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Published on Jul 18, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत के वैश्विक स्तर पर पश्चिमी एवं पूर्वी गुटों में शामिल देशों के साथ न केवल अच्छे संबंध हैं, बल्कि उन्हें लगातार मज़बूत करने की काबिलियत भी है. इस प्रकार से भारत वर्तमान भू-राजनीतिक माहौल में खुद को एक मध्यस्थ के तौर पर स्थापित करता है और भारत की इस क्षमता से ऑस्ट्रिया भी लाभान्वित हो सकता है.

भारत का कूटनीतिक कदम: ऑस्ट्रिया में पूर्व और पश्चिम का मिलन

भारत और ऑस्ट्रिया के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं और इस ख़ास अवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में ऑस्ट्रिया की राजकीय यात्रा की थी. पीएम मोदी का यह ऑस्ट्रिया दौरा ऐतिहासिक रूप से बेहद अहम है. पीएम मोदी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (1983 में) के बाद पिछले 41 वर्षों में तटस्थ देश ऑस्ट्रिया का राजकीय दौरा करने वाले पहले भारतीय पीएम हैं. ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो भारत और ऑस्ट्रिया के बीच द्विपक्षीय रिश्ते दोस्ताना रहे हैं, बावज़ूद इसके इन पारस्परिक संबंधों को उतना महत्व नहीं दिया या है, जितना दिया जाना चाहिए था. इस बार जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी की विएना यात्रा के दौरान उनके साथ गए प्रतिनिधिमंडल में विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल समेत तमाम उच्च स्तरीय अधिकारी शामिल थे, उससे प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री मोदी ऑस्ट्रिया के साथ भारत के द्विपक्षीय रिश्तों को और प्रगाढ़ करना चाहते हैं, साथ ही उन्हें कई क्षेत्रों में विस्तारित करना चाहते हैं.

 

पीएम मोदी के ऑस्ट्रिया दौरे की मुख्य बातें

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विएना दौरे की चर्चा करने के दौरान इस बात पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि मोदी की अगुवाई में केंद्र में आने वाली तीसरी सरकार यानी मोदी 3.0 की कैबिनेट में राजनीतिक निरंतरता दिखाई देती है. इसकी वजह यह है कि पीएम मोदी ने प्रमुख मंत्रालयों के मंत्रियों में कोई हेरफेर नहीं की है. जिस प्रकार से पीएम मोदी ने गृह, रक्षा, वित्त और विदेश मंत्रालय में अपने चारों पूर्ववर्ती वरिष्ठ मंत्रियों को ही दोबारा से ज़िम्मेदारी सौंपी है, उससे साफ लगता है कि वे पिछले कार्यकाल के दौरान किए जा रहे कार्यों और नीतियों को आगे बढ़ाने का इरादा रखते हैं. ऑस्ट्रिया की अपनी यात्रा को दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कई उच्च स्तरीय बैठकों में हिस्सा लिया. मोदी ने राष्ट्रपति अलेक्जेंडर वान डेर बेलन और चांसलर कार्ल नेहमर के साथ-साथ विदेश मंत्री शालेनबर्ग और व्यापार जगत की मुख्य हस्तियों एवं प्रमुख उद्योगपतियों के साथ भी मुलाक़ात की. ऑस्ट्रिया दौरे से पहले पीएम मोदी ने अपने बयान में प्रमुखता से कहा कि ऑस्ट्रिया, भारत का एक भरोसेमंद भागीदार है. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र भारत और ऑस्ट्रिया को जोड़ने का काम करता है, साथ ही दोनों देश बहुलवाद, स्वतंत्रता, समानता के मूल्यों को साझा करते हैं. ऑस्ट्रिया में हुई तमाम वार्ताओं में इनोवेशन, प्रौद्योगिकी और सतत विकास जैसे नए सेक्टरों पर ध्यान केंद्रित किया गया. ऑस्ट्रिया यात्रा के दौरान व्यापार और निवेश के अवसरों पर चर्चा-परिचर्चा का मकसद कहीं न कहीं पारस्परिक तौर पर फायदेमंद आर्थिक रिश्तों को नई गति प्रदान करना था.

