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रूस के कज़ान शहर में 22-24 अक्टूबर तक आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान इस संगठन ने अपने विकास का एक नया चरण पार किया. पांच नए देश- मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई)पहली बार ब्रिक्स की शीर्ष स्तरीय बैठक में शामिल हुए. कज़ान शिखर सम्मेलन की भव्यता को और ऊंचे स्तर पर ले जाने का काम किया ब्रिक्स के आउटरीच कार्यक्रम ने. इस सम्मेलन के दौरान रूस ना सिर्फ संयुक्त राष्ट्र महासचिव को बल्कि क्षेत्रीय संगठनों के प्रमुखों समेत लगभग 40 देशों के अधिकारियों को एक साथ लाने में कामयाब रहा. हालांकि, ये सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या इसका मतलब ब्रिक्स का विकास है?
ब्रिक्स की भूमिका
अपने अस्तित्व के बाद से ही ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह (BRICS) और इसके महत्व को लेकर अलग-अलग तरह की राय जताई जाती रही. ब्रिक्स को देखने का एक दृष्टिकोण ये है कि वैश्विक वित्तीय संस्थानों में सुधार के प्रयासों में एकजुट गैर-पश्चिमी शक्तियों की ये एक महत्वपूर्ण पहल है. इसके सदस्य देशों की आर्थिक क्षमताओं में अपार संभावनाएं हैं. ब्रिक्स के 2 सदस्य देश, भारत और चीन आने वाले दिनों में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर हावी होने के लिए तैयार हैं. ऐसे में ब्रिक्स को एक ऐसे मंच के रूप में देखा जाता है, जिसे गंभीरता से लिया जाना ज़रूरी है. वैसे इसे देखने का एक नज़रिया ये भी है कि ब्रिक्स की प्रभावशीलता अब तक सीमित रही है. हालांकि, पांच देशों ने ब्रिक्स की स्थापना कर कई कार्य समूहों और विनिमय तंत्रों के साथ एक संस्थागत मंच बनाया है. इसके साथ ही 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' की स्थापना भी की गई है, लेकिन इन सब चर्चाओं का कुल प्रभाव मामूली ही रहा है. एक साझा रणनीति तैयार करने में सामंजस्य की कमी, बैठकों की संख्या और उनके परिणामों के बीच कम अनुपात की वजह से कुछ पर्यवेक्षकों ने कहा कि ब्रिक्स "बातचीत करने का मंच" (टॉक शॉप) से ज़्यादा कुछ नहीं है.
ब्रिक्स के 2 सदस्य देश, भारत और चीन आने वाले दिनों में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर हावी होने के लिए तैयार हैं. ऐसे में ब्रिक्स को एक ऐसे मंच के रूप में देखा जाता है, जिसे गंभीरता से लिया जाना ज़रूरी है.
अब ऐसा लगता है कि इस बार ब्रिक्स के विस्तार का मुद्दा कज़ान शिखर सम्मेलन के बाकी सभी एजेंडों पर भारी पड़ गया. पश्चिमी और ब्रिक्स देशों, दोनों के मीडिया ने अपना ज़्यादा ध्यान इसी मुद्दे पर केंद्रित किया कि इस संगठन में कितना भौगोलिक प्रतिनिधित्व है. पश्चिमी मीडिया में इसी बात पर चर्चा हुई कि क्या इस सम्मेलन ने ये दिखाया कि रूस और उसके राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन राजनयिक तौर पर अलग-थलग नहीं थे.
लेकिन अगर कोई इस ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल शीर्ष नेताओं की मौजूदगी से आगे देखना चाहे तो इस बैठक से तीन निष्कर्ष निकलते हैं. पिछले शिखर सम्मेलनों से इस बार जो एक चीज़ उल्लेखनीय तौर पर अलग रही, वो ये है कि रूस, ब्रिक्स की अंतिम घोषणा में प्रतिबंधों के मुद्दे को आगे बढ़ाने में सफल रहा. ये बात सभी जानते हैं कि भारत पिछले एक दशक से रूस के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दस्तावेज़ों में इसका उल्लेख करने का अनिच्छुक रहा है. हालांकि, चीन भी रूस को प्रतिबंधों से बचाने में मदद करने में सक्रिय रहा है, लेकिन उसने भी इस विषय को ब्रिक्स में सार्वजनिक रूप से उठाने से रोक दिया. 2022 के बीजिंग घोषणा पत्र में प्रतिबंधों का कोई संदर्भ नहीं दिया गया. 2023 के जोहान्सबर्ग संयुक्त वक्तव्य में भी इसके सिर्फ पारित होने का उल्लेख भर किया गया. ऐसा करते हुए उसमें कृषि व्यापार पर उनके हानिकारक प्रभाव का जिक्र किया. इसके बिल्कुल विपरीत, कज़ान घोषणा में दो ऐसे अंश शामिल किए गए हैं जिनमें "विश्व अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय व्यापार और सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने पर अवैध प्रतिबंधों" की निंदा की गई है. इसमें कहा गया है कि "एकतरफ़ा जबरदस्ती उपायों" और "एकतरफा आर्थिक और माध्यमिक प्रतिबंध अंतरराष्ट्रीय कानून के विपरीत हैं". ब्रिक्स घोषणा में "इन प्रतिबंधों के उन्मूलन के लिए साझा आह्वान" भी किया गया है.
