रावधान ख़त्म हो जाएं. फिर भी, ये प्रस्ताव न के बराबर है. इससे पता चलता है कि सुधार करना कितना कठिन काम है. मोदी के दिशा-निर्देश के बावजूद सरकार इसमें लगातार हीला-हवाली करती रही है. इसकी वजह से अफ़सरशाही के हाथ में बेहिसाब ताक़त बनी रहेगी, जिससे वो संपत्ति निर्माताओं को तंग करते रहेंगे, और उद्यमियों से वसूली करते रहेंगे.
निर्मला सीतारमण ने दिखाया है कि जब मजबूरी होती है, तो वो दिल खोलकर ख़र्च कर सकती हैं. आर्थिक रूप से ठोस और राजनीतिक रूप से चतुर क़दम उठा सकती हैं और नाटकीयता से इसकी प्रस्तुति दे सकती हैं.
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