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Published on Jun 02, 2025 Updated 0 Hours ago

भारत के साथ अंगोला की बढ़ती साझेदारी को चीन के साथ उसके संबंधों में बदलाव के तौर पर देखना चाहिए. अंगोला अब एक संतुलित कूटनीति, विकासात्मक सहयोग और रणनीतिक विविधता के युग में प्रवेश करना चाहता है.

चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए अंगोला भारत की ओर

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अंगोला के राष्ट्रपति जोआओ लॉरेनको 1 से 4 मई तक भारत की अपनी पहली राजकीय यात्रा पर आए थे. संयोग की बात ये है कि इसी दौरान भारत और अंगोला के  कूटनीतिक संबंधों के 40 साल भी पूरे हुए थे. ऐसे खास मौके पर लॉरेनको की इस यात्रा को इन देशों के द्विपक्षीय रिश्तों में ऐतिहासिक मील का पत्थर माना जा रहा है. अंगोला के किसी राष्ट्राध्यक्ष की चार दशक में ये पहली भारत यात्रा थी. उनके इस दौरे ने इस बात का संकेत दिया कि अंगोला के लिए भारत रणनीतिक महत्व रखता है. लॉरेनको का ये दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अंगोला इस समय अपनी विदेश नीति में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है. इसके अलावा वो चीन पर अपनी अत्यधिक निर्भरता का भी पुनर्मूल्यांकन कर रहा है.

 लॉरेनको का ये दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अंगोला इस समय अपनी विदेश नीति में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है. इसके अलावा वो चीन पर अपनी अत्यधिक निर्भरता का भी पुनर्मूल्यांकन कर रहा है.

भारत-अंगोला संबंधों का इतिहास

भारत और अंगोला के संबंध ऐतिहासिक रूप से शांति और सौहार्दपूर्ण रहे हैं. दोनों देशों के रिश्ते साझा तौर पर उपनिवेशवाद विरोधी एकजुटता और सामान्य विरासत पर आधारित हैं. भारत ने पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन के खिलाफ़ अंगोला के संघर्ष का लगातार समर्थन किया. अंगोला को 1975 में उपनिवेशवाद से आज़ादी मिली थी. समय के साथ इनके द्विपक्षीय आर्थिक संपर्क में लगातार वृद्धि देखी गई है. 2023–24 के वित्तीय वर्ष में दोनों देशों के बीच व्यापार 4.2 अरब डॉलर तक पहुंच गया. हालांकि, इस द्विपक्षीय व्यापार में कच्चे तेल और गैस इस की हिस्सेदारी करीब 90 प्रतिशत है. ऐसे में ज़रूरत इस बाद की भी है कि दोनों देश इन व्यापारिक संबंधों में विविधता लाने की दिशा में काम करें.

 

पिछले कई साल के दौरान, अंगोला ने भारत-अफ्रीका की प्रमुख कूटनीतिक पहलों में सक्रिय रूप से भाग लिया है. इसमें 2015 में आयोजित तीसरा भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन शामिल है. राष्ट्रपति जोआओ लॉरेनको ने 2018 में जोहांसबर्ग में 10वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. हालांकि, राष्ट्रपति लॉरेनको का मई 2025 में भारत की आधिकारिक यात्रा सिर्फ एक शिष्टाचार का दौरा नहीं था. इस यात्रा से ये संकेत मिला कि अंगोला अपनी विदेश नीति की प्राथमिकताओं और सामरिक नीतियों को नए सिरे से तय करना चाहता है. 

 लॉरेनको की इस भारत यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने पारंपरिक चिकित्सा, कृषि और सांस्कृतिक सहयोग जैसे क्षेत्रों को शामिल करते हुए समझौतों की एक श्रृंखला पर हस्ताक्षर किए.

