Author : Ritika Passi

Published on Jun 29, 2020 Updated 0 Hours ago

चीन इस हालात से निपटकर साफ़-सुथरे बैलेंस शीट के साथ बाहर आता है या वो पहले से कर्ज़ में दबे अपने सार्वजनिक क्षेत्र का बोझ बढ़ाता है, ये नतीजा BRI को जारी रखने को लेकर चीन की वित्तीय सेहत के बारे में बताएगा.

BRI और कोविड-19: कहानी दुनिया में छाए दो विपत्तियों की

कोविड की वजह से दुनिया का एक-दूसरे से दूर जाना, शक्ति का संघर्ष और राजनीतिक संग्राम आने वाले समय में इसके नतीजों के बारे में एक चर्चा को बढ़ावा दे रहा है. जिस तरह दुनिया में चीन की भूमिका और दम-खम में तेज़ी से बदलाव आया है तो ये आने वाले वक़्त में वैश्विक नेतृत्व की तरफ़ चीन को कैसे आगे ले जाता है?

दुनिया के दूसरे देशों में असर बढ़ाने के लिए चीन की कोशिश में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI)  एक अहम हिस्सा है. लेकिन क्वॉरंटीन और बचाव के उपायों की वजह से इसमें आश्चर्यजनक रूप से देरी हुई है. आने वाले समय में मंदी की आशंका जताई जा रही है क्योंकि ज़्यादातर देशों में लॉकडाउन के हालात हैं और भविष्य को लेकर अनिश्चितता है. लेकिन इसके बावजूद चीन की सरकार वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास में इंजन के तौर पर BRI सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए “हमेशा की तरह विश्वास से भरी और दृढ़ निश्चयी” लग रही है.

जब दुनियाभर के देश कोरोना वायरस का सामना करते हुए अपने खुलेपन और लचीलेपन के स्तर पर फिर से विचार कर रहे हैं, ऐसे में BRI सबसे कम आकर्षक दिख रहा है क्योंकि इसका मतलब है इंफ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी के लिए चीन के कर्ज पर निर्भर रहना

लेकिन कोविड-19 के नतीजों के तौर पर BRI के आगे बढ़ने में तत्काल दो संकट खड़े हो गए हैं. BRI का मक़सद वैश्वीकरण को फिर से खड़ा करना और आपसी फ़ायदे के ज़रिए टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना था लेकिन ये दो संकट “वैश्विक विकास की रणनीति” में BRI की गिरती विश्वसनीयता के बारे में बताते हैं.

भरोसे का संकट

ये महामारी वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन की भूमिका के हिसाब-किताब के समय के रूप में तब्दील होती जा रही है. वो भी ख़ासतौर पर दो क्षेत्रों में: सप्लाई चेन पर उसका दबदबा और नियंत्रण और विश्व के सबसे बड़े आधिकारिक कर्ज़दाता के तौर पर उसका दर्जा. वैश्विक स्वास्थ्य संकट के जवाब के तौर पर दुनिया भर के देश आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्वतंत्रता की अपील कर रहे हैं. उत्पादक पिछले कई सालों से फैक्ट्री चीन के बाहर ले जा रहे हैं. महामारी के बाद इसमें और तेज़ी आई है. संकट का सामना कर रहे देश चीन से कर्ज़ में राहत की मांग कर रहे हैं.

दोनों हालात में BRI फंस गई है. चीन BRI की शर्तों (अर्थात चीन का पैसा, चीन के ठेकेदार, चीन के कामगार, उच्च ब्याज दर, व्यापार कनेक्टिविटी जो चीन के लिए निर्यात का बाज़ार तैयार करता है)  की वजह से पहले से इसमें शामिल देशों के ग़ुस्से का सामना कर रहा है. ये शर्तें चीन पर निर्भरता बढ़ाती हैं और चीन के राजनीतिक असर और दखल को जन्म देती हैं.

BRI उन देशों के लिए कर्ज़ का जाल भी है. इसकी वजह से चीन का मक़सद शंका पैदा करता है. वास्तव में जो देश कर्ज़ माफ़ करने का अनुरोध कर रहे हैं वो सभी BRI में शामिल हैं. BRI की कामयाबी पर उसकी नाकामी का ग्रहण लगने के साथ ही सभी के लिए फ़ायदे का दावा खोखला साबित हो रहा है. राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताएं और संप्रभुता का नुक़सान उन देशों में ग़ुस्सा बढ़ा रहा है.

