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जब भारत डिजिटल क्रांति की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है, उत्तर-पूर्वी राज्य अब भी कमजोर इंटरनेट, सीमित नेटवर्क और अधूरे ढांचे की वजह से पीछे छूट रहे हैं. अगर ये खाई नहीं पाटी गई, तो देश का यह रणनीतिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इलाका ‘डिजिटल इंडिया’ से अलग-थलग पड़ जाएगा.
Image Source: Getty Images
तेज़ी से तरक़्क़ी करते डिजिटल दौर में जब भारत डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान पर आधारित अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में लंबी छलांगें लगा रहा है तो देश का उत्तरी पूर्वी क्षेत्र (NER) इसके बिल्कुल उलट तस्वीर पेश कर रहा है. जहां देश के बाक़ी हिस्सों में ‘डिजिटल इंडिया’ का शोर गूंज रहा है, वहीं सामरिक रूप से बेहद अहम देश के आठ उत्तरी पूर्वी राज्य ऐसी डिजिटल खाई का सामना कर रहे हैं जो तरक़्क़ी नहीं करने का एक नया स्वरूप बनते जा रहे हैं जिसे डिजिटल आइसोलेशन यानी डिजिटल भारत से कट जाना कहा जा सकता है. तमाम नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों के बावजूद नॉर्थ ईस्ट का इलाक़ा उस रफ़्तार से प्रगति नहीं कर पा रहा है जो देश के बाक़ी हिस्सों के साथ तालमेल के लिए ज़रूरी है. इसकी तमाम वजहें हैं जैसे कि इलाक़े की मुश्किल भौगोलिक बनावट, बाक़ी देश से सीमित संपर्क और पहले से चली आ रही संस्थागत चुनौतियां. इसी वजह से आज उत्तरी पूर्वी भारत के राज्य, तरक़्क़ी के मामले में देश के बाक़ी राज्यों के साथ कदमताल नहीं मिला पा रहे हैं. इसीलिए, उत्तर पूर्वी भारत में डिजिटल कनेक्टिविटी की मौजूदा स्थिति और मौजूदा समय में किए जा रहे प्रयासों के असर को समझना ज़रूरी है, ताकि इस क्षेत्र को देश के क्रांतिकारी डिजिटल बदलाव के साथ जोड़ने के लिए नीतिगत सुझाव दिए जा सके.
डिजिटल क्षेत्र में अगर नॉर्थ ईस्ट इंडिया बाक़ी देश से पीछे है, तो इसकी वजह सिर्फ़ सुस्त इंटरनेट नहीं है; असल में ये इंटरनेट सेवा की उपलब्धता, इसकी क़ीमत और क्वालिटी के अंतर की तस्वीर है. उत्तर पूर्व का ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाक़ा अक्सर क़ुदरती आपदाओं का शिकार होता है. इससे यहां डिजिटल सेवा उपलब्ध कराने के बुनियादी ढांचे का विस्तार करने में दिक़्क़तें आती हैं. इसका नतीजा एक स्याह सच्चाई के तौर पर हमारे सामने है. नॉर्थ ईस्ट के बहुत से गांव ऐसे हैं, जो मोबाइल नेटवर्क से पूरी तरह से कटे हुए हैं; मिसाल के तौर पर अरुणाचल प्रदेश के लगभग 49.24 प्रतिशत और सिक्किम के 65.94 फीसदी गांवों में मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है. अगर आज हर सौ लोगों की आबादी पर उत्तर पूर्वी भारत के राज्य इंटरनेट सब्सक्राइबर्स के मामले में बाक़ी देश से काफ़ी पीछे हैं तो इसकी बड़ी वजह बुनियादी ढांचे की ये कमी ही है.
उत्तर पूर्वी भारत में डिजिटल कनेक्टिविटी की मौजूदा स्थिति और मौजूदा समय में किए जा रहे प्रयासों के असर को समझना ज़रूरी है, ताकि इस क्षेत्र को देश के क्रांतिकारी डिजिटल बदलाव के साथ जोड़ने के लिए नीतिगत सुझाव दिए जा सके.