अंगोला इस वक्त अफ्रीकी संघ का अध्यक्ष भी है. ऐसे में राष्ट्रपति लॉरेनको के भारत दौरे की भू-राजनीतिक अहमियत और भी ज़्यादा बढ़ जाती है. लॉरेनको की इस भारत यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने पारंपरिक चिकित्सा, कृषि और सांस्कृतिक सहयोग जैसे क्षेत्रों को शामिल करते हुए समझौतों की एक श्रृंखला पर हस्ताक्षर किए. रक्षा सहयोग के क्षेत्र में प्रगति विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी. अंगोला द्वारा रक्षा खरीद के लिए भारत ने 200 मिलियन डॉलर की ऋण की सीमा (एलओसी) के विस्तार की पहचान की गई.

 

इसके अलावा, अंगोला ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) के 123वें सदस्य के रूप में औपचारिक रूप से शामिल होने की पुष्टि की है. आईएसए एक ऐसी पहल है, जिसकी अगुवाई भारत कर रहा है. इसका उद्देश्य उद्देश्य कर्क और मकर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित देशों के बीच सौर ऊर्जा के अपनाने को बढ़ावा देना है. ये घटनाक्रम भारत की अंगोला से संबंधित व्यापक कूटनीतिक और विकासात्मक सफलता को दिखाती है. भारत अब अंगोला के एक विश्वसनीय और महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में उभर रहा है. 

 

चीन के प्रभाव में कैसे आया अंगोला? 

लुआंडा की दिल्ली के साथ बढ़ती साझेदारी के केंद्र में अंगोला की एक रणनीतिक मंशा है. अंगोला का मक़सद वो चीन पर अपनी अत्यधिक निर्भरता को कम करना है. 2002 में अंगोला के विनाशकारी गृहयुद्ध के ख़ात्मे के बाद चीन ने उसके बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. चीन ने प्राकृतिक संसाधन के बदले में बुनियादी ढांचे (आरएफआई) का विकास मॉडल के तहत काम किया है. अंगोला में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, विशेष रूप से तेल. यही वजह है कि चीन के प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ताओं देशों में से एक के तौर पर अंगोला भी उभरा है. इसके बदले में चीन ने अंगोला को 258 ऋण स्वीकृत किए और इस लोन की राशि करीब 45 अरब डॉलर के बराबर हैं. अफ्रीकी महाद्वीप के देशों को चीन ने जितना लोन दिया है, उसमें एक चौथाई अकेले अंगोला को दिया है. इस मॉडल को सामान्य रूप से "अंगोली मॉडल" के तौर पर जाना जाता है. चीन ने इस मॉडल को अफ्रीका के देशों में दोहराया है. हालांकि चीन इस "अंगोली मॉडल" को दोनों पक्षों के लिए पारस्परिक रूप से लाभकारी रणनीति के रूप में बढ़ावा देता है, लेकिन इसके अंतर्राष्ट्रीय ध्यान और आलोचना भी आकर्षित की है. आलोचकों का कहना है कि ये मॉडल एक तरह से उपनिवेशीय आर्थिक प्रथाओं को बढ़ावा देता है. 

 

चीन ने साझेदारी के तहत अंगोला में तेज़ी से बुनियादी ढांचे के विकास का जो वादा किया था, वो भी पूरा नहीं हुआ. चीन की आर्थिक मदद से चलने वाली परियोजनाओं का काम चीनी कंपनियों  द्वारा किया गया. काम पर भी चीन के मज़दूरों को ही रखा गया. स्थानीय रोजगार और क्षमता निर्माण के अवसरों की अनदेखी की गई. इसके अलावा, निर्माण की गुणवत्ता भी आम तौर पर निम्नस्तरीय देखी गई. इसका एक प्रमुख उदाहरण 8 मिलियन डॉलर से लुआंडा में बन रहा अस्पताल है. इसका काम पूरा हो गया था, लेकिन बाद में संरचनात्मक कमी की वजह से इसे इस्तेमाल में नहीं लाया गया. ऐसे उदाहरणों ने सार्वजनिक असंतोष को बढ़ावा दिया है और चीन पर अंतर्राष्ट्रीय विकास सहायता के ज़रिए उपनिवेशवाद को बढ़ाने के आरोप लगे हैं.

