ऐसा लग रहा है कि कुछ महीनों की शांति के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हिंसा एक बार फिर से वापस हो रही है. पिछले कुछ हफ़्तों के दौरान, जम्मू क्षेत्र में एक के बाद एक कई आतंकवादी हमले हुए हैं. सुरक्षा बलों की दहशतगर्दों से मुठभेड़ हुई है. इनकी वजह से ये आशंकाएं पैदा हुई हैं कि हाल के दिनों तक अपनी अंतिम सांसें गिन रहा आतंकवाद अब ज़्यादा मज़बूती से उठ खड़ा हुआ है और वो इस क्षेत्र में सक्रिय सुरक्षा बलों को निशाना बना रहा है.
आतंकवाद के इस नए दौर की शुरुआत 9 जून 2024 से हुई थी, जब उग्रवादियों ने रियासी में तीर्थयात्रियों को ले जा रही एक बस पर हमला किया था, जिसमें 10 लोग मारे गए थे और 33 घायल हो गए थे.
आतंकवाद के इस नए दौर की शुरुआत 9 जून 2024 से हुई थी, जब उग्रवादियों ने रियासी में तीर्थयात्रियों को ले जा रही एक बस पर हमला किया था, जिसमें 10 लोग मारे गए थे और 33 घायल हो गए थे. इसके दो दिनों बाद, डोडा और कठुआ में हुए दो अलग अलग हमलों में छह सैनिक ज़ख़्मी हो गए थे. 7 जुलाई को जब आतंकवादियों ने राजौरी पुंछ के इलाक़े में एक सुरक्षा चौकी पर हमला किया, तो सेना का एक जवान घायल हो गया था. इसके अगले ही दिन, यानी 8 जुलाई को फिर एक हमला हुआ, कठुआ ज़िले में जब हथियारों से लैस आतंकवादियों ने पांच जवानों को मार डाला था. शहीद हुए जवानों में एक जूनियर कमीशंड अफसर भी शामिल था. इस हमले में छह जवान घायल भी हो गए थे. पिछले हफ़्ते डोडा ज़िले में एक मुठभेड़ के दौरान, एक अधिकारी समेत सेना के चार जवान और जम्मू कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी शहीद हो गए थे. इन हमलों की ज़िम्मेदारी जैश-ए-मुहम्मद से जुड़े संगठनों कश्मीर टाइगर्स और पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट ने ली है.
पीर पंजाल के दक्षिण में हो रहे ये आतंकवादी हमले काफ़ी अहम हो गए हैं, क्योंकि 2019 के बाद से सुरक्षा बल कश्मीर घाटी में मोटे तौर पर आतंकवादी हिंसा पर क़ाबू पाने में सफल रहे हैं. आतंकी हिंसा में आई इस कमी के साथ साथ कश्मीर के युवाओं के नज़रिए में भी एक उल्लेखनीय बदलाव आता देखा गया है. इसकी एक बानगी हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में दिखी थी, जब नौजवानों ने चुनावी प्रक्रिया में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. इस बार के चुनाव में जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र में 58 प्रतिशत मतदान हुआ था. इन बदले हुए आयामों ने पाकिस्तान और वहां से चल रहे आतंकवादी संगठनों पर इस बात का दबाव बढ़ा दिया है कि वो प्रासंगिक बने रहने के लिए अपने भौगोलिक और रणनीतिक तौर-तरीक़ों में बदलाव ले आएं.
2019 के बाद आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई
अगस्त 2019 के बाद से सुरक्षा बलों ने अपना पूरा ध्यान, आतंकवाद का गढ़ माने जाने वाले दक्षिणी कश्मीर पर केंद्रित किया था, क्योंकि वहां आतंकवाद ख़ूब फल फूल रहा था. सुरक्षा का एक मज़बूत चक्रव्यूह तैयार करके, सुरक्षा बलों ने इस इलाक़े में आतंकवादी नेटवर्क को तबाह करने और कई आतंकवादियों का सफाया करने में काफ़ी सफ़लता हासिल की थी.
आतंकवाद के ख़िलाफ़ इस मुहिम के दौरान ख़ास तौर से आतंकवादी फंडिंग और आतंकवादियों की मदद करने और उन्हें पनाह देने वालों को निशाना बनाया गया, जिसमें ओवर ग्राउंड वर्कर (OGW) और जमात-ए-इस्लामी (JeI) के कार्यकर्ता शामिल थे. हिज़्बुल मुजाहिदीन से जुड़े इस धार्मिक संगठन ने घाटी में अपना नेटवर्क दूर दूर तक फैला लिया है. सुरक्षा बलों द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक़, 2019 से 2021 के बीच जम्मू कश्मीर पुलिस ने सार्वजनिक सुरक्षा क़ानून (PSA) के अंतर्गत आतंकवादियों को मदद देने वाले 900 से ज़्यादा ओवर ग्राउंड वर्कर्स को गिरफ़्तार किया है. इसके साथ साथ, नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने आतंकवादी फंडिंग रोकने के लिए कई मामलों की जांच शुरू की है. इस अभियान की वजह से पाकिस्तानी फ़ौज की इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (ISI) और आतंकवादियों के बीच गहरे नेटवर्क का पर्दाफ़ाश हो सका है.
