Author : Antara Sengupta

Published on Oct 12, 2022 Updated 24 Days ago

पाथर्डी से सबसे नज़दीकी मोबाइल टावर 12 किमी दूर जवहर शहर में है. पाथर्डी में केवल कुछ ही जगहों पर गांववालों को नेटवर्क नसीब होता है, और वो वहीं जाकर फ़ोन कॉल किया करते हैं. 

अंजलि वझरे: ‘सबकी ई-दोस्त’

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महाराष्ट्र के पालघर ज़िले के जवहर ब्लॉक का पाथर्डी गांव. जोशीले मुर्ग़ों की बांग के साथ सुबह की किरण फूटते ही यहां के हर कोने से पश्चिमी घाट की ख़ूबसूरत पहाड़ियां साफ़ दिखाई देती हैं. यही पहाड़ियां पालघर ज़िले को सैलानियों के लिए एक मशहूर ठिकाना बनाती हैं, लेकिन पाथर्डी का जीवन इस चमक-दमक से कोसों दूर मालूम होता है. दरअसल, इन्हीं पहाड़ियों की वजह से पाथर्डी में किसी भी क़िस्म की डिजिटल कनेक्टिविटी मुश्किल हो जाती है.

29 साल की अंजलि वझरे एक ई-दोस्त (डिजिटल मित्र)[1] हैं, जो हर दिन इस चुनौती से धीरे-धीरे पार पाने की कोशिशों में जुटी है. इस मुश्किल ने उनके गांव की तरक़्क़ी रोक रखी है. अनगिनत दस्तावेज़ों और बायोमेट्रिक डिवाइस से भरा अपना ग़ुलाबी बैकपैक टांगे वो अपने गांव की टूटी-फूटी, तंग गलियों से ‘स्कूटी’ (अक्सर भारत में मोटर स्कूटरों को इसी नाम से पुकारा जाता है) पर सवार होकर निकलती है. रास्ते में मुर्ग़े-मुर्ग़ियों, उनके चूज़ों और लावारिस घूम रहे मवेशियों से बचते-बचाते वो गांव से गुज़रती है. कुछ महीनों पहले तक वो अपने घर और सामुदायिक सहायता केंद्र के बीच 2 किमी का फ़ासला पैदल तय किया करती थी. केंद्र पर ढेरों गांववाले अपनी प्यारी अंजलि ताई (मराठी में बड़ी बहन) का इंतज़ार कर रहे होते थे. अंजलि गांववालों की बैंकिंग और अन्य उपयोगी सेवाओं से जुड़ी ज़रूरतों पूरी करने में मदद किया करतीं, उन्हें एक वक़्त पर एक डिजिटल समाधान मुहैया करातीं. बेशक़, वो एक ऐसी दोस्त हैं जिनपर गांववाले अपनी वित्तीय समस्याओं के निपटारे के लिए भरोसा करने लगे हैं.

महाराष्ट्र में महिलाओं (15-49 साल) का प्रौद्योगिकीय सशक्तिकरण
महिलाएं, जिनके पास ख़ुद के इस्तेमाल के लिए मोबाइल फ़ोन हैं 54.8%
मोबाइल फ़ोन रखने वाली महिलाओं में वो महिलाएं जो SMS संदेश पढ़ सकती हैं 82.9%
वित्तीय लेन-देन के लिए मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करने वाली महिलाएं 29.8%
इंटरनेट का इस्तेमाल कर चुकी महिलाएं 38.0%

स्रोत: राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5), 2019-21[i]

महाराष्ट्र के इस इलाक़े में इंटरनेट कनेक्टिविटी एक गंभीर समस्या है. यहां मौजूद पहाड़ियां के चलते टेलीकॉम ऑपरेटर्स के लिए टावर लगाना बेहद मुश्किल सबब बन जाता है. पाथर्डी से सबसे नज़दीकी मोबाइल टावर 12 किमी दूर जवहर शहर में है. पाथर्डी में केवल कुछ ही जगहों पर गांववालों को नेटवर्क नसीब होता है, और वो वहीं जाकर फ़ोन कॉल किया करते हैं.

