Author : Manoj Joshi

Expert Speak Raisina Debates
Published on Oct 18, 2025 Updated 0 Hours ago

कैनबरा अपनी सेना को आधुनिक बनाने और आगे से सुरक्षा की नीति अपनाने में लगा है जो क्षेत्र में उसकी सोच में बदलाव दिखाती है और भारत के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण से मिलती-जुलती है जबकि अमेरिका की क्षेत्रीय भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं.

भारत-ऑस्ट्रेलिया की बढ़ती दोस्ती, अमेरिका के लिए चुनौती

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की 9 और 10 अक्टूबर, 2025 की ऑस्ट्रेलिया यात्रा का मक़सद ऐसे समय में भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों को मज़बूत करना था, जब दोनों देश हिंद-प्रशांत को लेकर अमेरिका के अनिश्चित रवैये से जूझ रहे हैं. यह साल 2013 के बाद किसी भारतीय रक्षा मंत्री की पहली ऑस्ट्रेलिया यात्रा थी. यहां यह भी याद रखा जाना चाहिए कि 29 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टोक्यो यात्रा के दौरान भारत ने जापान के साथ सुरक्षा सहयोग पर एक संयुक्त घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं.

ऑस्ट्रेलिया में, राजनाथ सिंह ने तीन प्रमुख समझौतों पर दस्तख़्त किए, जो दोनों देशों के बीच ‘रणनीतिक साझेदारी’ का संकेत दे रहे थे. ये समझौते खूफ़िया सूचनाओं के आदान-प्रदान, पारस्परिक पनडुब्बी खोज व बचाव सहयोग, और संयुक्त स्टाफ वार्ता तंत्र की स्थापना से जुड़े हैं. उल्लेखनीय है कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 2020 में सैन्य रसद सहायता समझौता हो चुका है और दोनों देश हवा से हवा में ईंधन भरने के समझौते का लाभ भी उठा रहे हैं.

  • ऑस्ट्रेलिया में राजनाथ सिंह ने तीन अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जो भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच रणनीतिक सहयोग को दर्शाते हैं.
  • भारत के दृष्टिकोण से, ऑस्ट्रेलिया हिंद-प्रशांत रणनीति में एक भरोसेमंद साथी है, जो अमेरिका की चिंता किए बिना काम कर रहा है.

इस दौरे के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों के व्यापक पहलुओं की समीक्षा की और रक्षा उद्योग में गहरी साझेदारी की संभावनाओं पर चर्चाएं कीं. दोनों पक्षों ने ‘एक स्वतंत्र, खुले और मज़बूत हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए’ सहयोग करने का साझा संकल्प भी व्यक्त किया.

फरवरी की 25 तारीख को जब तस्मानिया के पास ऑस्ट्रेलिया के विशेष आर्थिक क्षेत्र में चीन की पीएलए नौसेना के युद्धपोतों का एक समूह दाख़िल हुआ था, तब कैनबरा बुरी तरह से हिल गया था. इस समूह में एक फ्रिगेट, एक क्रूजर और गोला-बारूद, ईंधन, भोजन जैसी चीज़ों को समुद्र में ही दूसरे जहाज़ों को आपूर्ति करने वाला पुनः पूर्ति जहाज़ भी शामिल थे. 9 मार्च तक इसने ऑस्ट्रेलिया की परिक्रमा की, फिर हिंद महासागर में चला गया और अंत में इंडोनेशिया के सुंडा जलडमरूमध्य होकर बाहर निकल गया. युद्धपोतों के इस समूह ने नियमित गश्त और गोला-बारूद आदि से जुड़े अभ्यास-कार्य किए, जो साफ़ तौर पर चीन की शक्ति का प्रदर्शन था.

औपचारिक रूप से तो अमेरिका अपनी उस हिंद-प्रशांत रणनीति को लेकर गंभीर दिखता है, जो चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (Quad) पर टिका हुआ है. इस संवाद में उसके दो द्विपक्षीय गठबंधन साझेदार- जापान व ऑस्ट्रेलिया हैं, तो भारत जैसा हिंद महासागर का सहयोगी भी है. मगर ‘क्वाड’ को, जो सॉफ़्ट पावर नीतियों को प्राथमिकता देता है, चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है, क्योंकि अमेरिका ने USAID जैसे अपने सॉफ़्ट पावर के माध्यमों को ख़त्म कर दिया है और टैरिफ़ लगाकर अपने मित्रों को अलग-थलग कर दिया है.

