साल 2016 के बाद से हाल ही में यूके द्वारा छठे चरमपंथी गुट, निओ-नाज़ी फ़्युक्रीग डिवीज़न पर पाबंदी लगाई गई है, जो देश के सामने दक्षिणपंथी उग्रवादियों की बढ़ती चुनौती को देखते हुए कोई अचंभे की बात नहीं है. लेकिन जो बात अजीब है वह यह है कि ये काफ़ी हद तक ऑनलाइन संगठन है— जिसकी स्थापना 13 साल के एक एस्टोनियाई लड़के ने की थी— जो इस पर पाबंदी लगाए जाने के समय ‘अस्तित्व में नहीं’ था, फरवरी में इस पाबंदी के बाद से इसके सदस्य नए ऑनलाइन समूहों में शामिल हो गए हैं [1].
इस तरह के मामले तेज़ी से बढ़ते ‘पोस्ट-ऑर्गेनाइज़ेशनल’ (औपचारिक संगठन के बिना) ख़तरे के परिदृश्य में परस्पर संबंधित चुनौतियों के संयोजन को दर्शाते हैं— जहां संगठनों और आंदोलनों, दिशा और प्रेरणा, ऑनलाइन और ऑफलाइन के बीच ढीली-ढाली सरहदें एकदम अस्पष्ट हो गई हैं.
दुनिया भर में वैश्विक चरमपंथी आंदोलनों से टूट कर बने संगठन और इनकी मदद से चलने वाले संगठन सरकारों और तकनीकी कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती हैं. सरकारों और सिविल सोसाइटी के बढ़ते दबाव के बीच, हाल के वर्षों में पाबंदी लगाए समूहों से जुड़ी अवैध आतंकवादी सामग्री को मुख्यधारा के कुछ सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर हटाने का मामला कुछ आगे बढ़ा है. हालांकि, हमारा मौजूदा नज़रिया चौतरफ़ा बिखरे इस्लामी और अति-उग्र दक्षिणपंथी, दोनों से उभरने वाले ‘पोस्ट-ऑर्गेनाइज़ेइशनल’ ख़तरे से निपटने के लिए उपयुक्त नहीं हैं.
दुनिया भर में वैश्विक चरमपंथी आंदोलनों से टूट कर बने संगठन और इनकी मदद से चलने वाले संगठन सरकारों और तकनीकी कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती हैं. सरकारों और सिविल सोसाइटी के बढ़ते दबाव के बीच, हाल के वर्षों में पाबंदी लगाए समूहों से जुड़ी अवैध आतंकवादी सामग्री को मुख्यधारा के कुछ सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर हटाने का मामला कुछ आगे बढ़ा है.
वैश्विक इस्लामिक और अति-दक्षिणपंथी दोनों तरह के आंदोलनों का तेज़ी से बढ़ता विकेंद्रीकृत, पोस्ट-ऑर्गेनाइज़ेशनल और क्राउडसोर्स्ड (जनता के बीच काम करने वाले) स्वरूप को देखते हुए, जिसे बड़े हिस्से में फलते-फूलते ऑनलाइन चरमपंथी इको-सिस्टम से मदद मिली है, हिंसक चरमपंथी गुटों के ख़तरे को समझने के लिए ज़रूरी है कि नीति निर्माता और टेक्नोलॉजी कंपनियां समूह-केंद्रित दृष्टिकोण से आगे देखते हुए एक जैसा नीतिगत ढांचा बनाएं.
