तेजस हल्के लड़ाकू विमानों (MK1A) को बनाने का 48 हज़ार करोड़ का ठेका सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL)को दिया गया है. एक स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान में निवेश करने और उसे भारतीय वायुसेना में शामिल करने के लिए मोदी सरकार के इस फ़ैसले का लंबे समय से इंतज़ार था. हालांकि, तेजस MK1A के आधे उपकरण विदेशी हैं. इनमें से सबसे अहम है अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी का बनाया हुआ इंजन, इसके अलावा इस लड़ाकू विमान में इज़राइल का एल्टा रडार और ब्रिटेन से आयात किए गए एवियॉनिक्स के उपकरण लगे हैं. इन सबके बावजूद, तेजस का बुनियादी डिज़ाइन, इसे बनाने में इस्तेमाल किए गए मैटेरियल, गणितीय आकलन और विमान का ढांचा खड़ा करने में इस्तेमाल किए गए धातु विज्ञान. ये सब कुछ स्वदेशी कोशिशों का ही नतीजा हैं.
सरकारी कंपनी HAL को तेजस विमान बनाने का जितना बड़ा ठेका हासिल हुआ है, उससे ये ज़ाहिर होता है कि भारत में घरेलू स्तर पर हथियारों और रक्षा क्षेत्र के सिस्टम का विकास करने की अहमियत के प्रति जागरूकता बढ़ रही है.
स्वदेशीकरण की ओर बड़ा क़दम
तेजस MK1A के निर्माण और उसे तेज़ तर्रार बनाने में इस्तेमाल की गई तकनीक की बारीक़ियों से इतर, इसे बनाने का ठेका HAL को देने की सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि, इसके ज़रिए सरकार ने रक्षा निर्माण के क्षेत्र में स्वदेशीकरण की ओर बड़ा क़दम उठाया है. सरकारी कंपनी HAL को तेजस विमान बनाने का जितना बड़ा ठेका हासिल हुआ है, उससे ये ज़ाहिर होता है कि भारत में घरेलू स्तर पर हथियारों और रक्षा क्षेत्र के सिस्टम का विकास करने की अहमियत के प्रति जागरूकता बढ़ रही है. इस बात को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तब बख़ूबी बयां किया, जब उन्होंने तेजस को बनाने का ठेका HAL को देने के बारे में बयान दिया. राजनाथ सिंह ने कहा कि, ‘अपनी सुरक्षा के लिए भारत दूसरों पर निर्भर नहीं रह सकता है.’ ये सरकार की ओर से स्वदेशी सुरक्षा क्षमताएं विकसित करने का सबसे ठोस बयान था. वैसे तो मोदी सरकार, तेजस बनाने का ठेका HAL को देने के क़दम को अपने आत्मनिर्भर भारत अभियान का ही हिस्सा मानती है, और उसे इसका श्रेय मिलना भी चाहिए. लेकिन एक मज़बूत सुरक्षा उद्योग विकसित करने का इरादा और कोशिशें तो हम आज़ादी के बाद से ही देखते आए हैं. इनकी मदद से भारतीय सैन्य बलों को आला दर्ज़े के हथियार और सिस्टम मुहैया कराने का प्रयास किया जाता रहा है.
सबसे अहम बात ये है कि तेजस का भारत में विकास होना अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अंदरूनी संतुलन बनाने की मिसाल बना है. अंदरूनी संतुलन किसी भी देश के घरेलू संसाधनों और उन प्रयासों पर निर्भर होता है, जिसके ज़रिए कोई देश अपनी ताक़त बढ़ाता है.