कज़ान सम्मेलन
इन देशों का ये रूख़ पहले से ही सतर्क ब्रिक्स सदस्यों के दृष्टिकोण में बदलाव को प्रतिबिंबित कर सकता है. ब्रिक्स देशों में चल रही कई प्रमुख परियोजनाओं (जैसे, चाबहार बंदरगाह) पर प्रतिबंधों का प्रभाव पड़ रहा है. अब तक इसकी खुलकर आलोचना ने की जा रही थी लेकिन ब्रिक्स अब इन प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ अधिक मुखर सार्वजनिक रुख़ की ओर बढ़ रहा है. समूह के नए सदस्य के रूप में ईरान के साथ, और बेलारूस और क्यूबा को भागीदार देश का दर्जा प्राप्त करने के साथ ही प्रतिबंधित देशों की धुरी का विस्तार हो रहा है. अब प्रतिबंध का ये मुद्दा ब्रिक्स प्लस एजेंडे पर हावी होता रहेगा. हालांकि, ज़्यादातर ब्रिक्स सदस्य अभी भी अत्यधिक वैश्वीकृत हैं और पश्चिमी वित्तीय बाज़ारों में शामिल हैं. ऐसे में वो बाकी ब्रिक्स (मुख्य रूप से, रूस और ईरान) पर लगाए गए किसी भी प्रतिबंध का पालन करते रहेंगे. चीन, भारत, मलेशिया, तुर्की, थाईलैंड, स्विट्जरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य जैसे देशों की लगभग 400 संस्थाओं और व्यक्तियों पर अमेरिका ने पिछले कुछ समय में प्रतिबंध लगाया है. अमेरिका का ये फैसला "इन देशों की सरकारों और निजी क्षेत्रों दोनों के लिए एक गंभीर संदेश" है, जो रूस के खिलाफ प्रतिबंधों से बचने के लिए वाशिंगटन की प्रतिबद्धता को ज़ाहिर करता है.
कज़ान सम्मेलन को लेकर दूसरा निष्कर्ष ये है कि ब्रिक्स देश भू-राजनीतिक मुद्दों पर अपनी राष्ट्रीय स्थिति को लेकर साझा रुख़ बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
कज़ान सम्मेलन को लेकर दूसरा निष्कर्ष ये है कि ब्रिक्स देश भू-राजनीतिक मुद्दों पर अपनी राष्ट्रीय स्थिति को लेकर साझा रुख़ बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इज़रायल-हमास संघर्ष और लाल सागर में हौथी विद्रोहियों के हमलों जैसे मामलों पर सदस्यों के बीच अलग-अलग रुख़ है. इसके बावजूद बैठक के बाद जारी किए गए साझा बयान में पश्चिम एशिया की स्थिति सुरक्षा संबंधी मुख्य विषय थी. उदाहरण के लिए, इज़रायली कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ कड़ी भाषा का इस्तेमाल भारत सहित सभी सदस्य देशों की स्थिति को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं करती है. इसके विपरीत, इस घोषणा पत्र में रूस-यूक्रेन युद्ध का उल्लेख संक्षेप में किया गया है. ये दर्शाता है कि मेजबान के रूप में मास्को ने इस मुद्दे पर सदस्य देशों की राय में अंतराल को कम करने के लिए कदम उठाए थे.