ख़तरे का बदलता मैदान
साल 2019 में न्यूज़ीलैंड, अमेरिका, जर्मनी और नॉर्वे में हाई-प्रोफाइल हमले चरमपंथी संगठनों या आतंकवादी समूहों से मामूली संबंध रखने वाले या कोई संबंध नहीं रखने वाले व्यक्तियों द्वारा किए गए थे. सबूतों से पता चलता है कि ये व्यक्ति असंगठित अतिवादी दक्षिणपंथी संगठनों के संपर्क में थे, जो ऑनलाइन गतिविधियां चलाते हैं. [2][3][4][5]
यह एक तेज़ी से नए पोस्ट-ऑर्गेनाइज़ेशनल चलन के बदलाव की ओर इशारा करता है जिसमें चरमपंथी संस्कृति और विचारधारा की हिंसा को प्रेरित करने के लिए “आम जनता” वाले समूहों से ऑनलाइन जुड़ाव भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं. स्कॉलर ब्रूस हॉफमैन और कॉलिन क्लार्क का मानना है कि “हिंसा को उकसाने करने और भड़काने में अतीत के वरिष्ठताक्रम वाले आतंकवादी संगठनों की तुलना में वैचारिक झुकावों का संगम ज़्यादा मज़बूत है”[6]. पूरे यूरोप और उत्तरी अमेरिका में, हम “अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे एकरंगी सलाफ़ी-जिहादी गुटों के ख़तरे को ‘बहुरंगी’ रूप में बदलता देख रहे हैं, “बूगालू ब्वॉज़”, श्वेत अतिवादियों, नव-नाज़ी, अनिश्चित पहचान वाले अराजकतावादी तत्व, और चरमपंथी हिंसक घटनाओं को अंजाम देने वाले इंसेल्स (एक ऑनलाइन कल्चर से जुड़े लोग) का समूह है.”[7] एफबीआई ने देश में हिंसा के खतरे के तौर पर चरमपंथी समुदाय कनॉन को सूचीबद्ध किया है, और ख़तरा विविधतापूर्ण महसूस किए जा सकने वाले घोर दक्षिणपंथी कारकों की एक विस्तृत श्रृंखला की चुनौती के रूप में सामने है.[8]
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ने ‘नेतृत्वविहीन विरोध’ और ‘नेतृत्वविहीन जिहाद’ की लंबे समय से चली आ रही अवधारणा को साकार करने में बड़ी भूमिका निभाई है, जिसके बारे में पहली बार दशकों पहले चरमपंथी विचारधारा वाले लोगों जैसे श्वेत श्रेष्ठतावादी लुइस बीम जूनियर और अल-क़ायदा से जुड़े अबू मुसाब अल-सूरी ने चर्चा की थी. [9]. इस पोस्ट-ऑर्गेनाइज़ेशनल परिदृश्य को समझने के लिए, ऑनलाइन इको-सिस्टम का विश्लेषण करना ज़रूरी है जो एक मददगार जगह मुहैया कराता है जहां हिंसक और आतंकवादी गतिविधियों का खुले तौर पर समर्थन किया जा सकता है.
पोस्ट–ऑर्गेनाइज़ेशनल अतिवादी दक्षिणपंथ
इस पोस्ट-ऑर्गेनाइज़ेशनल चुनौती ने दक्षिणपंथी चरमपंथ के भीतर एक ख़ास ख़तरा पैदा किया है, जिसमें वैचारिक रूप से सामंजस्यपूर्ण, नेटवर्क से जुड़े और कई देशों में फैले आंदोलन के साथ नया ऑनलाइन इकोसिस्टम गढ़ने की सुविधा है, नियंत्रणमुक्त इमेजबोर्ड साइट जैसे 8chan और 4chan, Voat, अति-उदारवादी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, सेंसर-रहित चर्चा मंच जैसे कि Parler, और इनक्रिप्टेड मैसेजिंग चैनल जैसे Telegram, पर चरपमंथी कंटेंट का समन्वय और साझा किया जाता है.[10].