 सहयोग की शर्तों पर तनाव

मार्च में रक्षा सचिव (अब युद्ध सचिव) पीट हेगसेथ ने इस क्षेत्र का दौरा किया था और क्वाड के सदस्य देशों के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता फिर से जताई थी. हालांकि, आसियान विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए मलेशिया गए अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो की यात्रा को विश्लेषक डेरेक ग्रॉसमैन ने ‘पूरी तरह से भूलने योग्य और अफ़सोसजनक’ बताया था.

हालांकि, जब टैरिफ़ की मार दी जा रही थी, तब एशियाई सहयोगियों- जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस और ऑस्ट्रेलिया को भी अमेरिका का विरोध करना पड़ा, जो उनसे अपने रक्षा ख़र्च बढ़ाने की मांग कर रहा था. इस बात के स्पष्ट सुबूत होने के बावजूद कि जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अपने रक्षा प्रयासों को आगे बढ़ा रहे हैं, अमेरिका ने उनसे अधिक ख़र्च करने की बात कही, जिसके कारण जापान, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराज़गी जाहिर की.

इस साल जून की शुरुआत में शांगरी-ला डायलॉग में हेगसेथ ने मांग की थी कि ऑस्ट्रेलिया अपना रक्षा ख़र्च GDP का 3.5 प्रतिशत तक बढ़ाए. इसे ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ ने तुरंत नकार दिया. 

इस साल जून की शुरुआत में शांगरी-ला डायलॉग में हेगसेथ ने मांग की थी कि ऑस्ट्रेलिया अपना रक्षा ख़र्च GDP का 3.5 प्रतिशत तक बढ़ाए. इसे ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ ने तुरंत नकार दिया. हालांकि, इसके कुछ दिनों के बाद, पेंटागन ने अरबों डॉलर के AUKUS पनडुब्बी सौदे में अमेरिकी भूमिका की समीक्षा करने की घोषणा कर दी.

मई 2025 में, हिंद-प्रशांत को स्पष्ट संदेश देते हुए पेंटागन के एक अधिकारी ने कहा कि हेगसेथ ने एक नई अमेरिकी रक्षा रणनीति का मसौदा तैयार करने का आदेश दिया है, जिसमें ‘अमेरिका के आसमान और ज़मीनी सीमाओं सहित अमेरिकी मातृभूमि की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी और हिंद-प्रशांत में चीन को रोका जाएगा’. हालांकि, बाद में सितंबर में पॉलिटिको ने खुलासा किया कि नया मसौदा ‘बीजिंग और मास्को जैसे विरोधियों का मुक़ाबला करने के बजाय घरेलू और क्षेत्रीय अभियानों पर ज़्यादा ज़ोर देता है.’

 

रक्षा नीति में रणनीतिक बदलाव

बहरहाल, इतना सब कुछ होने बावजूद- और अब शायद अमेरिका के कारण, ऑस्ट्रेलिया हाल के दिनों में अपना सबसे महत्वपूर्ण सैन्य बदलाव करने जा रहा है. इसके तहत वह न सिर्फ़ अपनी सेनाओं को आधुनिक बनाने के लिए रक्षा ख़र्च बढ़ा रहा है, बल्कि AUKUS के माध्यम से गठबंधनों को फिर से जीवित कर रहा है और प्रशांत द्वीप व हिंद महासागर के अपने पड़ोसियों के साथ सुरक्षा संबंध मज़बूत करने का प्रयास कर रहा है.

2024 की राष्ट्रीय रक्षा रणनीति (NDS) और आधुनिक एकीकृत निवेश कार्यक्रम (IIP) साफ़-साफ़ बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया का लक्ष्य ‘किसी दूसरे देश द्वारा धमकी के माध्यम से दबाव डालने की रणनीति को नकारते हुए अपनी सुरक्षा मज़बूत बनाना’ है. इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि अपनी समुद्री सीमा तक पहुंचने से पहले ही ऑस्ट्रेलिया ख़तरों को रोक सके और उनका उचित जवाब दे सके.

