Author : Shairee Malhotra

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 21, 2023 Updated 0 Hours ago

यूक्रेन संकट के एक साल: यूरोपीय संघ-भारत संबंध कितना असरदार?
जैसे-जैसे भारत और यूरोपीय संघ के बीच संबंध लगातार फल-फूल रहे हैं, यह स्पष्ट है कि अधिक सुरक्षा और आर्थिक सहयोग की पारस्परिक आवश्यकता संबंधों की अड़चनों को दूर करने में अपनी भूमिका निभा सकती है.

यूक्रेन संकट के एक साल: यूरोपीय संघ-भारत संबंध कितना असरदार?

24 फरवरी 2022 को रूस-यूक्रेन संघर्ष शुरू हुआ और अब यह जंग दूसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है.

एक तरफ जहां यूरोपीय संघ (ईयू) ने रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों के 10 वें पैकेज का ऐलान किया है तो जर्मनी जैसे सदस्य देशों ने (हार्ड पावर) सख़्त ताक़त की अहमियत को देर से ही समझते हुए लेकिन अब अपनी सुरक्षा नीतियों में सुधार किया है, जबकि रूस के साथ भारत के निरंतर संबंध और तेल ख़रीद में बढ़ोतरी ने स्वाभाविक रूप से यूरोपीय देशों को काफी निराश किया है. रूस यूक्रेन मामले में भारत की तटस्थता ने नियम-आधारित व्यवस्था के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं, जो यूरोपीय संघ-भारत रणनीतिक साझेदारी को रेखांकित करता है. संघर्ष के शुरुआती दिनों में  कई यूरोपीय राजनयिकों ने नई दिल्ली का दौरा किया और भारत को अपना रुख़ बदलने और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में युद्ध संबंधी बहिष्कार पर पुनर्विचार करने की अपील की. 

संघर्ष के शुरुआती दिनों में कई यूरोपीय राजनयिकों ने नई दिल्ली का दौरा किया और भारत को अपना रुख़ बदलने और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में युद्ध संबंधी बहिष्कार पर पुनर्विचार करने की अपील की.

फिर भी इस संकट पर अलग-अलग दृष्टिकोणों ने ब्रसेल्स स्तर के अलावा यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय तौर पर भारत-यूरोप राजनीतिक संबंधों को तल्ख़ नहीं होने दिया; बल्कि संबंधों में निरंतरता जारी है.

नए जोश के साथ साझेदारी

पहले ही महामारी के दौर में यूरोपीय संघ-भारत संबंधों में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक रीसेट देखा जा चुका है, क्योंकि दोनों ही पक्ष मुख्य रूप से एक-दूसरे को व्यापारिक हित के चश्मे से देखते थे. मिडिल पॉवर्स के तौर पर भारत और यूरोप पहले से ही अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के चलते पीछे छोड़े गए रणनीतिक शून्यता की भरपाई के लिए एक-दूसरे के साथ अधिक जुड़ाव की संभावना तलाश रहे थे. इसके बाद, एक साथ चीन को लेकर ख़तरे की अवधारणा ने भारतीय और यूरोपीय देशों को इस बदलाव के लिए प्रेरित किया है जिसका नतीज़ा यह हुआ कि साल 2021 में ऐतिहासिक यूरोपीय संघ और भारत के नेताओं की बैठक ईयू+27 प्रारूप के तहत आयोजित की गई. कोरोना महामारी के मद्देनज़र वैश्विक रणनीतिक किरदार के रूप में यूरोपीय संघ के स्वयं के विस्तार और हाल के यूक्रेन संघर्ष ने भी भारत के बारे में उसकी बदलती धारणा में योगदान दिया है.

भारत और यूरोप ने अब जलवायु परिवर्तन और समुद्री सुरक्षा सहित कई नीतिगत क्षेत्रों में संस्थागत संवाद को आगे बढ़ाया है; और ईयू-भारत एज़ेंडे के विषयों का विस्तार रक्षा, प्रौद्योगिकी और यहां तक कि त्रिकोणीय सहयोग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) को शामिल करने के लिए किया गया है. पहली बार जून 2022 में ईयू-भारत सुरक्षा और रक्षा परामर्श आयोजित किया गया था.