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विएना दौरे की चर्चा करने के दौरान इस बात पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि मोदी की अगुवाई में केंद्र में आने वाली तीसरी सरकार यानी मोदी 3.0 की कैबिनेट में राजनीतिक निरंतरता दिखाई देती है.

प्रधानमंत्री मोदी के ऑस्ट्रिया दौरे में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय मसलों पर तो गहन बातचीत हुई ही, साथ ही विभिन्न क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी गहन चर्चा हुई. दोनों देशों के बीच बातचीत में मुख्य रूप से यूक्रेन और रूस के बीच छिड़ी जंग और ग्लोबल साउथ के देशों पर इसके भू-आर्थिक प्रभावों का मुद्दा शामिल था. ख़ास तौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से ग्लोबल साउथ के देशों में ऊर्जा व खाद्य आपूर्ति प्रभावित होने और महंगाई बढ़ने जैसे विषयों पर चर्चा हुई, इसके साथ ही इस युद्ध के समाप्त करने के लिए शांति स्थापना की कोशिशों पर भी विचार-विमर्श किया गया. दोनों देशों के बीच आगे की चर्चा-परिचर्चाओं में वैश्विक स्तर पर लगातार चीन की बढ़ती आक्रामकता के साथ अफ़ग़ानिस्तान में ISPK जैसे आतंकवादी समूहों की बढ़ती गतिविधि के अलावा दुनिया भर में मची भू-राजनीतिक उठापटक जैसे बड़े मसलों को भी शामिल किया जा सकता है. ज़ाहिर है कि भारत बेहद तेज़ी के साथ वैश्विक स्तर पर खुद को ग्लोबल साउथ के देशों के पैरोकार यानी उनकी आवाज़ को बुलंद करने वाले राष्ट्र के तौर पर स्थापित कर रहा है. यूक्रेन और रूस के बीच चल रही जंग का सबसे अधिक ख़ामियाजा ग्लोबल साउथ के देशों को भी भुगतना पड़ रहा है. इसके अलावा, ग्लोबल साउथ के राष्ट्रों में न केवल आतंकवादी गतिविधियां बढ़ गई हैं, बल्कि आतंकी हमले भी तेज़ हो गए हैं, जो एक गंभीर चिंता का मसला है.

 

आर्थिक सहयोग और संभावनाएं

 

पीएम मोदी की ऑस्ट्रिया यात्रा का सबसे बड़ा मकसद दोनों देशों के बीच आर्थिक रिश्तों को सशक्त करना है. इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और चांसलर नेहमर ने ऑस्ट्रियाई उद्योगपतियों के साथ मुलाक़ात की और दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार एवं निवेश से जुड़ी विभिन्न संभावनाओं को तलाशने की कोशिश की. ज़ाहिर है कि ऑस्ट्रियाई कंपनियों के लिए भारत में विशेष रूप से आधारभूत ढांचे के विकास, कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर और विनिर्माण उद्योग जैसे क्षेत्रों में निवेश व बिजनेस की अपार संभावनाएं हैं.

 चुनाव अभियान में उन्होंने वादा किया था कि ज़ल्द ही अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. मौज़ूदा वक़्त में भारत जी20 देशों में सबसे तेज़ गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. 

प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए तमाम योजनाओं का ऐलान किया था. चुनाव अभियान में उन्होंने वादा किया था कि ज़ल्द ही अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. मौज़ूदा वक़्त में भारत जी20 देशों में सबसे तेज़ गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. भारत की इकोनॉमी को आठ प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान जताया गया है, जो कि बेहद आकर्षक है. इतना ही नहीं, यूरोप के उलट भारत में जनसांख्यिकीय बेहद सकारात्मक है. पिछले साल भारत की आबादी 1.4 बिलियन के पास पहुंच गई और इसके साथ ही भारत ने सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन को पीछे छोड़ दिया. पिछले साल ही ग्रेट ब्रिटेन को पछाड़कर भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है.