इससे भी बढ़कर कोरोना वायरस महामारी के राजनीतिक और आर्थिक नतीजे “सत्ता की रणनीति” के तौर पर BRI और पैठ बढ़ाने के लिए BRI के कार्यान्वयन में सुधार की ज़रूरत के बीच के तनाव को और बढ़ाएगा. सत्ता का ऐसा मॉडल जो दूसरे मक़सदों के मुक़ाबले नियंत्रण- उदाहरण के तौर पर द्विपक्षीय सौदों, अपारदर्शी ख़रीदारी की प्रक्रिया और कर्ज की शर्तें, अपने बैंकों और सरकारी कंपनियों पर निर्भरता- को तरजीह देता है, वो BRI के नाम पर फैलाए जा रहे “सामूहिक विकास” के झूठ से मेल नहीं खाता. त्रिकोणीय सहयोग, बहुपक्षीय विकास बैंक का विकल्प और प्राइवेट सेक्टर को शामिल करने पर विचार किया गया है. पश्चिमी बहुपक्षीय अधिकारियों के साथ अनौपचारिक विचार-विमर्श के उदाहरण भी हैं. दूसरे बेल्ट एंड रोड फोरम में शी जिनपिंग ने दुनिया के सामने ज़्यादा पारदर्शी, टिकाऊ और सलाह लेने वाले BRI को भी पेश किया.

चीन फिलहाल बहुपक्षवाद और नेतृत्व- दोनों पर और ज़्यादा पक्के इरादे के साथ काम कर रहा है. लेकिन अपने ही घर में महामारी से हार का मतलब है चीन कम्युनिस्ट पार्टी की वैधता को जारी रखना उसकी प्राथमिकता है. दुनिया भर में चीन की बढ़ी हुई दृढ़ता के लिए BRI का आगे बढ़ना ज़रूरी है. चीन डिजिटल सिल्क रोड में तेज़ी लाने और हेल्थ सिल्क रोड को फिर से ज़िंदा करने की योजना में लगा हुआ है. पहली परियोजना चीन केंद्रित वैश्विक सूचना नेटवर्क को आगे बढ़ाने के साथ-साथ साझेदार देशों में अलग तरह का जोखिम बढ़ाती है. दूसरी परियोजना चीन की छवि सुधारने और ख़ुद को ‘परोपकारी’ दिखाने के लिए है.

संक्षेप में कहें तो मौजूदा महामारी का असर विकास के मॉडल के तौर पर BRI की विश्वसनीयता की चुनौती को बढ़ाता है. 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट के मुक़ाबले दुनिया के सामने बदतर मंदी को देखते हुए साझेदार देशों में “विविध, स्वतंत्र, संतुलित और टिकाऊ विकास” के दावों को पूरा करना और भी महत्वपूर्ण बन गया है.

BRI कोई वित्तीय मदद नहीं है बल्कि निवेश की एक पहल है जो अपने निवेश पर फ़ायदा चाहती है: “हमें कम-से-कम मूलधन और मामूली ब्याज हासिल करने की ज़रूरत है.“ लेकिन इसके बावजूद OECD के आंकड़ों के मुताबिक़ 2018 की पहली छमाही में चीन का नॉन-परफॉर्मिंग एसेट 101.8 अरब डॉलर पहुंच गया है

निस्सन्देह रूप से जब दुनियाभर के देश कोरोना वायरस का सामना करते हुए अपने खुलेपन और लचीलेपन के स्तर पर फिर से विचार कर रहे हैं, ऐसे में BRI सबसे कम आकर्षक दिख रहा है क्योंकि इसका मतलब है इंफ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी के लिए चीन के कर्ज पर निर्भर रहना.

व्यावहारिकता का संकट

“BRI की असली परीक्षा हमेशा उस वक़्त होनी थी जब वैश्विक अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल मंडराने लगे“. कोविड-19 महामारी ने ऐसी ही स्थिति बना दी है. चीन के संविधान में जगह बना चुकी इस परियोजना को लेकर मौजूदा चिंताएं बढ़ गई हैं. चिंता इस बात की कि वो लंबे वक़्त तक इस परियोजना का बोझ उठा पाएगा या नहीं.

BRI कोई वित्तीय मदद नहीं है बल्कि निवेश की एक पहल है जो अपने निवेश पर फ़ायदा चाहती है: “हमें कम-से-कम मूलधन और मामूली ब्याज हासिल करने की ज़रूरत है.“ लेकिन इसके बावजूद OECD के आंकड़ों के मुताबिक़ 2018 की पहली छमाही में चीन का नॉन-परफॉर्मिंग एसेट 101.8 अरब डॉलर पहुंच गया है. ये बाद में और बढ़ गया होगा. 2013 से BRI के नाम पर चीन के कुल कर्ज़ का ये अच्छा-ख़ासा हिस्सा है. अनुमान के मुताबिक़ चीन ने 450 से 600 अरब डॉलर के बीच कर्ज़ दिया है.

2015 में जहां BRI के नाम पर कर्ज़ चरम पर था वहीं पिछले साल चीन के कर्ज़ देने वाले चारों सबसे बड़े बैंकों ने एक भी इंफ्रास्ट्रक्चर कर्ज नहीं दिया है. इसकी वजह BRI में शामिल देशों के ग़ुस्से के साथ-साथ जोखिम के लिए चीन का तैयार नहीं होना भी है. कई प्रोजेक्ट रद्द कर दिए गए हैं, उनकी शर्तों पर फिर से बातचीत हुई है, उनको छोटा कर दिया गया है, देरी हुई है या उनको रोक दिया गया है.

