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चीन के झंडे अब बांग्लादेश की सड़कों पर लहराने लगे हैं — कभी भारत के “सबसे भरोसेमंद पड़ोसी” रहे देश का झुकाव अब तेजी से बीजिंग की ओर बढ़ रहा है. तीस्ता नदी से लेकर अरबों डॉलर के निवेश तक, सत्ता परिवर्तन के बाद ढाका की कूटनीति एक नए मोड़ पर है.
Image Source: Getty
19 अक्टूबर 2025 को बांग्लादेश की चटगांव यूनिवर्सिटी में एक विशाल रैली आयोजित की गई. इस दौरान चीन की तीस्ता नदी व्यापक प्रबंधन और पुनरुद्धार परियोजना को तुरंत लागू करने की मांग की गई ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि बांग्लादेश को नदी के पानी का अपना “उचित हिस्सा” मिले. ये प्रदर्शन उस समय हुआ जब उत्तरी बांग्लादेश के रंगपुर डिवीज़न में ऐसे आंदोलनों की बाढ़ आ गई है और भारत के साथ गंगा जल को साझा करने की संधि 2026 में ख़त्म हो रही है. भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों के कारण इस संधि के नवीनीकरण की शर्तों को लेकर आशंकाएं पैदा हो गई हैं. तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे को लेकर बांग्लादेश और भारत के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है. ये विवाद प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाले बांग्लादेश के पूर्व प्रशासन के ख़िलाफ़ सबसे कड़ी आलोचना भी है क्योंकि उन्होंने चीन की तरफ से संकट के निपटारे के प्रस्ताव के बावजूद पड़ोस को प्राथमिकता दी थी और भारत के साथ मिलकर इस विवाद को सुलझाने पर ज़ोर दिया था. उनके इस रुख ने अगस्त 2024 में सत्ता से उनके बेदखल होने में योगदान दिया. अनिश्चितता के इस माहौल के बीच बांग्लादेश का नया नेतृत्व दूसरे देशों के साथ अपने संबंधों को फिर से परिभाषित कर रहा है.
ये प्रदर्शन उस समय हुआ जब उत्तरी बांग्लादेश के रंगपुर डिवीज़न में ऐसे आंदोलनों की बाढ़ आ गई है और भारत के साथ गंगा जल को साझा करने की संधि 2026 में ख़त्म हो रही है.
बांग्लादेश ने मिसाइल लॉन्चर, लड़ाकू विमान, दो मिंग-क्लास पनडुब्बी और कई हथियार प्रणाली ख़रीदी है जिससे चीन, बांग्लादेश का सबसे बड़ा हथियार सप्लायर बन गया है.
बहरहाल, सत्ता परिवर्तन के एक साल बाद बांग्लादेश की विदेश नीति बदलाव के दौर से गुजर रही है और चीन की तरफ स्पष्ट रूप से झुकाव दिख रहा है. इसने अवामी लीग सरकार की भारत के साथ पहले की ‘संतुलन की कूटनीति’ की जगह ले ली है. अंतरिम सरकार का मुख्य सलाहकार नियुक्त होने के बाद मोहम्मद यूनुस ने अपनी पहली आधिकारिक यात्रा के लिए चीन को चुना. ये दौरा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि अंतरिम सरकार चीन के निवेश पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. ये निर्भरता न केवल देश के विकास के लिए बल्कि राजनीतिक रूप से उथल-पुथल वाले माहौल में अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए भी है. मार्च 2025 का ये दौरा दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों की 50वीं सालगिरह के अवसर पर हुआ. इस दौरे में बांग्लादेश ने 2.1 अरब अमेरिकी डॉलर का चीनी निवेश और अनुदान हासिल किया. इस तरह वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान बांग्लादेश में चीन का कुल निवेश बढ़कर लगभग 42 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. यूनुस ने अनुरोध किया कि चीन अपने कर्ज़ की ब्याज दर कम करे और चीन के फंड से चलने वाली परियोजनाओं पर कमिटमेंट फीस (कर्ज़ या लाइन ऑफ क्रेडिट देने के बदले ली जाने वाली फीस) को माफ कर दिया जाए. आर्थिक सहयोग में बढ़ोतरी और बांग्लादेश के हरित परिवर्तन के लिए यूनुस ने चीन से ये अनुरोध भी किया कि मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों को बांग्लादेश लाने में मदद करे.
