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Published on Apr 25, 2025 Updated 0 Hours ago

जलवायु परिवर्तन और खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में आने वाली बाधाओं जैसी चुनौतियों के बीच भारत और यूएई ने खाद्य सुरक्षा में रणनीतिक सहयोग स्थापित करने की प्रतिबद्धता जताई है. दोनों देशों के बीच जो खाद्य सुरक्षा साझेदारी स्थापित की गई है, वह जहां महाद्वीपों में खेतों से बंदरगाहों तक सुगम खाद्य परिवहन सुनिश्चित करती है, वहीं नीतिगत सहयोग को भी सशक्त करती है.

भोजन की राह में साझेदारी: भारत और यूएई का साझा संकल्प

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दुनिया की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है और वर्ष 2050 तक वैश्विक जनसंख्या लगभग 9.7 बिलियन के आंकड़े के आसपास पहुंच जाएगी. ज़ाहिर है कि ऐसे में खाद्य वस्तुओं की मांग बढ़ेगी और इसके लिए न केवल खाद्य उत्पादन में बढ़ोतरी ज़रूरी होगी, बल्कि खाद्य वितरण सुनिश्चित करने के लिए भी काफ़ी कुछ करना होगा. दुनिया में लोगों को खाने-पीने की चीज़ें मिलने में दिक़्क़त होने लगी है. वर्ष 2023 के आंकड़ों के मुताबिक़ विश्व में 2.3 बिलियन लोगों को नियमित तौर पर भोजन उपलब्ध नहीं हो पा रहा था, यानी उन्हें मध्यम या गंभीर स्तर की खाद्य असुरक्षा से जूझ़ना पड़ रहा था. लोगों को नियमित भोजन की कमी साफ तौर पर बताती है कि सतत विकास लक्ष्य 2 में वर्ष 2030 तक भुखमरी को समाप्त करने या कहें सभी तक पोषण युक्त भोजन उपलब्ध कराने का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है, उसे हासिल करना बेहद मुश्किल है. अनुमान के मुताबिक़ वर्ष 2030 में लगभग 582 मिलियन लोग (कुल वैश्विक आबादी का 6.8 प्रतिशत) गंभीर रूप से कुपोषित होंगे. COVID-19 महामारी से पहले वर्ष 2030 तक कुपोषित लोंगो की संख्या का जो अनुमान जताया गया था, कुपोषित लोगों की संख्या उसकी तुलना में क़रीब 130 मिलियन अधिक होगी. इससे साफ ज़ाहिर होता है कि भुखमरी और कुपोषण को समाप्त करने का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है, दुनिया उसे हासिल करने से बहुत दूर है.

वर्ष 2022 के वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक के मुताबिक़ यूनाइटेड अरब अमीरात (UAE) 75.2 नंबर के साथ सूचकांक में 23वें स्थान पर है. निसंदेह तौर पर यूएई खाद्य सामर्थ्यता (89.8) यानी भोजन तक सुगम पहुंच और खाद्य उपलब्धता (78.5) के मामले में बेहतरीन है, लेकिन खाद्य गुणवत्ता और खाद्य सुरक्षा (63.7) में उसकी स्थिति ज़्यादा अच्छी नहीं है, यानी इस क्षेत्र में सुधार की गुंजाइश है. भारत की बात की जाए, तो वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक में भारत का स्कोर 58.9 है और सूचकांक में वह 68वें नंबर पर है. भारत खाद्य सामर्थ्यता (64.2), उपलब्धता (58.4) और खाद्य गुणवत्ता (47.0) के मामले में बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है और तमाम चुनौतियों से जूझ रहा है. हालांकि, भारत खाद्य स्थिरता यानी पर्यावरण अनुकूल खाद्य उत्पादन और जलवायु अनुकूलन के क्षेत्र में प्रयासरत है. खाद्य सुरक्षा सूचकांक में यूएई और भारत के बीच जो अंतर है, उससे साफ पता चलता है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक, बुनियादी ढांचे और नीतिगत स्तर पर काफ़ी असमानता है. यूएई ने खाद्य आयात, खाद्य भंडारण और खाद्य प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निवेश के मामले में कई क़दम उठाए हैं और इसने यूएई की खाद्य सुरक्षा को सशक्त करने का काम किया है. वहीं, भारत में ऐसा नही हैं. हालांकि, भारत खाद्यान्न का एक प्रमुख उत्पादक है, बावज़ूद इसके देश में ग़रीबी, बुनियादी ढांचे की कमी और ख़राब गुणवत्ता जैसी कई चुनौतियां हैं, जिनके चलते देश में व्यापक स्तर पर खाद्य असुरक्षा बनी हुई है.

