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Published on Apr 22, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में उभरते ध्रुव की तरह ख़ुद को स्थापित कर रहा है, ऐसे में विदेश मंत्रालय के परिचालन से जुड़ी ज़रूरतों को समझना निहायत ज़रूरी हो जाता है

भारत के लिए चुनौतियां और अवसर: अनुदान मांगों पर 20वीं रिपोर्ट की पड़ताल

पिछले महीने विदेशी मामलों की समिति ने अनुदान मांगों से जुड़ी 20वीं रिपोर्ट जारी कर दी. इससे विदेश मंत्रालय (MEA) और उसके परिचालन से जुड़ी कई अहम जानकारियां सामने आई हैं. 

बजट और बाध्यताएं 

विश्व पटल पर भारत की पैठ और भूमिका लगातार बढ़ने के बावजूद भारत का विदेश मंत्रालय केंद्र के सबसे कम वित्त-पोषित मंत्रालयों में शुमार है. एक लंबे अर्से से इस मंत्रालय को आवंटित बजट, देश के सकल बजट के एक प्रतिशत से भी कम स्तर पर बरक़रार है. विदेश मंत्रालय को आवंटित कुल बजट का प्रतिशत 2019 के बाद लगातार उतार पर है (टेबल 1 देखिए); भारत सरकार के आंतरिक व्ययों में भारी-भरकम बढ़ोतरी के चलते ऐसे हालात उभरने की आशंका है. विदेश मंत्रालय को इस साल 18,050 करोड़ रु. (0.40 प्रतिशत) का बजट मिला है, जो पिछले पांच वर्षों में दूसरा सबसे बड़ा बजट आवंटन है. दरअसल कुल आवंटन में इस बढ़ोतरी के पीछे भारत की G20 अध्यक्षता के लिए 990 करोड़ रुपये के आकलित व्यय का हाथ रहा है.

मंत्रालय में सहायता आवंटन की प्रणाली भी अनेक चुनौतियों से भरी हुई है. मांग-आवंटन अनुपात में असंतुलन, संशोधित अनुमानों में आवंटन में कमी के साथ-साथ समान और तार्किक आवंटन सुनिश्चित करने में दिक़्क़त- इस दिशा में कुछ बड़ी अड़चनें हैं. कुछ तिमाहियों में ख़र्च की रफ़्तार सुस्त रही है और आख़िरी तिमाहियों में अक्सर बड़े कोषों का वितरण देखा गया है. कोविड-19 की आमद के बाद आवंटित कोषों का पूर्ण इस्तेमाल भी विदेश मंत्रालय के लिए चुनौतियों भरा सबब रहा है.

2020-21 में बग़ैर ख़र्च के बची हुई रकम 634 करोड़ रुपये थी जबकि 2021-22 में ये बढ़कर 1828 करोड़ रुपये हो गई.

टेबल 1. विदेश मंत्रालय के मांग, आवंटन और व्यय   

साल बजट अनुमान मांग बजट अनुमान आवंटन बजट के प्रतिशत के रूप में बजट अनुमान संशोधित अनुमान मांग संशोधित अनुमान आवंटन बजट के प्रतिशत के रूप में संशोधित अनुमान वास्तविक व्यय
2020-21 20873.40 17346.71 0.57% 18256.59 15000 0.43%

14365.84

(95.77%)

2021-22 22888.73 18154.73 0.52% 18224.52 16000 0.42%

14173.70

(88%)

2022-23 20707.18 17250 0.44% 19095.45 16972.9 0.41%

10375.9*

(94%)**

2023-24 21276.65 18050 0.40% ------ -------- --------  

**अनुमान; दिसंबर 2022 तक व्यय*

विकास के लिए सहभागिताएं

बजट में क्षेत्रवार आवंटन का एक बड़ा हिस्सा (5848.58 करोड़ रु) तकनीकी और आर्थिक सहयोग (TEC) को आवंटित किया गया है. कुल मिलाकर इस क़वायद का लक्ष्य देश के आस-पड़ोस और उसके परे भारत की प्राथमिकताओं के पूरक के तौर पर काम करना है. आवंटित रकम में से 5080.24 करोड़ रुपये अनुदान के रूप में है जबकि बाक़ी 768.34 करोड़ रुपये ऋण के तौर पर है. भारत की सहायता कई अलग-अलग स्वरूपों में सामने आती है. इनमें लाइंस ऑफ़ क्रेडिट (LOCs), अनुदान सहायता, तकनीकी सलाहकारिता, आपदा राहत, मानवतावादी मदद, धरोहरों का उद्धार, शैक्षणिक छात्रवृति, क्षमता-निर्माण कार्यक्रम आदि शामिल हैं. भागीदार देशों की ज़रूरतों, भारत के हितों और परियोजनाओं के टिकाऊपन के आधार पर सहायता मुहैया कराई जाती है. 