29 साल की अंजलि वझरे एक ई-दोस्त (डिजिटल मित्र)[1] हैं, जो हर दिन इस चुनौती से धीरे-धीरे पार पाने की कोशिशों में जुटी है. इस मुश्किल ने उनके गांव की तरक़्क़ी रोक रखी है.

ग्रामीण समुदाय में डिजिटल साक्षरता सीमित है. इसकी वजह ये भी है कि नियमित इंटरनेट सुविधाओं के नदारद रहते डिजिटल साक्षरता हासिल करना ग़ैर-ज़रूरी जान पड़ता था. बुनियादी वित्तीय लेन-देन और बिजली-पानी के बिल भुगतान करने के लिए गांववालों को क्षमता से ज़्यादा सवारियों से लदे जीपों में सवार होकर जवहर जाना होता था. आने-जाने में पूरा दिन निकल जाता था और गांववालों को कम से कम 50 रु ख़र्च करने होते थे. साथ ही उस दिन की दिहाड़ी से भी हाथ धोना पड़ता था.

गांव में गुज़र-बसर का प्राथमिक ज़रिया खेतीबाड़ी है और ज़्यादातर लोग दूसरों की ज़मीन पर दिहाड़ी मज़दूर के तौर पर काम करते हैं.

अपनी बिरादरी, ख़ासतौर से महिलाओं की मदद करने की अंजलि की चाहत, बचपन में उसके ख़ुद के तजुर्बों का नतीजा है. उन्होंने कक्षा 7 तक की शिक्षा स्थानीय ज़िला परिषद[2] स्कूल से हासिल की और उसके बाद लड़कियों की आश्रमशाला[3] से 10वीं की शिक्षा पूरी की. बहरहाल, एक बेहद जिज्ञासु और सजग बच्ची होने के नाते अंजलि ने ग़ौर किया कि महिलाएं गांव के मसलों में हिस्सा नहीं लेती थीं और ज़रूरत के वक़्त अपनी बात रखने का उनके पास कोई तरीक़ा नहीं था. 18 साल की उम्र में अंजलि की शादी हो गई और वो अपने पति के साथ पाथर्डी से 7 किमी दूर एना गांव चली गईं. बहरहाल पांच साल बाद, 2017 में उनके पति अचानक बीमार पड़ गए और अस्पताल में भर्ती होने के महज़ तीन दिनों के भीतर उनका देहांत हो गया. अपने दूध-पीते बच्चे हरीश, के पालन-पोषण का ज़िम्मा अब अकेली अंजलि पर आ गया. उसके पास गुज़र-बसर का कोई ज़रिया नहीं था. वैसे तो ससुरालवालों ने अंजलि को अपने साथ रहने को कहा था लेकिन अंजलि अपने बेटे के साथ पाथर्डी में अपने मायके लौट आई.

अंजलि का यूं वापस लौटना उनके मां-बाप के लिए सामाजिक और आर्थिक तौर पर बड़ा झटका था क्योंकि वो ख़ुद ही जैसे-तैसे गुज़र-बसर कर रहे थे. उनकी मदद करने के इरादे से अंजलि ने BAIF विकास शोध संस्थान (BAIF) की सामुदायिक बैठक में शामिल होने का फ़ैसला किया और वो संगठन के लिए कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (CRP)[4] बन गईं. इसी के बाद उन्होंने अपना पहला स्मार्टफ़ोन ख़रीदा. CRP के तौर पर अंजलि अक्सर समुदाय निर्माण और स्वयं-सहायता समूहों (SHGs)[5] को मज़बूत करने के लिए बैठकें बुलातीं और महिलाओं से साथ जुड़ने का अनुरोध किया करती थीं. हालांकि इस क़वायद में उन्हें कुछ ख़ास कामयाबी नहीं मिल पाई. उन दिनों का तजुर्बा याद करते हुए अंजलि बताती हैं, “ऐसा लगता था कि उन महिलाओं के पास बैठकों में हिस्सा लेने का कभी वक़्त ही नहीं होता था. घर के पुरुष भी हिचकते थे और नहीं चाहते थे कि उनके परिवार की महिलाएं ऐसी मीटिंग में हिस्सा लें.” अंजलि को ये बात हमेशा खलती रहती थी, उन्हें लगता था कि महिलाओं को सशक्त बनाने की दरकार है, ताकि उन्हें अपने मतलब के कामों के लिए पुरुषों से इजाज़त ना लेनी पड़े.

