Author : Manoj Joshi

Expert Speak Terra Nova
Published on Dec 23, 2024 Updated 0 Hours ago

अगर ट्रंप अपनी नीतियों पर यू-टर्न नहीं लेते तो अमेरिका के नेतृत्व वाले वैश्विक गठबंधन की प्रणाली पूरी तरह से ख़त्म भले न हो लेकिन ये कमज़ोर होने की संभावना है. 

'अमेरिका फर्स्ट' का दोबारा उदय: दुनिया के लिए नई चुनौतियां

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अमेरिका दूसरी बार डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के आगमन का जश्न मना रहा है, वहां के लोगों को उम्मीद है कि ट्रंप प्रशासन अमेरिका को समृद्धि और वैश्विक दबदबे के एक नए युग की ओर ले जाएगा. दूसरी तरफ अमेरिका के प्रमुख सहयोगी निराश और बेसहारा लगते हैं. वो अपनी राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ एक ऐसे अमेरिकी प्रशासन से निपटने की तैयारी कर रहे हैं जिसके लिए गठबंधन का कोई मतलब नहीं है. 

जर्मनी और फ्रांस जैसे कई देश आर्थिक मंदी का सामना कर रहे हैं. वहीं जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश राजनीतिक रूप से अप्रत्याशित प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं. उनकी समस्याएं गहरी हैं और उनके आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता है. इस बीच कई देश प्रवासन (इमिग्रेशन) और संरक्षणवाद के विरोध पर आधारित दक्षिणपंथी समर्थन में बढ़ोतरी का भी अनुभव कर रहे हैं.   

शीत युद्ध शुरू होने के बाद से अमेरिकी की ताकत दुनिया भर में गठबंधन तैयार करने की उसकी क्षमता पर निर्भर रही है. उसके 51 सहयोगियों ने अमेरिका को दुनिया में उसकी भू-राजनीतिक ताकत दी है और उसकी सैन्य क्षमता को पेश करने, आर्थिक संपर्क को सुविधाजनक बनाने और साझा मूल्यों को दिखाने में उपयोगी साबित हुए हैं. लेकिन इनमें से ज़्यादातर चीज़ों को डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट नीति और कई प्रमुख सहयोगी देशों को प्रभावित करने वाले राजनीतिक एवं आर्थिक ठहराव की दोहरी चुनौती से नुकसान हो सकता है. 

'अमेरिका फर्स्ट' नीति

अमेरिका का पड़ोसी और महत्वपूर्ण सुरक्षा साझेदार कनाडा एक राजनीतिक संकट से गुज़र रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, जिनके कार्यकाल का नौवां साल है, की लोकप्रियता लगातार कम हो  रही है. प्रवासन, आवास और जलवायु से जुड़ी नीतियों में परेशानियों का सामना कर रहे ट्रूडो को उम्मीद है कि अक्टूबर 2025 में होने वाले आम चुनाव तक वो अपने पद पर बने रहेंगे लेकिन ऐसा लगता है कि उनके लिए उम्मीद की कोई किरण नहीं है. ट्रंप के द्वारा 25 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ लगाने की धमकी मिलने के बाद ट्रूडो अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के साथ शांति स्थापित करने के लिए तुरंत मार-ए-लागो रिजॉर्ट पहुंचे. लेकिन राहत के बदले उन्हें ट्रंप से अपमानजनक जवाब मिला जिन्होंने ट्रूडो को “ग्रेट स्टेट ऑफ कनाडा का गवर्नर” कहा.

51 सहयोगियों ने अमेरिका को दुनिया में उसकी भू-राजनीतिक ताकत दी है और उसकी सैन्य क्षमता को पेश करने, आर्थिक संपर्क को सुविधाजनक बनाने और साझा मूल्यों को दिखाने में उपयोगी साबित हुए हैं.