खाद्य सुरक्षा सूचकांक में यूएई और भारत के बीच जो अंतर है, उससे साफ पता चलता है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक, बुनियादी ढांचे और नीतिगत स्तर पर काफ़ी असमानता है.

भारत और यूएई ने इन चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए आपस में हाथ मिलाया है. दोनों देशों ने कृषि व्यापार के विस्तार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संसाधनों के उपयोग के ज़रिए खाद्य सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को संबोधित करने के लिए रणनीतिक साझेदारी की है. भारत-यूएई-अफ्रीका कनेक्टिविटी फॉर फूड सिक्योरिटी के तहत खाद्य सुरक्षा में साझेदारी को मज़बूत किया जा रहा है. इसके ज़रिए कृषि व्यापार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और टिकाऊ संसाधन प्रबंधन के माध्यम से खाद्य सुरक्षा के लिए रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाया जा रहा है. ज़ाहिर है कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक है, जबकि अफ्रीका के पास प्राकृतिक संसाधनों का अकूत भंडार है, साथ ही उसकी उत्पादन क्षमता भी बहुत अधिक है. ऐसे में यह साझेदारी इन देशों को निकट भविष्य में वैश्विक खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिहाज़ से एक प्रमुख खिलाड़ी के तौर पर स्थापित करती है. यूएई इसके उलट दुनिया के शीर्ष 20 खाद्य आयातक देशों में से एक है. यूएई अपनी खाद्य वस्तुओं की 90 प्रतिशत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है. ऐसे में सभी क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक खाद्य प्रणालियों को सशक्त करने और क्षेत्रीय आर्थिक विकास को मज़बूती प्रदान करने के लिए यह त्रिपक्षीय सहयोग बेहद अहम बनकर उभरा है.

खेतों से बंदरगाहों तक: खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं की नए सिरे से स्थापना

खाद्यान्न के आयात पर निर्भर देशों को कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. इस दौरान यह भी पता चला कि आयात पर निर्भर देशों की दूसरे देशों की आपूर्ति श्रृंखलाओं पर कितनी अधिक निर्भरता है. यूएई की हालत तो इस मामले और भी ज़्यादा ख़राब है, क्योंकि उसे खाद्य आपूर्ति करने वाले देशों की संख्या बहुत सीमित है. इसकी वजह यह है कि खाद्यान्न की क़ीमत को लेकर होड़ बहुत ज़्यादा है. यूएई द्वारा किए जाने वाले अनाज आयात से जुड़ी एक स्टडी के मुताबिक़ वर्ष 2012 और 2020 के बीच उसे आपूर्ति में कोई ख़ास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था, लेकिन वर्ष 2017 के बाद से गेहूं के आयात के मामले में उसे भारी दिक़्क़तों से जूझना पड़ रहा है. देखा जाए तो यूएई की इस परेशानी की प्रमुख वजह उसकी गेहूं के आयात के मामले में उन देशों पर अत्यधिक निर्भरता है, जो उच्च जोख़िम वाले हैं. ज़ाहिर है कि यूएई गेहूं आयात के मामले में रूस पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. वर्ष 2017 में यूएई द्वारा आयात किए जाने वाले कुल गेहूं में रूस की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2019 में बढ़कर 52 प्रतिशत हो गई. इस दौरान यूएई को खाद्यान्न आपूर्ति करने वाले अधिक स्थिर और विश्वसनीय देशों, जैसे कि ऑस्ट्रेलिया, रोमानिया और भारत की तुलना में रूस की भागीदारी बढ़ती गई. यूएई की अनाज की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रूस पर बढ़ती निर्भरता के साथ ही आपूर्ति स्रोतों में विविधता नहीं होने की वजह से उसके सामने दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा को लेकर व्यापक चुनौतियां खड़ी हो गई हैं.