बुनियादी सुविधा के इस मसले की गहराई से पड़ताल करें तो इसकी असल वजह सर्विस की क्वालिटी है. जिन गांवों में मोबाइल कनेक्टिविटी मौजूद भी है, वहां पर उसकी स्पीड और हर समय उपलब्धता देश के बाक़ी हिस्सों के मुक़ाबले काफ़ी ख़राब है. असम और मेघालय जैसे राज्यों में टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (TRAI) ने स्वतंत्र रूप से इंटरनेट स्पीड के जो टेस्ट किए हैं, वो एक चुनौतीपूर्ण तस्वीर पेश करते हैं. मिसाल के तौर पर, मेघालय के कुछ हिस्सों में भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) का 2G नेटवर्क है, जहां कॉल ड्रॉप की दर 8.75 प्रतिशत है. वहीं, जिन इलाक़ों में 3G नेटवर्क की सुविधा मौजूद है, वहां कॉल ड्रॉप की दर 10.60 प्रतिशत है. जो क्वालिटी ऑफ़ सर्विस के मामले में 2 प्रतिशत कॉल ड्रॉप से चार से पांच गुना ज़्यादा है. इसी तरह, असम के कुछ हिस्सों में इस सरकारी कंपनी के 2G नेटवर्क में कॉल सेट-अप का सक्सेज रेट केवल 76.02 प्रतिशत है, जो बेंचमार्क 98 फ़ीसद से कम है. डेटा सर्विस को किसी भी डिजिटल इकॉनमी की रीढ़ कहा जाता है लेकिन, नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में इस सेवा की तस्वीर भी असंतोषजनक है. मेघालय में BSNL के 3G नेटवर्क की औसत डाउनलोड स्पीड सिर्फ़ 0.315 Mbps है. ये सिर्फ़ असुविधा की बात नहीं है. ऐसी दिक़्क़तें ई-गवर्नेंस, ऑनलाइन पढ़ाई, टेलीमेडिसिन और डिजिटल कॉमर्स जैसी सुविधाओं का इस्तेमाल करने में बुनियादी बाधाएं खड़ी करती हैं. इससे आबादी का एक बड़ा हिस्सा इन सेवाओं से महरूम रह जाता है. पूरे नॉर्थ ईस्ट में रियल टाइम इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क की क्वालिटी का पता लगाने के लिए डेटा कलेक्शन की कोई मज़बूत व्यवस्था भी नहीं है. इससे समस्या और भी बढ़ जाती है. डेटा की कमी के चलते नीति निर्माताओं के पास डेटा के मामले में वो तस्वीर नहीं होती, जिसके आधार पर वो इस डिजिटल खाई को पाटने और ख़ास आबादी को लक्ष्य करके नीतियां बना सकें.
ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार इन चुनौतियों से बेख़बर है. सरकार ने ‘डिजिटल नॉर्थ ईस्ट विज़न 2022’ और महत्वाकांक्षी भारतनेट परियोजना जैसे क़दम उठाए हैं जिनका घोषित लक्ष्य इस खाई को पाटना है. ‘डिजिटल नॉर्थ ईस्ट’ की पहल उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए ख़ास तौर से तैयार किए गए डिजिटल सॉल्यूशन लागू करने पर केंद्रित है ताकि नागरिकों को कृषि, दिव्यांगों की पढ़ाई-लिखाई और पारंपरिक कौशल जैसे मामलों में सशक्त बनाया जा सके. अभी हाल ही में ‘समृद्ध ग्राम’ योजना शुरू की गई है. इसके पायलट प्रोजेक्ट में भारतनेट के मूलभूत ढांचे का इस्तेमाल करके एकीकृत ‘Phygital Services’ देने का लक्ष्य रखा गया है ताकि एक जीवंत डिजिटल विलेज इकोसिस्टम विकसित किया जा सके. ये ऐसे विज़न हैं जो देश और पूरे नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र के लिए नई उम्मीदें जगाने वाले हैं.
हाल ही में ‘समृद्ध ग्राम’ योजना शुरू की गई है. इसके पायलट प्रोजेक्ट में भारतनेट के मूलभूत ढांचे का इस्तेमाल करके एकीकृत ‘Phygital Services’ देने का लक्ष्य रखा गया है ताकि एक जीवंत डिजिटल विलेज इकोसिस्टम विकसित किया जा सके. ये ऐसे विज़न हैं जो देश और पूरे नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र के लिए नई उम्मीदें जगाने वाले हैं.