अनिश्चितता के इस माहौल के बीच बांग्लादेश का नया नेतृत्व दूसरे देशों के साथ अपने संबंधों को फिर से परिभाषित कर रहा है.
चीन ने तत्परता दिखाते हुए बांग्लादेश की इस कूटनीतिक पहल का जवाब दिया. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने व्यक्तिगत रूप से बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार का स्वागत किया और बीजिंग के ग्रेट हॉल ऑफ द पीपुल में एक उच्च-स्तरीय वार्ता की मेज़बानी की. लेकिन अधिक भागीदारी के लिए चीन के प्रयास केवल अंतरिम सरकार के साथ आदान-प्रदान तक सीमित नहीं रहे हैं जो आखिरकार एक अस्थायी व्यवस्था है. चीन बांग्लादेश में अपनी पकड़ मज़बूत करने वाले सत्ता के कई केंद्रों के साथ लगातार भागीदारी बढ़ा रहा है. इनमें सबसे प्रमुख नाम है जमात-ए-इस्लामी का जो एक राजनीतिक दल है और जिसके बारे में कहा जाता है कि वो “कट्टर भारत विरोधी” और “पूरी तरह से पाकिस्तान समर्थक” है. साथ ही इसने उइगुर समुदाय के साथ व्यवहार के लिए कभी भी चीन की आलोचना नहीं की है. सितंबर 2024 में बांग्लादेश में चीन के राजदूत याओ वेन ने जमात के अमीर (प्रमुख) शफीकुर रहमान के साथ मुलाक़ात की. ये 2010 के बाद पार्टी के ढाका कार्यालय में किसी विदेशी राजनयिक का पहला दौरा था. उन्होंने सार्वजनिक रूप से जमात-ए-इस्लामी को एक “अच्छी तरह से संगठित राजनीतिक दल” कहा. इसके कुछ दिन बाद दिसंबर 2024 में जमात-ए-इस्लामी के 14 सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल (जिसकी अगुवाई पार्टी के एक शीर्ष नेता ने की) ने चीन का दौरा किया. जुलाई 2025 में ढाका स्थित चीनी दूतावास ने जमात-ए-इस्लामी के प्रतिनिधिमंडल के लिए स्वागत समारोह का आयोजन किया. दो महीने बाद सितंबर में चीन के पीपुल्स इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन अफेयर्स के एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने ढाका में जमात-ए-इस्लामी के नेताओं से मुलाकात की.
इस लगातार बातचीत को देखते हुए ये आश्चर्य की बात नहीं है कि बांग्लादेश के युवाओं का एक बड़ा हिस्सा चीन को अच्छी नज़र से देखता है. विशेष रूप से इस्लामी छात्र शिबिर- जो जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा है- चीन को लेकर अच्छी राय रखता है जिसने हाल ही में ढाका यूनिवर्सिटी और चटगांव यूनिवर्सिटी समेत बांग्लादेश के महत्वपूर्ण शिक्षा संस्थानों में छात्र संघ के चुनाव में जीत दर्ज की है. अवामी लीग की पूर्व सरकार के विरोध की वजह से भड़की भारत विरोधी भावनाओं के साथ भारत की सामरिक संवेदनशीलता की कीमत पर भी चीन के तीस्ता प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए चटगांव में विरोध प्रदर्शनों को जोड़ दें तो ये चीन की कूटनीतिक चाल की सफलता दिखाता है.