इसके अलावा, लगातार हो रही तापमान में बढ़ोतरी, वर्षा के तरीक़े में हो रहे बदलाव एवं मौसम में हो रहे व्यापक परिवर्तनों की वजह से आने वाली आपदाओं के कारण भी खाद्य सुरक्षा का संकट पैदा हो रहा है. मौसम में होने वाले यह उतार-चढ़ाव ख़ास तौर पर विकासशील देशों में खेती-बाड़ी के कार्यों और पशुधन उत्पादन यानी पालतू पशुओं से मिलने वाले दूध, मांस, अंडे आदि खाद्य पदार्थों के उत्पादन पर बुरा असर डालते हैं. यूएई के पास सिर्फ़ 0.7 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि है और इस वजह से वह खाद्य वस्तुओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से आयात पर ही निर्भर है. यही कारण है कि यूएई खाद्य असुरक्षा के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील देश है. इतना ही नहीं, यूएई में पानी की कमी, भूजल के स्तर में गिरावट यानी भूजल संकट और समुद्र के बढ़ते जल स्तर जैसे कई दूसरे कारण भी खाद्य असुरक्षा से संबंधित ख़तरों को बढ़ाते हैं. इन्हीं ख़तरों का सामना करने और इनका मुकम्मल समाधान खोजने के लिए यूएई राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा रणनीत 2051 बनाई गई है. इस रणनीति का मकसद नई-नई तकनीक़ों को अपनाकर और स्थानीय स्तर पर खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देकर टिकाऊ खाद्य उत्पादन हासिल करना है.

खाने की चीज़ों की बर्बादी रोकने और उन्हें ख़राब होने से बचाने में कोल्ड स्टोरेज की भूमिका भी बहुत अहम होती है. भारत में कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की बेहद कमी है, इस वजह से देश में ज़ल्दी ख़राब होने वाले खाद्य पदार्थों की बहुत बर्बादी होती है. जहां तक यूएई की बात है, तो ज़ाहिर तौर पर वहां भी दूसरे देशों से बड़ी तादाद में आयात किए जाने वाले खाद्य पदार्थों को संभालने, उचित भंडारण करने और उनकी गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए हाई-टेक कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की बहुत अधिक ज़रूरत है. उदाहरण के तौर पर हाल ही में डीपी वर्ल्ड और आरएसए कोल्ड चेन ने इस क्षेत्र में सहयोग किया है और जेबेल अली में एक अत्याधुनिक कोल्ड स्टोरेज हब बनाया जा रहा है. इस कोल्ड स्टोरेज हब में वर्ष 2025 तक 40,000 नए पैलेट पोजिशन उपलब्ध होंगे, यानी गोदाम या भंडारण क्षेत्र में पैलेट को रखने के लिए विशिष्ट स्थान उपलब्ध होंगे. ज़ाहिर है कि इस तरह के प्रयासों से यूएई में खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में खाद्य पदार्थों की बर्बादी रोकने में काफ़ी मदद मिलेगी. जब खाद्य रसद परिवहन, भंडारण और आपूर्ति से जुड़ी सुविधाएं यानी खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाएं बेहतर होती हैं, तो उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक खाद्य पदार्थ पहुंचाने में आसानी होती है और इससे खाद्य सुरक्षा भी मज़बूत होती है.

यूएई की अनाज की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रूस पर बढ़ती निर्भरता के साथ ही आपूर्ति स्रोतों में विविधता नहीं होने की वजह से उसके सामने दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा को लेकर व्यापक चुनौतियां खड़ी हो गई हैं.

यूनाइटेड अरब अमीरात ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के मकसद से वर्ष 2022 में पूरे भारत में एकीकृत फूड पार्क्स की एक श्रृंखला विकसित करने के लिए 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश का ऐलान किया था. भारत में फूड पार्क स्थापित करने की यूएई की यह पहल भारत, इजराइल, यूएई और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच बनाए गए I2U2 समूह सहयोग का हिस्सा है. I2U2 सहयोग का मकसद कृषि और खाद्य प्रसंस्करण में साझा निवेश के ज़रिए खाद्य सुरक्षा संकट का मिलकर समाधान तलाशना है. इसके अलावा, यूएई ने एग्रीओटा नाम का एक ई-मार्केट प्लेटफार्म भी शुरू किया है, जिसे दुबई मल्टी कमोडिटी सेंटर द्वारा लॉन्च किया गया है. एग्रीओटा एक कृषि-व्यापार और कमोडिटी ई-मार्केट प्लेटफॉर्म है. एग्रीओटा ई-मार्केटप्लेस भारत के किसानों को सीधे यूएई के फूड इकोसिस्टम से जोड़ता है. यानी यह प्लेटफॉर्म भारतीय किसानों को यूआई के बाज़ारों तक सीधी और निर्बाध पहुंच प्रदान करता है. ज़ाहिर है कि इससे न केवल खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं की क्षमता में इज़ाफा होता है, बल्कि पारदर्शिता भी बढ़ती है.