पाकिस्तान, घुसपैठ कराने के लिए भी नए नए रास्ते तलाश रहा है. अब उसका ज़ोर नियंत्रण रेखा (LoC) के उत्तर के बजाय कम सुरक्षा वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा और जम्मू क्षेत्र में नदियों वाला सरहदी इलाक़े पर है
इस दौरान, बड़े आतंकवादी आक़ाओं को निशाना बनाकर चलाए जा रहे आतंकवाद निरोधक अभियान की वजह से दहशतगर्द संगठनों पर दबाव लगातार बना हुआ था. 2021 से 2023 के दौरान सुरक्षा बलों ने 443 आतंकवादियों का सफ़ाया किया था, जिसमें 127 विदेशी आतंकवादी भी शामिल थे (देखें चित्र 1).
स्रोत: सुरक्षा बलों से मिले आंकड़ों को ख़ुद से किया गया संकलन
इन कार्रवाइयों की वजह से 2021 के बाद से आतंकवादी संगठनों में स्थानीय लोगों की भर्ती में काफ़ी कमी आई है. 2022 में कश्मीर के केवल 100 स्थानीय युवाओं ने ही दहशगर्दी का दामन थामा था. 2023 में ये संख्या और भी घटकर केवल 23 रह गई. सुरक्षा बलों का आकलन है कि जम्मू कश्मीर में इस वक़्त लगभग 110 विदेशी आतंकवादी और केवल 27 स्थानीय आतंकी सक्रिय हैं.
इन हालात ने पाकिस्तान को लेकर स्थानीय नौजवानों का नज़रिया बदलने का भी काम किया है. लोगों को ये एहसास हुआ कि पाकिस्तान ने मज़हब का इस्तेमाल करके और ड्रग तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के ज़रिए घाटी में उग्रवाद के लिए पैसे जुटाकर, कश्मीरियों को पीढ़ी दर पीढ़ी धोखा ही दिया है.
कश्मीर घाटी से जम्मू का रुख़
कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों को बढ़त हासिल होने की वजह से पाकिस्तान ने अपनी रणनीति और भौगोलिक क्षेत्र में बदलाव किया, ताकि आतंकवाद को जारी रख सके और कश्मीर की तरफ़ दुनिया का ध्यान खींच सके. 2021 के बाद से ज़्यादातर आतंकवादी हमले पीर पंजाल के दक्षिण में ही हो रहे हैं और ये हमले विदेशी आतंकवादी कर रहे हैं, जो इस इलाक़े की पेचीदा भौगोलिक स्थिति और घने जंगलों का फ़ायदा उठाकर सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमले करते हैं. 2023 में जम्मू क्षेत्र में 43 आतंकवादी हमले हुए, तो 2024 के जून महीने तक इस क्षेत्र में 24 दहशतगर्दी हमले हो चुके हैं, जिनमें सेना के 48 जवान शहादत पा चुके हैं.
पाकिस्तान, घुसपैठ कराने के लिए भी नए नए रास्ते तलाश रहा है. अब उसका ज़ोर नियंत्रण रेखा (LoC) के उत्तर के बजाय कम सुरक्षा वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा और जम्मू क्षेत्र में नदियों वाला सरहदी इलाक़े पर है. सुरक्षा बलों ने नोट किया है कि चार-पांच के समूह वाले आतंकवादियों की घुसपैठ कराने की रणनीति के तहत पाकिस्तान ने संरक्षण देने और इलाक़े में मज़बूत डेरा बनाने पर ज़ोर दिया है. इसका मतलब है कि घुसपैठ करने वाले दहशतगर्द कुछ समय के लिए शांत बैठे रहते हैं और हमले करने से पहले स्थानीय आबादी के साथ घुलते मिलते रहते हैं. सुरक्षा बलों ने ये भी देखा है कि M4 कार्बाइन असॉल्ट राइफल, नाइट विज़न गॉगल्स और बहुत ही ज़्यादा एनक्रिप्टेड मैसेजिंग वाले उपकरण (चीन द्वारा ख़ास तौर से पाकिस्तानी फौज के इस्तेमाल के लिए बनाए जाने वाली मशीनों) का भी इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ रहा है. इसके अलावा, आतंकवादी टेलीग्राम, टैम टैम, मैस्टोडॉन, चिर्पवायर और एनिग्मा जैसे सोशल मीडिया ऐप और एनक्रिप्टेड मैसेजिंग वाले प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे हैं. इसके साथ ही साथ वो वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क का भी इस्तेमाल कर रहे हैं, जिन पर राजौरी और पुंछ ज़िलों में पहले से पाबंदी लगी हुई है.
