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Published on May 26, 2025 Updated 0 Hours ago

ऑपरेशन सिंदूर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा में एक सैद्धांतिक बदलाव का प्रतीक है. यह जवाबी कार्रवाई के लिए एक भरोसेमंद, संतुलित और शक्तिशाली माध्यम के रूप में आक्रामक वायु शक्ति को फिर से स्थापित करता है.

‘बालाकोट प्लस प्लस’ – भारतीय कार्रवाई में आक्रामक वायु शक्ति की मुख्य भूमिका

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जैसे-जैसे धूल जमती जा रही है, पाकिस्तान द्वारा किए गए पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत द्वारा की गई नपी-तुली और निर्णायक कार्रवाई के बाद कई सबक सामने आने लगे हैं. मात्र 90 घंटों के भीतर किए गए इस सीमित, तेज़, घातक और अभूतपूर्व हवाई ऑपरेशन ने भारतीय वायु सेना की ताक़त को राष्ट्रीय सुरक्षा के केंद्र में वापस ला दिया है. अब जबकि मीडिया में इसको लेकर ब्रेकिंग न्यूज़, गरमागरम बहस और तीखे विमर्श कम होने लगे हैं, यह समय है कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा के व्यापक नज़रिये से कुछ शुरुआती निष्कर्षों पर विचार करें. यहां उन कुछ प्रमुख उभरते पहलुओं को चिह्नित किया गया है, जिन पर आने वाले दिनों में आत्मनिरीक्षण व चर्चा की आवश्यकता है.

आनन-फ़ानन में की जाने वाली सैन्य कर्रवाई की अपनी सीमाएं होती हैं, ख़ासकर यदि उसमें आश्चर्य का तत्व न हो और जवाबी प्रतिक्रिया की आशंका अधिक हो. चूंकि इसमें योजना बनाने और तैयारी करने का समय कम होता है, इसलिए ऐसी कार्रवाइयों का दायरा और पैमाना, दोनों सीमित होता है. वहीं दूसरी तरफ़, एक ख़ास समय और चुने गए ख़ास तरीके से दिए गए जवाब में राष्ट्रीय ताक़त के सभी तत्वों का एक साथ इस्तेमाल किया जाता है, जिस कारण एक समन्वित, सटीक और ऐसी रणनीति बनती है, जिसमें तनाव बढ़ने की आशंका अधिक नहीं होती. ऑपरेशन सिंदूर में जवाबी कार्रवाई के समय को लेकर आश्चर्य पैदा करने के बजाय जवाबी हवाई हमलों की व्यापकता और तीव्रता से दुश्मन को चौंकाया गया. अब ऐसी कोई कार्रवाई परमाणु धमकी से नियंत्रित नहीं है, बल्कि यह कहीं अधिक अप्रत्याशित सख़्त कार्रवाई का संकेत है, यानी हर हमले में दुश्मन को गंभीर नुकसान पहुंचाना. भारत का पारंपरिक रुख़ रक्षात्मक रहा है, लेकिन अब वह नज़रिया आक्रामक बनता दिखा, जिसमें पाकिस्तान द्वारा बार-बार किए जाने वाले परमाणु ब्लैकमेल का कोई महत्व नहीं है.

यह हवाई हमला भारतीय वायु सेना ने 7 और 8 मई, 2025 की दरम्यानी रात 1.15 बजे किया. इसके बाद अगले 23 मिनट भारत की आतंकवाद-विरोधी रणनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुए, क्योंकि हवा से लॉन्च की गई सटीक निशाना साधने वाली लंबी दूरी की मिसाइलों से भारत ने अपनी नाराज़गी आक्रामक तरीके से ज़ाहिर की.

‘बालाकोट प्लस प्लस’ कार्रवाई में, भारत ने जवाबी हमले के रूप में नौ लक्ष्यों पर निशाना साधा, जिनमें पांच पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में थे और चार पाकिस्तान के पंजाब में. लक्ष्य सिर्फ़ और सिर्फ़ आतंकी केंद्र और उनके बुनियादी ढांचे थे. यह एक समन्वित और नपा-तुला अभियान था, जिसे पूरे नियंत्रण के साथ और सटीक तरीके से अंजाम दिया गया, वह भी पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र में घुसे बिना. यह हवाई हमला भारतीय वायु सेना ने 7 और 8 मई, 2025 की दरम्यानी रात 1.15 बजे किया. इसके बाद अगले 23 मिनट भारत की आतंकवाद-विरोधी रणनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुए, क्योंकि हवा से लॉन्च की गई सटीक निशाना साधने वाली लंबी दूरी की मिसाइलों से भारत ने अपनी नाराज़गी आक्रामक तरीके से ज़ाहिर की.