 

भारत और ऑस्ट्रिया के बीच कुल 2.7 बिलियन यूरो का व्यापार होता है और इसके साथ ही यूरोपियन यूनियन के बाहर भारत को ऑस्ट्रिया के सबसे अहम व्यापारिक साझीदार देशों में से एक माना जाता है. आंकड़ों पर गौर करें, तो वर्ष 2023 के आख़िर तक भारत में ऑस्ट्रियाई प्रत्यक्ष निवेश 733 मिलियन यूरो का था. ऑस्ट्रिया में भारतीय निवेश की बात की जाए, तो हाल ही में यह 1.6 बिलियन यूरो तक पहुंच गया है. जिस प्रकार से नए यूरोपीय संघ आयोग वैश्विक स्तर पर आर्थिक रिश्तों का विस्तार करना चाहता है और भारत के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते को आगे बढ़ाना चाहता है, ऐसे में देखा जाए तो भारत और ऑस्ट्रिया के बीच द्विपक्षीय निवेश व व्यापर बढ़ने की ज़बरदस्त संभावनाएं हैं. ज़ाहिर है कि अगर भारत और यूरोपीय संघ आयोग के बीच मुक्त व्यापार समझौता परवान चढ़ता है, तो इससे न सिर्फ़ ईयू के बाजार तक पहुंच आसान होगी, बल्कि कई यूरोपीय देशों में कुशल और प्रशिक्षित कामगारों की कमी को दूर करने के लिए नियम-क़ानून के दायरे में श्रमिकों की ज़रूरत से संबंधित बातचीत भी आगे बढ़ेगी और इससे निश्चित तौर पर ऑस्ट्रिया को भी बहुत लाभ पहुंचेगा.

 

वर्तमान में पूरी दुनिया में जहां भू-राजनीति की भूमिका बेहद अहम हो गई है, वहीं ऊर्जा का महत्व भी लगातार बढ रहा है. अगर भारत के लिहाज़ से बात की जाए तो उसके एजेंडे में विकास, स्थिरता, उभरती हुई प्रौद्योगिकियां और डिजिटलीकरण एवं नवीकरणीय ऊर्जा, उसमें भी ख़ास तौर पर ग्रीन हाइड्रोजन जैसे मुद्दे सबसे प्रमुख हैं. भारत ग्रीन हाइड्रोजन का वैश्विक केंद्र बनने के लिए लगातार हाथ-पैर मार रहा है और साथ ही साथ सोलर एनर्जी के सेक्टर में भी ज़बरदस्त निवेश कर रहा है. भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई मंचों और संगठनों में शामिल है. जैसे कि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड में शामिल है. इन मंचों और समूहों के साथ जुड़े होने का भारत का मकसद आपूर्ति श्रृंखलाओं को लचीला बनाना और उनका नए सिरे से गठन करना है. ऐसा करके भारत ऊर्जा परिवर्तन, डिजिटलीकरण और स्वास्थ्य देखभाल के लिए बेहद ज़रूरी दुर्लभ धातुओं एवं खनिजों के साथ-साथ फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स तक अपनी पहुंच को बढ़ाना चाहता है.

