Author : Soumya Bhowmick

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 07, 2025 Updated 0 Hours ago

वैश्विक विकास में भारत की बढ़ती भूमिका, ग्लोबल साउथ के देशों के बीच आपसी सहयोग और ग्लोबल नॉर्थ के साथ रिश्तों में बख़ूबी घुल मिल जाती है, जिससे समावेशी तरक़्क़ी को बढ़ावा मिलता है.

वैश्विक उत्तर और दक्षिण के विवाद से आगे: भारत और विकास का भविष्य

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आज जब दुनिया जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानता, डिजिटल अपग्रेड और बदलते भू-राजनीतिक मंज़र से जूझ रही है, तो जिन रूप-रेखाओं ने लंबे वक़्त से अंतरराष्ट्रीय विकास को आकार दिया था, उन पर नए सिरे से विचार होन रहा है. ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ के बीच जिस पारंपरिक खाई की बात होती है, वो आज की आपस में जुड़ी दुनिया की जटिलताओं को कुछ ज़्यादा ही आसान बनाने की कोशिश करती है. जबकि भारत जैसे देश आज ऐसी नई भूमिकाओं को अपना रहे हैं, जो राष्ट्रीय विकास का मेल वैश्विक नेतृत्व से कराते हैं, वो इन पुराने पड़ चुके ख़यालात को चुनौती दे रहे हैं. उपनिवेशवाद से आज़ाद हुए देश के तौर पर भारत का आज सक्रिय वैश्विक खिलाड़ी बनने का सफ़र दिखाता है कि आज विकास के प्रशासन के लिए समावेशी और ऊर्जावान तरीक़ों की कितनी ज़रूरत है, जिसमें उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ ही साथ स्थापित शक्तियों से संवाद भी उतना ही महत्वपूर्ण हो गया है.

ग्लोबल साउथ की वकालत, दुनिया के संवाद: भारत की सहयोगात्मक रणनीति

ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ की पुरानी परिभाषाएं आज के दौर के अंतरराष्ट्रीय संबंधों की जटिलताओं को पूरी तरह से बयां नहीं कर पातीं. ग्लोबल साउथ के देशो के बीच बढ़ते आपसी सहयोग ने ऐसी साझेदारियों की अहमियत को रेखांकित किया है, जो आपसी सम्मान, साझा तजुर्बों और समस्या का समाधान मिलकर करने पर आधारित हैं. भारत इस बदलाव को आगे बढ़ाने में काफ़ी अहम भूमिका निभाता रहा है वो भी न केवल एक भागीदार के तौर पर बल्कि एक ऐसे नेता के रूप में भी, जो विकासशील देशों और विकसित राष्ट्रों के बीच की खाई को पाटता है. ऐसा सहयोग विकास की एक जैसी चुनौतियों जैसे कि खाद्य असुरक्षा, ग़रीबी और आसमानता पर ध्यान केंद्रित करता है. क्योंकि, ये ऐसे मुद्दे हैं, जो अमीर देशों के सामने खड़ी चुनौतियों से अक्सर अलग होते हैं.

ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ के बीच जिस पारंपरिक खाई की बात होती है, वो आज की आपस में जुड़ी दुनिया की जटिलताओं को कुछ ज़्यादा ही आसान बनाने की कोशिश करती है.

वैश्विक आर्थिक व्यवस्था पर ऐसी कंपनियों का दबदबा है, जो ग्लोबल नॉर्थ में स्थित हैं. ये कंपनियां ऐतिहासिक रूप से ग्लोबल साउथ के संसाधनों और श्रमिकों का दोहन करती आई हैं, जिन्होंने अमीर और ग़रीब देशों के बीच की खाई को और बढ़ाया ही है. ग्लोबल साउथ के देशों के बीच आपसी सहयोग का मक़सद, इस चलन को बदलना और ऐसे गठबंधन को मज़बूत करना है, जिसमें शामिल सभी पक्षों का भला हो. यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर साउथ साउथ को-ऑपरेशन (UNOSSC) जैसी पहलों के ज़रिए भारत वैश्विक प्रशासन में सबसे कम विकसित देशों (LDCs) और छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (SIDs) की विकास में मदद करता है. ये साझेदारियां विकास संबंधी वित्त के नए अवसरों के द्वार खोलती हैं, जिनमें रियायती दरों पर क़र्ज़ और बिना किसी शर्त के सहायता शामिल है. इससे विकास के लक्ष्य हासिल करने के प्रयत्नों और उनको प्राप्त करने के तौर तरीक़ों में तब्दीली आती है.