लेकिन इन चरमंथियों के बीच उतना अंतरराष्ट्रीय समन्वय नहीं है जितना इस्लामपरस्त ताक़तों का है. इस बारे में कदम उठाए जा रहे हैं कि कुछ राष्ट्रीय संदर्भों में दक्षिणपंथी संगठनों को आतंकवादी संगठन के रूप में इंगित किया जाए, जैसे से यूके में नेशनल एक्शन और कनाडा में ब्लड एंड ऑनर, जबकि अमेरिका ने हाल ही में अपने पहले विदेशी ‘नस्लीय और जातीय रूप से प्रेरित’ आतंकवादी संगठन, रशियन इंपीरियल मूवमेंट पर पाबंदी लगाई थी [11][12][13]. लेकिन इस तरह के आंदोलनों पर कुछ देशों में पाबंदी लगाई है, और कुछ में नहीं, जैसे कि, कॉम्बैट18, जिसके कई देशों में सदस्य हैं[14]. हालांकि टेकनोलॉजी कंपनियां ‘नफ़रत भरे’ और ‘ख़तरनाक’ गुटों को लेकर अपने खुद के आंतरिक दिशानिर्देश और सेवा की शर्तें तय कर रही हैं, आतंकवाद के खिलाफ विशिष्ट नीतियों को आंशिक रूप से संयुक्त राष्ट्र द्वारा अभियुक्त आतंकवादी समूहों को नामित करने वाली आतंकवादियों की सूची जैसी सीमाओं ने सीमित कर दिया गया है, जो आईएसआईएस और अल-क़ायदा से जुड़े खतरों पर केंद्रित है[15].
इस बीच, एटमवाफेन डिवीज़न जैसे गुट, जो मूल रूप से अमेरिका में बने हैं, वर्तमान में इसके द्वारा आतंकवादी गतिविधियों की खुलेआम वकालत करने के बावजूद अंततः इस पर पाबंदी नहीं लगाई गई है. टेलीग्राम पर आतंकवादी-समर्थक गुटों की उपस्थिति के विश्लेषण से पता चला है कि जहां एटमवाफेन डिवीज़न जैसे समूहों की संगठनात्मक शक्ति महत्वपूर्ण है, मंच पर आतंकवाद-समर्थन वाले चैनलों का एक विशाल नेटवर्क है जो किसी भी समूह से साफ़ तौर पर संबद्ध नहीं है, इस तरह किसी आंदोलन से औपचारिक जुड़ाव ज़ाहिर किए बिना या अन्य सहयोगियों से संपर्क किए बिना जुड़ना बहुत आसान है. इस तरह का चैनल और कंटेंट “आतंकवादी-समर्थक” हो सकता है, जहां राजनीतिक रूप से प्रेरित हिंसा या उन लोगों के लिए समर्थन जताया गया है, तब भी जब किसी प्रतिबंधित संगठन से प्रत्यक्ष संबद्धता नहीं जताई गई है.[16].
इस बीच, एटमवाफेन डिवीज़न जैसे गुट, जो मूल रूप से अमेरिका में बने हैं, वर्तमान में इसके द्वारा आतंकवादी गतिविधियों की खुलेआम वकालत करने के बावजूद अंततः इस पर पाबंदी नहीं लगाई गई है.
ऐसी अस्पष्टता पोस्ट-ऑर्गेनाइज़ेशनल उग्रवादी दक्षिणपंथ की समस्या का समाधान आतंकवाद-विरोधी तंत्र के माध्यम से करने के तरीकों को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक चर्चा के महत्व और तात्कालिकता की मांग करती है, जहां अभी भी बड़े पैमाने पर संगठन-आधारित चुनौती का मुकाबला करने और पाबंदी लगा देने का नज़रिया रखा जाता है.
एक चरमपंथी आंदोलन के मापदंडों को परिभाषित करना
इस तरह की अस्पष्टता ‘बूगालू’ आंदोलन के हालिया मामले में साफ़ तौर से दिखा, जो व्यापक-जनाधार वाला सरकार-विरोधी आंदोलन है, जिसमें बड़ी संख्या में श्वेत श्रेष्ठातावादी तत्व शामिल हैं, जिसकी सदस्यों की संख्या कोविड-19 महामारी और जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या को लेकर तेज़ी से बढ़ी है[17]. असंगठित आंदोलन, जो एक विशिष्ट और तेजी से विकसित हुई ऑनलाइन उप-संस्कृति पर काफी टिका है, से जुड़े व्यक्तियों को ब्लैक लाइव्स मैटर प्रदर्शनकारियों [18] पर फायर-बम से हमले की साज़िश रचने के लिए गिरफ्तार किया गया है [18].