18 साल की उम्र में अंजलि की शादी हो गई और वो अपने पति के साथ पाथर्डी से 7 किमी दूर एना गांव चली गईं. बहरहाल पांच साल बाद, 2017 में उनके पति अचानक बीमार पड़ गए और अस्पताल में भर्ती होने के महज़ तीन दिनों के भीतर उनका देहांत हो गया.

वैसे तो CRP के तौर पर अंजलि को विकास और सामाजिक मसलों (जैसे महिलाओं को एकजुट करना, स्वयं-सहायता समूहों की ज़रूरतों की पहचान करना और उन्हें सरकारी योजनाओं के साथ जोड़ना) से जुड़े कई कामों में समुदाय की मदद करने का मौक़ा मिलता था, लेकिन इससे उन्हें अपनी आजीविका चलाने में ख़ास मदद नहीं मिलती थी. दरअसल CRP के तौर पर उन्हें बेहद मामूली तनख़्वाह मिला करती थी. ख़ुशक़िस्मती से उसी वक़्त, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे (IIT-B)[6] और BAIF ने पाथर्डी में सिम कार्ड-आधारित सेलुलर राउटर लाने के लिए आपसी गठजोड़ से एक क़वायद शुरू की. इसका मक़सद सपोर्ट सेंटर में मज़बूत इंटरनेट कनेक्टिविटी मुहैया कराना और स्थानीय समुदाय की ज़रूरतों और आवश्यकताओं के हिसाब से इंटरनेट नेटवर्क का विस्तार करना था. अंजलि पहले से ही एक सक्रिय CRP थी और बिरादरी में एक जाना-माना नाम थी, लिहाज़ा उन्हें वहां के पहले बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट या ई-दोस्त के तौर पर चुना गया. ई-दोस्त छोटी सी फ़ीस की एवज़ में सेवाएं मुहैया कराते हैं. इससे उन्हें गुज़र-बसर का विकल्प मिलता है. ई-दोस्त के तौर पर अंजलि को एक टैबलेट उपलब्ध कराया गया. IIT-बॉम्बे ने अंजलि को अलग-अलग डिजिटल पहलुओं- मसलन बिल के भुगतान, बायोमेट्रिक उपकरणों के संचालन, आधार कार्डों के लिए लोगों के निबंधन और बैंकिंग लेन-देन का प्रशिक्षण दिया. अंजलि कहती हैं कि इस प्रशिक्षण से उन्हें बहुत मदद मिली. उनका कहना है कि “इसमें सबसे मुश्किल बैंकिंग सेवाओं के बारे में सीखना था क्योंकि ये काम दूसरे लोगों के पैसों के लेन-देन से जुड़ा है. इसलिए शुरू-शुरू में मैं घबराई हुई थी.”

ई-दोस्त के तौर पर वो हरेक लेन-देन के लिए मामूली कमीशन चार्ज करती हैं (हर 100 रु पर 5 रु). उनका शुल्क लेन-देन के मूल्य पर निर्भर होता है. अब तो वो लोगों को ई-श्रम कार्डों के लिए रजिस्ट्रेशन कराने में भी मदद करती हैं. ये केंद्र सरकार की योजना है जो प्रवासी मज़दूरों और निर्माण क्षेत्र के कामगारों में से निबंधित प्रयोगकर्ताओं को सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी लाभों की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करती है.