ये अनुदान और ऋण विभिन्न क्षेत्रों के देशों के लिए होते हैं. इनमें लैटिन अमेरिका, अफ़्रीका और दक्षिणपूर्व एशियाई देश शामिल हैं. हालांकि भारत के आस-पड़ोस के देशों को इन आवंटनों का एक बड़ा हिस्सा मिलता है. हाल के वर्षों में आस-पड़ोस में भारत की ओर से मुहैया कराई गई आर्थिक सहायता का ज़्यादा ज़ोर कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर रहा है. इनमें रेलवे संपर्क, सड़क और पुल, जलमार्ग, सीमावर्ती इलाक़ों से जुड़ा बुनियादी ढांचा, बिजली उत्पादन, पनबिजली परियोजनाएं आदि शामिल हैं.

टेबल 2. पड़ोसी देशों को सहायता 

देश बजट अनुमान 2022-23 (करोड़ में) बजट अनुमान 2023-24 (करोड़ में)
बांग्लादेश 300 200
भूटान 1560.01 1632.24
नेपाल 750 550
श्रीलंका 200 150
म्यांमार 600 500
अफ़ग़ानिस्तान 200 200
मालदीव 360 400

भारत के आस-पड़ोस (टेबल 2 देखिए) में भूटान और मालदीव की सहायता में बढ़ोतरी देखी गई है. भूटान को सबसे ज़्यादा द्विपक्षीय सहायता (2400 करोड़ रु) हासिल हुई है. इस मदद में अनुदान (1632 करोड़ रु) और ऋण (768 करोड़ रु), दोनों शामिल हैं. नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश को मुहैया की जाने वाली सहायता में कमी दर्ज की गई है. नेपाल और बांग्लादेश के संदर्भ में सहायता में गिरावट की वजह ये है कि यहां ज़्यादातर परियोजनाएं पूरी कर ली गई हैं या पूर्णता के अंतिम चरण में हैं. वैसे तो श्रीलंका में आर्थिक संकट की वजह से आवंटन में कमी हुई है, लेकिन इस साल कई परियोजनाओं के निविदा से जुड़े दौर में होने के चलते इसमें बढ़ोतरी होने के आसार हैं. सियासी और आर्थिक मोर्चे पर उथल-पुथल भरे हालातों और सुरक्षा से जुड़ी परिस्थितियों के चलते अफ़ग़ानिस्तान और म्यांमार को मदद की क़वायद में रुकावटें आ गई हैं. हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान और म्यांमार, दोनों ही देशों में सहायता के उपयोग की दर 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा है, जबकि बाक़ी मुल्कों में ये दर 30-40 प्रतिशत के आसपास देखी जा रही है.

भारत के हितों को आगे बढ़ाने और बाक़ी दुनिया में हिंदुस्तान के प्रति सद्भाव और सम्मान बढ़ाने के लिए इस प्रकार के सहयोग की अहमियत पर सबकी रज़ामंदी है. इसके बावजूद बजट के कुल आवंटन में विकास सहायता का प्रतिशत हिस्सा लगातार गिरता जा रहा है. ये आंकड़ा 42.06 प्रतिशत से गिरकर 2023-24 में महज़ 32.40 प्रतिशत रह गया है. निरंतरता, सहायता राशि का दक्ष इस्तेमाल और परियोजनाओं को समय से पूरा करने की क़वायद विदेश मंत्रालय के लिए एक चुनौती साबित होती रही है. किसी ख़ास परियोजना पर बजट आवंटन और उसके क्रियान्वयन पर कई कारकों का प्रभाव होता है. इनमें भागीदार देश का स्थानीय सुरक्षा माहौल, वहां का प्राकृतिक वातावरण और मेज़बान मुल्क की सरकार की पारस्परिकता और उनकी नीतिगत प्राथमिकताएं शामिल हैं. भारत के नज़रिए से देखें तो भागीदार देशों में जारी परियोजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में कई कारकों के चलते बाधाएं आती हैं. इनमें अन्य देशों में रसद से जुड़ी बाध्यताएं, ख़रीद के अलग-अलग नियम-क़ायदे, नियामक तंत्रों में विभिन्नताएं और सियासी-आर्थिक हालात शामिल हैं.  

