दक्षिण कोरिया ने 29 मई 2023 को पहले कोरिया-पैसिफिक आइलैंड्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी की. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योलऔर कुक आइलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क ब्राउन, जो कि पैसिफिक आइलैंड्स फोरम (PIF) के अध्यक्ष हैं, ने इसकी सह-अध्यक्षता की. इस शिखरसम्मेलन में पैसिफिक आइलैंड्स फोरम के नेताओं और प्रतिनिधियों के साथ-साथ PIF के महासचिव हेनरी प्यूना भी शामिल हुए. इस शिखर सम्मेलनकी थीम थी 'सह-समृद्धि की ओर यात्रा: प्रशांत महासागर के साथ सहयोग को मजबूत करना' और चर्चा "साझा सहयोग के मामलों" यानी टिकाऊविकास, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण, आपदा से जुड़े जोखिम और लचीलेपन से लेकर समुद्री मामलों, मछली पालन, लोगों के बीच आदान-प्रदान औरआपसी हित के दूसरे मामलों के क्षेत्रों में सहयोग को और बढ़ाने के रास्तों और तरीकों के इर्द-गिर्द केंद्रित रही. इस बैठक का मुख्य उद्देश्य "प्रशांतमहासागर में स्थित देशों के लिए 2050 की रणनीति एवं दक्षिण कोरिया की इंडो-पैसिफिक रणनीति और पैसिफिक आइलैंड्स फोरम एवं दक्षिणकोरिया के बीच वैश्विक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान और साथ-साथ समृद्धि के लिए प्रमुख साझेदारों के तौर पर संपर्क का विस्तार करना था." दक्षिण कोरिया ने तो इसे लागू करने में मदद और पैसिफिक आइलैंड्स को विकास से जुड़ी सहायता मुहैया कराने के लिए एक एक्शन प्लान का भीप्रस्ताव दिया. इस एक्शन प्लान में "लचीलापन, मजबूती और पुनरुद्धार" पर फोकस किया गया है. दूसरे शब्दों में कहें तो टिकाऊ भविष्य के लिएजलवायु को बेहतर बनाने और आपदा से जुड़े लचीलेपन; पैसिफिक द्वीप के देशों के लिए क्षमता निर्माण और कोविड-19 के बाद के समय मेंकनेक्टिविटी पर फिर से जोर देने पर ध्यान दिया गया है.
टिकाऊ भविष्य के लिए जलवायु को बेहतर बनाने और आपदा से जुड़े लचीलेपन; पैसिफिक द्वीप के देशों के लिए क्षमता निर्माण और कोविड-19 के बाद के समय में कनेक्टिविटी पर फिर से जोर देने पर ध्यान दिया गया है.
पैसिफिक द्वीप के देशों (PIC) के साथ दक्षिण कोरिया की भागीदारी को आगे बढ़ाना
मई 2022 में जब से यून प्रशासन ने कामकाज संभाला है, तब से दक्षिण कोरिया सरकार ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों के साथ भागीदारी बढ़ाने के लिएसक्रिय तौर पर कोशिश शुरू की है. दिसंबर 2022 में दक्षिण कोरिया के द्वारा जारी इंडो-पैसिफिक रणनीति में ये साफ़ तौर पर कहा गया है कि “कोरियापैसिफिक द्वीप के देशों के साथ भागीदारी बढ़ा रहा है, इन देशों के साथ कोरिया पैसिफिक महासागर साझा करता है.” इसलिए विकास और सुरक्षासहयोग को बढ़ावा इस शिखर सम्मेलन के दौरान विचार-विमर्श के दो प्रमुख पहलू थे. ये दोनों ही पहलू दक्षिण कोरिया और द्वीपीय देशों के लिएमहत्वपूर्ण हैं.