ब्रिक्स के एजेंडे को लेकर रूस अपने इरादों के बारे में मिले-जुले संकेत भेज रहा है. हालांकि रूस अपने कुछ सहयोगियों की इस भावना से सहमत दिख रहा है कि ब्रिक्स को पश्चिमी देश विरोधी क्लब नहीं बनना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही ये भी सच है कि मास्को भी इस मंच का इस्तेमाल पश्चिम देशों और ग्लोबल साउथ के बीच एक दरार डालने के लिए कर रहा है. रूस, पश्चिमी राजधानियों को "ज़बरदस्त संरक्षणवाद, मुद्रा और शेयर बाजारों में हेरफेर, लोकतंत्र, मानवाधिकारों और जलवायु परिवर्तन के एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए बहुत ज़्यादा विदेशी प्रभाव" के इस्तेमाल के लिए लताड़ भी लगा रहा है. हालांकि सरसरी तौर पर देखने से इनमें से कुछ मुद्दे भारत समेत कुछ और सहयोगी देशों के रुख़ के साथ मेल खा सकते हैं लेकिन व्यावहारिक रूप में देखें को रूस खुद को अमेरिका और यूरोप के साथ एक पूर्ण विकसित टकराव में पाता है. ऐसे में पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ रूस की बयानबाजी अन्य ब्रिक्स सदस्यों (ईरान अपवाद हो सकता है) की तुलना में काफ़ी अलग मानी जा सकती है.
कज़ान शिखर सम्मेलन का तीसरा निष्कर्ष ये है कि रूस की प्रमुख आर्थिक पहलों को लागू करने में लंबा समय लगेगा, वो भी तब जबकि इंटरबैंक सहयोग बहुत गति प्राप्त कर रहा है. ब्रिक्स क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट इनिशिएटिव (बीसीबीपीआई) के रूप में एक नया बहुराष्ट्रीय मंच लॉन्च करने की योजना है. इसमें एक वित्तीय संदेश घटक शामिल होगा, जो राष्ट्रीय या डिजिटल मुद्राओं द्वारा समर्थित टोकन के माध्यम से निपटान के संचालन की अनुमति देगा. दूसरे सदस्य देशों से इसे अभी तक सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है. इस नए समाधान के साथ आगे बढ़ने के लिए रूस के भागीदारों की अनिच्छा का एक महत्वपूर्ण संकेत तब मिला, जब मॉस्को में ब्रिक्स वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक में कनिष्ठ अधिकारियों को भेजने का निर्णय लिया गया. ब्रिक्स के सदस्यों देशों के दृष्टिकोण में अंतर स्पष्ट है. रूस एक वैकल्पिक भुगतान प्रणाली के निर्माण को मौजूदा वक्त की ज़रूरत मानता है, लेकिन अन्य सदस्य देश अमेरिकी डॉलर और सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (स्विफ्ट) से दूर जाने के लिए अधिक सतर्क हैं. एक हालांकि इसी श्रृंखला में एक कड़ी की तरह, ब्रिक्स अनाज विनिमय का विकास और इसके बाद अन्य वस्तुओं के लिए एक बड़े व्यापार मंच की स्थापना एक दीर्घकालिक संभावना प्रतीत होता है, लेकिन इसकी सफलता भी मुद्रा निपटान और बीमा मुद्दों पर सहमत होने की क्षमता पर निर्भर करेगी.
ब्रिक्स के लिए शब्दों को अमल में लाना एक चुनौती बना हुआ है. कज़ान शिखर सम्मेलन ने संकेत दिया है कि ब्रिक्स को एक नए 'टॉक मॉल' में बदल दिया गया है, जहां महत्वपूर्ण भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक मुद्दों पर विभिन्न देशों के प्रतिनिधि अपनी राय का आदान-प्रदान तो करते हैं, लेकिन ये ज़रूरी नहीं कि इसके कुछ ठोस नतीजे निकलें.
निष्कर्ष
ब्रिक्स के सामने चुनौतियां स्पष्ट हैं. इससे पहले कि सदस्य देश एकजुट होकर कार्य कर सकें, उन्हें अपनी स्थिति को संगठन के उद्देश्यों के साथ संरेखित करना होगा ये एक ऐसा काम है, जो ब्रिक्स में नए देशों को जोड़ने के साथ और ज़्यादा मुश्किल हो जाता है. अलग-अलग एजेंडे और पहचान के साथ ज़्यादा भागीदार देशों को संगठन में शामिल करने से ब्रिक्स का आकार और महत्वाकांक्षा दोनों बढ़ गए हैं. ऐसे में ब्रिक्स के लिए शब्दों को अमल में लाना एक चुनौती बना हुआ है. कज़ान शिखर सम्मेलन ने संकेत दिया है कि ब्रिक्स को एक नए 'टॉक मॉल' में बदल दिया गया है, जहां महत्वपूर्ण भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक मुद्दों पर विभिन्न देशों के प्रतिनिधि अपनी राय का आदान-प्रदान तो करते हैं, लेकिन ये ज़रूरी नहीं कि इसके कुछ ठोस नतीजे निकलें.
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