बूगालू से जुड़े सैकड़ों ग्रुप, पेज और एकाउंट को हटाने की हालिया कड़ी में, फेसबुक ने “हिंसक” बूगालू नेटवर्क में अंतर करने की मांग की, जिसे प्रतिबंधित किया गया था, जबकि एक को ऑनलाइन रहने दिया और इसे अलग और “मामूली तौर पर बूगालू आंदोलन से संबद्ध” बताया है जो “जो हिंसा की वकालत नहीं चाहता है.”[19].
इस तरह की अस्पष्टता ‘बूगालू’ आंदोलन के हालिया मामले में साफ़ तौर से दिखा, जो व्यापक-जनाधार वाला सरकार-विरोधी आंदोलन है, जिसमें बड़ी संख्या में श्वेत श्रेष्ठातावादी तत्व शामिल हैं, जिसकी सदस्यों की संख्या कोविड-19 महामारी और जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या को लेकर तेज़ी से बढ़ी है
लेकिन ऐसा अंतर जरूरी नहीं है कि इतना स्पष्ट हो. हार्वर्ड केनेडी स्कूल में मीडिया, राजनीति और सार्वजनिक नीति पर शोरेनस्टाइन केंद्र के निदेशक जोन डोनोवान ने कहना है कि हिंसक और अहिंसक बूगालू गुटों के बीच अंतर करने की फे़सबुक की कोशिश “निश्चित रूप से ख़तरनाक” है और “एक छलावा है जो कुछ श्वेत श्रेष्ठतावादियों को तब तक गतिविधियां जारी रखने की इजाज़त देता है, जब तक वो अपने हिंसक स्वर को नीचा रखते हैं.” [20]. बूगालू आंदोलन अपनी बनावट में श्वेत श्रेष्ठातावादी है या नहीं, यह तथ्य बहस के लिए खुला है, लेकिन यह मामला बताता है कि चरमपंथियों के ख़तरे को सिर्फ़ ‘ऑर्गेनाइज़ेशनल’ नज़रिये से देखने की चुनौतियों को दर्शाता है.
सरकार के बजाय एक निजी कंपनी की आंतरिक प्रक्रियाओं को प्रतिबिंबित करते हुए आतंकवाद को लेकर इस तरह के फ़र्क किए जाने में हमास और हिज़बुल्ला जैसे गुटों की ‘हिंसक’ और ‘राजनीतिक’ शाखाओं के बीच (बड़े पैमाने पर मनमाने ढंग से) किए गए अंतर की याद आती है. हमास को इज़रायल, अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा आतंकवादी गुट के तौर पर पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है, जबकि यूके ने इसके बजाय एक पेशेवर आतंकवादी संगठन के रूप में हमास की सैन्य शाखा, इज़्ज़ेदीन अल-क़सम ब्रिगेड पर पाबंदी लगाई है. इस बीच यूके और जर्मनी हाल ही में हिज़्बुल्लाह के पूरे संगठन पर पाबंदी लगाने में अमेरिका के साथ शामिल हो गए हैं, जबकि यूरोपीय यूनियन द्वारा सिर्फ इसकी सैन्य शाखा पर पाबंदी लगा दी गई है[21].
आईएसआईएस के बाद
यह पोस्ट-ऑर्गेनाइज़ेशनल चुनौती अतिवादी दक्षिणपंथ से आगे तक जाती है. आईएसआईएस के तथाकथित ‘खिलाफ़त’ क्षेत्र को पराजित करने के साथ, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने व्यापक सलाफ़ी-जिहादी आंदोलन की गतिशीलता के सतत वैचारिक ख़तरे और रूपाकार बदल लेने के पैटर्न को कम आंककर बार-बार की जाने वाली ग़लती दोहराई है. नीतिकारों और प्लेटफार्म्स द्वारा व्यापक चरमपंथी विचारधारा के इकोसिस्टम को दुरुस्त करने के लिए सीमित कार्रवाई की गई है जो निश्चित रूप से किसी भी व्यक्तिगत समूह या संगठन के उदय और पतन पर नियंत्रण रख सकती है. उदाहरण के लिए, जबकि सोशल मीडिया कंपनियों को आईएसआईएस और अल-क़ायदा की आधिकारिक सामग्री, जिसमें आतंकवादी प्रचार का क्रॉस-इंडस्ट्री ‘हैशिंग’ डेटाबेस भी शामिल था, प्लेटफार्मों से हटाने में काफ़ी हद तक क़ामयाबी मिली है, फिर भी अभी इस्लामी चरमपंथी विचारधारा के काफी़ मात्रा में ‘अवैध सामग्री’ है, जो प्लेटफ़ॉर्म की शर्तों को पूरा नहीं करती है, लेकिन मुख्यतः ‘ऑर्गेनाइज़ेशनल (संगठनात्मक)’ सामग्री पर ध्यान केंद्रित किए जाने के कारण दरारों से फिसल जाती है.