प्रचंड बहुमत के बावजूद UK के प्रधानमंत्री सर किएर स्टार्मर की नई लेबर सरकार ब्रिटेन के सामने मौजूद आर्थिक और कूटनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ने में नाकाम लग रही है. दूसरी तरफ कंज़र्वेटिव पार्टी एक राजनीतिक दलदल में फंसी लग रही है. इन सबके बीच दक्षिणपंथी पार्टी रिफॉर्म UK, जिसके प्रमुख निगेल फरेज हैं, ख़ुद के लिए अधिक राजनीतिक जगह बनाने के उद्देश्य से काफी मेहनत कर रही है. डोनाल्ड ट्रंप और इलॉन मस्क के द्वारा समर्थित इसके नेता निगेल फैरेज के बारे में कहा जा रहा है कि वो स्टार्मर के संभावित उत्तराधिकारी हैं. 

जर्मनी के चांसलर श़ॉल्त्स का गठबंधन टूट गया है जबकि वहां की अर्थव्यवस्था ठप पड़ी हुई हैं. ये जर्मनी में नकारात्मक विकास का लगातार दूसरा साल है और सरकार ने जहां अगले साल से विकास की वापसी का अनुमान लगाया है वहीं कुछ संशयवादियों का कहना है कि जब तक उत्पादकता में सुधार नहीं होता है तब तक निर्यात और मैन्युफैक्चरिंग पर निर्भर जर्मनी की अर्थव्यवस्था संकट से बाहर नहीं होगी.  

इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री मिशेल बार्नियर के घाटे में कटौती करने वाले बजट को लेकर अविश्वास प्रस्ताव के बाद फ्रांस की सरकार गिर गई. एक तरह से ये साल के बीच में हुए अचानक चुनाव में राष्ट्रपति मैक्रों की हार का परिणाम है. संसदीय चुनाव ने संसद को तीन समूहों में बांट दिया है और किसी एक समूह को स्पष्ट रूप से बहुमत नहीं है. संसद में बार्नियर के ख़िलाफ़ मत के लिए दक्षिणपंथी और वामपंथी समूह एकजुट हो गए. ये देखते हुए कि राष्ट्रपति मैक्रों ने 2024 में तीन प्रधानमंत्रियों को बदल दिया है, ये देश के राजनीतिक अव्यवस्था की गिरफ्त में होने को भी दर्शाता है जिसमें मरीन ले पेन के नेतृत्व वाली दक्षिणपंथी नेशनल रैली (NR) पार्टी के समर्थन में बढ़ोतरी देखी जा रही है

अमेरिका के पूर्वी एशियाई सहयोगियों पर भी उथल-पुथल का असर देखा जा रहा है. दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति यून सुक योल, जो कट्टर अमेरिकी समर्थक हैं, के द्वारा मार्शल लॉ का एलान करने की कोशिश के बाद उनके ख़िलाफ़ महाभियोग लाया गया है. इस प्रकरण ने दक्षिण कोरिया की सरकार को कमज़ोर किया है और इसकी वजह से निकट भविष्य में वामपंथी सरकार बन सकती है. इससे पहले अप्रैल में यून की कंज़र्वेटिव पार्टी को देश के संसदीय चुनाव में गंभीर झटके का सामना करना पड़ा जिसकी वजह से उनकी स्थिति डांवाडोल हो गई थी. ये घटनाक्रम दक्षिण कोरिया-जापान-अमेरिका की त्रिपक्षीय सुरक्षा संरचना तैयार करने के प्रयासों पर असर डाल सकता है जिसकी पहल राष्ट्रपति बाइडेन ने 2023 में कैंप डेविड शिखर सम्मेलन के माध्यम से की थी. इन चुनौतियों के अलावा आने वाला ट्रंप प्रशासन भी है जिसने इस दिशा में बहुत ज़्यादा इच्छा नहीं दिखाई है. 

ट्रंप के द्वारा 25 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ लगाने की धमकी मिलने के बाद ट्रूडो अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के साथ शांति स्थापित करने के लिए तुरंत मार-ए-लागो रिजॉर्ट पहुंचे. लेकिन राहत के बदले उन्हें ट्रंप से अपमानजनक जवाब मिला जिन्होंने ट्रूडो को “ग्रेट स्टेट ऑफ कनाडा का गवर्नर” कहा.