ऑस्ट्रेलिया ने अपने रक्षा बजट को हाल के वर्षों में तेज़ी से बढ़ाया है. इसका मौजूदा रक्षा ख़र्च सालाना करीब 53 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो उसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 2 प्रतिशत है. इसे साल 2033-34 तक करीब 100 अरब डॉलर या GDP का 2.4 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है. अगले एक दशक में एकीकृत निवेश कार्यक्रम को लगभग 330 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर आवंटित किए जाने की बात कही गई है, साथ ही NDS के तहत अलग से 50.3 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का ‘ख़र्च’ भी किया जाएगा.

बदलाव उसके नज़रिये में भी आया है. अब ‘ऑस्ट्रेलिया की रक्षा’ के सिद्धांत से हटकर वह अग्रिम प्रतिरोध और क्षेत्रीय जुड़ाव की ओर बढ़ रहा है. इस बदलाव के कारण देश की रक्षा रणनीति के केंद्र के रूप में उत्तरी ऑस्ट्रेलिया का फिर से उभरना उल्लेखनीय है. इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए, यह उत्तरी हिस्सा एक तरह से उसकी अग्रिम पंक्ति है, जो समुद्री टकराव के केंद्रों व दक्षिण-पूर्व एशिया की ज़मीन के नजदीक है.

अब ‘ऑस्ट्रेलिया की रक्षा’ के सिद्धांत से हटकर वह अग्रिम प्रतिरोध और क्षेत्रीय जुड़ाव की ओर बढ़ रहा है. इस बदलाव के कारण देश की रक्षा रणनीति के केंद्र के रूप में उत्तरी ऑस्ट्रेलिया का फिर से उभरना उल्लेखनीय है.

इसी नज़रिये का दूसरा पहलू है, ऑस्ट्रेलिया की रक्षा सीमा को प्रशांत द्वीप समूह क्षेत्र में बढ़ाने का प्रयास करना. इस क्षेत्र में चीन की सक्रियता को देखते हुए, कैनबरा ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और इस प्रयास में अमेरिका- और कुछ हद तक भारत को भी, शामिल किया है. उसका लक्ष्य ऑस्ट्रेलिया को प्रशांत द्वीप देशों का एक ऐसा अग्रणी सहयोगी देश बनाना है, जो उनकी संप्रभुता, सक्रियता और आपदा प्रतिक्रियाओं में मदद करे. हाल ही में, ऑस्ट्रेलिया और पापुआ न्यू गिनी ने एक रक्षा समझौते पर भी हस्ताक्षर किया है. पापुआ न्यू गिनी प्रशांत द्वीप देशों में सबसे बड़ा और सबसे अधिक आबादी वाला देश है. भारत ने भी इस क्षेत्र के साथ राजनीतिक, आर्थिक और विकास संबंधी सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए 2014 में भारत-प्रशांत द्वीप समूह सहयोग मंच (FIPIC) का गठन किया था. इस मंच का पिछला सम्मेलन 2023 में पापुआ न्यू गिनी में ही आयोजित किया गया था.

ऑस्ट्रेलिया की अग्रिम रक्षा के लिए एक अन्य प्रमुख क्षेत्र हिंद महासागर है. 1980 के दशक में, ऑस्ट्रेलिया ने इसके महत्व को समझते हुए पर्थ के पास एक नौसैनिक ठिकाना ‘HMAS स्टर्लिंग’ बनाया था. अब इसका विस्तार किया जा रहा है, ताकि AUKUS कार्यक्रम के तहत यहां ऑस्ट्रेलियाई परमाणु पनडुब्बियों के लिए ज़रूरी व्यवस्था की जा सके.

क्वाड के माध्यम से उसने भारत के साथ समुद्री क्षेत्र जागरूकता, समुद्री निगरानी और AUSINDEX व मालाबार जैसे संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों पर भी सहयोग बढ़ाया है. कोकोस द्वीप समूह का महत्व अब बढ़ने लगा है, जहां उत्तर-पूर्वी हिंद महासागर की निगरानी के लिए लंबी दूरी के समुद्री गश्ती विमानों और ड्रोनों के लिए हवाई अड्डों को बेहतर बनाया जा रहा है. 2020 के अपने पारस्परिक रसद समर्थन समझौते के तहत, भारतीय नौसेना और वायु सेना के विमान इस द्वीप पर जाते रहते हैं. दोनों देशों ने अपने-अपने P-8 समुद्री टोही और ASW विमानों को एक-दूसरे के हवाई अड्डों पर तैनात भी किया है और संयुक्त अभ्यासों के तहत साझा गश्ती भी की है. यह सही है कि भारत मलक्का जलडमरूमध्य पर खुद आसानी से निगरानी कर सकता है, लेकिन ओम्बाई-वेतार, सुंडा और लोम्बोक जलडमरूमध्य में जहाज़ों के आने-जाने की जानकारी हासिल करने के लिए ऑस्ट्रेलिया की मदद बहुत मायने रखती है.

