Author : Shoba Suri

Expert Speak Terra Nova
Published on Jun 09, 2025 Updated 4 Days ago

एग्रो-इकोलॉजी पर आधारित व्यवस्थाएं संक्रमण को कम से कम करती हैं, उनका पता लगाने में मददगार होती हैं और उत्पाद से लेकर खपत तक खाद्य पदार्थों को सुरक्षित होना सुनिश्चित करती हैं. 

सुरक्षित भोजन के लिए एग्रो-इकोलॉजी: खेत से खाने की प्लेट तक खतरों को कम करना!

Image Source: Getty

ये लेख खेतों से खाने की प्लेट तक, सुरक्षित भोजन कैसे पायें’ सीरीज़ का हिस्सा है.


आज के दौर में जब खाने से होने वाली बीमारियां और रासायनिक संक्रमण के अलावा खेती पर जलवायु परिवर्तन के बुरे असर बढ़ रहे हैं, तो खाद्य पदार्थों की टिकाऊ सुरक्षा सबसे अधिक अहम हो गई है. एग्रोइकोलॉजी एक ऐसा एकीकृत तरीक़ा है, जिसमें ‘खाद्य और कृषि व्यवस्थाओं की डिज़ाइन और उनके प्रबंधन के क्षेत्र में सामाजिक सिद्धांतों के साथ साथ पारिस्थितिकी की परिकल्पनाओं को एकीकृत रूप से लागू करने का प्रयास किया जाता है.’ इसका मक़सद, ‘टिकाऊ और समतावादी खाद्य व्यवस्था से जुडे सामाजिक पहलुओं के साथ साथ पौधों, जानवरों, इंसानों और पर्यावरण के बीच आपसी संवाद को ज़्यादा से ज़्यादा सकारात्मक बनाया जा सके.’

पारंपरिक खेती और कीटनाशक प्रतिरोधी रोगाणुओं (AMR) के जोख़िम

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक़ खाद्य वस्तुओं के सुरक्षित होने, पोषण और खाद्य सुरक्षा के बीच बारीक़ और नज़दीकी संबंध है. दुनिया भर में लगभग 60 करोड़ लोग यानी, हर दस में से एक शख़्स खाने से पैदा होने वाली बीमारियों के शिकार होते हैं. वहीं, एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ हर साल इन बीमारियों से 4 लाख 20 हज़ार लोगों की जान चली जाती है, जिसका परिणाम 3.3 करोड़ स्वस्थ जीवन वर्षों की क्षति के तौर पर देखने को मिलता है. निम्न और मध्यम आमदनी वाले देश तो ख़ास तौर से खाने से पैदा होने वाली बीमारियों का मुक़ाबला करने की चुनौती से जूझते हैं. इसकी वजह खाद्य पदार्थों के विनियमन में कमी, जागरूकता का अभाव और मौजूदा रणनीतियों को पर्याप्त रूप से लागू नहीं कर पाना होते हैं. खेती का पारंपरिक ढर्रा (गैर ऑर्गेनिक तरीक़ा) अक्सर खाद्य वस्तुओं की सुरक्षा के जोख़िम को बढ़ा देता है, क्योंकि इस खेती में कीटनाशकों और उर्वरकों का बहुत अधिक इस्तेमाल होता है और ये मिट्टी और पानी को प्रदूषइत कर देते हैं, जिससे कीटनाशक रोधी रोगाणुओं (AMR) का उभार और बढ़ता जाता है. इस चलन को चित्र-1 में दिखाया गया है. कोडेक्स एलिमेंटैरियस इंटरनेशनल फूड स्टैंडर्ड चेतावनी देता है कि पालतू पशुओं में कीटाणु नाशकों का बेलगाम इस्तेमाल और कीटनाशक रोधी रोगाणुओं (AMR) के वैश्विक संकट की वजह से आम तौर पर होने वाले संक्रमण का इलाज कर पाना आने वाले समय में नामुमकिन हो जाएगा.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक़ खाद्य वस्तुओं के सुरक्षित होने, पोषण और खाद्य सुरक्षा के बीच बारीक़ और नज़दीकी संबंध है. दुनिया भर में लगभग 60 करोड़ लोग यानी, हर दस में से एक शख़्स खाने से पैदा होने वाली बीमारियों के शिकार होते हैं.