दक्षिण कोरिया PIF का एक डायलॉग पार्टनर रहा है और 2011 में कोरिया-पैसिफिक आइलैंड्स के विदेश मंत्रियों की बैठक के समय से सहयोग बनाहुआ है. 2008 में शुरू दक्षिण कोरिया-PIF सहयोग फंड के जरिए कोरिया की भागीदारी में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, हेल्थ केयर, शिक्षा, रिन्यूएबल एनर्जीऔर कृषि जैसे क्षेत्रों पर फोकस किया गया है और इसने क्षेत्र में भरोसेमंद साझेदार के तौर पर दक्षिण कोरिया की स्थिति को मजबूत किया है. इसकेअलावा, कोरिया पैसिफिक आइलैंड्स के देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, जैसे कि पापुआ न्यू गिनी (PNG) में बंदरगाह का निर्माण, के लिए आर्थिकविकास सहयोग फंड (ECDF) के जरिए रियायती दर पर कर्ज मुहैया करा कर निवेश कर रहा है. इस बैठक के आखिर में जारी एक्शन प्लान के अनुसारदक्षिण कोरिया 2027 तक पैसिफिक आइलैंड्स के देशों के लिए आधिकारिक विकास सहायता (ODA) की रकम को दोगुना करके 39.9 मिलियनअमेरिकी डॉलर करने की तरफ ध्यान दे रहा है, साथ ही पैसिफिक आइलैंड्स के देशों के साथ ‘सहयोग के लिए विशेष प्रोजेक्ट’ तैयार करना चाहता है.पैसिफिक द्वीप के देशों के साथ कोरिया की भागीदारी उनकी भौगोलिक लोकेशन और भरपूर प्राकृतिक संसाधनों के मामले में रणनीतिक तौर परमहत्वपूर्ण है. इन प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण पैसिफिक द्वीप के देशों के द्वारा टिकाऊ विकास को बढ़ावा, जलवायु परिवर्तन का समाधान औरक्षेत्रीय स्थिरता को प्रोत्साहन देने के व्यापक लक्ष्य के साथ मेल खाता है. समुद्र के बढ़ते स्तर और मौसम से जुड़ी गंभीर घटनाओं (एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स) को लेकर इन देशों की असुरक्षा को देखते हुए कोरिया ने ग्रीन क्लाइमेट फंड और ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट जैसी पहल के जरिए अपना समर्थन दियाहै. इन कोशिशों का उद्देश्य पैसिफिक आइलैंड्स के देशों को जलवायु परिवर्तन के मुताबिक खुद को बदलने, टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने और कमकार्बन वाली अर्थव्यवस्था की तरफ बदलाव में मदद देना है. इसलिए मई में आयोजित शिखर सम्मेलन की थीम ने इन क्षेत्रों में कोरिया की भागीदारी कीगुंजाइश को व्यापक और गहरा करने की कोशिश की.
लेकिन पैसिफिक आइलैंड्स के देशों के साथ कोरिया की भागीदारी काफी हद तक विकास से जुड़ी सहायता तक सीमित है. इसका कारण ये है किपरंपरागत तौर पर दक्षिण कोरिया की भूमिका तीन प्रमुख कारणों की वजह से अधिकतर प्रायद्वीपीय क्षेत्रों तक ही सीमित रही है. पहला, उत्तर कोरियाकी अस्थिरता एवं उथल-पुथल और उसके परमाणु कार्यक्रम की वजह से बढ़ता खतरा; दूसरा, जापान के साथ ऐतिहासिक रूप से एक कमजोर संबंधजिसने भौगोलिक रूप से दो नजदीकी पड़ोसियों को करीबी तौर पर साथ काम करने से रोका है और तीसरा, चीन पर एक हद तक निर्भरता जिसकानतीजा प्रभावशाली नैरेटिव और इंडो-पैसिफिक में सहयोग के प्लैटफॉर्म में भागीदारी के मामले में खुलकर हिस्सेदारी में हिचकिचाहट के रूप में निकलाहै.
इस बैठक के आखिर में जारी एक्शन प्लान के अनुसार दक्षिण कोरिया 2027 तक पैसिफिक आइलैंड्स के देशों के लिए आधिकारिक विकास सहायता (ODA) की रकम को दोगुना करके 39.9 मिलियन अमेरिकी डॉलर करने की तरफ ध्यान दे रहा है, साथ ही पैसिफिक आइलैंड्स के देशों के साथ ‘सहयोग के लिए विशेष प्रोजेक्ट’ तैयार करना चाहता है.
