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Published on May 08, 2025 Updated 0 Hours ago

आयकर से होने वाली राजस्व प्राप्ति का विकेंद्रीकरण करने से 250,000 स्थानीय निकायों को ग्रोथ इंजिन में परिवर्तित किया जा सकता है. ये ग्रोथ इंजिन समानता, कुशलता और वहनीयता के साथ विकास मुहैया करवाएंगे.

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परंपरागत आर्थिक सिद्धांत ने विकास को संचालित करने वाले चार प्रायमरी इनपुट्स यानी मूल बातों की पहचान की है. इसमें भूमि, श्रम, शारीरिक पूंजी और मानव पूंजी का समावेश है. ये चारों संस्थागत ढांचे के तहत काम करते हुए न्यायोचित स्पर्धा को सुनिश्चित कर नवाचार को बढ़ावा देते हैं. आमतौर पर इन इनपुट्स का एब्सट्रेक्ट टर्म्स यानी अमूर्त शर्तों में विश्लेषण किया जाता है और ये इनपुट्स भौतिक क्षेत्रों में प्रकट होते हैं. ये भौतिक क्षेत्र अर्थात लोगों के मलकीयत की भूमि जहां रहने वाले लोगों के सामाजिक नेटवर्क्स, उनकी जिंदगी का अनुभव तथा उनकी रुचि ही यह तय करते हैं कि स्थानीय स्तर पर किस तरह से आर्थिक विकास होगा.

 

हालांकि, आर्थिक गतिविधियों से समाज को व्यापक रूप से लाभ पहुंचता है. इन गतिविधियों के कारण होने वाले लाभ में नागरिकों के लिए जहां संपत्ति बढ़ती है वही राज्य अथवा देश के लिए कर के रूप में राजस्व प्राप्ति होती है. लेकिन इन गतिविधियों के कारण स्थानीय स्तर पर भारी कीमत अदा की जाती है. इन कीमतों में पर्यावरणीय प्रभाव, बुनियादी ढांचे पर पड़ने वाले दबाव या स्थानीय प्रशासन व्यवस्था पर पड़ने वाला संस्थागत बोझ शामिल हैं. इस तरह की बाह्य नकारात्मक कीमतों के कारण स्थानीय शासन और नागरिकों की ओर से या तो निरुत्साह दिखाई देता है या फिर सीधे-सीधे विरोध होने लगता है. यह बात उसे समय विशेष रूप से लागू होती है जब इन कीमतों के बदले में कोई कंपनसेटरी मैकेनिज्म यानी प्रतिपूर्ति व्यवस्था नहीं होती.

 

स्थानीय विकास के लिए प्रोत्साहन को संरेखित करना 

सस्टेनेबल इकोनॉमिक ग्रोथ यानी टिकाऊ आर्थिक विकास करने का लक्ष्य रखने वाली केंद्र अथवा राज्य सरकारों को यह सुरक्षित करना चाहिए कि स्थानीय सरकारों और उनके माध्यम से स्थानीय सरकार के तहत रहने वाले नागरिकों को भी इस आर्थिक विकास से यथोचित लाभ उपलब्ध हो. केंद्र अथवा राज्य सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए व्यापार विकास का समर्थन कर सकती है यह समर्थन स्थानीय सरकारों की राजनीतिक, सांस्कृतिक या धार्मिक प्रतिबद्धता का संज्ञान लिए बगैर किया जाना चाहिए. स्थानीय निकायों को आर्थिक विकास अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने की एक व्यावहारिक और प्रभावी रणनीति उनका वित्तीय सशक्तिकरण करना होगा. यह वित्तीय सशक्तिकरण विशेषत: केंद्रीयकृत प्रणाली के तहत संग्रहित कर, जिसमें निजी आयकर (PIT) तथा कार्पोरेट आयकर (CIT) शामिल हैं, में स्थानीय निकायों को हिस्सेदारी देकर किया जा सकता है. इसका कारण यह है कि यह दोनों ही कर स्थानीय निकाय के क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों की वजह से संग्रहित किए जाते हैं. इसके अलावा स्थानीय प्राधिकारियों को वाणिज्यिक एवं औद्योगिक संपत्ति कर लागू करने की अनुमति देकर भी स्थानीय वित्तीय स्वायत्तता को और भी मजबूती प्रदान की जा सकती है.