IIT-बॉम्बे ने अंजलि को अलग-अलग डिजिटल पहलुओं- मसलन बिल के भुगतान, बायोमेट्रिक उपकरणों के संचालन, आधार कार्डों के लिए लोगों के निबंधन और बैंकिंग लेन-देन का प्रशिक्षण दिया. अंजलि कहती हैं कि इस प्रशिक्षण से उन्हें बहुत मदद मिली.

मई 2022 में नील्सन[ii] द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक ग्रामीण भारत में महज़ 32 फ़ीसदी सक्रिय इंटरनेट प्रयोगकर्ता हैं, जबकि शहरी इलाक़ों में ये तादाद 67 प्रतिशत है. इनमें भी ग्रामीण भारत की केवल लगभग 32 प्रतिशत महिलाओं को ही इंटरनेट तक पहुंच हासिल है. ज़ाहिर है ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी भारत के ज़्यादा लोग ऑनलाइन बैंकिंग और डिजिटल भुगतान व्यवस्थाओं की सुविधाएं उठा रहे हैं. वैसे तो प्राथमिक मसला इंटरनेट तक पहुंच से ही जुड़ा है, लेकिन जून 2021 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता का अभाव भी इंटरनेट के प्रयोग में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद अंतर का कारण है.[iii]

बहरहाल, अंजलि के लिए ई-दोस्त के रूप में शुरुआत करना आसान नहीं था. मिसाल के तौर पर उनकी बिरादरी में कई लोगों के पास मोबाइल फ़ोन ही नहीं थे, लिहाज़ा वो ऑनलाइन बैंकिंग सेवाओं के लिए रजिस्ट्रेशन ही नहीं करा सकते थे. इस अड़चन से पार पाने के लिए अंजलि अक्सर उन लोगों के लिए सेवाएं हासिल करते वक़्त अपना ख़ुद का मोबाइल नंबर इस्तेमाल में लाती थीं. इससे कई लोगों के मन में संदेह रहता था और वो रसीद मांगा करते थे. हालांकि, वक़्त के साथ-साथ वो उनका भरोसा जीतने में कामयाब रहीं क्योंकि वो अपने फ़ोन पर आए मैसेज उन्हें दिखाया करती थीं. उन तमाम बातों को याद कर अंजलि कहती हैं, “जब मेरे पास बहुत ज़्यादा नक़द निकासी हो जाती थी, तो मुझे पाथर्डी से रामखिंड तक पैदल लौटने में डर लगा करता था क्योंकि मेरे पास नक़द 50,000 रुपए से भी ज़्यादा की रकम होती थी.” रामखिंड उनके गांव पाथर्डी के रास्ते में पड़ता है और उसके ज़्यादातर हिस्से जंगलों से घिरे हैं. अंजलि की मदद से अब गांववालों को नक़दी की निकासी या बैंकिंग से जुड़ी दूसरी सेवाओं के लिए 12 किमी दूर जवहर शहर जाने की ज़रूरत नहीं रह गई.

ई-दोस्त के तौर पर अंजलि की भूमिका कोविड-19 महामारी के दौरान सबसे अहम हो गई. उस वक़्त आवाजाही पर पाबंदियों की वजह से लोग बैंकों तक नहीं जा पा रहे थे. BAIF (ग़ैर-सरकारी संस्था) की मदद से उन्हें ई-पास मिल गया ताकि वो जवहर जाकर लोगों की मदद कर सकें.

ई-दोस्त के तौर पर अंजलि की भूमिका कोविड-19 महामारी के दौरान सबसे अहम हो गई. उस वक़्त आवाजाही पर पाबंदियों की वजह से लोग बैंकों तक नहीं जा पा रहे थे. BAIF (ग़ैर-सरकारी संस्था) की मदद से उन्हें ई-पास मिल गया ताकि वो जवहर जाकर लोगों की मदद कर सकें. उन दिनों की याद करते हुए अंजलि बताती हैं, “महामारी के दौरान कई लोगों को मेडिकल कारणों से आपात रूप से नक़दी की ज़रूरत पड़ रही थी, ऐसे में मैं ख़ुश थी कि मैं उनकी मदद कर पा रही थी.”