राजनयिक मौजूदगी और प्रभाव का विस्तार

बजट में विदेशों में स्थित भारतीय मिशनों और चौकियों को क्षेत्रवार दूसरा सबसे अधिक आवंटन हासिल हुआ है. इस मद में 3528 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ है. फ़िलहाल दुनिया भर में भारत के 201 राजनयिक मिशन और चौकियां कार्यरत हैं. भारत की सरकार लैटिन अमेरिका, कैरेबियाई क्षेत्र, अफ़्रीका और यूरोप में अपनी राजनयिक मौजूदगी और मिशनों के विस्तार की कोशिशें करती आ रही हैं. 2018 के बाद से अफ़्रीका में भारत ने तक़रीबन 15 नए मिशन चालू कर दिए हैं. दिसंबर 2020 में एस्टोनिया, पराग्वे और डोमिनियन गणराज्य में नए मिशन खोले गए. हालांकि इन कार्यक्रमों के बावजूद इस बार के बजट में इस क्षेत्र के लिए आवंटन में लगभग 240 करोड़ रुपये की कमी दर्ज की गई है. मंत्रालय में कर्मचारियों के अभाव की समस्या भी जस की तस बनी हुई है. फ़िलहाल मंत्रालय में कर्मियों की कुल तादाद 4488 है, इनमें से महज़ 1011 कर्मी ही विदेश सेवा के अधिकारी हैं. इस तरह भारत, दुनिया में कर्मियों की किल्लत झेलने वाले देशों की सूची में पहले पायदान पर है. UPSC और SSC द्वारा सुस्त और सीमित स्तर पर भर्तियां की जाती रही हैं. इसके अलावा शीर्ष स्तर पर गतिहीनता रोकने के लिए मंत्रालय द्वारा धीमी गति से कर्मियों को शामिल किया जाता रहा है. इन कारकों के चलते भारत के राजनयिक विस्तार और दक्षता के सामने अनेक चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं.

विशेष राजनयिक व्यय के मद में अबतक का तीसरा सबसे ऊंचा आवटंन (4162 करोड़ रु) किया गया है. इसके अलावा विदेश मंत्रालय के सचिवालय के प्रशासनिक ख़र्चों के लिए 1518 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. पासपोर्ट और प्रवासन खंड को पांचवां सबसे ज़्यादा आवंटन (1002 करोड़ रु) दिया गया है.  

हाल के वर्षों में प्रवासन और प्रवासी समुदाय पर सरकार ने काफ़ी ध्यान दिया है. ऐसे में पासपोर्ट की उपलब्धता बढ़ाने और इस प्रक्रिया को सस्ता बनाने की क़वायदों का विस्तार हुआ है. आज की तारीख़ में देश भर में 430 पासपोर्ट सेवा कार्यालय चालू हैं; जल्द ही चार नए कार्यालय भी खुल जाएंगे. पासपोर्ट सेवाओं का डिजिटलीकरण करने और पुलिस सत्यापन और पासपोर्ट से जुड़े प्रावधानों की मियाद कम करने की कोशिशें भी लगातार जारी हैं. हालांकि मंत्रालय के सामने अब भी तमाम तरह की चुनौतियां हैं. केंद्रीय पासपोर्ट संगठन के कुल श्रम बल का 36 प्रतिशत हिस्सा रिक्त है. मेज़बान देशों के नियमों और क़ायदों को लेकर प्रवासियों को जागरूक करने के लिए सरकार ने 5 नए प्रॉक्टर ऑफ़ एमिग्रैंट्स (PoE) कार्यालयों और 58 नए प्री-डिपार्चर ओरिएंटेशन ट्रेनिंग (PDOT) केंद्रों को अधिकृत किया है. ये तमाम नई इकाइयां पहले से मौजूद और पहले से संचालित 14 PoEs और 32 PDOTs के अतिरिक्त हैं. 