 

भारत कई ट्रांसपोर्ट और कनेक्टिविटी कॉरिडोर को विकसित करने की दिशा में भी काम कर रहा है. इन कॉरिडोर में आईएमईसी गलियारा (इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर) भी शामिल है, जिसका ऐलान जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान किया गया था. यह मल्टीमॉडल समुद्री और भूमि गलियारा ऑस्ट्रिया के व्यापार के लिए शानदार अवसर उपलब्ध कराता है. विशेष रूप से भारत और इटली के बीच संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिहाज़ से तो यह कॉरिडोर कारगर साबित हो सकता है. इसका मतलब है यह गलियारा तमाम दूसरे मामलों में फायदेमंद साबित होने के अलावा, निवेश बढ़ाने के लिए भी एक वरदान सिद्ध होने वाला है. फिर चाहे वो घरेलू इंफ्रास्ट्रक्चर में अहम सरकारी निवेश हो, या फिर कृषि सेक्टर या उत्पादकता बढ़ाने वाले क्षेत्र में होने वाला निवेश हो. इतना ही नहीं, भारत के रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में 2,500 नए पैसेंजर कोच बनाने और 10,000 अतिरिक्त वैगन्स के निर्माण का ऐलान किया है. इसके अलावा, उन्होंने 2024 के आम बजट से पहले भारतीय रेल के बेड़े को आधुनिक बनाने के लिए उसमें 50 नई अमृत भारत ट्रेनें शामिल करने की भी घोषणा की है. जिस प्रकार से भारत सरकार का वर्ष 2014 से ही बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं पर फोकस है, उसके मद्देनज़र बाज़ार और उद्योग जगत 2024 के लिए एक ऐसे आम बजट की प्रतीक्षा कर रहा है, जिसका ख़ास फोकस ऊर्जा, बिजली, रेलवे और दूसरे बुनियादी ढांचा सेक्टरों पर होगा. ज़ाहिर है कि ऑस्ट्रियाई कंपनियों ने पूर्व में इनमें से कई क्षेत्रों में अपनी विशेषज्ञता को साबित किया है. ख़ास तौर पर जब रेलवे और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टरों की बात हो तो ऑस्ट्रिया की कंपनियां भारत के लिए बहुत कारगर सिद्ध हो सकती हैं. इसी प्रकार से स्वच्छ और हरित ऊर्जा के सेक्टर में भी ऑस्ट्रियाई कंपनियां भारत के लिए बेहद लाभदायक साबित हो सकती हैं. भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विकास से जुड़ा ये जो भी घटनाक्रम है वो कहीं न कहीं ऑस्ट्रिया और उसकी कंपनियों के लिए बेशुमार अवसरों से भरा हुआ है. भारत में ग्रीन टेक्नोलॉजी और रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्रों में, साथ ही उद्योग के आधुनिकीकरण, जैसे कि प्लांट इंजीनियरिंग, ऑटोमेशन, ऑटोमोटिव सेक्टर और ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में ऑस्ट्रियाई इंडस्ट्री के लिए विकास की अपार संभावनाएं मौज़ूद हैं. इतना ही नहीं स्टार्टअप्स एवं डिजिटलीकरण जैसे सेक्टर भी बेहद महत्वपूर्ण हैं और ऑस्ट्रियाई कंपनियों एवं उद्योगों के लिए अवसरों से भरे हुए हैं. भारत दुनिया में डिजिटल माध्यम से सबसे अधिक लेन-देन करने वाला देश है और ऑस्ट्रिया के लिए डिजिटल फाइनेंशियल सर्विसेज के सेक्टर में भी भारत के साथ आगे की बातचीत का रास्ता खुला हुआ है. विशेष रूप से द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय व्यापार के भुगतान में स्थानीय मुद्राओं का इस्तेमाल करने के मुद्दे पर भी दोनों देशों के बीच आगे चर्चा हो सकती है.

 भारत में ग्रीन टेक्नोलॉजी और रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्रों में, साथ ही उद्योग के आधुनिकीकरण, जैसे कि प्लांट इंजीनियरिंग, ऑटोमेशन, ऑटोमोटिव सेक्टर और ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में ऑस्ट्रियाई इंडस्ट्री के लिए विकास की अपार संभावनाएं मौज़ूद हैं.