 

नई नौसैनिक रणनीति

AUKUS कार्यक्रम के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया ने अपनी समुद्री क्षमताओं को भी बढ़ाना शुरू कर दिया है. AUKUS कार्यक्रम के तहत दो तरह से ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों की सुविधाएं मिलेंगी- पहला तरीका, सबसे पहले अमेरिकी वर्जीनिया-श्रेणी की पनडुब्बियों तक उसकी पहुंच बनाई जाएगी और फिर ब्रिटिश डिजाइन पर आधारित एक नई AUKUS श्रेणी की पनडुब्बी का निर्माण किया जाएगा; और दूसरा, ऑस्ट्रेलिया को विभिन्न क्षेत्रों में उन्नत सैन्य क्षमताओं तक पहुंचने की सुविधा दी जाएगी, यानी अंडरवाटर रोबोटिक्स, AI और क्वांटम तकनीक से लेकर हाइपरसोनिक्स, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक्स तक सुविधाएं उसे उपलब्ध होंगी. हालांकि, AUKUS कार्यक्रम पर कुछ सवाल भी उठने लगे हैं, जैसे- जून में अमेरिका ने इस कार्यक्रम की समीक्षा शुरू कर दी थी, जो अब भी जारी है. 

ऑस्ट्रेलिया ने अगस्त में जापान की मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्री को 6.5 अरब अमेरिकी डॉलर के सौदे में 11 आधुनिक मोगामी-श्रेणी के फ्रिगेट का ठेका दिया है, जिसके तहत शुरुआती तीन फ्रिगेट जापान में और बाकी ऑस्ट्रेलिया में बनाए जाएंगे. ये युद्धक जहाज़ कैनबरा की समुद्री क्षमता बढ़ाने में काफ़ी मददगार साबित होंगे.

 

क्षेत्रीय संतुलन में ऑस्ट्रेलिया की नई भूमिका

ऑस्ट्रेलिया जिस तरह से सैन्य योजनाएं आगे बढ़ा रहा है, वह राष्ट्रीय सुरक्षा को फिर से परिभाषित करने की उसकी सोच का संकेत दे रहा है। यह सुरक्षा महाद्वीपीय अलगाव की भावना से लेकर क्षेत्रीय जुड़ाव की कथित ज़रूरत तक जुड़ी हुई है. बढ़ते बजट, आधुनिक सैन्य बलों और रणनीतिक साझेदारियों के माध्यम से, कैनबरा चाहता है कि वह अपनी उत्तरी सीमा को सुरक्षित करे, प्रशांत क्षेत्र में अपने संबंधों को मज़बूत बनाए और हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाए. यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब अमेरिका के साथ उसके जांचे-परखे संबंधों पर तनाव की छाया दिख रही है और जापान, भारत व इंडोनेशिया जैसी क्षेत्रीय ताक़तों के साथ उसके संबंध मज़बूत हो रहे हैं.

यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब अमेरिका के साथ उसके जांचे-परखे संबंधों पर तनाव की छाया दिख रही है और जापान, भारत व इंडोनेशिया जैसी क्षेत्रीय ताक़तों के साथ उसके संबंध मज़बूत हो रहे हैं.

भारत की नज़र से देखें, तो ऑस्ट्रेलिया हिंद-प्रशांत रणनीति का एक ऐसा विश्वसनीय साझेदार है, जो अमेरिकी सोच की परवाह नहीं कर रहा. साझा मूल्यों और हितों पर आधारित क्षेत्रीय साझेदारी विकसित करने के लिए भी ऑस्ट्रेलिया एक अच्छा विकल्प है. इसीलिए, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसी क्षेत्रीय ताक़तों को अपनी प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए एक ऐसी रणनीति अपनानी चाहिए, जो सैन्य क्षमता निर्माण को कूटनीतिक रिश्तों के साथ जोड़कर क्षेत्रीय विश्वास को मज़बूत बनाए.


(मनोज जोशी ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में वरिष्ठ फेलो हैं)

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