चित्र 1: खेती से खाने की प्लेट तक कीटनाशक रोधी संक्रमण का प्रसार

Agroecology For Food Safety Reducing Risks From Farm To Fork

स्रोत: एंटीमाइक्रोबियल ट्रांसमिशन फ्रॉम फार्म टू फोर्क

सुरक्षित खाद्य उत्पादन के लिए एग्रो-इकोलॉजिकल तौर-तरीक़े

एक ही तरह की फ़सल की बार बार खेती करना और औद्योगिक स्तर पर जानवरों का पालन करने से कीटों और ऐसी बीमारियों को बढ़ावा मिलता है, जिनसे निपटने के लिए फिर केमिकल का उपयोग करना पड़ता है. एग्रोइकोलॉजिकल तरीक़ा खेती में नुक़सानदेह चीज़ों और रासायनिक तत्वों के इस्तेमाल के बजाय, मिली-जुली खेती, जैविक तरीक़े से कीटों की रोकथाम और कीड़े मकोड़ों से निपटने के लिए एकीकृत प्रबंधन पर ज़ोर देता है, जिससे टिकाऊ विकास में योगदान होता है. पर्यावरण के प्रदूषण को ऐसे कीटनाशकों का इस्तेमाल कम करके रोका जा जा सकता है, जो भूगर्भ जल में मिल जाते हैं और फिर उन जीवों को भी क्षति पहुंचाते हैं, जिनका नाश किसान का मक़सद नहीं होता. सबूत ये दिखाते हैं कि ऑर्गेनिक और एग्रोइकोलॉजिकल खेती की व्यवस्थाएं अक्सर खाद्य वस्तुओं में कीटनाशकों की मौजूदगी को काफ़ी कम कर देते हैं. ख़ास तौर से उन कीटनाशकों को घटाते हैं, जिनका इंसान की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ता है. एग्रोइकोलॉजिकल तरीक़े से पशुपालन करने के दौरान चरागाहों पर आधारित कम घनत्व वाली मिली-जुली खेती की जाती है, जिससे पालतू जानवरों की सेहत को भी क़ुदरती तौर-तरीक़ों से बेहतर बनाया जाता है और उनको नियमित रूप से एंटीबायोटिक्स देने से परहेज़ करके कीटनाशक प्रतिरोधी रोगाणुओं को बढ़ने से रोका जाता है. ये देखा गया है कि अगर एग्रोइकोलॉजिकल तरीक़े से खेती की जाती है, तो पारंपरिक ढर्रे की तुलना में एंटीबायोटिक्स का उपयोग 70 से 90 फ़ीसद तक कम होता है और पालतू पशुओं की सेहत और उनकी उत्पादकता भी बनी रहती है.

मिटी और पानी की सेहत और स्थानीय खाद्य व्यवस्थाएं

सुरक्षित खाद्यान्न उगाने के लिए मिट्टी का उर्वर और लचीला होना आवश्यक होता है. कंपोस्टिंग, फ़सली चक्र के मुताबिक़ खेती करना, एग्रोफॉरेस्ट्री और बार बार जुताई करने से बचने जैसे एग्रोइकोलॉजिकल तरीक़े से मिट्टी की सेहत बेहतर होती है. पौधों की सहनशक्ति बढ़ती है और इशेरिचिया कोलाई और साल्मोनेला जैसे संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया का संक्रमण भी कम होता है. इसी तरह बरसात के पानी का अधिकतम दोहन करने और जानवरों के उपयोग केमिकल वाली खेती के उपयोग के बाद निकलने वाले पानी को रोकने के लिए बफ़र ज़ोन बनाने से भी पानी की क्वालिटी को सुधारा जा सकता है. हालांकि, औद्योगिक स्तर पर खेती के तौर-तरीक़े अक्सर पानी को रासायनिक कचरे से प्रदूषित कर देते हैं, जिससे खाद्य वस्तुएं और सिंचाई का पानी, दोनों ही रसायनों से संक्रमित हो जाते हैं. अगर एग्रोइकोलॉजिकल तरीक़े से खेती की जाए यानी फ़सली चक्र के मुताबिक़ खेती बाड़ी करने और मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए कुछ फ़सलें बोने से मिट्टी की सेहत बेहतर होती है और भूगर्भ जल भी प्रदूषित नहीं होता.

एग्रोइकोलॉजिकल तरीक़े से पशुपालन करने के दौरान चरागाहों पर आधारित कम घनत्व वाली मिली-जुली खेती की जाती है, जिससे पालतू जानवरों की सेहत को भी क़ुदरती तौर-तरीक़ों से बेहतर बनाया जाता है और उनको नियमित रूप से एंटीबायोटिक्स देने से परहेज़ करके कीटनाशक प्रतिरोधी रोगाणुओं को बढ़ने से रोका जाता है.