अक्टूबर 2022 में आखिरी मीटिंग के दौरान विदेश मंत्रियों की बैठक का स्तर बढ़ाकर शिखर सम्मेलन का कर दिया गया. ये दक्षिण कोरिया के दृष्टिकोणमें बदलाव की शुरुआत का संकेत था, ऐसा बदलाव जो संबंधों को मजबूत करने की तरफ ज्यादा नपे-तुले कदम उठाने को लेकर उत्सुक है. दूसरेघटनाक्रमों के साथ जैसे कि अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति को अपनाना, जापान के साथ संबंधों को सुधारने में साफ तौर पर कोशिशें और व्यापक क्षेत्रमें हिस्सेदारी को लेकर कोरिया के इरादे के बारे में स्पष्ट आधिकारिक संदेश यून सरकार के द्वारा विदेश नीति में आगे बढ़ने के मामले में निरंतरता कोदिखाता है.
एक संतुलित पैसिफिक कूटनीति
पैसिफिक द्वीप के देशों में मई के महीने में कई शिखर सम्मेलन और बैठकें आयोजित हुई हैं जिनमें अमेरिका-पैसिफिक आइलैंड्स फोरम लीडर्स डायलॉगऔर फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स कोऑपरेशन शामिल हैं. भारत ने अपनी बैठक में व्यापार संबंधों और विकास सहायता को सुधारने की तरफकाम करने का वादा किया. अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने बैठक के बाद पापुआ न्यू गिनी के साथ रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए. जापान केहिरोशिमा में क्वॉड नेताओं की बैठक के बाद जारी साझा बयान में भी पैसिफिक आइलैंड्स फोरम (PIF) का जिक्र किया गया और इस बात की जरूरतबताई गई कि PIF के साथ ज्यादा नजदीक से काम करना है. भारत, जापान और दक्षिण कोरिया की तरफ से सक्रियता से पता चलता है कि ये देशपैसिफिक में अपना दांव बढ़ा रहे हैं. क्वॉड का बयान दिखाता है कि इन देशों को अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों, जो इस क्षेत्र में न्यूजीलैंड के साथप्रमुख किरदार हैं, से भी बेहद जरूरी समर्थन मिलेगा. कोरिया-पैसिफिक आइलैंड्स शिखर सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्लेस भी शामिलहुए थे.
पैसिफिक द्वीप के देशों के द्वारा अपनाई जा रही कूटनीति का दृष्टिकोण समावेशी और सामूहिक कार्रवाई का रहा है और ये प्रशांत महासागर में स्थित देशों के लिए 2050 की रणनीति में भी दिखाई देता है.
ये तथ्य कि पैसिफिक पर इतना ध्यान दिया जा रहा है और ये अलग-अलग देशों की इंडो-पैसिफिक रणनीति का केंद्र बनता जा रहा है, वास्तव में एकअच्छी बात है लेकिन इसको लेकर दृष्टिकोण सावधानी से तैयार करने की आवश्यकता है. पैसिफिक द्वीप के देशों के द्वारा अपनाई जा रही कूटनीति कादृष्टिकोण समावेशी और सामूहिक कार्रवाई का रहा है और ये प्रशांत महासागर में स्थित देशों के लिए 2050 की रणनीति में भी दिखाई देता है. इसरणनीति को ऐसे परिभाषित किया गया है “ये क्षेत्र की निर्णय लेने की प्रक्रिया और सामूहिक कार्रवाई को रास्ता दिखाने वाली रणनीति है. क्षेत्र कोआपस में और अपने साझेदारों के साथ आम राय बनाते रहना चाहिए. ये क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान करने के लिए सामूहिक आवाज और ब्लूप्रिंट है. ये पैसिफिक के साथ मिलकर काम करने के लंबे इतिहास पर तैयार है.” पैसिफिक द्वीप के देशों के साथ भागीदारी में बढ़ोतरी सिर्फ चीन के बढ़ते असर, आर्थिक फायदे और क्षेत्र में सुरक्षा महत्वाकांक्षा पर आधारित नहीं हो सकती है. वास्तव