इस्लामी चरमपंथी विचारधारा के काफी़ मात्रा में ‘अवैध सामग्री’ है, जो प्लेटफ़ॉर्म की शर्तों को पूरा नहीं करती है, लेकिन मुख्यतः ‘ऑर्गेनाइज़ेशनल (संगठनात्मक)’ सामग्री पर ध्यान केंद्रित किए जाने के कारण दरारों से फिसल जाती है.
आईएसडी शोधकर्ताओं ने फे़सबुक और यूट्यूब दोनों पर अल-क़ायदा और आईएसआईएस की “आतंकवादी विरासत कंटेंट” साझा करने वाले बड़ी संख्या में यूज़र्स, चैनल और पेज के नेटवर्क की पहचान की है. इसमें अबू मुसाब अल-सूरी का सलाफ़ी-जिहादी गुटों की रणनीतियों और मक़सद के बारे में बताने वाला लेख शामिल है. अबू मुसाब एक विचारक है जिसे “वैश्विक जिहाद का वास्तुकार” के रूप में जाना जाता है, जो बीते दो दशकों से इस्लाम के उग्रवाद की रणनीतियों और तकनीकों का केंद्रीय पात्र रहा है [22]. आइएसडी के शोध में पाया गया कि जिहादी रणनीति पर अबू मुसाब का 1,604-पेज का पोथा, ‘द ग्लोबल इस्लामिक रेजिस्टेंस कॉल’, जिसे “जिहादी आंदोलन का मीन काम्फ” कहा जाता है, को अरबी में उसके शीर्षकों को सर्च करके आसानी से फेसबुक और यूट्यूब दोनों पर आसानी से उपलब्ध है[23].
इस बीच, अपने केंद्रीकृत मीडिया संचालन में बिखराव के साथ आईएसआईएस और उसका समर्थक नेटवर्क ऑनलाइन चुनौती के रूप में तेज़ी से ‘पोस्ट-ऑर्गेनाइज़ेशनल’ ढांचे में दाख़िल हो रहा है, हालांकि आतंकवादी गुट 2020 में भी मुख्यधारा के प्लेटफार्मों पर आधिकारिक प्रचार जारी रखे है. आईएसडी शोधकर्ताओं ने हाल ही में फ़ेसबुक पर आईएसआईएस के पक्षधर एक एकाउंट के नेटवर्क पर तीन महीने तक जांच की, जो नियम-शर्तों और पाबंदी से बचने के लिए रणनीति का इस्तेमाल करते हुए खुले तौर पर हजारों लोगों को ख़तरनाक सामग्री साझा कर रहे थे,[24].
प्रभावी प्रतिक्रियाओं के नतीजे
चरमपंथ के ‘पोस्ट-ऑर्गेनाइज़ेशनल’ स्वरूप में वैचारिक विविधताओं पर नीति निर्माताओं द्वारा अपनाए जाने वाले पारंपरिक उपाय टॉप-डाउन (नियंत्रण) करने जैसे ग्रुप-आधारित नज़रिये के कई निहितार्थ हैं. जैसा कि हॉफमैन और क्लार्क बताते हैं, “वैचारिक नेतृत्व संरचनाओं के साथ वरिष्ठताक्रम वाले नौकरशाही जैसे ढांचे और स्पष्ट रूप से परिभाषित मक़सद को हटाकर उसकी जगह विचारों की विविधता वाले आकारहीन ढीले-ढाले नेटवर्क ने ली है.” जो विशिष्ट गुटों के ऑनलाइन या ऑफलाइन संचालन में रुकावट डालने के लिए सरकारों और संस्थाओं द्वारा अपनाए जाने वाले आम तरीकों के लिए मुश्किल पेश करते हैं” [25].