देश में विदेशी मुद्रा की आवक और राष्ट्र की सांस्कृतिक शक्ति (soft power) के प्रदर्शन की अहमियत को देखते हुए मंत्रालय ने प्रवासी भारतीय समुदाय के साथ जुड़ावों के मद में तक़रीबन 50 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. इसी तरह विदेशों में रह रहे भारतीयों के कल्याण के लिए क्रमश: 37 करोड़ रुपये और 13 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. प्रवासियों के साथ जुड़ावों के ज़रिए सरकार उन्हें भारत देश और भारतीय संस्कृति के साथ परिचित कराए जाने की क़वायदों को अंजाम दे रही है. इसके अलावा भारत के विभिन्न पेशेवर तबक़ों के साथ मेलजोल बनाने पर भी ज़ोर दिया जाता है. इनमें वैज्ञानिक, कारोबारी, सैन्य कर्मी, छात्र आदि शामिल हैं. इसी तरह सरकार PDOT सत्रों, बचाव अभियानों और भारतीयों को वापस वतन भेजे जाने की क़वायदों से भी जुड़ी रही है. अनिवासी भारतीयों के कल्याण कार्यक्रम के ज़रिए सरकार ऐसे लोगों तक क़ानूनी मदद और सलाहकारी सेवाएं पहुंचा रही है. बहरहाल, इन कोषों का कुशल इस्तेमाल एक बड़ा मसला रहा है. पिछले साल अनिवासी भारतीयों के कल्याण के लिए आवंटित 97 करोड़ रुपये की राशि में से महज़ 0.06 करोड़ रुपये ही ख़र्च किए जा सके थे. इसी तरह भारतीय प्रवासी समुदाय के साथ जुड़ावों के लिए आवंटित 46 करोड़ रुपये की रकम में से सिर्फ़ 14 करोड़ रुपये ही प्रयोग में लाए जा सके. प्रवासी भारतीयों में दूतावास के साथ जुड़ने या ख़ुद का निबंधन  कराने को लेकर जारी हिचक के चलते भी मिशनों की दक्षता में रुकावट आई है. 

संपर्क और गठजोड़

वैसे तो भारतीय विदेश नीति के निर्माण का काम विदेश मंत्रालय के मातहत आता है लेकिन वास्तविकता में ये अनेक किरदारों द्वारा प्रभावित एक सामूहिक क़वायद है. इनमें किसी ख़ास देश के क्षेत्रीय खंड, थिंक टैंक समुदाय और शैक्षणिक संस्थाएं शामिल हैं. इस तरह के चरणबद्ध नीति निर्माण और ज्ञान के उत्पादन में विदेश मंत्रालय के योगदान को तमाम स्वायत्त निकायों और संस्थाओं को उसके समर्थन के ज़रिए आगे बढ़ाया जाता है. इस कड़ी में विदेश मंत्रालय शोध संगठनों और थिंक टैंकों को कोष मुहैया कराने के साथ-साथ ट्रैक 1.5 और 2 संवादों का भी आयोजन करता है. महामारी के चलते इन संगठनों के वित्त-पोषण में गिरावट आई थी. बहरहाल, इस वर्ष भारत G20 की अध्यक्षता कर रहा है, ऐसे में इनमें से कुछ संस्थानों के वित्त पोषण में नाटकीय रूप से बढ़ोतरी की गई है. 

निष्कर्ष

इस रिपोर्ट के ख़ुलासे भारत के लिहाज़ से एक माकूल वक़्त पर सामने आए हैं. दुनिया कोविड महामारी के बाद उसके प्रभावों से उबर रही है. ऐसे उतार-चढ़ावों भरे वक़्त में भारत निरंतर आगे बढ़ने की कोशिशें कर रहा है. उसने इस साल G20 की अध्यक्षता भी संभाल रखी है. ऐसे में भारत को अपने बजट आवंटन की कमज़ोरियों और उनमें मौजूद खामियों की पड़ताल करते हुए अपने आस-पड़ोस और उससे परे आर्थिक सहायता की क्रियाशीलता और वितरण का निश्चित रूप से प्रभावी विश्लेषण करना चाहिए. 

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Authors

Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with ORFs Strategic Studies Programme. He focuses on broader strategic and security related-developments throughout the South Asian region ...

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Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...

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