कुल मिलाकर, जिस प्रकार से भारत का आर्थिक वातावरण इन दिनों अपने सबसे बेहतरीन दौर से गुजर रहा है और "मेक इन इंडिया" कार्यक्रम के अंतर्गत देश में उच्च गुणवत्ता के साथ ही कम लागत में विनिर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है, ऐसे में भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए एक प्रमुख देश बन चुका है. इससे न केवल भारत के घरेलू बाज़ारों को लाभ पहुंच रहा है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार भी इससे लाभान्वित हो रहे हैं. भारत की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम एक रणनीतिक पहल है, जिसे ख़ास तौर पर सेमीकंडक्टर, चिकित्सा उपकरण और सोरल पीवी सेल जैसे अहम सेक्टरों में वैश्विक विनिर्माण कंपनियों को आकर्षित करने के लिए तैयार किया गया है. भारत एक बड़ी आर्थिक ताक़त के रूप में उभर रहा है और यहां कुशल कामगारों क अच्छी-ख़ासी तादाद मौज़ूद है. अगर ऑस्ट्रिया की तक़नीकी विशेषज्ञता के साथ इसका एकीकरण हो जाता है, तो निश्चित तौर पर इससे टिकाऊ व्यापार की प्रगति और विकास के लिए एक मज़बूत आधारशिला तैयार हो सकती है.

 

मध्यस्थता और खाई पाटने वाले देश के रूप में भारत की भू-राजनीतिक भूमिका

 

एक महत्वपूर्ण बात जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है, वो यह है कि जब से रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई शुरू हुई है, तब से लेकर हाल-फिलहाल तक ऑस्ट्रिया के चांसलर नेहमर ही यूरोपियन यूनियन के एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने मास्को का दौरा किया था और राष्ट्रपति पुतिन से भेंट की थी. नेहमर के इस विवादास्पद रूसी दौरे के बाद ही हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने भी हाल ही में रूस की यात्रा की है और उसके बाद उन्होंने चीन का भी दौरा किया है. ये सारे घटनाक्रम बताते हैं कि कुछ यूरोपीय देशों की रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अलग सोच है और उनके कूटनीतिक इरादे भी भिन्न हैं, जो देखा जाए तो यूरोपीय संघ के सदस्य देशों एवं ईयू संस्थानों के विचारों से मेल नहीं खाते हैं. ज़ाहिर है कि भारत के पश्चिमी और पूर्वी पावर ब्लॉक, दोनों के साथ ही अच्छे संबंध है और वह इन रिश्तों को आगे भी मज़बूत करने में सफल रहा है. ऐसे में वैश्विक स्तर पर जहां भी तनाव एवं संकट का वातावरण बना हुआ है, वहां भारत भू-राजनीतिक तौर पर एक मध्यस्थ की भूमिका निभाने और एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकने वाले देशों के बीच पुल बनाने के लिहाज़ से, यानी शांति की पहल को आगे बढ़ाने के लिहाज़ से उपयुक्त है. यूरोप के एक तटस्थ देश के रूप में ऑस्ट्रिया भी इसी प्रकार की भूमिका निभाने की इच्छा रखता है और उसने बार-बार ऐसा करने का प्रयास भी किया है. लेकिन सच्चाई यह है कि भू-राजनीतिक एवं भू-आर्थिक नज़रिए से ऑस्ट्रिया एक प्रभावशाली राष्ट्र नहीं है, जिसकी वजह से वो अपनी इस क़वायद में क़ामयाब नहीं हो पाया है.