हालांकि, वैश्विक विकास का परिदृश्य केवल ग्लोबल साउथ के देशों के बीच आपसी सहयोग वाला नहीं है. भारत ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ के रिश्तों की दूरियां कम करने में भी बहुत अहम भूमिका निभाता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसे प्रमुख वित्तीय संस्थानों की प्राथमिकताओं पर अक्सर ग्लोबल नॉर्थ के हित हावी रहते हैं, जो आम तौर पर ये मदद हासिल करने वाले देश के हितों से मेल नहीं खाते हैं. इन मंचों पर भारत की आवाज़ ऐसे विकास को आगे बढ़ाने में सहायक बनती है, जो ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं की सच्ची नुमाइंदगी करे. संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन (WTO) औक G77 जैसे मंचों में भारत की शिरकत समावेशी वैश्विक विकास के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को ही दर्शाती है. गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के संस्थापक के तौर पर भारत, वैसे तो ऐतिहासिक रूप से हमेशा ही विकासशील देशों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाता रहा है. लेकिन, हाल के दिनों में भारत ने पारंपरिक गठबंधनों का संतुलन नए और दूरदर्शी सोच वाली साझेदारियों के साथ भी बिठाया है. मिसाल के तौर पर अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने वाले 120 देशों के  इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) के अगुवा के तौर पर भारत वैश्विक स्तर पर टिकाऊ विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है.

2023 में भारत G20 का अध्यक्ष रहा. उसकी अध्यक्षता वैश्विक विकास के मामले में कई अहम क़दम उठाने वाली साबित हुई, जिससे समावेशी और टिकाऊ विकास के लिए भारत की प्रतिबद्धता रेखांकित हुई. ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ (वसुधैव कुटुम्बकम) की थीम के तहत भारत ने जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता, डिजिटल परिवर्तन और वैश्विक संसाधनों तक समान रूप से पहुंच को प्राथमिकता दी. भारत की अध्यक्षता की एक बड़ी उपलब्धि अफ्रीकी संघ (AU) को G20 के पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर शामिल कराने की रही. ये क़दम वैश्विक प्रशासन में ग्लोबल साउथ की मुखर आवाज़ उठाने को लेकर भारत के समर्पण को रेखांकित करने वाला था. इसके अलावा भारत ने डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को मज़बूती देने, तकनीक के ज़रिए वित्तीय समावेश को बढ़ावा देने और विकासशील देशों को और मदद उपलब्ध कराने के लिए बहुपक्षीय बैंकों में सुधार देने जैसी पहलों की वकालत ही. G20 को विकास के अधिक समावेशी एजेंडे की दिशा में आगे बढ़ाते हुए भारत ने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील बाज़ारों के बीच पुल का काम किया और साझा वैश्विक चुनौतियों के लिए सहयोगात्मक समाधानों को मज़बूती प्रदान की.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसे प्रमुख वित्तीय संस्थानों की प्राथमिकताओं पर अक्सर ग्लोबल नॉर्थ के हित हावी रहते हैं, जो आम तौर पर ये मदद हासिल करने वाले देश के हितों से मेल नहीं खाते हैं. इन मंचों पर भारत की आवाज़ ऐसे विकास को आगे बढ़ाने में सहायक बनती है, जो ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं की सच्ची नुमाइंदगी करे.

ब्रिक्स (BRICS) देशों के साथ भारत द्वारा न्यू डेवेलपमेंट बैंक की स्थापना में मदद और एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) में योगदान देकर भारत विकास के वित्त के अधिक समानता वाले नए मॉडलों की वकालत करता है. हालांकि, BRICS के भीतर भारत की भूमिका अधिक सतर्क और रणनीतिक है. भारत, ब्राज़ील, रूस चीन और दक्षिण अफ्रीका के साथ विकास के साझा लक्ष्य हासिल करने के लिए सहयोग करता है. लेकिन, वो इस समूह के भीतर चीन के बढ़ते दबदबे को लेकर सशंकित भी बना रहता है. यही नहीं, भारत ब्रिक्स की रूप-रेखा के भीतर चीन और रूस द्वारा अक्सर बयां किए जाने वाले पश्चिम विरोधी जज्बातों का पूरी तरह समर्थन करने के बजाय उनको लेकर बहुत सतर्कता से अपनी राय व्यक्त करता है. इन नज़रियों के साथ तालमेल मिलाने के बजाय भारत, ब्रिक्स का ध्यान विकास के वैश्विक लक्ष्यों की तरफ़ मोड़ता है. क्योंकि ये मक़सद वैचारिक विभाजनों से ऊपर हैं. इस तरह भारत समावेश और समतावादी विकास पर ज़ोर देता है.

