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पिछले एक दशक में जब भारत की शहरी आबादी में 26 प्रतिशत का उछाल देखा गया, तो उसी दौर में निजी मोटर वाहनों (PMV) के उपयोग में भी 138 प्रतिशत का इज़ाफ़ा देखा गया. भारत को 105 मिलियन वाहनों का पंजीकरण करने में जहां पहले 60 वर्ष (1951-2008) लगे थे, वहीं भारत ने अगले छह वर्षों (2009-2015) में इतनी ही संख्या में वाहनों का पंजीयन कर लिया था. इसकी वजह से वर्तमान सड़क नेटवर्क तथा परिवहन व्यवस्था पर दबाव बढ़ गया है. वर्तमान शहरी परिवहन प्रशासनिक ढांचा टुकड़ों में बंटा हुआ है. अर्थात अलग-अलग एजेंसियां, अलग-अलग पहलुओं का प्रबंधन करती हैं. अकेले दिल्ली में ही दस से ज़्यादा एजेंसियां परिवहन को संचालित करती हैं. इसमें तीन महानगरपालिकाएं, सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD), राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्ग, दिल्ली ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन (DTC) तथा दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टी मॉडल ट्रांजिट सिस्टम लिमिटेड (DIMTS) का समावेश हैं. इस तरह के बिखराव के कारण समन्वय में कमी आती है और परियोजना कार्यान्वयन में अकुलशता देखी जाती है. इसके अलावा इसमें समय सीमा का पालन करना भी मुश्किल हो जाता है.
ऐसे में भारत में शहरी परिवहन के प्रशासनिक ढांचे में तत्काल सुधारों की आवश्यकता है. ऐसा होने पर ही शहर स्तरीय प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित की जा सकेगी, जो तेजी से बढ़ रही आबादी और उसकी आवश्यकताओं का ध्यान रखने में सफ़ल होगी. इस तरह के सुधारों के लिए राष्ट्रीय, राज्य तथा शहर स्तरीय हस्तक्षेप आवश्यक होंगे.
राष्ट्रीय स्तर के हस्तक्षेप : दृष्टि और वित्तपोषण अधिकार तय करना
शहरी विकास मंत्रालय (MoUD) की ओर से 2006 में जारी की गई नेशनल अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिसी (NUTP) का उद्देश्य शहरी परिवहन सेवाओं और ढांचे में समग्र सुधार लाना था. NUTP ने भारत की परिवहन प्राथमिकताओं में एक बड़ा परिवर्तन लाने का काम किया. इसका ध्यान वाहनों की बजाय लोगों की मोबिलिटी यानी गतिशीलता पर केंद्रित था. इस वजह से ऐसी योजनाएं और कार्यक्रम बनाए गए, जिसमें राज्य और शहरों को उनकी शहरी गतिशीलता को बेहतर बनाने में सहयोग किया गया. इसमें जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन (JNNURM), स्मार्ट सिटीज् मिशन और फास्टर अडॉप्शन एंड मैन्यूफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रीड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME I and II) शामिल थे. लेकिन NUTP में एक निर्णायक दृष्टिकोण का अभाव था. इसमें विशेष लक्ष्य तय नहीं थे. इसी प्रकार राज्य तथा शहर स्तर पर होने वाली पहल को वित्त पोषण देने के अधिकार का भी इसमें अभाव था. इसके परिणामस्वरूप अनेक राज्य तथा शहर गतिशीलता की बढ़ती मांग का सामना करने में संघर्ष करते देखे गए. JNNURM तथा FAME जैसी योजनाओं के तहत लगभग 30,000 बसों की आपूर्ति की गई थी. भारत के शहरी जिलों में की गई यह आपूर्ति इन जिलों की असल आवश्यकता 200,000 बसों के मुकाबले बेहद कम पाई गई. इसी वजह से NUTP ने शहरी गतिशीलता को लेकर एक स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाने और वित्त पोषण का पर्याप्त अधिकार मुहैया करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला ताकि सुधारों को गति प्रदान की जा सके.
भारत के शहरी जिलों में की गई यह आपूर्ति इन जिलों की असल आवश्यकता 200,000 बसों के मुकाबले बेहद कम पाई गई. इसी वजह से NUTP ने शहरी गतिशीलता को लेकर एक स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाने और वित्त पोषण का पर्याप्त अधिकार मुहैया करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला ताकि सुधारों को गति प्रदान की जा सके.