अंजलि अब क़रीब 4,000 रु प्रति माह कमा रही हैं. अब वो अपने मां-बाप की मदद कर पा रही हैं और बेटे हरीश को स्कूल भी भेज रही हैं. लिहाज़ा अब वो ख़ुद को सशक्त महसूस करती हैं. उन्होंने अपनी कमाई और माता-पिता की मदद से एक स्कूटी भी ख़रीद ली है. इससे उन्हें जवहर में मौजूद बैंक जाकर ज़रूरत के हिसाब से लोगों के लिए नक़दी की निकासी करने की सुविधा मिल गई है.

चित्र1: इंटरनेट की सुविधा हासिल नहीं करने को लेकर भारतीयों द्वारा बताई गई वजहें (अखिल भारतीय)

स्रोत: CNBCTV18[iv]

कई एजेंसियों ने डिजिटल साक्षरता हासिल करने में उनकी सहायता की. अपने जिज्ञासु स्वभाव के चलते उन्हें सीखने और सिखाने में काफ़ी मदद मिली. उन्होंने अलग-अलग श्रेणियों के लोगों के लिए उपलब्ध अनेक सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी हासिल की. इनमें विधवा पेंशन स्कीम और ई-श्रम शामिल हैं. वो अपनी बिरादरी वालों को स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल करने से जुड़ी बुनियादी बातें सिखाती हैं. अब तो उन्होंने कपड़े और घरेलू सामान भी ऑनलाइन ख़रीदने शुरू कर दिए हैं. वो पाथर्डी की दूसरी महिलाओं को भी ऐप के ज़रिए ऑनलाइन ख़रीदारी के गुर सिखा रही हैं. अतीत में CRP के तौर पर अंजलि अक्सर महिलाओं से खेतीबाड़ी को लेकर बातें किया करती थीं- कौन सी सब्ज़ियां उगाईं जाएं, स्वयं-सहायता समूह कैसे स्थापित की जाएं- ये बताया करती थीं. हालांकि, ज़्यादातर महिलाएं इन जानकारियों में कोई दिलचस्पी नहीं लेती थीं. ई-दोस्त बनने के बाद से उन्होंने अपने कामकाज से जुड़े तमाम पहलुओं को लेकर चर्चा करने की क़वायद शुरू कर दी है. वो तमाम सरकारी योजनाओं, वित्तीय लेनदेन के तौर-तरीक़ों, बचत करने के उपायों और इंटरनेट तक पहुंच के ज़रिए किए जा सकने वाले तमाम कार्यों के बारे में बातचीत करती हैं. महिलाएं अब इन मसलों में पहले से कहीं ज़्यादा दिलचस्पी ले रही हैं, वो उत्साहित हैं और सामुदायिक बैठकों में हिस्सा लेने को तत्पर दिखाई देती हैं.

ग़ौर करने वाली बात ये है कि अंजलि अब देश भर की अनेक महिलाओं को ई-दोस्त बनने का प्रशिक्षण दे रही हैं. अब तक वो देश भर में 73 ई-दोस्त को प्रशिक्षित कर चुकी हैं. इनमें से 15 जवहर और आसपास काम कर रही हैं और तक़रीबन 3000 लोगों को उनकी सेवाओं का लाभ पहुंच रहा है. इन 15 महिलाओं ने अब एक स्वयं-सहायता समूह तैयार कर लिया है. उन्होंने अपनी बचत से एक कोष स्थापित किया है. अगर इनमें से किसी को भी पैसों की ज़रूरत होती है तो वो इस कोष से कर्ज़ ले सकती हैं. इन बदलावों से अंजलि बेहद ख़ुश हैं क्योंकि उन्हें सचमुच महसूस होता है कि महिलाओं को सशक्त होना चाहिए ताकि वो स्वतंत्र होकर ख़ुद के लिए कमाई कर सकें.