 अगर ये नौसैनिक अड्डा स्थापित होता है तो डिज़ीबूटी के बाद अफ्रीका में चीन का ये दूसरा आर्मी बेस होगा. ऐसी कार्रवाई चीन की रणनीतिक गहराई को काफ़ी बढ़ा देगी और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर अफ्रीका में बीजिंग के बढ़ते प्रभाव के बारे में चिंता पैदा करती है.

इसके अलावा, अफ्रीकी महाद्वीप क्षेत्र में चीन की सैनिक महत्वाकांक्षाओं को लेकर भी चिंता बढ़ रही हैय रिपोर्टों से पता चलता है कि चीन ने अंगोला के अटलांटिक तट पर एक नौसैनिक अड्डा स्थापित करने की संभावना खोज ली है. अगर ये नौसैनिक अड्डा स्थापित होता है तो डिज़ीबूटी के बाद अफ्रीका में चीन का ये दूसरा आर्मी बेस होगा. ऐसी कार्रवाई चीन की रणनीतिक गहराई को काफ़ी बढ़ा देगी और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर अफ्रीका में बीजिंग के बढ़ते प्रभाव के बारे में चिंता पैदा करती है.

 

राष्ट्रपति जोआओ लॉरेनको कैसे बदल रहे हैं अंगोला की विदेश नीति?

2017 में सत्ता संभालने के बाद से राष्ट्रपति लॉरेनको ने अंगोला में शासन और आर्थिक संरचनाओं के सुधार को प्राथमिकता दी है. उनके प्रशासन ने कई प्रमुख व्यक्तियों को पूर्व शासन से भ्रष्टाचार विरोधी एजेंडा को सख्ती से लागू करते हुए कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा है. इसके अलावा आर्थिक क्षेत्र में पारदर्शिता में सुधार करने और निवेशक विश्वास को बढ़ावा देने के लिए भी कई उपाय किए हैं. इस सुधार का एक प्रमुख घटक अंगोला की विदेशी नीति का विविधीकरण है. अंगोला का लक्ष्य चीन पर अत्यधिक निर्भरता से हटकर एक अधिक संतुलित, बहुध्रुवीय दृष्टिकोण की ओर बढ़ावा देना है. इस संदर्भ में, राष्ट्रपति लॉरेनको ने चीन के साथ पिछली सरकार द्वारा किए गए निवेश समझौतों की स्पष्ट रूप से आलोचना की है, और इसके बाद इनमें से कुछ समझौतों को रद्द कर दिया.

 

अंगोला के कुछ हालिया कूटनीतिक जुड़ावों से उसकी रणनीतिक प्रतिबद्धताओं में बदलाव स्पष्ट दिखते हैं. नवंबर 2023 में, लॉरेनको ने अमेरिका का दौरा किया, जिसके बाद दिसंबर 2024 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अंगोला की यात्रा की. करीब एक दशक में किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का उप-सहारा अफ्रीकी देश का ये पहला दौरा था. दोनों देश अब लोबिटो कॉरिडोर के विकास में सहयोग कर रहे हैं. ये कॉरिडोर अंगोला के लोबिटो बंदरगाह को जाम्बिया और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो जैसी खनिज-समृद्ध देशों से जोड़ेगा. ये परियोजना वैश्विक तकनीकी आपूर्ति श्रृंखला के लिए बहुत मूल्यवान है, क्योंकि इससे कोबाल्ट और तांबे तक पहुंच आसान बनेगी. इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों और ग्रीन टेक्नोलॉजी के लिए ये दोनों धातुएं बहुत महत्वपूर्ण हैं.