2021 में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) की ओर से साइकिल्स4चेंज, स्ट्रीट्स4पीपुल तथा ट्रांसपोर्ट4आल जैसे प्रोजेक्ट्स में शहरी गतिशीलता को लेकर एक स्पष्ट रूप से परिभाषित दृष्टिकोण का प्रदर्शन हुआ. इन कार्यक्रमों में निधि आवंटन, समकक्षों से सीख और संस्थागत समन्वय की समस्या से निपटने की कोशिश की गई है.
भागीदारी का दृष्टिकोण अपनाते हुए इन पहलों में शहरों को कदम-दर-कदम उनकी वॉकिंग यानी चलने, साइकिलिंग और सार्वजनिक परिवहन के बुनियादी ढांचे को सुधारे जाने का मार्गदर्शन दिया गया है. इसके अलावा इसमें श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले शहरों की ओर से अपनाए गए समाधानों का परीक्षण करने के लिए वित्तपोषण का भी एक हिस्सा रखा गया था. इसकी वजह से अंतर-राज्य स्पर्धा विकसित हुई और इसके चलते शहरी प्रशासन में परिवर्तन को लागू करने के प्रभावी कदम उठाए गए. इस प्रयास की वजह से ही 30 से ज़्यादा शहरों में हेल्दी स्ट्रीट्स अपेक्स कमेटीस का गठन किया गया. ये कमेटियां वॉकिंग और साइकिलिंग को बढ़ावा देने वाले प्रोजेक्ट्स एवं कार्यक्रमों के लक्ष्य निर्धारित करती हैं.
इसके साथ ही 100 से ज़्यादा शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सरकारी और गैरसरकारी हितधारकों के समावेश वाली ट्रांसपोर्ट4ऑल टास्कफोर्स का भी गठन किया गया. इन प्रोजेक्ट्स में शहरों के बीच जानकारी साझा करने की सुविधा भी थी. इस वजह से वे अपने ही राज्य के अथवा अन्य राज्य के शहरों के अनुभवों से सबक सीख सकें. इस समन्वयक दृष्टिकोण के कारण शहरी गतिशीलता के बुनियादी ढांचे और सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है.
SUTP शहर स्तरीय नीतियों और परियोजनाओं का मार्गदर्शन करेगा और उन्हें अधिक प्रभावी बनाने में सहायक साबित होगी. इस तरह की व्यापक नीति की वजह से विनियमनों का मानकीकरण होगा और ज़मीनी स्तर पर अमल के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों का आवंटन सुनिश्चित किया जा सकेगा.
इसके फलस्वरूप 15 शहरों ने हेल्दी स्ट्रीट्स पॉलिसी को अपनाते हुए वॉकिंग एवं साइकिलिंग को प्राथमिकता देने के लिए विशेष बुनियादी ढांचा विकसित किया. 19 शहरों ने हेल्दी स्ट्रीट विजन को हासिल करने के लिए तीन वर्षीय कार्ययोजना बनाकर अपने लक्ष्य और रणनीतियां तैयार की हैं. इन योजनाओं में शहरी स्तर पर वॉकिंग एवं साइकिलिंग पहलों के विस्तार की रणनीति और बजट रखा गया है. इसके साथ ही इन रणनीतियों को लागू करने के लिए शहर की विभिन्न एजेंसियों की भूमिका और जिम्मेदारियां तय कर दी गई है, ताकि वे भी इन पहलों को लागू करने की रणनीति में अपने स्तर पर सहयोग दे सकें. स्पर्धा तथा जानकारी साझा करने को बढ़ावा देने के साथ-साथ शहरों को एक स्पष्ट रोडमैप तथा बजट देकर सतत गतिशीलता में सुधार लाने को कहा गया है. इन पहलों के कारण ही 100 से ज़्यादा शहरों ने अपने अधिकार क्षेत्र में शहरी परिवहन में सुधार लाने के लिए सक्रिय कार्रवाई करने के लिए कदम उठाए हैं.