 

भारत ने हाल के दिनों में वैश्विक स्तर पर एक मध्यस्थ राष्ट्र के तौर पर बेहद उल्लेखनीय भूमिका निभाई है. ख़ास तौर पर कुछ महीनों पहले नई दिल्ली में आयोजित हुए जी20 शिखर सम्मेलन में भारत की भूमिका बेहद प्रभावशाली रही थी. जी20 में यूक्रेन युद्ध के मुद्दे को न उठाने के लेकर रूस और चीन दोनों ने पहले ही अपनी मंशा जता दी थी. ऐसे में भारत ने अपने कूटनीतिक कौशल को दिखाते हुए जी20 के संयुक्त बयान को इस प्रकार से बनाया कि सभी देशों ने इसका समर्थन किया. भारत ने इस संयुक्त बयान में यूक्रेन युद्ध से प्रभावित होने वाले लोगों की समस्याओं एवं वैश्विक स्तर पर पड़ने वाले इसके आर्थिक असर का तो जिक्र किया, लेकिन सीधे तौर पर इसके लिए रूस को ज़िम्मेदार ठहराने एवं उसकी निंदा करने से बचा. भारत की यह कूटनीतिक उपलब्धि, उसे न केवल एक भू-राजनीतिक ताक़त के रूप में स्थापित करती है, बल्कि दुनिया में तमाम देशों के बीच मध्यस्थता करने और टकराव में उलझे देशों को एक साथ बैठाकर उन्हें समझौते के लिए सहमत करने की उसकी काबिलियत को भी उजागर करती है. इसके साथ ही भारत की यह कूटनितिक उपलब्धि यह भी दर्शाती है कि वो सदैव अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखता है और अपने फैसलों में किसी भी दबाव के सामने नहीं झुकता है.

 

भारत और ऑस्ट्रिया के बीच हुई द्विपक्षीय बातचीत के दौरान एक और मुद्दा जिस पर गहन चर्चा हुई, वो यूक्रेन में चल रहा युद्ध और इसके दूरगामी दुष्प्रभाव का था. ऑस्ट्रिया के दौरे से ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मास्को की यात्रा की थी और वहीं से वे सीधे विएना पहुंचे थे. मास्को में पीएम मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन से भेंट की थी और इस दौरान उन्होंने रूस एवं भारत के ऐतिहासिक रिश्तों को नई ऊंचाई प्रदान करने का काम किया था. विएना में पीएम मोदी ने एक बार फिर ज़ोरदार तरीक़े से कहा कि "अब युद्ध का समय नहीं है." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आपसी समस्याओं का समाधान युद्ध के मैदान में निकालने के बजाए "बातचीत और कूटनीति" के ज़रिए किया जाना चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सितंबर 2022 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत के दौरान पहली बार यह बातें कही गई थीं और तब इसे यूक्रेन में रूसी हमले की सबसे कड़ी आलोचना के रूप में देखा गया था. भारत ने पश्चिमी देशों और रूस के साथ अपने रिश्तों को क़ायम रखने में हमेशा संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया है और आज भी वह ऐसा ही कर रहा है. भारत की यह सोच उसे पूर्व और पश्चिम के बीच एक विश्वसनीय मध्यस्थ के तौर पर स्थापित करने का काम करती है. देखा जाए तो यह रणनीति भारत के लिए बेहद अहम है, विशेष रूप से चीन के सामने दृढ़ता के साथ डटे रहने के लिहाज़ से भारत का यह दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण है.

भारत की यह कूटनीतिक उपलब्धि, उसे न केवल एक भू-राजनीतिक ताक़त के रूप में स्थापित करती है, बल्कि दुनिया में तमाम देशों के बीच मध्यस्थता करने और टकराव में उलझे देशों को एक साथ बैठाकर उन्हें समझौते के लिए सहमत करने की उसकी काबिलियत को भी उजागर करती है.