सबसे अहम बात ये है कि तेजस का भारत में विकास होना अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अंदरूनी संतुलन बनाने की मिसाल बना है. अंदरूनी संतुलन किसी भी देश के घरेलू संसाधनों और उन प्रयासों पर निर्भर होता है, जिसके ज़रिए कोई देश अपनी ताक़त बढ़ाता है. सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए अंदरूनी संतुलन का नज़रिया आम तौर पर एक महंगा सौदा होता है. भारत ने पहले ही अंदरूनी संतुलन से अपनी ताक़त बढ़ाने के कई उदाहरण पेश किए हैं. जैसे कि परमाणु हथियारों का निर्माण और उन्हें दाग़ने की क्षमता का विकास. आज भारत के पास अपना शक्तिशाली सिविलयन अंतरिक्ष कार्यक्रम भी है. भले ही भारत ने इसकी शुरुआत विदेशी मदद से की थी. लेकिन, आज भारत के पास एंटी सैटेलाइट (ASAT) जैसी ताक़त भी मौजूद है. भारत के परमाणु कार्यक्रम को भी शुरुआत में बाहरी मदद का फ़ायदा मिला था. हालांकि, शुरुआती दौर में भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण नागरिक प्रयोग के लिए था. लेकिन, जैसे जैसे भारत के आस-पास का सामरिक माहौल बदलता गया, वैसे वैसे भारत के सिविलियन न्यूक्लियर प्रोग्राम ने उसे अपना स्वदेशी परमाणु हथियार कार्यक्रम विकसित करने में मदद की. इसके अलावा भारत के पास डायरेक्टेड एनर्जी वेपंस (DEWs) भी हैं, जिनके ज़रिए भारत बाहरी अंतरिक्ष में स्थित लक्ष्यों पर भी निशाना साध सकता है. आज भारत साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और अंतरिक्ष के सैन्य कार्यक्रमों की क्षमता बढ़ाने में भी निवेश कर रहा है. ये सभी कोशिशें और दूसरे प्रयास एक काफ़ी हद तक भारत के अंदरूनी संतुलन बनाने का ही नतीजा हैं, भले ही शुरुआत में कुछ कार्यक्रम विदेशी मदद से शुरू किए गए थे.
तेजस बनाने का ठेका HAL को दिया जाना भारत सरकार की उस मज़बूत इच्छाशक्ति का संकेत देता है कि, अब सरकार अपनी संप्रभु सैन्य ताक़त को स्वदेशी तकनीक से बढ़ाना चाहता है
हालांकि, तेजस बनाने का ठेका HAL को दिया जाना भारत सरकार की उस मज़बूत इच्छाशक्ति का संकेत देता है कि, अब सरकार अपनी संप्रभु सैन्य ताक़त को स्वदेशी तकनीक से बढ़ाना चाहता है, और इस बात का श्रेय मोदी सरकार को मिलना चाहिए कि वो पारंपरिक हथियारों के क्षेत्र में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के कई प्रयास कर रही है. इस फ़ैसले के पीछे भारत के नीति नियंताओं के बीच इस बात का एहसास बढ़ना भी है कि देश की सुरक्षा को बहुत ज़्यादा आयात पर आधारित करने के दूरगामी नतीजे ख़तरनाक हो सकते हैं. पहला तो ये कि इससे भारत अपने पैसे से अपने रक्षा उद्योग के बजाय अन्य देशों के सैन्य औद्योगिक कॉम्प्लेक्स (MICs) की ताक़त को बढ़ाने में योगदान देता है. जो दूसरा कारण भारत के नीति नियंताओं के ज़हन पर हावी रहा है, वो ये कि सख़्त ज़रूरत की स्थिति में अन्य देशों द्वारा, भारत को हथियारों की आपूर्ति रोकने का ख़तरा होता है, या वो भारत को हथियार बेचने पर प्रतिबंध लगा सकते हैं. राजनाथ सिंह के बयान में ये बात छुपी हुई है. हालांकि, उन्होंने खुलकर ऐसा नहीं कहा. तीसरा कारण ये है कि पूरी तरह से विदेशी हथियारों पर निर्भर होना, भारी जोखिम का सबब बन सकता है. 