जिस तरह से लक्ष्यों को निशाना बनाया गया और जैसा उनका भौगोलिक विस्तार था, वह बताता है कि हमारी वायु सेना किस तरह जटिल योजनाओं को बनाने, संसाधनों का प्रबंधन करने, मुश्किल तालमेल बनाने और पेशेवर तरीके से अपने काम को करने में सक्षम है. दुनिया की बड़ी वायु ताक़त के लिहाज़ से देखें, तो इस ऑपरेशन को जो बात अद्वितीय बनाती है, वह यह कि इसे एक ऐसे दुश्मन देश के ख़िलाफ़ अंजाम दिया गया, जिसकी वायु सेना करीब-करीब हमारे बराबर है और जिसे यह धमंड था कि उसे कोई हरा नहीं सकता. इसी कारण ‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत के सैन्य ढांचे और राष्ट्रीय सुरक्षा में आक्रामक वायु शक्ति को फिर से प्रमुखता से स्थापित करता है.

वायु रक्षा प्रणाली और आकाशतीर

इसके बाद बढ़े तनाव में, पाकिस्तानी वायु सेना ने भारत के नागरिक ठिकानों और सीमावर्ती इलाकों के हवाई अड्डों पर ड्रोन व मिसाइलों से हमला किया, जिसे भारतीय वायु सेना की ‘विस्तारित एकीकृत वायु सुरक्षा प्रणाली’ (EIADS) ने विफल कर दिया. वास्तव में, इस वायु सुरक्षा प्रणाली की रीढ़ ‘एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली’ (IACCS) है, जो अपने नेटवर्क आर्किटेक्चर और निर्माण के लिहाज़ से स्वेदशी है. इसमें जमीन और हवा से संबंधित कई तरह के सेंसर लगे हैं, जो विरोधी देश के हवाई क्षेत्र पर तीन-स्तरीय नज़र रखते हैं. ये सेंसर कई तरह के हथियारों के साथ जुड़े हुए हैं, जिनमें एस-400 सिस्टम जैसे लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाले निर्देशित हथियार भी शामिल हैं, जो स्वदेशी व आयातीत मध्यम और छोटी दूरी की मिसाइल प्रणालियों का मिश्रण है. इसके अलावा छोटी दूरी पर आने वाले ख़तरों, विशेषकर मिसाइलों और विमानों को ख़त्म करने वाले ‘क्लोज-इन टर्मिनल’ हथियार और ‘बियॉन्ड-विजुअल-रेंज’ (BVR) सशस्त्र वायु रक्षा लड़ाकू विमान भी इसमें शामिल हैं. इसने पाकिस्तानी वायु सेना के किसी भी हमले को रोकने और हवाई ख़तरों को बेअसर करने का काम किया. एक अनूठी बात यह भी थी कि भारतीय सेना की वायु रक्षा प्रणाली को एक अन्य स्वदेशी तंत्र, आकाशतीर के माध्यम से EIAD के साथ जोड़ा गया, जिससे दुश्मन देश की वायु सेना की तरफ़ से बड़ी संख्या में लॉन्च किए गए मानव रहित हवाई हमलों को विफल करना संभव हो सका. 

एक बड़ी वायु ताक़त की नज़र से देखें, तो वायु रक्षा एक आक्रामक अवधारणा के रूप में विकसित हुई है, जो कार्रवाई के मामले में आक्रामक वायु शक्ति से जन्मजात जुड़ी हुई है. इन दोनों का मिश्रण भारत की सैन्य युद्ध रणनीति में महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे एक-दूसरे पर निर्भर हैं, एक-दूसरे से अलग नहीं हैं

सच यही है कि भारत की वायु सेना न केवल पाकिस्तानी सेना को रोकने और उसकी मिसाइलों व ड्रोन को प्रभावशाली तरीके से मार गिराने में सफल रही, बल्कि दुश्मन के हवाई क्षेत्र पर महत्वपूर्ण नियंत्रण बनाने में भी कामयाब रही. इसके कारण, हमारे सुखोई और राफेल विमान दुश्मन के हवाई क्षेत्र व ढांचों के भीतर लक्षित केंद्रों को आक्रामक रूप से निशाना साधने में सफल हुए. एक बड़ी वायु ताक़त की नज़र से देखें, तो वायु रक्षा एक आक्रामक अवधारणा के रूप में विकसित हुई है, जो कार्रवाई के मामले में आक्रामक वायु शक्ति से जन्मजात जुड़ी हुई है. इन दोनों का मिश्रण भारत की सैन्य युद्ध रणनीति में महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे एक-दूसरे पर निर्भर हैं, एक-दूसरे से अलग नहीं हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात कि उनसे मिलने वाले रणनीतिक नतीज़ों के लिहाज़ से वे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य जान पड़ते हैं.