 स्थानीय निकायों को आर्थिक विकास अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने की एक व्यावहारिक और प्रभावी रणनीति उनका वित्तीय सशक्तिकरण करना होगा. यह वित्तीय सशक्तिकरण विशेषत: केंद्रीयकृत प्रणाली के तहत संग्रहित कर, जिसमें निजी आयकर (PIT) तथा कार्पोरेट आयकर (CIT) शामिल हैं

यह दृष्टिकोण एक मजबूत प्रोत्साहन व्यवस्था/ढांचा तैयार करता है. नगर निगम अधिक आर्थिक रूप से जितनी सक्रिय होगी उसके बजट में उतना ही ज़्यादा PIT तथा CIT से राजस्व प्राप्ति होगी. ऐसा होने पर स्थानीय प्राधिकारियों को बेहतर बुनियादी सुविधाएं, कुशल सार्वजनिक सेवाएं और जीवन के स्तर को ऊंचा करते हुए कारोबारी माहौल में सुधार करने का प्रोत्साहन मिलेगा. चूंकि नगर निगमों के पास कर की दर में बदलाव करने का अधिकार नहीं होता (राज्य स्तर पर साझेदारी में मिलने वाले कर की दर समान रूप से लागू होती है), अत: वेरेस टू टॉपयानी आगे निकलने की होड़ में शामिल होने पर मजबूर हो जाते हैं. इस होड़ में बने रहने के लिए वे सेवाओं की गुणवत्ता और बेहतर बुनियादी ढांचा मुहैया करवाने का रास्ता अपनाकर प्रतिस्पर्धियों से आगे निकलने की कोशिश करते हैं. ऐसा करना उनकी मजबूरी होती है क्योंकि वे करों में छूट नहीं दे सकते. नॉर्डिक देशों के उदाहरण से संकेत मिलता है कि सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक सेवाओं की यह स्पर्धा ही सार्वजनिक क्षेत्र में नवाचार के लिए एक अहम चालक बना देती है.

 

दशकों पहले राजनीतिक अर्थशास्त्री बैरी वाइंगेस्ट ने स्थानीय अर्थव्यवस्था का पालन-पोषण करने के लिए स्थानीय निकाय संस्थाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता को पहचान लिया था. इसकी वैचारिक मजबूती के बावजूद इस तर्क पर मुख़्यधारा के आर्थिक अनुसंधान में सीमित ध्यान ही दिया गया है. आर्थिक विकास पर स्थानीय वित्तीय प्रोत्साहन के प्रभाव का परीक्षण करने वाले ठोस इकोनोमेट्रिक अध्ययन बेहद सीमित होने की वजह से इसका इंपीरिकल वैलिडेशन भी कम ही हुआ है. हालांकि वैश्विक पैटर्न्स यानी उदाहरणों से यह साफ़ पता चलता है कि नगर निगम के मजबूत कर आधार और निरंतर आर्थिक संपन्नता में मजबूत सह-संबंध है. विकास के लिए यह आवश्यक पैमाना भी नहीं होता, लेकिन अनेक उच्च आय वाले देशों में स्थानीय निकाय में कर नहीं के बराबर होने के बावजूद वहां विकास फलता-फूलता है. इसी प्रकार उन सभी देशों में जहां स्थानीय नगर निगमों में स्थानीय कर से संतोषजनक राजस्व हासिल होता है, वे या तो पहले ही संपन्न हैं या फिर वे आर्थिक संयोजन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.

तुलनात्मक अंतरराष्ट्रीय अनुभव

यूरोप में यह पैटर्न स्थापित और उभरती दोनों ही अर्थव्यवस्थाओं पर लागू होता है. नॉर्डिक देशों, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, लक्ज़मबर्ग, आयरलैंड और स्विजरलैंड समेत अन्य देशों में जहां स्थानीय निकाय संस्थाओं को कर से अर्जित राजस्व में अहम हिस्सेदारी मिलती है, ने दीर्घावधि में विकास के मामले में अन्यों को काफ़ी पीछे छोड़ दिया है. इसके विपरीत ग्रीस, इटली, स्पेन, पुर्तगाल और यूनाइटेड किंगडम (UK) जैसे देशों में स्थानीय वित्तीय सशक्तिकरण सीमित होने की वजह से विकास की ट्रेजेक्टरी कमज़ोर है.