अपनी विकसित होती अर्थव्यवस्था और बढ़ती युवा आबादी के साथ बांग्लादेश न केवल चीन के उत्पादों के लिए एक बड़ा बाज़ार है, बल्कि वो चीन के लिए सामरिक संभावना भी रखता है. बंगाल की खाड़ी के ऊपरी क्षेत्र में स्थित होने और भारत के पूर्वोत्तर एवं नेपाल और भूटान जैसे हिमालयी देशों के करीब होने के कारण बांग्लादेश चीन के लैंडलॉक्ड पश्चिमी प्रांतों के लिए समुद्री पहुंच मुहैया कराने के हिसाब से आदर्श जगह पर स्थित है. इसके अलावा बांग्लादेश बंगाल की खाड़ी में महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों पर नौवहन (नेविगेशन) की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए एक आधार प्रदान करता है. ये समुद्री मार्ग चीन की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, ख़ासकर तब जब चीन ‘मलक्का की दुविधा’ (यानी मलक्का स्ट्रेट पर चीन की भारी निर्भरता) से ग्रस्त है. दक्षिण एशिया (विशेष रूप से बांग्लादेश) में अमेरिका की नए सिरे से दिलचस्पी, विकास से जुड़ी साझेदारी के माध्यम से संबंध स्थापित करने के जापान के प्रयास और पड़ोसी देश होने की वजह से बांग्लादेश के साथ भारत की स्वाभाविक साझेदारी ने बांग्लादेश में चीन को अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए और प्रेरित किया है. इस तरह बांग्लादेश के साथ संबंधों को चीन बहुत महत्व देता है.
अंतरिम सरकार ने न केवल CIEZ के विकास को तेज़ी से आगे बढ़ाया है बल्कि वो चीन के निवेशकों के लिए विशेष रूप से दो और आर्थिक क्षेत्र बनाने की योजना भी बना रही है.
1971 के मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान का समर्थन करने और संयुक्त राष्ट्र (UN) में बांग्लादेश के प्रवेश पर वीटो लगाने के बाद चीन ने बांग्लादेश के साथ दोस्ताना संबंध बनाए. दोनों देशों के बीच 1975 में आधिकारिक संबंधों की स्थापना हुई. इस साझेदारी को मुख्य रूप से आर्थिक सहयोग ने बढ़ाया और 2006 में भारत को पीछे छोड़कर चीन, बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया. ये बदलाव इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि भारत और बांग्लादेश दुनिया में पांचवीं सबसे बड़ी सीमा साझा करते हैं और व्यापार औपचारिक एवं अनौपचारिक- दोनों माध्यमों से होता है. अगस्त 2024 और अगस्त 2025 (यानी सत्ता परिवर्तन के बाद की अवधि) के बीच बांग्लादेश में चीन के सामानों का आयात 1.54 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 1.92 अरब अमेरिकी डॉलर (25 प्रतिशत बढ़ोतरी) हो गया. वहीं चीन को बांग्लादेश का निर्यात 90.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 130 मिलियन अमेरिकी डॉलर (44.1 प्रतिशत बढ़ोतरी) हो गया जो उल्लेखनीय है. एशिया-पैसिफिक व्यापार समझौते के तहत चीन के बाज़ार में बांग्लादेश के 99 प्रतिशत सामान बिना किसी टैरिफ के पहुंचते हैं. लेकिन बांग्लादेश अगले साल कम विकसित देश (LDC) का दर्जा और इसके तहत मिलने वाला समर्थन खोने वाला है. फिर भी चीन 2028 तक ज़ीरो-टैरिफ की नीति का विस्तार करने के लिए सहमत हो गया है.