इस प्रकार से देखा जाए तो भारत के वैश्विक मध्यस्थ की भूमिका निभाने के इरादे को परवान चढ़ाने में ऑस्ट्रिया यूरोप में रणनीतिक लिहाज़ से उसके लिए बेहद अहम देश है. ऑस्ट्रिया 1955 से ही एक तटस्थ देश बना हुआ है और उसके सोवियत संघ एवं रूस दोनों के साथ ही ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं. रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग के बावज़ूद ऑस्ट्रिया के रूस से संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ा है और दोनों देशों के बीच आर्थिक रूप से प्रगाढ़ रिश्ते क़ायम हैं. इसकी एक वजह यह भी है कि ऑस्ट्रिया में व्यापक स्तर पर रूस ने निवेश किया हुआ है और वह रूस से होने वाली गैस आपूर्ति पर अत्यधिक निर्भर हैं. इसके अलावा, रूस में ऑस्ट्रिया का बहुत व्यापक वित्तीय नेटवर्क फैला हुआ है, इसे ऑस्ट्रिया की प्रमुख बैंक रेफ़ेसेन इंटरनेशनल के रूस में बड़े स्तर पर फैली संचालन गतिविधियों से समझा जा सकता है. भारत और ऑस्ट्रिया के बीच द्विपक्षीय वार्ता में रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध एक अहम मुद्दा बना हुआ है. इस मसले पर भारत और ऑस्ट्रिया दोनों ने ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मुताबिक़ अपनी सहमति जताई है, जिसमें इस समस्या का "व्यापक, न्यायपूर्ण एवं स्थाई" तरीक़े से शांतिपूर्ण समाधान निकालने की बात कही गई है. निसंदेह तौर पर ग्लोबल साउथ के देशों में भारत की स्थिति बहुत मज़बूत है और उसे भरोसे की नज़रों से देखा जाता है. ग्लोबल साउथ के विभिन्न देशों का भारत पर यही विश्वास उसे वैश्विक स्तर पर विवादों के समाधान में प्रभावी मध्यस्थ के रूप में स्थापित करने का काम करता है. इसके अलावा, पीएम मोदी की यात्रा के दौरान द्विपक्षीय वार्ता में आतंकवादी हमलों से पैदा होने वाले ख़तरों का सामना करने एवं मध्य पूर्व में चल रहे टकराव का समाधान निकालने की ज़रूरत पर भी विचारों को साझा किया गया और इन मुद्दों पर सहमति जताई गई. इतना ही नहीं, दोनों देशों में कई और समानताएं हैं, जैसे कि भारत और ऑस्ट्रिया दोनों ने इजराइल को अपना राजनीतिक समर्थन दिया है. दोनों देश अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रूस पर निर्भर हैं, साथ ही मास्को के साथ इनके व्यापक व्यापारिक हित जुड़े हुए हैं.

 

निष्कर्ष

भारत और ऑस्ट्रिया के द्विपक्षीय रिश्तों की मज़बूती के संदर्भ से देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हालिया ऑस्ट्रिया यात्रा से इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है. इतना ही नहीं, जिस प्रकार से भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से आगे बढ़ रही है और देश में युवाओं की आबादी में वृद्धि हो रही है, ये हालात दोनों देशों के बीच नज़दीकी सहयोग के लिए एक मज़बूत नींव तैयार करने का काम करते हैं. भारत में ऑस्ट्रियाई कंपनियों का निवेश और मौज़ूदगी उतनी नहीं है, जितनी होनी चाहिए. ऐसे में ऑस्ट्रिया की कंपनियां भारत सरकार के निवेश कार्यक्रमों का लाभ उठाकर अपनी उपस्थिति को बढ़ा सकती हैं. ख़ास तौर पर ऑस्ट्रियाई कंपनियां इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और ग्रीन टेक्नोलॉजी सेक्टर में भारतीय निवेश नीतियों का लाभ उठा सकती हैं. गौरतलब है कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बातचीत जारी है और जब यह समझौता हो जाएगा, तो इससे यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बाज़ारों तक पहुंच आसान हो सकती है. इसके अलावा इस समझौते के बाद भारतीय कामगारों की यूरोपीय देशों में पहुंच भी सुगम हो जाएगी. इससे कुशल और प्रशिक्षित कामगारों की कमी से जूझ रहे ऑस्ट्रिया एवं दूसरे यूरोपीय देशों को बहुत फायदा हो सकता है. इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर बनने के बाद ऑस्ट्रिया समेत तमाम यूरोपीय देशों के लिए व्यापार का अतिरिक्त मार्ग उपलब्ध होगा, जिससे भारत और ऑस्ट्रिया के व्यापारिक संबंधों को और मज़बूती मिलेगी. ये जितने भी घटनाक्रम हैं, आने वाले दिनों में इनसे प्रौद्योगिकी, टिकाऊ विकास और व्यापार के क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच पारस्परिक सहयोग के बेशुमार अवसर उपलब्ध होंगे, जिससे दोनों देशों को भविष्य में ज़बरदस्त लाभ हो सकता है.