हालांकि, ज़मीनी स्तर पर इन योजनाओं को लागू करने की प्रक्रिया देरी और अकुशलताओं की शिकार रही है. उत्तर पूर्वी भारत में भारतनेट की प्रगति बहुत धीमी रही है. इसकी वजह इलाक़े की भौगोलिक बनावट और लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियां रही हैं. उत्तर पूर्वी भारत में हाई स्पीड इंटरनेट की मदद से तमाम तरह की सुविधाएं हासिल करने वाले डिजिटल तौर पर मज़बूत एक ‘समृद्ध गांव’ का देश का विज़न, हक़ीक़त में तब्दील कर पाना तब तक मुश्किल बना रहेगा, जब तक इसे साकार करने का बुनियादी ढांचा अधूरा और ग़ैर भरोसेमंद बना रहेगा. इससे एक अहम सवाल खड़ा होता है: डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ाने वाले इन कार्यक्रमों और योजनाओं की समीक्षा, मूल्यांकन और इनका ऑडिट कैसे होता है? इन योजनाओं के ऑडिट के लिए और पेशेवराना तरीक़ा अपनाने, प्राथमिकता देने और ईमानदारी बरतने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है. अच्छी नीयत से लाई गई इन योजनाओं को लेकर क्या वादे किए गए और वास्तव में क्या उपलब्धियां रही, इन बातों का ठोस, स्वतंत्र और पारदर्शी मूल्यांकन बेहद आवश्यक है. वरना ये सभी योजनाएं बड़ी बड़ी घोषणाएं बन कर रह जाएंगी और इनके मद में ख़र्च की जाने वाली सरकारी रक़म एक ऐसी डिजिटल गर्त में जाती रहेगी, जिनके कोई ठोस परिणाम नहीं निकलेंगे. न ही इस दूरगामी इलाक़े के हर पंचायत या गांव के यूज़र्स के लिए सेवा की क्वालिटी सुधरेगी.
डिजिटल फ़ासलों को कम करने के लिए हमें अपना ज़ोर सिर्फ़ ‘कनेक्टिविटी’ बढ़ाने के बजाय अब ‘अर्थपूर्ण कनेक्टिविटी’ की तरफ़ केंद्रित करना होगा. इस परिकल्पना के दायरे में कनेक्शन की क्वालिटी भी शामिल होती है और इसके दायरे में इंटरनेट की ‘पर्याप्त स्पीड’, पर्याप्त डेटा और उपयुक्त उपकरण भी आते हैं. जनवरी 2023 के रिकॉर्ड के मुताबिक़, असम को (22.55 Mbps) छोड़ उत्तर पूर्वी भारत के हर राज्य के शहरी केंद्रों में औसत वायरलेस डाउनलोड की स्पीड 20 Mbps से कम है. जबकि बफ़रिंग जैसी दिक़्क़तों से बचने के लिए कम से कम इतनी स्पीड रेकमेंडेड की जाती है.
इसके अलावा, इंटरनेट सेवा की क़ीमत भी एक बड़ी बाधा बनी हुई है. संयुक्त राष्ट्र के ब्रॉडबैंड कमीशन की परिभाषा के मुताबिक़ इंटरनेट तभी सबके लिए अफोर्डेबल होता है, जब डेटा के शुरुआती प्लान की लागत औसत मासिक आय के 2 प्रतिशत से भी कम होती है. इस पैमाने के हिसाब से असम, मणिपुर, मेघायल और त्रिपुरा में लोगों को बेसिक इंटरनेट प्लान के लिए कहीं ज़्यादा रक़म ख़र्च करनी पड़ती है. महिलाओं और पुरुषों के बीच का अंतर इस मामले को और भी जटिल बना देता है; असम और मेघालय में चालीस प्रतिशत से भी कम महिलाओं ने अपने जीवन में कभी भी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है. एक और अहम आयाम, इंटरनेट पर प्रासंगिक लोकल कंटेंट के अभाव का भी है. उत्तर पूर्वी भारत, भाषाई रूप से भारत का सबसे विविधता वाला क्षेत्र है. इस इलाक़े में 63 ग़ैर अनुसूचित भाषाएं बोली जाती हैं, जिनके बोलने वालों की अच्छी ख़ासी तादाद है. ये ज़बरदस्त विविधता एक ऐसा डिजिटल इकोसिस्टम बनाने में बाधा बनती है, जिसमें ऐसा कंटेंट हो, जो सभी लोगों के लिए प्रासंगिक और पहुंच वाला हो. डिजिटल समावेश का ये एक अहम पहलू है.