आतंकवाद से निपटने के लिए सक्रिय रणनीति अपनाना
जम्मू क्षेत्र में आतंकवादी हमलों में आई इस बाढ़ से निपटना बहुत ज़रूरी है. क्योंकि अगर इन पर क़ाबू नहीं पाया गया, तो 2019 के बाद से जो सफलताएं हासिल की गई हैं, वो बेकार चली जाएंगी.
इस पूरे क्षेत्र में और ख़ास तौर से कठुआ, डोडा, राजौरी और पुंछ के आतंकवाद से पीड़ित सीमावर्ती ज़िलों में सुरक्षा के ढांचे को फिर से ताक़तवर बनाना सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. इस मक़सद को हासिल करने के लिए कश्मीर घाटी से सेना और पुलिस के अनुभवी अधिकारियों को जम्मू क्षेत्र में लाया जाना चाहिए और उनको ये ज़िम्मेदारी दी जानी चाहिए कि वो न केवल आतंकवाद निरोधक सुरक्षा ढांचे को नए सिरे से खड़ा करें, बल्कि तमाम सुरक्षा एजेंसियों के बीच तालमेल को भी बेहतर बनाएं, जिसकी सख़्त ज़रूरत महसूस की जा रही है.
यही नहीं, विदेशी आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर हमला करने के बढ़ते मामलों को देखते हुए, केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) और जम्मू कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन्स ग्रुप (SOG) के जवानों को मिलाकर संयुक्त टीमों का गठन किया जाना चाहिए, ताकि ऐसे आतंकी हमलों का मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके. मिसाल के तौर पर CRPF के COBRA कमांडो को जंगल में अभियान चलाने और गुरिल्ला युद्ध का काफ़ी अनुभव है. उन्हें SOG के जवानों के साथ तैनात किया जाना चाहिए. क्योंकि, SOG को उस वक़्त आतंकवाद से मुक़ाबला करने का काफ़ी तजुर्बा है, जब 2000 से 2010 के दौरान पीर पंजाल और चेनाब क्षेत्र में आतंकवाद अपने शीर्ष पर था. इसके साथ साथ, सेना को पहाड़ियों पर दबदबा क़ायम करने की अपनी ताक़त का इस्तेमाल करके नियंत्रण रेखा पर चौकसी बढ़ानी चाहिए और सीमा की सुरक्षा को बेहतर बनाना चाहिए. सेना, CRPF, सीमा सुरक्षा बल (BSF) और जम्मू-कश्मीर पुलिस के बीच आपसी तालमेल बढ़ाना भी बहुत अहम है.
अब आतंकवादी एनक्रिप्टेड ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं और ऑनलाइन गतिविधियों के ज़रिए सुरक्षा एजेंसियों को चकमा दे रहे हैं. इसीलिए, एजेंसियों को चाहिए कि वो तकनीकी गोपनीय नेटवर्क पर ज़ोर देने के साथ साथ ख़ुफिया मानवीय नेटवर्क (HUMINT) को भी और ताक़तवर बनाएं.
इसके बाद, सुरक्षा बलों को आतंकवाद से निपटने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वो नई रणनीतियां विकसित कर सकें. पिछले सात या आठ सालों के दौरान, आतंकवाद से निपटने के ज़्यादातर सफल अभियान तकनीकी खुफिया जानकारी (TECHINT) की मदद से चलाए गए हैं. हालांकि, अब आतंकवादी एनक्रिप्टेड ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं और ऑनलाइन गतिविधियों के ज़रिए सुरक्षा एजेंसियों को चकमा दे रहे हैं. इसीलिए, एजेंसियों को चाहिए कि वो तकनीकी गोपनीय नेटवर्क पर ज़ोर देने के साथ साथ ख़ुफिया मानवीय नेटवर्क (HUMINT) को भी और ताक़तवर बनाएं. ख़ुफ़िया एजेंसियों के लिए मुखबिरों का एक नेटवर्क तैयार करना इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि 2019 के बाद से ये एजेंसियां एक दूसरे की परिसंपत्तियों के ख़िलाफ़ काम करती रही हैं और पूरी व्यवस्था से ज़्यादातर स्रोतों को ख़त्म कर दिया गया है.
अहम बात ये है कि सुरक्षा बलों की मदद सिर्फ़ ये कठोर क़दम नहीं कर पायेंगे; इसके लिए कुछ नरमी वाले क़दम भी उठाने होंगे, जिनसे स्थानीय आबादी का भरोसा जीतने में काफ़ी मदद मिल सकेगी. सैन्य बलों को चाहिए कि वो घाटी में सेना द्वारा चलाए गए अभियानों से सुख सीख लें. सूचना के युद्ध के नज़रिए से ये बात काफ़ी अहम हो जाती है, क्योंकि 2019 के बाद से ISI की दुष्प्रचार वाली मशीनरी इसी बात को दुष्प्रचारित करती रही है.
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