इसी प्रकार नवीनतम यूरोपियन यूनियन (EU) सदस्य देशों में, बड़ी मात्रा में वित्तीय विकेंद्रीकरण वाले देशों (बाल्टिक देशों, पोलैंड, रोमानिया), ने सीमित स्थानीय वित्तीय अधिकार वाले देशों (बुल्गारिया, स्लोवाकिया, चेक रिपब्लिक) के मुकाबले  बेहतर प्रदर्शन किया है. इसी प्रकार एशिया के भीतर जापान और दक्षिण कोरिया, जो अब उच्च-आय, नवाचार-प्रेरीत अर्थव्यवस्थाएं हैं, में ऐसी वित्तीय व्यवस्था है जिसमें स्थानीय निकाय संस्थाओं को PIT एवं CIT में हिस्सेदारी आवंटित की जाती है.

 एशिया के भीतर जापान और दक्षिण कोरिया, जो अब उच्च-आय, नवाचार-प्रेरीत अर्थव्यवस्थाएं हैं, में ऐसी वित्तीय व्यवस्था है जिसमें स्थानीय निकाय संस्थाओं को PIT एवं CIT में हिस्सेदारी आवंटित की जाती है.

चीन एक विरोधाभासी मामला पेश करता है. वहां हुए तेज बदलाव में स्थानीय निकाय संस्थाओं की ओर से देश के एंटरप्राइजस टैक्स अर्थात उद्यम कर में दिए गए योगदान ने अहम भूमिका अदा की है. हालांकि चीनी स्थानीय निकाय संस्थाएं स्वायत्त नहीं हैं. वे स्थानीय घटक या मतदाताओं के प्रति नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के प्रति जवाबदेह हैं. अत: स्थानीय स्तर पर ज़्यादा से ज़्यादा राजस्व अर्जित करने की इच्छा की वजह से अनेक मर्तबा अनसस्टेनेबल ग्रोथ स्ट्रैटेजिस्‌ यानी अरक्षणीय विकास रणनीतियां अपनाई जाती हैं. इसमें कम समय में पाए जाने वाले लक्ष्यों पर ध्यान दिया जाता है और दीर्घावधि वाले कल्याण और पर्यावरण संरक्षण जैसे लक्ष्यों की उपेक्षा हो जाती है.

 

भारत के वित्तीय फार्मूले पर पुनर्विचार

इसके विपरीत भारत के पास एक बेहतर ढंग से स्थापित स्थानीय निकाय संस्थाओं का ढांचा मौजूद हैं. लगभग 250,000 स्थानीय निकायों एवं अनुमानित 3.1 मिलियन निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के साथ भारत दुनिया की सबसे विस्तृत स्थानीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का मेज़बान है. यदि इन स्थानीय निकाय संस्थाओं को बेहतर तरीके से प्रोत्साहित किया गया तो ये आर्थिक विकास के शक्तिशाली इंजन बन सकते हैं.

संदेह करने वाले यह तर्क दे सकते हैं कि अनेक स्थानीय निकाय संस्थाओं के पास जटिल बुनियादी सुविधा योजनाओं और सेवाओं का खाका बनाकर उन्हें लागू करने लायक तकनीकी सामर्थ्य नहीं है. लेकिन स्थानीय शासन के समक्ष मौजूद चुनौती उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान जैसी नहीं होती. यह चुनौती स्थानीय समुदाय की मूलभूत आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को आम सहमति, व्यवहारवाद और प्रतिबद्धता के साथ प्रबंधित करने की होती है. प्रभावी शासन करने के लिए आमतौर पर सामाजिक कौशल, प्रोत्साहन और व्यावहारिक बुद्धि की ज़रूरत होती है, औपचारिक शिक्षा से संबंधित विशेषज्ञता की नहीं.

इटली इसका एक अच्छा उदाहरण है. वहां के दो स्वायत्त प्रांत ट्रेंटो तथा बोल्ज़ानो (साउथ टायरॉल) में उच्च-गुणवत्ता वाले क्षेत्रीय एवं स्थानीय निकाय हैं, लेकिन वहां के कर्मचारियों में औपचारिक शिक्षा का स्तर न्यूनतम है. हालांकि इन्हीं दो प्रांतों में PIT तथा CIT का 90 प्रतिशत हिस्सा स्थानीय बजट में ही रहता है. भारत में संघीय सरकार भी PIT तथा CIT में से छोटा हिस्सा स्थानीय निकाय संस्थाओं को आवंटित कर सकती है. यह हिस्सा भले ही अधिक हो, लेकिन यह इतना होना चाहिए कि इसकी वजह से मिलने वाले राजस्व के कारण स्थानीय कार्य को प्रोत्साहित किया जा सके. इसके बदले में एक बराबरी वाले मजबूत तंत्र की शर्त के साथ स्थानीय निकाय संस्थाओं को उन सेवाओं की वित्तीय ज़िम्मेदारी लेनी होगी जो वर्तमान में संघीय वित्त पोषण के माध्यम से चलाई जा रही हैं. ऐसा हुआ तो आर्थिक रूप से कमज़ोर क्षेत्र में आने वाले स्थानीय निकाय भी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी अत्यावश्यक सेवाएं मुहैया करवाना सुनिश्चित कर सकेंगे. एक प्रभावी इक्विलाइजेशन फंड यानी समकारी निधि को दक्षता के साथ समानता का संतुलन साधना चाहिए यानी आर्थिक रूप से कमज़ोर स्थानीय निकायों को सहायता देनी चाहिए. इसी प्रकार सफ़ल स्थानीय निकायों को इतना सरप्लस बचाना चाहिए कि वे अपने यहां सक्रिय विकास प्रयासों को पुरस्कृत कर सकें.