इसके अलावा चीन, बांग्लादेश का सबसे बड़ा विकास साझेदार भी है. 2016 में चीन की प्रमुख परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में बांग्लादेश के शामिल होने के बाद से चीन ने बांग्लादेश में 12 सड़कें, 21 पुल और 27 पावर प्लांट बनाए हैं (2023 तक). चीन ने चटगांव और मोंगला बंदरगाह के कुछ हिस्सों को बनाने में भी मदद की है. चीन ने पद्मा पुल बनाने में भी सहायता की है जो बांग्लादेश का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 1.2 प्रतिशत बढ़ा सकता है और जिसकी वजह से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में 5,50,000 नई नौकरियां पैदा हुई हैं. चीनी औद्योगिक आर्थिक क्षेत्र (CIEZ) को विकसित करने के लिए 2.1 अरब अमेरिकी डॉलर निवेश करने के चीनी कंपनियों के संकल्प ने चीन की अर्थव्यवस्था में बांग्लादेश का भरोसा बढ़ाया है. अंतरिम सरकार ने न केवल CIEZ के विकास को तेज़ी से आगे बढ़ाया है बल्कि वो चीन के निवेशकों के लिए विशेष रूप से दो और आर्थिक क्षेत्र बनाने की योजना भी बना रही है.
व्यापार और विकास के अलावा बांग्लादेश ने 2002 में चीन के साथ ऐतिहासिक रक्षा संधि पर भी हस्ताक्षर किए. ये किसी भी देश के साथ बांग्लादेश का पहला रक्षा सहयोग समझौता था. उसके बाद से बांग्लादेश ने मिसाइल लॉन्चर, लड़ाकू विमान, दो मिंग-क्लास पनडुब्बी और कई हथियार प्रणाली ख़रीदी हैं जिससे चीन, बांग्लादेश का सबसे बड़ा हथियार सप्लायर बन गया है. 2019 और 2023 के बीच चीन ने बांग्लादेश को 72 प्रतिशत हथियारों का निर्यात किया है. चीन ने 2018 और 2023 के बीच बांग्लादेश के पहले पनडुब्बी बेस BNS शेख हसीना का भी निर्माण किया है. अमेरिका के रक्षा विभाग के द्वारा तैयार की गई सूची में बांग्लादेश उन देशों में शामिल है जहां चीन अपना सैन्य अड्डा बना सकता है. बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद पाकिस्तान ने बांग्लादेश को चीन से 12 J-10C लड़ाकू विमान ख़रीदने के लिए मजबूर करने की अपनी कोशिशें बढ़ा दी हैं. हालांकि बांग्लादेश अलग-अलग देशों के साथ अपनी रक्षा साझेदारी बढ़ाने का प्रयास कर रहा है. इसका कारण हाल के दिनों में चीन से हासिल हथियारों की क्वालिटी को लेकर निराशा है.
बांग्लादेश के लोगों का दिल जीतने में चीन की सफलता के पीछे ये सोच भी बहुत बड़ा कारण है कि चीन उनकी आंतरिक राजनीति में दखल नहीं देने की नीति का पालन करता है. ये अक्सर भारत की स्पष्ट भागीदारी की धारणा के ठीक उलट है.
सरकार और लोगों से जुड़ने के चीन के पैटर्न के मुताबिक चीन-बांग्लादेश संबंधों को बढ़ावा देने में सांस्कृतिक संबंध महत्वपूर्ण हैं. चीन के ज़्यादातर कारोबारी बांग्लादेश के लोगों के साथ व्यापार करने से पहले बोलचाल की बंगाली भाषा धाराप्रवाह बोलना सीखते हैं. इसके जवाब में और भविष्य में नौकरी का कोई अवसर पैदा होने पर फायदा उठाने के लिए बांग्लादेश की सरकार बांग्लादेश में चीनी भाषा को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी रखती है. चाइना ग्लोबल टेलीविज़न नेटवर्क (CGTN) के साथ यूनुस के इंटरव्यू के बाद से बांग्लादेश में मंडारिन सीखने पर नए सिरे से ध्यान दिया जा रहा है. मौजूदा समय में बांग्लादेश में दो कन्फ्यूशियस केंद्र हैं, एक ढाका यूनिवर्सिटी में और दूसरा नॉर्थ साउथ यूनिवर्सिटी में. यूनूस ऐसे कुछ और केंद्रों की स्थापना करना चाहते हैं. बांग्लादेश के लोगों का दिल जीतने में चीन की सफलता के पीछे ये सोच भी बहुत बड़ा कारण है कि चीन उनकी आंतरिक राजनीति में दखल नहीं देने की नीति का पालन करता है. ये अक्सर भारत की स्पष्ट भागीदारी की धारणा के ठीक उलट है.