यह महत्वपूर्ण है कि रूस पर मतभेदों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी आक्रामकता की चुनौती से निपटने की चिंता ने यूरोपीय देशों और भारत के रणनीतिक जुड़ाव को कम नहीं किया है. दुनिया के सबसे बड़े एकल बाज़ार और पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए, एशिया को यूरोप से जोड़ने वाले व्यापार मार्गों और सप्लाई चेन (आपूर्ति श्रृंखलाओं) की स्थिरता को बनाए रखना महत्वपूर्ण है. इस संदर्भ में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को टक्कर देने के लिए यूरोपीय संघ के ग्लोबल गेटवे के हिस्से के रूप में 2021 में ईयू-इंडिया कनेक्टिविटी पार्टनरशिप शुरू की गई थी.

दुनिया के सबसे बड़े एकल बाज़ार और पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए, एशिया को यूरोप से जोड़ने वाले व्यापार मार्गों और सप्लाई चेन (आपूर्ति श्रृंखलाओं) की स्थिरता को बनाए रखना महत्वपूर्ण है.

यूक्रेन संकट की पृष्ठभूमि में यू-भारत एफटीए वार्ता, जो साल 2013 से रुकी हुई थी, फिर से शुरू कर दी गई है. एफटीए के क़ुदरती आर्थिक फायदों के अलावा आपूर्ति श्रृंखलाओं की स्थिरता और व्यापार भागीदारों के विविधीकरण सहित भू-राजनीतिक अनिवार्यताओं ने इस तरह की बातचीत को फिर से शुरू करने के लिए प्रेरित किया है. 2022 में, इन क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने को लेकर ईयू-इंडिया ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल बनाई गई थी. इसके अलावा, यूरोपीय संघ की परिषद की स्वीडन की मौज़ूदा अध्यक्षता ने भी भारत के साथ एफटीए को प्राथमिकता दी है.

गहराता राजनीतिक जुड़ाव 

भारत और यूरोप ने भी एक दूसरे के साथ राजनीतिक रूप से अपना जुड़ाव जारी रखा है. यह लगातार यूरोपीय मुख्य अतिथि, आयोग के अध्यक्ष वॉन डेर लेयेन और तत्कालीन इटली के प्रधानमंत्री मेलोनी द्वारा 2022 और 2023 में रायसीना संवाद का उद्घाटन करने से काफी हद तक स्पष्ट होता है. दोनों ही साल यूरोपीय देशों के उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंडल के साथ ईयू प्रमुख बोरेल और कई यूरोपीय देशों के विदेश मंत्रियों ने इसमें हिस्सा लिया. रूस-यूक्रेन जंग की पहली बरसी पर, जर्मन चांसलर स्कोल्ज़ ने भारत का दौरा करने का फैसला किया और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रॉन के न्योते पर ज़ल्द ही फ्रांस का दौरा कर सकते हैं.

भारत नॉर्डिक देशों और स्लावकोव ग्रुप समेत उप-क्षेत्रों को शामिल करने के लिए ब्रसेल्स, पेरिस और बर्लिन से आगे बढ़कर यूरोप की ओर जारी अपनी राजनयिक पहुंच का विस्तार करने में लगा है. यूरोपीय महाद्वीप में जारी वैश्विक व्यवधानों और संघर्ष के मौज़ूदा दौर में ये जुड़ाव भारत और यूरोप की एक-दूसरे की वर्तमान विश्व अवधारणा को लेकर बढ़ती प्रासंगिकता को प्रदर्शित करते हैं. दोनों बहुपक्षीय मंचों जैसे जी20 में भी सहयोग कर रहे हैं जिसकी अध्यक्षता फिलहाल भारत के पास है.

निस्संदेह, यूरोपीय देशों के समूह और भारत की साझेदारी कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध के बाद से और परिपक्व और सक्रिय हुई है. वे दिन गए जब 2012 में इटली के नौसैनिक मामले ने पूरी साझेदारी को ही पटरी से उतार दिया था. इसके बजाय, बेहतर संवाद और एक-दूसरे की रणनीतिक दृष्टिकोण को समझने की इच्छा के ज़रिए मौज़ूदा व्यवधानों को निपटाने की कोशिश हो रही है. भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर की कुशल कूटनीति और भारत की स्थिति की संपूर्ण अभिव्यक्ति ने इस समझ को प्रसारित करने में बेहतर योगदान दिया है. यूरोप के लिए यूक्रेन संकट ने समान विचारधारा वाले देशों के साथ मूल्य-आधारित साझेदारी को फिर से स्थापित किया है, जहां भारत एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में पूरी तरह से फिट बैठता है.