 

अमेरिका ने अंगोला में बुनियादी ढांचे के विकास में मदद का विकल्प पेश कर दिया है. वहीं चीन तेल और ऋण कूटनीति के माध्यम से अपनी पकड़ बनाए हुए हैं. ऐसे में भारत एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है. भारत विकास भागीदारी, क्षमता निर्माण और आपसी सम्मान को प्राथमिकता देता है. अंगोला की भारत के साथ बढ़ती नजदीकी सिर्फ ऐतिहासिक सद्भावना पर आधारित नहीं है बल्कि भारत इसके अलावा भी अंगोला को बहुत कुछ मुहैया कराता है. दक्षिण-दक्षिण सहयोग और मानव-केंद्रित विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता भी अंगोला के साथ उसके संबंधों को मज़बूत बना रही है. इसके अलावा भारत की बढ़ती आर्थिक और प्रौद्योगिकी क्षमताएं उसे अंगोला के लिए एक व्यावहारिक और आकर्षक रणनीतिक साथी के रूप में स्थापित करती हैं.

 

अंगोला से भारत के क्या रणनीतिक हित हैं?

भारत इसके बदले में अंगोला को सिर्फ एक संसाधन-समृद्ध देश के रूप में ही नहीं बल्कि एक महत्वपूर्ण अफ़्रीकी देश के रूप में मान्यता देता है. भारत इस बात को स्वीकार करता है कि अफ्रीकी महाद्वीप में अंगोला का प्रभाव बढ़ रहा है. 200 मिलियन डॉलर का डिफेंस लाइन ऑफ़ क्रेडिट देकर, भारत सक्रिय सुरक्षा भागीदार के रूप में अफ़्रीका में अपनी ज्यादा प्रभावी भूमिका निभाने का इरादा रखता है. ये एक ऐसा क्षेत्र हैं, जहां लंबे समय से पश्चिमी और चीन का प्रभाव रहा है. ये कदम भारत की व्यापक सामरिक कोशिशों को भी पूरा करता है. भारत हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) और उससे आगे अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है. अंगोला का अटलांटिक तट इसे भू-राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बनाता है. 

 

विकास के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए अंगोला के सामने कुछ प्रमुख चुनौतियां भी है. उसे अपने आर्थिक सुधार के एजेंडे की गति को बनाए रखना होगा. इसके साथ ही ये भी सुनिश्चित करना होगा कि विदेशी साझेदारियों का आर्थिक और सामाजिक लाभ स्थानीय लोगों को हासिल हों. कई साल से महत्वपूर्ण विदेशी सहायता हासिल करने के बावजूद इसके अपेक्षित फायदे अभी आम नागरिकों तक नहीं पहुंच पाए हैं. इसकी बड़ी वजह शासन में कमी और सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणालियों में पारदर्शिता की कमी रही है. 

 कई साल से महत्वपूर्ण विदेशी सहायता हासिल करने के बावजूद इसके अपेक्षित फायदे अभी आम नागरिकों तक नहीं पहुंच पाए हैं. इसकी बड़ी वजह शासन में कमी और सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणालियों में पारदर्शिता की कमी रही है. 

फिर भी, राष्ट्रपति लॉरेनको का भारत दौरा अंगोला की विदेश नीति के नज़रिए से एक बड़े बदलाव का प्रतीक है. भारत को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार का दर्जा देकर अंगोला एक स्पष्ट कूटनीतिक संदेश दे रहा है. ये भागीदारी व्यापार और ऐतिहासिक एकजुटता के पारंपरिक ढांचों से आगे जाती है. अंगोला महान शक्तियों (पश्चिमी देश और चीन) की आपसी प्रतिस्पर्धा से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है. अंगोला अब अपनी अंतरराष्ट्रीय सहभागिताओं में ज़्यादा संतुलित और स्वायत्त दिशा की तरफ बढ़ रहा है और उसकी इन कोशिशों में भारत एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में उभर रहा है.


समीर भट्टाचार्य ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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