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के तेज़ी से हो रहे विस्तार की वजह से असुरक्षित खाद्य वस्तुओं और उनके तत्वों का पता लगाना एक चुनौती बन गया है. इससे संक्रमण का पता लगाने में देर होती है. इसका समाधान भी एग्रोइकोलॉजी में ही है, जो स्थानीय खाद्य व्यवस्थाओं को  बढ़ावा देती है और इस तरह पूरी खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में पारदर्शिता और जवाबदेही और मज़बूत होती है. सामुदायिक सहायता से खेती (CSA) जैसी पहलों में ग्राहक और उत्पादक के बीच आपसी सहयोग से सीधी मार्केटिंग होती है. इसके अलावा दोनों उत्पादन से जुड़े जोख़िम और उसके नुक़सान को मिलकर उठाते हैं. ‘ब्रेकिंग अवे फ्रॉम इंडस्ट्रियल फूड ऐंड फार्मिंग सिस्टम’ नाम की एक रिपोर्ट ये बताती है कि एग्रोइकोलॉजिकल तरीक़े से खेती करने से जैव विविधता बढ़ाने, पोषण और रोज़ी-रोटी में सुधार लाने के साथ साथ संसाधनों का बेहतर आवंटन करने में काफ़ी मदद मिलती है.

महिलाओं को सशक्त बनाना और नीतिगत आवश्यकताएं

खाद्य व्यवस्थाओं और उत्पादन दोनों में महिलाएं बहुत अहम भूमिका निभाती हैं. दुनिया भर में खेती बाड़ी में काम करने वालों में 43 प्रतिशत महिलाएं हैं. जागरूकता बढ़ाकर, पैसे कमाने के मौक़े मुहैया कराकर वित्तीय स्वतंत्रता उपलब्ध कराकर और निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी बढ़ाकर एग्रोइकोलॉजी में महिलाओं को सशक्त बनाने की काफ़ी संभावनाएं हैं. ग्लोबल साउथ के सबूत ये दिखाते हैं कि एग्रोइकोलॉजिकल पहलों से परिवारों के खान-पान में विविधता लाई जा सकती है. बच्चों के विकास को बढ़ावा मिलता है और खाने के सामान की बर्बादी कम होती है. मौजूदा दस्तावेज़ों की समीक्षा करने से  पता चलता है कि एग्रोइकोलॉजिकल व्यवहार से खाद्य और पोषण सुरक्षा के सकारात्मक परिणाम निकलते हैं. यही नहीं, हालिया रिपोर्टें भी ये रेखांकित करती हैं कि खेती बाड़ी के टिकाऊ तौर तरीक़ों से खाद्य व्यवस्थाएं मज़बूत होती हैं. वो पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल करके खाद्य पदार्थों की सुरक्षा के साथ साथ पोषण की सुरक्षा को बढ़ावा देती हैं.

वैसे तो हम अभी 2030 के एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवेलपमेंट को हासिल करने से आधी से अधिक दूरी तय कर चुके हैं. लेकिन, वैश्विक खाद्य सुरक्षा की चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही हैं. इसके समाधान का एग्रोइकोलॉजी सबसे अच्छा विकल्प है.

एग्रोइकोलॉजी पारिस्थितिक निष्ठा का मेल पूरी खाद्य श्रृंखला में सामाजिक सशक्तिकरण से कराती है, जो न केवल सुरक्षित और पोषक है बल्कि टिकाऊ और न्यायोचित भी है. वैसे तो हम अभी 2030 के एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवेलपमेंट को हासिल करने से आधी से अधिक दूरी तय कर चुके हैं. लेकिन, वैश्विक खाद्य सुरक्षा की चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही हैं. इसके समाधान का एग्रोइकोलॉजी सबसे अच्छा विकल्प है. हालांकि, इसको बड़े स्तर पर लागू करने के लिए लक्ष्य आधारित सब्सिडी, फ़सलों का बीमा और बाज़ार के प्रोत्साहन समेत कई मददगार नीतियों की दरकार होगी. सुरक्षित, स्वस्थ और टिकाऊ ख़ुराक सुनिश्चित करने के लिए सरकारों को तुरंत कार्रवाई करने और एग्रोइकोलॉजिकल सिद्धांतों को अपनाने की ज़रूरत है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.