में इस तरह की खबरें भी हैं कि सोलोमन आइलैंड्स नेकोरिया-पैसिफिक आइलैंड्स शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र को पूरी तरह मंजूर नहीं किया क्योंकि उसे लगा कि ऐसी किसी भी तरह की “मुकाबले कीरणनीति” नहीं होनी चाहिए जो 2050 की रणनीति में बताई गई क्षेत्रीयता की भावना का विरोध करती हो. सोलोमन आइलैंड्स के प्रधानमंत्री मनाशेहसोगावरे के बयान में कहा गया, “सोलोमन आइलैंड्स अपने इस रवैये पर बना हुआ है कि वो ऐसी किसी भी नीति या समूह का समर्थन नहीं करेगा जोकिसी तीसरे देश को निशाना बनाता है.” पैसिफिक द्वीप के देश ज्यादातर गैर-परंपरागत सुरक्षा मुद्दों जैसे कि आर्थिक बहाली और वित्त तक पहुंच; जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम एवं लचीलापन; महासागर का गवर्नेंस, समुद्री मामले एवं मछली पालन; और लोगों के स्तर पर संपर्क के मामलोंमें सहयोग करना चाहते हैं.
पैसिफिक देशों ने इस क्षेत्र में चल रहे सामरिक मुकाबले को लेकर अपनी नाराजगी जताई है और मौजूदा स्थिति में किसी का पक्ष लेने को लेकरफूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं. उनके लिए कोरिया एक और साझेदार है जो उनकी चिंताओं पर ध्यान दे रहा है और इन चिंताओं का समाधान करने केलिए उनके साथ काम करना चाहता है. यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की प्रोफेसर जोआने वालिस और रित्सुमीकन एशिया पैसिफिकयूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर जिए किम का कहना है कि अमेरिका का सहयोगी होने के बावजूद दक्षिण कोरिया एक ‘लचीली कूटनीति’ कादृष्टिकोण अपनाता है और अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति में सबको शामिल करने की बात करता है ताकि पैसिफिक द्वीप के देशों से लेन-देन के समयउसके पक्ष में बात बन सके. भौगोलिक नजदीकी और आर्थिक साझेदारी को देखते हुए चीन को लेकर भी दक्षिण कोरिया ‘नियंत्रण वाला दृष्टिकोण’ अपनाने को लेकर बहुत ज्यादा उत्सुक नहीं है. ये बात पैसिफिक द्वीप के देशों पर भी लागू होती है क्योंकि वो भी विकास से जुड़ी साझेदारी को लेकरचीन के साथ काम कर रहे हैं. इसलिए, ऐसा लगता है कि सब कुछ सही ढंग से हो रहा है और दक्षिण कोरिया इस वक्त एक आकर्षक साझेदार की तरहदिख रहा है. फिर भी, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के अलावा इतने ज्यादा देश- दक्षिण कोरिया, जापान और भारत- अपनी पैसिफिक कूटनीतिको बढ़ा रहे हैं, ऐसे में ये सुनिश्चित करने के लिए कोशिश करने की जरूरत है कि ये दृष्टिकोण और पहल एक जैसी हों और एक-दूसरे का विरोध न करे. इस तरह की पहल को ऐसे भी दिखाने की आवश्यकता है कि इनका उद्देश्य पैसिफिक देशों के हितों को बढ़ाना है और किसी तीसरे देश पर निशानासाधना नहीं है. ऐसा लगता है कि बाहरी किरदार एक साथ मिलकर काम करना चाहते हैं जो कि इन देशों के बड़े नेताओं की टिप्पणियों और बयानों सेपता चलता है. लेकिन ये साझा पहल के रूप में होगा या सिर्फ द्विपक्षीय तरीके से, यह देखना अभी बाकी है.
प्रेमेशा साहा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में फेलो हैं.
प्रत्नाश्री बासु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं.
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