-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
आज दुनिया यूक्रेन की ज़मीन पर जिस संकट को पनपते हुए देख रही है उसके बीज काफी पहले ही पड़ चुके थे. पहले भी रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन को लेकर कई बार यह रेखांकित कर चुके थे कि उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है वह सदैव रूस का सहोदर रहा है
भारतीय समय के अनुसार सोमवार देर रात्रि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के दो प्रांतों डोनेस्क और लुहांस्क को ‘स्वतंत्र क्षेत्र’ घोषित कर अपने इरादे जाहिर कर दिए. इसके साथ ही उन्होंने इन इलाकों में सैन्य कार्रवाई के प्रस्ताव पर मुहर लगवाकर अपने सैनिक भी रवाना कर दिए. यह ऐसे समय हुआ, जब यूक्रेन से सटे सीमावर्ती इलाकों में पहले से ही रूसी सेनाओं एवं सैन्य साजो-सामान का जमावड़ा वैश्विक समुदाय की परेशानी पर बल डाले हुए था. एक ऐसे वक्त जब दुनिया कोरोना से हुई क्षति की भरपाई करने में जुटी है, तब रूसी राष्ट्रपति का यह आक्रामक दांव वैश्विक अस्थिरता एवं अनिश्चितता को बढ़ाने का ही काम करेगा. इससे उत्पन्न होने वाले अनावश्यक एवं एक प्रकार से अंतहीन टकराव की तपिश पूरी दुनिया को झुलसाने का काम करेगी. इससे भारत के लिए भी जटिलताएं और बढ़ जाएंगी.
पुतिन ने पिछले कुछ समय से यूक्रेन पर अपना शिकंजा कसना शुरू किया था. उन्हें उम्मीद थी कि पश्चिमी देश इससे नरम पड़ेंगे और उनके साथ सौदेबाजी में वह रूस को सम्मानजनक स्थिति में दिखलाने में सफल हो जाएंगे, परंतु पश्चिम ने पुतिन को कोई ख़ास भाव नहीं दिया.
आज दुनिया यूक्रेन की जमीन पर जिस संकट को पनपते हुए देख रही है, उसके बीज काफी पहले ही पड़ चुके थे. केवल सोमवार को अपने संबोधन में ही नहीं, बल्कि उससे पहले भी रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन को लेकर कई बार यह रेखांकित कर चुके थे कि उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है और वह सदैव रूस का सहोदर रहा है. वास्तव में पुतिन के नेतृत्व में इस विमर्श को स्थापित करने की एक सुनियोजित कवायद हुई. यह कोई छिपी बात नहीं कि पुतिन का यूक्रेन के अलावा पूर्ववर्ती सोवियत देशों को लेकर एक ख़ास आग्रह है और सोवियत संघ के विभाजन की टीस उनके भीतर आज भी दिखती है. यही कारण है कि उन्होंने सोवियत संघ के विखंडन को इतिहास की ‘सबसे बड़ी भू-राजनीतिक त्रासदी’ करार दिया. उनका यह कहना स्वाभाविक भी है, क्योंकि उसके बाद रूस की आर्थिक हैसियत लगातार घटती गई. उधर अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश शीत युद्ध के उपरांत भी नाटो का दायरा निरंतर बढ़ाते रहे. इसने भी रूस को कुपित किया. ताजा गतिरोध के केंद्र में भी यूक्रेन और नाटो के बीच की कड़ी है. नाटो के विस्तार के प्रतिरोध और वैश्विक स्तर पर अपने खोए रुतबे को हासिल करने के लिए ही पुतिन ने पिछले कुछ समय से यूक्रेन पर अपना शिकंजा कसना शुरू किया था. उन्हें उम्मीद थी कि पश्चिमी देश इससे नरम पड़ेंगे और उनके साथ सौदेबाजी में वह रूस को सम्मानजनक स्थिति में दिखलाने में सफल हो जाएंगे, परंतु पश्चिम ने पुतिन को कोई ख़ास भाव नहीं दिया. ऐसे में उनके पास आक्रामक रुख़ अख्तियार करने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं बचा था. सोमवार को उन्होंने बिल्कुल वही किया, जिसका अंदेशा था. दोनों देशों यानी रूस और यूक्रेन के बीच यथास्थिति कायम रखने के लिए जो मिंस्क समझौता किया गया था, उसे पुतिन ने निष्प्रभावी बताकर स्पष्ट कर दिया कि उनके लिए अब कदम पीछे खींचना संभव नहीं. जितना पुतिन का यह दांव अपेक्षित था, उतनी ही पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया भी.