 

इस प्रकार से देखें, तो भारत और ऑस्ट्रिया अपने-अपने रणनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए द्विपक्षीय संबंधों को सशक्त करने में जुटे हुए हैं. भारत की बात करें, तो वो विश्व के पश्चिमी और पूर्वी समूहों में शामिल राष्ट्रों के साथ अपने रिश्तों को बरक़रार रखने और उन्हें मज़बूती देने की कोशिश कर रहा है, ताकि खुद को वर्तमान भू-राजनीतिक वातावरण में एक विश्वसनीय मध्यस्थ राष्ट्र के तौर पर स्थापित कर सके. वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रिया, जो कि एक निर्यात पर निर्भर देश है, कई वजहों से अपने अंतर्राष्ट्रीय रिश्तों में विविधता लाना चाहता है. विशेष रूप से भारत जैसे एक विशाल और तेज़ी से आगे बढ़ रहे राष्ट्र के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना चाहता है और अलग-अलग क्षेत्रों में सहयोग बनाना चाहता है. ज़ाहिर तौर पर ऑस्ट्रिया को यूरोप में एक तटस्थ राष्ट्र समझा जाता है. ऑस्ट्रिया के चांसलर कार्ल नेहमर ने यूक्रेन पर रूस द्वारा आक्रमण किए जाने के बाद मास्को से अपने राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देने के मकसद से वहां की यात्रा की थी, इसके बावज़ूद यूरोप में ऑस्ट्रिया की एक निष्पक्ष देश के रूप में मान्यता है और ऑस्ट्रिया में भारत के भू-राजनीतिक एवं भू-आर्थिक दबदबे का भी कोई ख़ास प्रभाव नहीं दिखाई देता है. इसलिए, अगर ऑस्ट्रिया की ओर से भारत से साथ अपने रिश्तों को विस्तार दिया जाता है, तो इससे निश्चित तौर पर आर्थिक एवं तकनीकी सेक्टर में तमाम अवसरों का मार्ग प्रशस्त होगा. भारत के साथ ऑस्ट्रिया की यह नज़दीकी कहीं न कहीं आर्थिक प्रगति एवं नवाचार को बढ़ावा देने वाली सिद्ध होगी और यह भारत के राष्ट्रीय हितों के भी अनुकूल है. कुल मिलाकर, आपसी संबंधों में विविधिता लाने और उन्हें मज़बूती प्रदान करने से भारत और ऑस्ट्रिया दोनों को ही फायदा होगा. हालांकि, अगर तुलनात्मक रूप से देखें तो, जिस प्रकार से ऑस्ट्रिया की अर्थव्यवस्था निर्यात पर अधिक निर्भर है और वह वैश्विक भू-राजनीति व भू-आर्थिक परिदृश्य में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना चाहता है, या कहा जाए कि कूटनीतिक एवं आर्थिक तौर अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है, उसमें ऑस्ट्रिया को भारत के साथ अपने रिश्तों को सशक्त करने की ज़रूरत ज़्यादा है.


वेलिना चाकारोवा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की विजिटिंग फेलो हैं.

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