चरण 1 : सुचारू शहरी कार्यशीलता के लिए आवश्यक राजकीय वित्तपोषण
कुछ राज्यों ने गतिशीलता के कुछ विशेष पहलुओं से निपटने की नीतियां बनाई हैं. ये नीतियां इलेक्ट्रिक वाहन अथवा ट्रांजिट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट यानी पारगमन उन्मुखी विकास से जुड़ी हुई हैं. ये नीतियां स्वतंत्र दृष्टि और एजेंडा लिए हुए हैं. राज्य स्तर पर एक सस्टेनेबल अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिसी (SUTP) के माध्यम से टिकाऊ गतिशीलता हासिल करने के लिए एक समग्र रुख़ अपनाया जाना चाहिए. SUTP शहर स्तरीय नीतियों और परियोजनाओं का मार्गदर्शन करेगा और उन्हें अधिक प्रभावी बनाने में सहायक साबित होगी. इस तरह की व्यापक नीति की वजह से विनियमनों का मानकीकरण होगा और ज़मीनी स्तर पर अमल के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों का आवंटन सुनिश्चित किया जा सकेगा. इसके अलावा जानकारी साझा करते हुए सस्टेनेबल मोबिलिटी यानी सतत गतिशीलता पहल को लागू किया जा सकेगा. इसके अलावा SUTP को शहरी स्तर पर होने वाली कार्रवाई की निगरानी करने का अधिकार भी दिया जा सकता है. ऐसा होने पर विभिन्न अधिकार क्षेत्रों में जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए निरंतरता को हासिल किया जा सकता है.
भारत के कुछ राज्य शहरों में प्रभावी शहरी परिवहन पहलों की राह को सुगम बना रहे है. 2017 में महाराष्ट्र के नगर विकास विभाग ने महाराष्ट्र अर्बन मोबीलिटी पॉलिसी का ड्राफ्ट यानी मसौदा जारी किया था. यह राज्य के सभी शहरी इलाकों पर लागू होने वाला है. इस नीति में परिवहन के ऐसे साधन अपनाने पर बल दिया गया है जो सुरक्षित, भरोसेमंद, सस्टेनेबल यानी सतत होने के साथ-साथ सभी नागरिकों के लिए सुलभ तरीके से उपलब्ध हों. इस नीति में बुनियादी ढांचे के लिए कुछ ऐसे मापदंडों का समावेश किया गया था, जिसके उपयोग से उसकी सफ़लता को आंका जा सके.
शहरों को सस्टेनेबल मोबिलिटी प्रोजेक्ट को ज़मीनी स्तर पर लागू करने में सहायता करने के लिए कर्नाटक सरकार ने एक स्टेट अर्बन ट्रांसपोर्ट फंड (SUTF) की स्थापना की है. इसके प्रबंधन की ज़िम्मेदारी डायरेक्टोरेट ऑफ अर्बन लैंड ट्रांसपोर्ट को सौंपी गई है. इस फंड के लिए पैसों की व्यवस्था तीन स्रोतों से जा रही है. इसमें 1 प्रतिशत सेस मोटर व्हीकल टैक्स (MVT), 2 प्रतिशत सेस संपत्ति कर तथा राज्य सरकार की ओर से बजटीय आवंटन का समावेश है. इस फंड का उपयोग करते हुए शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को प्रोत्साहित किया जाता है. इसके लिए सिटी ट्रांजिट इंफ्रास्ट्रक्चर यानी शहरी पारगमन बुनियादी ढांचे का निर्माण, नॉन-मोटराइज्ड ट्रांसपोर्ट सिस्टम (NMT) को लागू करने के अलावा परियोजना विकास और व्यवहार्यता अध्ययन रिपोर्ट में सहायता दी जाती है. 2021 में तमिलनाडु ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ने KfW डेवलपमेंट बैंक से 1,600 करोड़ रुपए (लगभग 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का कर्ज़ लेकर तीन शहरों के लिए 2025 तक 2,000 ई-बसों को ख़रीदने का फ़ैसला किया. इन तीन शहरों में चेन्नई का भी समावेश है. इन शहरों में इन बसों के सहयोग से सार्वजनिक परिवहन में सुधार लाया जाएगा. बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक बसों की ख़रीद अनेक शहरों के बजट के बस की बात नहीं है. ऐसे में इन महंगी बसों की ख़रीद के लिए राज्य सरकार ने सहयोग नहीं दिया तो शहरों के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी.
शहरी स्तर पर संस्थागत ढांचे, नीतियां और वित्तपोषण की आवश्यकता
मजबूत संस्थागत ढांचे का गठन
NUTP ने सिफ़ारिश की थी कि एक मिलियन से ज़्यादा आबादी वाले सभी शहरों में एक युनिफाइड मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (UMTA) की स्थापना की जाए. UMTA की संकल्पना करते हुए इसे एक ऐसी नोडल एजेंसी माना गया था जो शहर में मोबिलिटी यानी गतिशीलता को लेकर होने वाली सभी पहलों को समय पर पूरा होना सुनिश्चित करेगी. भले ही ये पहलें एक ही शहर में विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से क्यों न लागू की जा रही हो. UMTA से यह भी उम्मीद थी कि यह विभिन्न विभागों में लिए जाने वाले फ़ैसलों को लेकर पारदर्शिता लाएगी और परियोजना पर काम करने वाली एजेंसियों को समय पर काम पूरा करने के लिए जवाबदेही तय करेगी.