ग़ौर करने वाली बात ये है कि अंजलि अब देश भर की अनेक महिलाओं को ई-दोस्त बनने का प्रशिक्षण दे रही हैं. अब तक वो देश भर में 73 ई-दोस्त को प्रशिक्षित कर चुकी हैं. इनमें से 15 जवहर और आसपास काम कर रही हैं और तक़रीबन 3000 लोगों को उनकी सेवाओं का लाभ पहुंच रहा है.

अंजलि को अपने काम के लिए सरकार की ओर से भी पहचान मिली है. दिसंबर 2019 में ज़िला कलेक्टर ने अपने दौरे में उनका कामकाज देखकर उनकी सराहना की थी. अब अंजलि की तमन्ना है कि न सिर्फ़ टावर के इर्द-गिर्द बल्कि उनके पूरे गांव में इंटरनेट की मज़बूत कनेक्टिविटी मौजूद हो. अंजलि कहती हैं, “अगर हम घर बैठे बैंकिंग सेवाओं का संचालन कर सकें तो हमारा जीवन काफ़ी आसान हो जाएगा.” बहरहाल टेक्नोलॉजी की ताक़त के बूते और सबके लिए एक सच्चे ई-दोस्त के तौर पर वो अपनी जैसी अनेक महिलाओं को शिक्षित और प्रशिक्षित करने का काम जारी रखना चाहती हैं ताकि वो ज़िले के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक इन सेवाओं की पहुंच सुगम बना सकें.

मुख्य सबक़

  • नवाचार भरे प्रौद्योगिकीय समाधानों से इंटरनेट और डिजिटल बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच से जुड़ी खाई को पाटा जा सकता है.
  • समुदायों की अगुवाई करने वाली महिलाओं को मास्टर ट्रेनर बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. इससे डिजिटल साक्षरता और सेवाओं का व्यापक प्रभाव होगा और उनकी बड़ी आबादी तक पहुंच सुनिश्चित होगी.
  • ग्रामीण भारत में भौतिक रूप से बैंकिंग सेवाएं हासिल करने की क़वायद में लोगों को अपने कामकाज और दिहाड़ी मज़दूरी से हाथ धोना पड़ता है. ऐसे में इन सेवाओं को ऑनलाइन ज़रियों से हासिल करने की शिक्षा देने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा महिला सामुदायिक कर्मियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.

NOTES

[1] E-Dosts are typically women of the village who provide various digital services as per the community’s needs. The term was jointly coined by IIT-Bombay and BAIF Development Research Foundation.

[2] Zilla parishad is the district-level governance system in India and oversees administration of the district’s rural areas.

[3] Ashramshalas are residential schools for scheduled caste and scheduled tribe communities in India.

[4] Community resource persons are members of the community who are employed by developmental organisations to disseminate information and teach people of a community particular activities.

[5]Self-help groups are a community of 12-25 rural women who become financial intermediaries where each member saves certain amount of small money and lend it to the members in need. The Reserve Bank of India ensures that banks provide loans to them for smaller interest rates, without any collateral guarantees.

[6]IIT-Bombay is India’s premier technology and research institute and ranks high as one of the top institutes in the world by the QS World University Rankings. It has also been identified by the Indian government as an institute of national importance.

[i] National Family Health Survey (NFHS-5), 2019–21, International Institute for Population Sciences (IIPS), Volume 1, March 2022, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5Reports/NFHS-5_INDIA_REPORT.pdf

[ii]Nielsen’s Bharat 2.0 Study reveals a 45% growth in Active Internet Users in rural India since 2019,” Neilsen News Center, May 5, 2022, https://www.nielsen.com/news-center/2022/nielsens-bharat-2-0-study-reveals-a-45-growth-in-active-internet-users-in-rural-india-since-2019/

[iii] Shilpa Ranipeta, “There are over 700 million internet users in India — and just as many who don’t use it,” CNBCTV18, July 28, 2022, https://www.cnbctv18.com/technology/iamai-kantar-report-says-rural-india-accounts-for-more-than-half-the-internet-users-in-country-14283262.htm

[iv]Ranipeta, “There are over 700 million internet users in India — and just as many who don’t use it,”

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