हसीना के सत्ता से हटने के बाद ऐसा लगता है कि बांग्लादेश ने अपनी विदेश नीति में “हर किसी से संबंध स्थापित करने” की एक नई दिशा अपना ली है. लेकिन चीन को साफ तौर पर प्राथमिकता देना पड़ोसियों को लेकर बांग्लादेश की नीति पर सवाल खड़े करता है. भारत पहले बांग्लादेश का सदाबहार दोस्त था जो कि सुविधा से ज़्यादा एक आवश्यकता थी क्योंकि दोनों देश न सिर्फ ज़मीनी और समुद्री सीमा साझा करते हैं बल्कि साझा संसाधन एवं पारिवारिक रूप से जुड़े लोग भी साझा करते हैं जिनकी भाषा, संस्कृति और विरासत एक जैसी है. स्वाभाविक रूप से भारत और बांग्लादेश के बीच एक आपसी और प्राकृतिक अंतर-निर्भरता है जो ज़रूरी सामानों के व्यापार से लेकर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, विकास से जुड़ी साझेदारी, मेडिकल टूरिज्म और संपर्क स्थापित करने तक फैली हुई थी.
लेकिन चीन की तरफ अंतरिम सरकार के झुकाव से भारत के साथ पहले से ही तनावपूर्ण संबंध और बिगड़ सकते हैं, विशेष रूप से उस स्थिति में जब बांग्लादेश, भारत की सामरिक संवेदनशीलता को नज़रअंदाज़ करेगा. भारत की सामरिक संवेदनशीलता इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी के साथ नज़दीक से जुड़ी हुई है. यही कारण है कि शेख हसीना ने भारत के साथ तीस्ता मुद्दे को सुलझाने का विकल्प चुना क्योंकि चीन की पेशकश को स्वीकार करने से चीन भारतीय सीमा के काफी करीब पहुंच जाता. इस बात की संभावना नहीं है कि अंतरिम सरकार भी उसी तरह का विकल्प चुनेगी. ऐसा इसलिए क्योंकि उसने पहले ही तीस्ता परियोजना की फंडिंग के लिए लगभग 47.6 अरब रुपये के कर्ज़ की मांग चीन से की है. फिर भी उसका फैसला क्या वास्तव में बांग्लादेश के लोगों के बहुमत की इच्छा को दिखाएगा (न कि कुछ गुटों की इच्छा को), ये बहस का विषय बना हुआ है क्योंकि कुछ हद तक लोकप्रिय समर्थन के बावजूद ये चुनी हुई सरकार नहीं है. चूंकि बांग्लादेश अपनी विदेश नीति में नया रास्ता तैयार कर रहा है, ऐसे में उसे कर्ज़ के जाल से बचने और अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए किसी एक देश पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता से बचना चाहिए. बांग्लादेश को सिद्धांत और व्यवहार में “हर किसी से संबंध स्थापित करने” के वचन का पालन करना चाहिए.
सोहिनी बोस ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
आयुष भारद्वाज ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.
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Sohini Bose is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), Kolkata with the Strategic Studies Programme. Her area of research is India’s eastern maritime ...
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Ayush Bhardwaj is a research intern at ORF Kolkata. They have a a particular interest in Bangladesh, political epistemology, the moral responsibility of artificial agents ...
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