लेकिन बेहद कम शहरों में ही कार्यशील UMTA की स्थापना की जा सकी है. इसका कारण यह है कि ऐसी इकाई की स्थापना के लिए नियामक आदेश नदारद है. चेन्नई युनिफाइड मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (CUMTA) एक्ट को 2010 में पारित किया गया था. इस पर 2019 से अमल हो रहा है. इसने प्रमुख एजेंसियों और हितधारकों को एक ही छत के नीचे लाने का काम किया है. इस वजह से शहर में विभिन्न साधनों का उपयोग करके लागू हो रही परिवहन योजनाओं को एक सूत्र में लाकर उस पर कार्यान्वयन सुनिश्चित हुआ है. एक समन्वयक इकाई के रूप में इसकी वजह से चेन्नई में ट्रांसपोर्ट प्लानिंग और फ़ैसले लेने में एकसूत्रता लाने में सफ़लता मिली है. कर्नाटक ने भी 2019 में एक नॉन-मोटराइज्ड ट्रांसपोर्ट एजेंसी (KNMTA) की स्थापना की है. इसका उद्देश्य बेंगलुरु में सार्वजनिक साइकिल-शेयरिंग सिस्टम को लागू करने के अलावा राज्य में NMT की अन्य गतिविधियों को लागू करना है. इसके अलावा पुणे में भी विभिन्न NMT पहलों की योजना बनाने, अमल करने और रखरखाव के लिए टास्क फोर्स तथा सेल्स का गठन किया गया है. इसमें एक सहभागिता वाली NMT सेल भी शामिल है, जो शहर के विभिन्न स्ट्रीट्स यानी गलियों में बदलाव लाने में सहयोग करती है.
विकासशील नीतियां और योजनाएं अपनाना ज़रूरी
शहरों में सस्टेनेबल मोबिलिटी के विभिन्न पहलुओं, जिसमें वॉकिंग एवं साइकिलिंग, पार्किंग प्रबंधन, ट्रांजिट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट, लो-एमिशन ज़ोन और विद्युतीकरण का समावेश है, के लिए एक्टिव ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर से निपटने वाली विशेष नीतियां और रोडमैप आवश्यक हो गए है. ये नीतियां शहर के परिवहन संबंधी निर्णय प्रक्रिया में सस्टेनेबल मोबिलिटी के सिद्धांतों को लागू करने वाली होनी चाहिए. वर्तमान में भारतीय शहरों के पास जानकारी आधारित निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित करने वाली व्यवस्था का अभाव देखा जा रहा है.
कर्नाटक ने भी 2019 में एक नॉन-मोटराइज्ड ट्रांसपोर्ट एजेंसी (KNMTA) की स्थापना की है. इसका उद्देश्य बेंगलुरु में सार्वजनिक साइकिल-शेयरिंग सिस्टम को लागू करने के अलावा राज्य में NMT की अन्य गतिविधियों को लागू करना है.
ऐसी बेहतर निर्धारित नीतियां और रोडमैप, जिसमें स्पष्ट, कार्रवाई योग्य गणना लायक लक्ष्य मौजूद हो का सहयोग लेकर शहरों का प्रशासन अपनी सफलता और कमियों की निगरानी कर सकता है. इस तरह की नीति और रोडमैप होने से उपयुक्त हितधारकों को योजनाओं के अमल के लिए जवाबदेह ठहराकर जानकारी प्रेरीत निर्णय प्रक्रिया को सुनिश्चित किया जा सकता है. उदाहरण के लिए चेन्नई तथा पुणे ने वॉकिंग, साइकिलिंग एवं सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देने वाली शहरी गतिशीलता नीतियां अपनाई है. 2014 से चेन्नई ने भारत की पहली NMT नीति अपनाई. बाद में इससे प्रेरणा लेकर पुणे तथा पिंपरी-चिंचवड ने भी इसे अपनाया. 2016 में पुणे ने देश की पहली प्रगतिशील पार्किंग नीति अपनाई. अब चेन्नई भी इस तरह की नीति शुरू कर रहा है. इन नीतियों के चलते सस्टेनेबल मोबिलिटी की दिशा में पहल होने के साथ श्रेष्ठ प्रक्रियाएं तथा बेंचमार्क स्थापित हुए और अन्य शहरों को भी प्रेरणा मिली है.