पाक-चीन की जुगलबंदी नाकाम

पाकिस्तान द्वारा तैनात चीनी प्लेटफॉर्मों और हथियारों की क्षमता को लेकर मीडिया में बहुत कुछ बताया गया है, जो बीजिंग और इस्लामाबाद के बीच लंबे समय से चले आ रहे रणनीतिक, सैन्य और रक्षा सहयोग को देखते हुए अनुचित भी नहीं था. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (चीन का सशस्त्र बल) की वायु सेना तकनीकी रूप से एक रणनीतिक वायु शक्ति के रूप में तेज़ी से बदल रही है, जिसका उपयोग चीन के समुद्री तटों पर अमेरिका के साथ मुकाबला करने के लिए किया जा रहा है. अपनी नौसेना के साथ तालमेल करते हुए चीन की वायु सेना लगातार आक्रामक बन रही है और अमेरिकी ख़तरे को ताइवान व दक्षिण चीन सागर से बाहर निकालकर ‘द्वितीय द्वीप शृंखला’ (पश्चिमी प्रशांत महासागर में जापान से इंडोनेशिया तक फैली द्वीपों की एक रणनीतिक रेखा) के पार धकेलने की कोशिश कर रही है. कोरियाई युद्ध (पचास के दशक की शुरुआत में हुआ था) के बाद से जंग नहीं लड़ने और युद्ध में अपनी वायु सेना का आक्रामक उपयोग नहीं करने वाला चीन यह जानने की पूरी कोशिश कर रहा है कि उसके रक्षा उत्पाद कितने प्रभावशाली हैं. साथ ही, वह इस प्रयास में भी है कि पाकिस्तानी वायु सेना के माध्यम से वह अपने हथियारों की युद्ध क्षमता को लेकर सकारात्मक माहौल बना सके. हालांकि, यह साफ़ हो चुका है कि उसके हथियारों और उसके संचालन में कई तरह की कमियां हैं, इसलिए दोनों देश (अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तानी वायु सेना द्वारा नकली जीत का दावा करने के बावजूद) मौजूदा कमियों की गहराई से जांच कर रहे हैं, ताकि उनको जल्दी दूर किया जा सके. दोनों देशों और उनकी वायु सेनाओं के बीच इस तालमेल पर गहरी नज़र बनाए रखने की ज़रूरत है, क्योंकि इससे भविष्य में भारत के सामने आने वाले सैन्य ख़तरे को नया आकार दिया जा सकता है.

अपने इतिहास के अनुरूप पाकिस्तानी वायु सेना ने तुरंत कार्रवाई बंद कर दी. यह बताता है कि अकेले हमला करना तो दूर, अपना बचाव करने में भी वह कितना अक्षम है. इससे उसकी आक्रामक रक्षा सैन्य रणनीति पर भी संदेह पैदा होता है. और दूसरी बात, भारत की वायु सेना ने एक साहसिक और स्वागतयोग्य आक्रामक नज़रिया अपनाया.

आखिरी बात, युद्ध में हारना किसी भी पेशेवर सेना के लिए सामान्य बात है. यह एक ऐसा कारक रहा है, जिसे भारतीय सेनाओं ने बड़े राष्ट्रीय लक्ष्यों और रणनीतिक नतीजों के लिए सैन्य जीत हासिल करते हुए अपने ढंग से अपनाया है. झूठे नैरेटिव से दो ज़रूरी बातें स्पष्ट नहीं हो सकतीं. पहली, अपने इतिहास के अनुरूप पाकिस्तानी वायु सेना ने तुरंत कार्रवाई बंद कर दी. यह बताता है कि अकेले हमला करना तो दूर, अपना बचाव करने में भी वह कितना अक्षम है. इससे उसकी आक्रामक रक्षा सैन्य रणनीति पर भी संदेह पैदा होता है. और दूसरी बात, भारत की वायु सेना ने एक साहसिक और स्वागतयोग्य आक्रामक नज़रिया अपनाया. उसने खुद को एक ऐसे विश्वसनीय सैन्य ढांचे के रूप में मज़बूती से स्थापित किया है, जो नाजुक शांति के समय ‘ग्रे जोन’ में (जिसे न तो बहुत अच्छा या बहुत खराब माहौल कहा जाता है) काम तो करता ही है, साथ-साथ पारंपरिक युद्ध के समय ख़तरों को बेअसर करने की भी पूरी क्षमता रखता है. इसलिए यह सही समय है कि देश की जवाबी कार्रवाई की क्षमता को आर्थिक विकास के साथ तेज़ी से आगे बढ़ाया जाए और वायु सेना की जो ज़रूरतें लंबे समय से बनी हुई हैं, उनको तुरंत पूरा किया जाए.


(पीवीएसएम, एवीएसएम, वीएम और वीएसएम सम्मान प्राप्त एयर मार्शल डॉ दिप्तेंदु चौधरी नई दिल्ली में राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के पूर्व कमांडेंट और हवाई हमले के रणनीतिकार हैं.)

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