जापान ने भी हाल के समय में राजनीतिक भूकंप का अनुभव किया है जिसकी वजह से वो बाहर की तरफ नहीं देख रहा है. लंबे समय से सत्ता में बनी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को उस वक्त संसदीय बहुमत खोना पड़ा जब नए प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने अचानक चुनाव कराए जबकि वो उम्मीद कर रहे थे कि “नए नेता की उछाल” का लाभ मिलेगा. वैसे तो पार्टी सत्ता में बनी हुई है लेकिन उसे गठबंधन में नए साझेदारों को लाना पड़ा. ये स्थिति उस सकारात्मक आर्थिक माहौल को कमज़ोर कर सकती है जो देश में पिछले दो साल से है. उतना ही महत्वपूर्ण जापान के लिए अपनी रक्षा नीति में फेरबदल करने और इसे खुला बनाने पर इसका असर होगा. 

तुरंत की संभावना कठिन है. कनाडा और मेक्सिको पर ट्रंप का 25 प्रतिशत टैरिफ अमेरिका के साथ-साथ उसके दोनों पड़ोसियों के लिए भी नुकसानदेह हो सकता है. ज़्यादा शुल्क अमेरिका के यूरोपीय साझेदारों जर्मनी और फ्रांस के लिए भी एक बड़ा झटका होगा जिन्हें रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन का समर्थन करने से अमेरिका के पीछे हटने की स्थिति में यूक्रेन का साथ देने की चुनौती का भी सामना करना पड़ेगा. 

कनाडा, अमेरिका और सभी यूरोपीय देशों के लिए इमिग्रेशन एक बड़े मुद्दे के रूप में उभरा है जो स्थापित सरकारों के ख़िलाफ़ लगभग विद्रोह जैसी स्थिति को बढ़ावा दे रहा है. जिस जल्दबाज़ी के साथ जर्मनी जैसे देशों ने सीरिया के शरणार्थियों के लिए रेजिडेंसी (निवास) पर विचार को निलंबित कर दिया है वो इस मुद्दे को लेकर मौजूदा संवेदनशीलता का सबूत है. “अमेरिका फर्स्ट” नीति के व्यापक अंतरराष्ट्रीय नतीजे हो सकते हैं जैसे कि दक्षिण कोरिया और यहां तक कि जापान जैसे देशों को परमाणु सीमा को पार करने के लिए बढ़ावा देना. अपने पहले कार्यकाल के दौरान दोनों देशों के साथ ट्रंप का व्यवहार बहुत अच्छा नहीं था. ट्रंप ने उनके क्षेत्र में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती बनाए रखने के लिए दोनों देशों से अधिक भुगतान की मांग की थी.  

आगे की राह

इतना ही गंभीर अमेरिका के द्वारा रूस के लिए अनुकूल शर्तों के साथ यूक्रेन को युद्धविराम करने के लिए मजबूर करने का फैसला हो सकता है. इस महीने की शुरुआत में ट्रंप ने यूक्रेन में तुरंत युद्धविराम की अपील की और एक इंटरव्यू में कहा कि वो यूक्रेन को सैन्य सहायता में कटौती और अमेरिका को नेटो से बाहर करने पर विचार करेंगे. ऐसी स्थिति यूरोप की सुरक्षा प्रणाली को जर्जर बना देगी और फ्रांस एवं जर्मनी को मजबूर कर देगी कि वो अपनी सुरक्षा नीतियों को पूरी तरह से बदल लें. 

चाहे ट्रंप सफल हों या असफल लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि विश्व की व्यवस्था सोवियत संघ के पतन के बाद से सबसे बड़े मंथन के दौर से गुज़रेगी. अगर ट्रंप अपनी नीतियों पर यू-टर्न नहीं लेते हैं तो अमेरिका के नेतृत्व वाले वैश्विक गठबंधन की प्रणाली पूरी तरह से ख़त्म भले न हो लेकिन ये कमज़ोर होने की संभावना है. इस परिदृश्य में भारत कई देशों के साथ जुड़ने की अपनी नीति के साथ लाभ उठाने के लिए तैयार है. हम वास्तव में एक बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय देख सकते हैं.    


मनोज जोशी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं. 

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