सही बजट का निर्धारण
परिवहन नीतियां और योजनाओं को लागू करने में शहरों को ही आगे आना पड़ता है. इसका कारण यह है कि शहरी प्रशासन को ही प्रशासन के अन्य स्तरों के मुकाबले अपने यहां मौजूद अनूठी चुनौती और अवसरों की बेहतर समझ होती है. इस वजह से वे ही लगातार बदलती रहने वाली शहरी मांग के अनुसार संसाधनों का बेहतर आवंटन करने की स्थिति में होते हैं.
सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के लिए शहर स्तरीय बजट बेहद महत्वपूर्ण है. शहर स्तरीय बजट आवंटन होने से राज्य तथा राष्ट्रीय सरकार पर पड़ने वाला दबाव भी कम हो जाता है.
सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के लिए शहर स्तरीय बजट बेहद महत्वपूर्ण है. शहर स्तरीय बजट आवंटन होने से राज्य तथा राष्ट्रीय सरकार पर पड़ने वाला दबाव भी कम हो जाता है. उदाहरण के लिए पुणे तथा पिंपरी-चिंचवड़ इन दोनों जुड़वा शहरों ने पिछले पांच वर्षों से अपने वार्षिक परिवहन बजट में से 25 फीसदी वॉकिंग, साइकिलिंग और सार्वजनिक परिवहन के बुनियादी ढांचे में सुधार लाने के लिए आवंटित किया है. इसके अलावा ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन ने 2020 में चेन्नई मेगा स्ट्रीट्स प्रोग्राम को लांच किया. इसका उद्देश्य शहर में व्यापक तौर पर स्ट्रीट्स यानी सड़कों का ऐसा नेटवर्क बनाना था, जिसकी आयु 30 वर्ष की होनी थी. इसके लिए तमिलनाडु के बजट में निधि आवंटित की गई. इस निधि से विस्तृत योजना रिपोर्ट (DPRs) तैयार कर काम शुरू किया जाना है.
शहरी परिवहन प्रशासन की जटिल चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर ठोस प्रयास आवश्यक है. इन प्रयासों में व्यापक राष्ट्रीय नीतियां और शहर स्तरीय पहल का समावेश है. राष्ट्रीय सरकार को भी अपनी दृष्टि सीधी रखकर राज्यों तथा शहरों के लिए मजबूत वित्त पोषण की व्यवस्था करनी होगी. इसके अलावा शहरों के बीच समकक्ष से समकक्ष ज्ञान साझा करने को बढ़ावा देकर राज्यों को परिवर्तन की गति को बढ़ाने के लिए कहना होगा. महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा तमिलनाडु के उदाहरण से यह साफ़ हो जाता है कि शहर स्तरीय कार्रवाई अनिवार्य करने के लिए राज्य सरकारों को नीति और वित्तपोषण देकर शहरों को सहायता उपलब्ध करानी होगी. इसके अतिरिक्त शहरों को भी अपने स्तर पर CUMTA जैसे मजबूत संस्थानों का गठन कर पुणे की तरह प्रगतिशील नीतियां अपनानी होगी. इसके अलावा लगातार बदलती शहरी मांग से निपटने के लिए वित्तीय संसाधनों का आवंटन होने पर ही प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित की जा सकेगी.
शहरी मोबिलिटी सिस्टम्स क्षेत्र में मिली सफ़लताओं के अनुभव से सबक लेकर ही समावेशी, कुशल तथा सस्टेनेबल शहरी मोबिलिटी सिस्टम्स की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है. शहरी परिवहन में बदलाव लाने की यात्रा लंबी है, लेकिन सही नीति, वित्तपोषण और शहर स्तरीय कार्रवाई की जाए तो यह ऐसा लक्ष्य है, जिसे हासिल किया जा सकता है.
शिवासुब्रमण्यम जयरमन, इन्स्टीट्यूट फॉर ट्रासपोर्टेशन एंड डेवलपमेंट पॉलिसी (ITDP) में नेशनल लीड एंड सीनियर प्रोग्राम मैनेजर और पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम एवं TDM के इंचार्ज हैं.
वैशाली सिंह, इन्स्टीट्यूट फॉर ट्रासपोर्टेशन एंड डेवलपमेंट पॉलिसी (ITDP) में सीनियर प्रोग्राम मैनेजर हैं.
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