उत्तर पूर्वी भारत में डिजिटल विकास को लेकर होने वाली परिचर्चाओं में डिजिटल परिवर्तन के अगले मोर्चे यानी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI), डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) और कौशल में बदलाव का है; इन सभी मामलों में कनेक्टिविटी की बुनियादी सुविधा ही सफलता की चाबी है. काम-काज का भविष्य AI और ऑटोमेशन से बहुत प्रभावित रहने वाला है. हालांकि, एक कमज़ोर इंटरनेट की बुनियाद पर इस क्षेत्र में AI के एक मज़बूत इकोसिस्टम का निर्माण नहीं किया जा सकता है. शिक्षा के क्षेत्र में क्षमता की ये कमियां स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं. जैसे कि असम में केवल 16.27 प्रतिशत स्कूलों में ही काम कर रहे कंप्यूटर हैं और केवल 11.71 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा है. ये गुजरात जैसे राज्य से बहुत कम है, जहां ये आंकड़े क्रमश: 97.8 और 92 प्रतिशत है.
उभरती तकनीकों की अगुवाई वाले भविष्य के लिए तैयार रहने के लिए, इस विविधता भरे और चारों तरफ़ थल सीमा से घिरे इलाक़े में फ़ौरी और सबसे बड़ी प्राथमिकता एक लचीले, हाई क्वालिटी वाले विश्वसनीय नेटवर्क का बुनियादी ढांचा खड़ा करना है.
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के क्षमता निर्माण के कार्यक्रमों जैसे पहलें सही दिशा में उठाए गए क़दम हैं. हालांकि, इनका बहुत बड़े स्तर पर विस्तार किए जाने की आवश्यकता है. किसी भी आधुनिक डिजिटल राज्य की रीढ़ डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का एक मज़बूत ढांचा है जिसमें पहचान और भुगतान शामिल हो. लेकिन, उत्तर पूर्वी भारत में डिजिटल पेमेंट के नाकाम रहने की दर राष्ट्रीय औसत से डेढ़ से दो गुना अधिक है. इसकी वजह नेटवर्क का डाउन रहना और इंटरनेट की स्पीड आधी रहना है. इस अस्थिरता से डिजिटल ढांचे पर लोगों का भरोसा कमज़ोर होता है और लोग डिजिटल सेवाएं अपनाने से बचते हैं. उभरती तकनीकों की अगुवाई वाले भविष्य के लिए तैयार रहने के लिए, इस विविधता भरे और चारों तरफ़ थल सीमा से घिरे इलाक़े में फ़ौरी और सबसे बड़ी प्राथमिकता एक लचीले, हाई क्वालिटी वाले विश्वसनीय नेटवर्क का बुनियादी ढांचा खड़ा करना है.
उत्तर पूर्वी भारत और बाक़ी देश के बीच की डिजिटल खाई को पाटना महज आंकड़ों का खेल नहीं है; ऐसा नहीं करना मानवीय संभावनाओं का भारी नुक़सान कर सकता है. इसका मतलब होगा, उत्तर पूर्व की कई पीढ़ियां तो अभी भी डिजिटल समाज और अर्थव्यवस्था के फ़ायदों से वंचित हैं और आगे भी कई पीढ़ियां इसके लिए शापित होंगी. कम डिजिटल विकास के ऐसे स्याह भविष्य से बचने के लिए एक बड़े बदलाव की ज़रूरत है. कनेक्टिविटी बढ़ाने की फ़ुर्ती को अच्छी कनेक्टिविटी देने के साथ जोड़ना होगा. इसके लिए तमाम भागीदारों को साथ लेकर चलने वाला तरीक़ा अपनाना होगा, जो नीतिगत घोषणाओं और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) को उपलब्ध कराने से आगे ले जाएगा. इसके लिए तय समय के भीतर योजनाओं को लागू करना होगा. कार्यक्रमों की प्रगति का पेशेवर तरीक़े से ऑडिट ज़रूरी होगा और सर्विस की क्वालिटी की वास्तविक समय में निगरानी करनी होगी. इसके साथ ही भविष्य के लिए तैयार ऐसा इकोसिस्टम बनाने पर ज़ोर देना होगा, जो समय के मुताबिक़ प्रासंगिक कौशल विकास, अवसरों और स्थानीय कंटेंट को बढ़ावा दे ताकि स्थानीय डिजिटल समुदाय और अर्थव्यवस्थाओं का विकास हो सके. डिजिटल विभाजन की समस्या से निपटना एक चुनौती भरा मगर आवश्यक सफर है, जिसके लिए मज़बूत प्रतिबद्धता की ज़रूरत है. आज के डिजिटल युग में ‘उत्तरी पूर्वी एशिया का द्वार’ कहे जाने वाले उत्तर पूर्वी भारत की अपार संभावनाओं को हक़ीक़त बनाने के लिए ये प्रयास ज़रूरी है.
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Syed is an ICTD professional for over 20 years now. He specialises in digital for development and has worked pan India and now focuses in ...
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