सहयोग के अवसर

बदले हुए वैश्विक परिदृश्य में  ईयू-भारत सहयोग के अवसर लगातार बढ़ रहे हैं क्योंकि दोनों अपनी ऊर्जा, व्यापार और सुरक्षा संरचनाओं पर पुनर्विचार कर रहे हैं और रूस और चीन पर निर्भरता को कम करने के विकल्प तलाश रहे हैं. यूरोप ख़ुद को रूस की ऊर्जा पर निर्भरता से दूर कर रहा है और भारत रूस से अपने रक्षा आयात में विविधता लाने के लिए विकल्प तलाश रहा है  जो 2014 में क्रीमिया पर रूस के आक्रमण के बाद से पहले ही काफी कम हो चुका था. एक कमज़ोर रूसी सेना और लगातार थोपे जा रहे पश्चिमी प्रतिबंध भविष्य में रूस को भारत के लिए एक अविश्वसनीय रक्षा भागीदार बनाते हैं. यूरोपीय देश भारत के साथ सुरक्षा सहयोग के माध्यम से इस शून्य को भर सकते हैं. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, यूरोप दुनिया के कुल रक्षा निर्यात का 24 प्रतिशत हिस्सा है और जर्मनी जैसे देश अपनी हथियार निर्यात नीतियों को और उदार बना रहे हैं. फ्रांस और इटली के साथ ये अपने "मेक इन इंडिया" कार्यक्रम के माध्यम से भारत की रक्षा क्षमताओं और स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा दे सकते हैं,जैसा कि भारत में संयुक्त रूप से छह पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण के जर्मनी की स्वीकृति से साफ होता है.


रूस के साथ भारत के संबंधों में आ रही गिरावट के बावज़ूद भारत मुख्य रूप से चीन और पाकिस्तान के साथ मॉस्को की नज़दीकियों को रोकने के लिए, जो भारतीय सुरक्षा के लिए ख़तरनाक हो सकता है, रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना जारी रखेगा. इससे आगे बढ़ते हुए, रूस यूरोप के लिए व्यवधान बना रहेगा और संबंध बहाल रखने के लिए भारत की संतुलनकारी कार्रवाई यूरोप के साझेदार देशों को संशय की स्थिति में ला सकता है. भारत को कुछ कठिन विकल्पों को चुनने के लिए मजबूर किया जा सकता है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के साथ जुड़ाव रखने के लिए भारत के विकल्प भविष्य में और कम होते जाएंगे और यूरोपीय संघ के सर्वसम्मति आधारित व्यवस्था को देखते हुए, पोलैंड जैसे देश जो रूस यूक्रेन युद्ध में सबसे ज़्यादा सक्रिय हैं, भारत के साथ यूरोपीय देशों के बढ़ते सहयोग को अस्वीकार कर सकते हैं.

फिर भी अभी तक  भारत की स्थिति पर यूरोपीय दबाव ने मीडिया टिप्पणी और सार्वजनिक धारणा बनाने में अधिक भूमिका निभाई है. सरकार-से-सरकार संबंधों पर इसका असर सीमित रहा है. दोनों पक्षों ने व्यापक दीर्घकालिक तस्वीर पर ध्यान केंद्रित करने में दिलचस्पी दिखाई है जो संभावित रूप से दांव पर लगा हुआ है.

जैसा कि सुरक्षा, जियोइकोनॉमिक्स (भू-अर्थशास्त्र), चीन, रूस और उभरती हुई विश्व व्यवस्था पर चर्चा भारतीय और यूरोपीय देशों में जोर पकड़ती जा रही है. इस अहम मोड़ पर ब्रसेल्स और सदस्य राज्यों की राजधानियों के साथ नई दिल्ली का जुड़ाव भी महत्वपूर्ण होता जा रहा है. जैसा कि बोरेल ने कहा, "सभी मामलों पर आंख से आंख मिलाकर देखना किसी भी सहयोग के लिए एक शर्त नहीं होनी चाहिए". भारत और यूरोप के लिए अधिक सुरक्षा और आर्थिक सहयोग की पारस्परिक आवश्यकता संबंधों में पैदा होने वाले व्यवधानों को नज़रअंदाज़ कर सकती है.

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