विकास और बढ़ती चुनौतियां: भारत की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं की जटिलताएं

वैश्विक विकास के प्रशासन में भारत का प्रभाव तो बढ़ रहा है. लेकिन, उसके नेतृत्व को जारी रखने में कुछ चुनौतियां बाधा बन सकती हैं. आर्थिक रूप से भारत GDP के मामले में दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. लेकिन, उसकी प्रति व्यक्ति आय विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत कम है. 2024 तक भारत की नॉमिनल प्रति व्यक्ति GDP 2698 डॉलर होने का अनुमान लगाया गया था, जो दुनिया की 194 अर्थव्यवस्थाओं में से 144वें स्थान पर है. ये आंकड़ा वैश्विक औसत से भी काफ़ी कम है, जिससे भारत के संपूर्ण आर्थिक आकार और उसके नागरिकों की व्यक्तिगत आय के बीच भारी फ़र्क़ को उजागर करता है. पर्चेज़िंग पावर पैरिटी (PPP) के पैमाने पर भारत की प्रति व्यक्ति GDP अधिक है, जो रहन सहन के कम ख़र्च को रेखांकित करता है. हालांकि ये अभी भी वैश्विक औसत से काफ़ी नीचे है, जिससे लगातार आर्थिक विकास करके व्यक्तिगत समृद्धि में सुधार लाने की ज़रूरत है, जिससे विकास के समावेशी मार्ग पर आगे बढ़ा जा सके. वैसे तो भारत ने करोड़ों लोगों को ग़रीबी रेखा से ऊपर उठाया है. लेकिन, अगर भारत को विकास के सफ़र को जारी रखना है, तो उसके लिए मूलभूत ढांचे की कमी, विनियमन की बाधाओं और कामगारों के विकास जैसी संरचनात्मक चुनौतियों से निपटना ज़रूरी है.

नए ट्रंप प्रशासन के तहत व्यापार, जलवायु को लेकर प्रतिबद्धता और बहुपक्षीय सहयोग के मामले में नई विदेश नीति की वजह से दुनिया के साथ भारत के सामरिक समीकरणों पर भी गहरा असर पड़ सकता है.

भारत के सामने घरेलू सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे भी हैं. इनमें आदमनी में बढती असमानता, पर्यावरण को नुक़सान और क्षेत्रीय असमानताएं शामिल हैं. इन अंदरूनी प्राथमिकताओं का संतुलन अपनी वैश्विक प्रतिबद्धताओं के साथ बिठाना भारत के प्रशासन और सामरिक विज़न का इम्तिहान होगा. यही नहीं, अहम साझीदार देशों ख़ास तौर से अमेरिका में उभरता राजनीतिक मंज़र भारत के लिए इन जटिलताओं में एक और परत जोड़ देता है. नए ट्रंप प्रशासन के तहत व्यापार, जलवायु को लेकर प्रतिबद्धता और बहुपक्षीय सहयोग के मामले में नई विदेश नीति की वजह से दुनिया के साथ भारत के सामरिक समीकरणों पर भी गहरा असर पड़ सकता है. वैसे तो अमेरिका और भारत की साझेदारी काफ़ी बढ़ गई है. लेकिन व्यापारिक विवादों और भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं को लेकर तनाव से दोनों देशों के रिश्तों में खिंचाव आ सकता है.

आख़िर में, वैश्विक विकास के प्रशासन में भारत की उभरती भूमिका, पारंपरिक रूप-रेखाओं के बजाय अधिक समावेशी और आपस में जुड़े नज़रिए पर ज़ोर देने का संकेत देती है. ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ के बीच विभेद से बचते हुए भारत का ग्लोबल साउथ के बीच और ग्लोबल नॉर्थ के साथ सहयोग को अपने व्यवहार में शामिल करना ये दिखाता है कि उभरती अर्थव्यवस्थाएं किस तरह अधिक न्यायोचित, प्रभावी और ज़्यादा टिकाऊ वैश्विक व्यवस्था को आकार दे सकती हैं. फिर भी, इस नेतृत्व को बनाए रखने के लिए भारत को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों का चतुराई और दूरदृष्टि से सामना करना होगा.


(डिसक्लेमर: इस लेख के तीसरे और चौथे पैराग्राफ में कुछ तथ्यों को शामिल करने के लिए लेखक के पूर्ववर्ती पॉलिसी ब्रीफ, ‘ब्रिजिंग दि SDGs फाइनेंशिंग गैप: ए टेन प्वाइंट एजेंडा फ़ॉर दि G20’ से जानकारी को संक्षिप्त करने के लिए GPT-4o की मदद ली गई थी)

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