यह साफ होता जा रहा है कि विशुद्ध रूप से संगठनात्मक नज़रिये से समस्या को देखना मौजूदा ख़तरे की समग्रता को दिखाने में विफल रहता है, ना सिर्फ दूरगामी परिदृश्य बल्कि तेजी से बढ़ती मौजूदा इस्लामी चुनौतियों के मामले में भी. ऐसे में, चरमपंथी एकजुटता बनाने में ऑनलाइन उप-संस्कृति और आतंकवादी हिंसा सहित ऑफ़लाइन गतिविधियों को प्रेरित करने वाली व्यापक वैचारिक संरचनाओं और ऑनलाइन उप-संस्कृतियों की भूमिका को समझने की साफ ज़रूरत है. इस समझ के व्यापक नीतिगत निहितार्थ हैं, ऑफ़लाइन रोकथाम से लेकर ऑनलाइन नियमन तक, जहां पुराने तरीके को बदलते हुए समूह सदस्यता से परे बढ़ते खतरों और चरमपंथी इको-सिस्टम को समझने की दिशा में आगे बढ़ने की ज़रूरत है.
Endnotes
[1] Lizzie Dearden, “Why has Britain banned a neo-Nazi terrorist group that ‘no longer exists’?”, The Independent, July 14, 2020.
[2] “Christchurch shootings: Mosque attacker charged with terrorism”, BBC News, May 21, 2019.
[3] “San Diego synagogue shooting: One person dead in Poway, California”, BBC News, April 28, 2019.
[4] “German Halle gunman admits far-right synagogue attack”, BBC News, October 11, 2019.
[5] “Norway mosque shooting probed as terror act”, BBC News, August 11, 2019.
[6] Bruce Hoffman and Colin Clarke, “The Next American Terrorist”, The Cipher Brief, July 2, 2020.
[7] Ibid
[8] Marianne Dodson, “FBI Labels Fringe Conspiracy Theories as Domestic Terrorism Threat”, The Daily Beast, August 1, 2019,
[9] JM Berger, “The Strategy of Violent White Supremacy Is Evolving”, The Atlantic, August 7, 2019.
[10] Jacob Davey and Julia Ebner, “The Great Replacement: The Violent Consequences of Mainstreamed Extremism”, Institute for Strategic Dialogue, July 2019.
[11] “Far-right group National Action to be banned under terror laws”, BBC News, December 12, 2016.
[12]Stewart Bell, “Canada adds neo-Nazi groups Blood & Honour, Combat 18 to list of terror organizations”, Global News, June 26, 2019.
[13] Charlie Savage, Adam Goldman and Eric Schmitt, “U.S. Will Give Terrorist Label to White Supremacist Group for First Time”, New York Times, April 6, 2020.
[14] Combat 18 is banned in Germany and Canada. “Germany bans Combat 18 as police raid neo-Nazi group”, BBC News, January 23, 2020.
[15]United Nations Security Council Consolidated List.
[16] Jakob Guhl and Jacob Davey, “A Safe Space to Hate”, Institute for Strategic Dialogue, June 2020.
[17]Dale Boran, “The Boogaloo Tipping Point”, The Atlantic, July 4, 2020.
[18] Luke Barr, “Boogaloo: The movement behind recent violent attacks”, ABC News, June 19, 2020.
[19] Lois Beckett, “Facebook bans extremist ‘boogaloo’ group from its platforms”, The Guardian, June 30, 2020.
[20] Ibid
[21] Milo Comerford, “The Politics of Proscription”, Tony Blair Institute, January 26, 2018.
[22] Moustafa Ayad, “The Management of Terrorist Content”, Institute for Strategic Dialogue, July 2019.
[23] Moustafa Ayad, “El Rubio’ Lives: The Challenge Of Arabic Language Extremist Content On Social Media Platforms”, Institute for Strategic Dialogue, June 2019.
[24] Moustafa Ayad, “The Propaganda Pipeline”, Institute for Strategic Dialogue, July 2020.
[25] “The Next American Terrorist”
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