अंधाधुंध तरीक़े से कर्ज़ देने का चीन का तरीक़ा टिकाऊ नहीं है. ध्यान देने की बात है कि जब BRI का निवेश धीमा हो रहा है तब भी ये प्रोजेक्ट लगातार अपने पांव पसार रहा है. चीन ने हाल के वर्षों में BRI की फंडिंग कुछ कम कर दी है. गैर-चीनी बैंकों और वित्तीय संस्थानों को साथ लेकर चलने की रफ़्तार ने भी ज़ोर पकड़ा है.

चीन के बैंकर्स और रिसचर्स इस बात को समझ चुके हैं कि BRI में शामिल देश प्रोजेक्ट की फंडिंग या कर्ज़ चुकाने में सक्षम नहीं हैं. कोविड-19 महामारी के बाद उन्हें मंदी का डर सता रहा है और BRI में शामिल कई देश प्रोजेक्ट का कर्ज़ चुकाने की हालत में नहीं हैं

लेकिन दूसरी तरफ़ ये सारी बातें काफ़ी देर से और छोटे पैमाने पर हुई हैं. निजी बातचीत में चीन के अधिकारियों ने माना है कि BRI नुक़सान में चलने वाला उपक्रम है. चीन के बैंकर्स और रिसचर्स इस बात को समझ चुके हैं कि BRI में शामिल देश प्रोजेक्ट की फंडिंग या कर्ज़ चुकाने में सक्षम नहीं हैं. कोविड-19 महामारी के बाद उन्हें मंदी का डर सता रहा है और BRI में शामिल कई देश प्रोजेक्ट का कर्ज़ चुकाने की हालत में नहीं हैं. काफ़ी आलोचना के बावजूद चीन इन कर्ज़ को भूलने की हालत में नहीं है क्योंकि कहा जाता है कि लोन रिस्ट्रक्चरिंग, लोन माफ़ करने और कर्ज़ चुकाने का समय बढ़ाने से उसे पहले ही बहुत घाटा हो चुका है.

इस तरह का दावा है कि BRI की फंडिंग में सालाना 500 अरब डॉलर का फर्क है. लेकिन इसका बिल कौन चुकाएगा? ग़लत वित्तीय तौर-तरीक़ों को देखते हुए BRI के मुनाफ़ा कमाने की संभावना सीमित है. राजनीतिक और रणनीतिक फ़ायदों को मान भी लिया जाए तब भी वित्तीय रूप से BRI को समर्थन देने की चीन की क्षमता असीमित नहीं है.

जब चीन अपनी अर्थव्यवस्था को खोल रहा है, तब भी महामारी के बाद की दुनिया में चमकती अर्थव्यवस्था का दावा उस निराशावादी सोच से मुक़ाबला कर रहा है[1] जिसके तहत चीन की अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगा है और ये तो बस शुरुआत है. पहली तिमाही के ख़राब प्रदर्शन के बाद पूरे साल पर महामारी का असर देखना अभी बाक़ी है. हालांकि, ये तय है कि मांग को ज़ोरदार चोट लगी है.[2] चीन ने पहली बार मौजूदा साल के लिए GDP का लक्ष्य तय नहीं किया है. वो भी तब जब वायरस एक बार फिर से लौट रहा है और अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध तेज़ हो गया है.

आर्थिक हालात सुधरने में जितना ज़्यादा वक़्त लगेगा, ये BRI को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में चीन की क्षमता पर उतना दबाव डालेगा. मूल रूप से आर्थिक रिकवरी चीन की अर्थव्यवस्था की गहरी बीमारी के बारे में बताता है. कर्ज़ पर आधारित विकास चीन की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार कम कर रही है. [3] ऐसा करते हुए चीन में डूबने वाले कर्ज़ बढ़े हैं.

अपनी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए मौजूदा कर्ज़ को संतुलित किया जा रहा है लेकिन इसके बावजूद डूबने वाले कर्ज़ बढ़ सकते हैं. अंतत : जो एलान किए गए हैं उनसे लगता है कि सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाया है. हालांकि, डिजिटल निवेश में “नये इंफ्रास्ट्रक्चर” को बढ़ावा देकर वो भविष्य के आर्थिक निवेश को तैयार करना चाहता है.

चीन इस हालात से निपटकर साफ़-सुथरे बैलेंस शीट के साथ बाहर आता है या वो पहले से कर्ज़ में दबे अपने सार्वजनिक क्षेत्र का बोझ बढ़ाता है, ये नतीजा BRI को जारी रखने को लेकर चीन की वित्तीय सेहत के बारे में बताएगा.


[1] UNCTAD has said that the world faces a recession except possibly for China and India.

[2] The three “horses” being exports, consumption, and investment.

[3] China pumped in over half a trillion dollars’ worth of stimulus during the global financial crisis, most of which was fed into government-backed infrastructure projects.

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