इसके अलावा, वर्ष 2022 में भारत और यूएई ने 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के फूड सिक्योरिटी कॉरिडोर यानी खाद्य सुरक्षा गलियारे से जुड़ा समझौता भी किया था. यह समझौता भारत और यूएई के बीच खाद्य व्यापार को बढ़ाने की दिशा में एक उल्लेखनीय क़दम है. इस समझौते से दोनों देशों के बीच वर्ष 2025 तक खाद्य व्यापार तीन गुना होने की उम्मीद है. इस खाद्य सुरक्षा गलियारे को बनाने का उद्देश्य भारत के खेतों और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को सीधे यूएई के बंदरगाहों से जोड़ना है, यानी इसके ज़रिए खाद्य व्यापार के मार्गों को विकसित किया जाएगा और दोनों देशों के बीच खाद्य उत्पादों की सुगम आवाजाही सुनिश्चित की जाएगी. कहने का मतलब है कि भारत से यूएई को खाद्य उत्पादों के परिवहन के लिए बेहतर लॉजिस्टिक सुविधाओं की ज़रूरत है और यह गलियारा इस आवश्यकता को पूरा करेगा. इस दिशा में जहां भारत अपने लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यूएई में नए बंदरगाह और भंडारण सुविधाएं विकसित की जा रही हैं. ज़ाहिर है कि मिडिल ईस्ट की खाद्य सुरक्षा के लिए इस प्रकार के कॉरिडोर बेहद अहम साबित हो सकते हैं. इनके ज़रिए न सिर्फ़ खाद्य वस्तुओं के परिवहन के नए और उन्नत तरीक़ों को अपनाया जा सकता है, बल्कि खाद्य पदार्थों की आवाजाही की रियल टाइम ट्रैकिंग की जा सकती है और डिजिटल आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन भी सुनिश्चित किया जा सकता है.

खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को सशक्त करने एवं निर्बाध खाद्य आपूर्ति के लिए भारत और यूएई के बीच जो रणनीतिक सहयोग स्थापित किया गया है, वो देखा जाए तो वैश्विक खाद्य सुरक्षा हासिल करने की दिशा में एक दूरदर्शी नज़रिए का बेहतरीन उदाहरण है. ज़ाहिर है कि भारत और यूएई के बीच यह रणनीतिक पहल न केवल पारस्परिक व्यापार, प्रौद्योगिकी और टिकाऊ संसाधन प्रबंधन का भरपूर फायदा उठाकर खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करने का काम करती है, बल्कि खाद्य पदार्थों के परिवहन के दौरान उनकी बर्बादी को रोकती और ज़रूरतमंद लोगों तक पौष्टिक खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित करती है. हालांकि, दोनों के बीच इस रणनीतिक सहयोग में जलवायु परिवर्तन और लॉजिस्टिक से जुड़ी समस्याएं व्यापक चुनौतियां पेश करती हैं, अगर इंफ्रास्ट्रक्चर व इनोवेशन के लिए ज़रूरी निवेश किया जाए और नीतिगत सहयोग पर ध्यान दिया जाए, तो न सिर्फ़ इन चुनौतियों से निपटा जा सकता है, बल्कि भारत और यूएई की यह खाद्य सुरक्षा साझेदारी एक मिसाल बन सकती है. इतना ही नहीं, दोनों देशों की यह साझेदारी भविष्य के वैश्विक खाद्य सुरक्षा तंत्र के लिए एक मज़बूत नींव का भी काम कर सकती है. दुनिया तेज़ी से वर्ष 2050 की ओर बढ़ रही है, जब वैश्विक आबादी बहुत ज़्यादा हो चुकी होगी और खाद्य सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बनकर उभरेगी. ऐसे में खाद्य सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए और वर्ष 2030 तक भुखमरी पर काबू पाने एवं सभी तक पोषण युक्त भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत और यूएई के बीच बने रणनीतिक खाद्य सहयोग जैसी साझेदारियां बेहद ज़रूरी हो जाएंगी.


 

सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी (CNED) में वर्ल्ड इकोनॉमिक्स एंड सस्टेनेबिलिटी के फेलो और प्रमुख हैं.

शोभा सूरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में हेल्थ इनीशिएटिव की सीनियर फेलो हैं.

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Authors

Soumya Bhowmick

Soumya Bhowmick

Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...

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Shoba Suri

Shoba Suri

Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...

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