वित्तीय स्वायत्ता देने में रोड़ा डालने वाले आलोचक अक्सर स्थानीय स्तर पर होने वाले संभावित भ्रष्टाचार को कारण बताते हैं. लेकिन जब स्थानीय नागरिक और कारोबारी अपने स्थानीय निकाय निगम को कर के माध्यम से सीधे वित्तपोषित करते हैं तो पारदर्शिता, जवाबदेही और बेहतर काम करने की उम्मीद प्राकृतिक रूप से बढ़ जाती है. आमतौर पर नागरिक अकुशलता या लापरवाही को उस वक़्त पसंद नहीं करते जब उनके ही पैसों से काम किया जा रहा हो. इसके साथ ही स्थानीय निकाय संस्थाओं को भी अपनी सेवाओं में सुधार के साथ अपने कर आधार में विस्तार करने का प्रोत्साहन मिलता है, ताकि वे स्थानीय उद्यम को समर्थन दे सके या उन्हें प्रोत्साहित कर सके. पारस्परिक रूप से मजबूत यह गतिशीलता बेहतर प्रशासन और तेज आर्थिक विकास दोनों के लिए ही सहायक साबित होती है.

अब वह वक़्त आ गया है जब भारत को भी अपने वित्तीय ढांचे के बारे में दोबारा विचार करते हुए स्थानीय निकाय संस्थाओं के साथ कर साझाकरण यानी उन्हें केंद्रीय कर में हिस्सेदारी देने पर विचार करना चाहिए.

अंतत: इस तरह के वित्तीय सुधार से महत्वपूर्ण राजनीतिक लाभांश भी पैदा होगा. इस वजह से केंद्र सरकार और स्थानीय निकाय संस्थाओं के बीच एक सहयोगात्मक गठजोड़ बनेगा, जिसकी वजह से भारत के लोकतांत्रिक ढांचे और स्थिरता को मजबूती मिलेगी. यूक्रेन के विकेंद्रीकरण सुधार इसका एक सशक्त उदाहरण हैं. 2015 में यूक्रेन ने स्थानीय निकाय संस्थाओं को PIT में 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी मंजूर दी. इससे जहां स्थानीय आर्थिक विकास को अनुमति मिली, वहीं कर अनुपालन में भी इज़ाफ़ा हुआ. इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर स्वामित्व की भावना मजबूत हुई और इसकी वजह से 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जनता में संगठनात्मक क्षमता और लचीलापन देखने को मिला. अब वह वक़्त गया है जब भारत को भी अपने वित्तीय ढांचे के बारे में दोबारा विचार करते हुए स्थानीय निकाय संस्थाओं के साथ कर साझाकरण यानी उन्हें केंद्रीय कर में हिस्सेदारी देने पर विचार करना चाहिए. अब तक अंतिम अनौपचारिक सबूत तो दिखाई नहीं दे रहे, लेकिन इन सबूतों के बगैर भी यह आकलन करना बेहतर होगा कि ऐसे सुधार महत्वपूर्ण गेम-चेंजर बन सकते हैं. भारत दक्षिण एशिया का नॉर्डिक देश बन सकता है, जो खुशियों, स्वास्थ्य, शिक्षा, नवाचार और जीवन की कुल गुणवत्ता में अग्रणी होगा.

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Authors

Benedikt Herrmann

Benedikt Herrmann

After graduating with a master's degree in molecular biology from the University of Bayreuth in Germany, Benedikt worked for several years as a programme director ...

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Soumya Bhowmick

Soumya Bhowmick

Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...

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