रूस द्वारा अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों को दरकिनार करने से चीन का भी हौसला बढ़ेगा. ध्यान रहे कि चीन पहले से ही ऐसे अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों को रद्दी की टोकरी में डालता आया है.
रूस की कार्रवाई पर तल्ख बयानबाजी के बाद अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय देशों से लेकर जापान और ताइवान ने रूस के ख़िलाफ आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा की है. हालांकि आर्थिक प्रतिबंधों की अपनी एक सीमा है और वैश्विक आम सहमति के अभाव में ऐसे प्रतिबंधों का कुछ ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता. वैसे भी चीन इस समय रूस के सुर में सुर मिलाए हुए है. वहीं भारत जैसे कुछ देशों ने अभी तक तटस्थ रवैया अपनाया हुआ है. रूस पर जो प्रतिबंध लगाए जा रहे हैैं, उन्हें पुतिन राष्ट्रीय स्तर पर अपने पक्ष में भुनाकर अपना कद और ऊंचा कर सकते हैं. इससे उन्हें और आक्रामकता दिखाने की गुंजाइश मिल जाएगी. इस समय जो परिस्थितियां बन रही हैं, उनसे एक बात साफ है कि रूस के खिलाफ अपना मोर्चा मजबूत बनाने के लिए पश्चिम जहां यूक्रेन का सहारा ले रहा है, वहीं इसके प्रतिरोध में रूस यूक्रेन को ही निशाना बना रहा है. कुल मिलाकर महाशक्तियों के इस शक्ति-परीक्षण में यूक्रेन बीच में पिस रहा है. इसका असर इस पूरे क्षेत्र में देखने को मिलेगा. मान लीजिए कि रूस किसी प्रकार यूक्रेन पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेता है तो इससे क्षेत्र के अन्य देशों के भीतर भी यह आशंका घर कर जाएगी कि देर-सबेर रूस उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार कर सकता है. वैसे भी यह किसी से छिपा नहीं रहा कि इस समूचे क्षेत्र में रूस अपनी निर्विवाद बादशाहत चाहता है. यह भी तय है कि इस क्षेत्र से बाहर भी वैश्विक समीकरण गड़बड़ाएंगे.
अभी तक तो इस टकराव में भारत ने सधा हुआ रुख़ अपनाया है, किंतु संकट बढ़ने की स्थिति में यदि हमें दोनों पक्षों में से किसी एक का विकल्प चुनना पड़ा तो मुश्किल हो जाएगी.
जिस दौर में पूरी दुनिया को चीन को घेर कर उससे जवाब तलब करना चाहिए, तब दुनिया का ध्यान उससे हटकर जंग के इस अखाड़े पर केंद्रित हो रहा है. चीन कोरोना के मामले में अपनी ज़वाबदेही से बचकर ताइवान पर अपनी नजर टेढ़ी कर सकता है. उसे दो बातों से बल मिलेगा. एक इससे कि यूक्रेन की अंतरराष्ट्रीय मान्यता ताइवान से कहीं ज़्यादा है. यदि इसके बाद भी रूस वहां काबिज हो जाता है तो ताइवान को लेकर चीन अपना दावा और मजबूत करने की कोशिश करेगा. दूसरे, रूस द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानूनों को दरकिनार करने से चीन का भी हौसला बढ़ेगा. ध्यान रहे कि चीन पहले से ही ऐसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों को रद्दी की टोकरी में डालता आया है.
यदि यूक्रेन को लेकर टकराव बढ़ता गया तो भारत के लिए समस्याएं बढ़ जाएंगी. भारत के समक्ष इस समय चीन की चुनौती सबसे बड़ी है. इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए हमें पश्चिमी देशों और रूस, दोनों की बड़ी आवश्यकता है. चीन के साथ किसी संभावित सैन्य टकराव में हम रूस की अनदेखी कैसे कर सकते हैं, जो हमारी रक्षा आवश्यकताओं की 60 प्रतिशत तक की आपूर्ति करता है. चीन से टकराव की स्थिति में हमें सहयोगियों के रूप में पश्चिम के साथियों की भी उतनी ही आवश्यकता होगी. अभी तक तो इस टकराव में भारत ने सधा हुआ रुख़ अपनाया है, किंतु संकट बढ़ने की स्थिति में यदि हमें दोनों पक्षों में से किसी एक का विकल्प चुनना पड़ा तो मुश्किल हो जाएगी.
***
यह आर्टिकल जागरण में प्रकाशित हो चुका है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
Read More +