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध इसकी सबसे बढ़िया मिसाल है. तब, भारत पर पाकिस्तान ने आक्रमण किया था. लेकिन, अमेरिका जो दोनों ही देशों को हथियार बेचता था, उसने पाकिस्तान के साथ-साथ भारत को भी हथियारों की आपूर्ति रोक दी. इसकी वजह ये थी कि इससे ख़ुद अमेरिका के हित सधते थे. इस मिसाल से हमारा मतलब ये है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति न तो हमेशा न्यायोचित होती है और न ही वो निष्पक्षता की राह पर चलती थी. एक सामान्य सी सच्चाई ये है कि हथियारों की आपूर्ति करने वाले देशों की शक्ति और उनके हित अहम होते हैं. विदेशों से हथियारों ख़रीदने का मामला भारत की कमज़ोर नस है. यही कारण है कि वो किसी भी एक देश से हथियारों की आपूर्ति पर पूरी तरह निर्भर नहीं हो सकता है. ये समस्या सिर्फ़ अमेरिका के साथ नहीं है. अपने हथियारों के लिए रूस, इज़राइल और फ्रांस जैसे देशों पर भी अत्यधिक निर्भरता भारत के हित में नहीं है.
रक्षा उद्योगों को विकसित करने में मदद
विदेशों से हथियारों ख़रीदने का मामला भारत की कमज़ोर नस है. यही कारण है कि वो किसी भी एक देश से हथियारों की आपूर्ति पर पूरी तरह निर्भर नहीं हो सकता है. ये समस्या सिर्फ़ अमेरिका के साथ नहीं है. अपने हथियारों के लिए रूस, इज़राइल और फ्रांस जैसे देशों पर भी अत्यधिक निर्भरता भारत के हित में नहीं है.[/pullquote]
और अंत में, स्वदेशीकरण का मतलब सिर्फ़ एक डिफेंस इकोसिस्टम तैयार करना नहीं है जहां हथियारों का स्वदेश में तेज़ी से विकास हो सके. स्वदेशीकरण का एक मतलब ये भी है कि इसके ज़रिए तैयार माल का इस्तेमाल करने वालों यानी भारतीय सैन्य सेवाओं का भारतीय अनुसंधान एवं विकास के प्रति रवैया बदलने का प्रयास किया जाए, जिससे भारत के रक्षा उद्योग में उनका यक़ीन और बढ़ सके. भारत के सैन्य बलों का स्वदेशी तकनीक में विश्वास जीतना मुश्किल काम है. तेजस के विकास के शुरुआती दौर से ही भारतीय वायुसेना का इसके प्रति रवैये के रूप में हमने इसकी मिसाल देखी है. पहले तो एयरफ़ोर्स ने इस प्रोजेक्ट पर शक जताया, फिर इसे प्रति ये कहते हुए हिकारत का भाव रखा कि ये वायुसेना की गुणवत्ता की ज़रूरतों को पूरा नहीं करता. नौसेना जो रक्षा उपकरणों के स्वदेशीकरण को अपनाने में सबसे अग्रणी सैन्य बल है, की तुलना में भारतीय वायुसेना हमेशा ही स्वदेशी तकनीक विकास को शक की नज़र से देखती आई है. हालांकि, कई बार वायुसेना के ऐसे रुख़ का कारण वाजिब भी रहा है. इसके बावजूद, आज भारतीय वायुसेना ने मोदी सरकार द्वारा तेजस बनाने का ठेका HAL को सौंपने के फ़ैसले को स्वीकार किया है. इसकी एक वजह ये भी है कि स्वदेशी तकनीक के विकास के प्रति वायुसेना का रवैया बदलने में सरकार की ओर से काफ़ी कोशिशें की गई हैं. सैन्य सेवाओं के पास तो इसी बात का अधिकार है कि वो युद्ध की तैयारी करें और उन्हीं संसाधनों से युद्ध लड़कर सीमाओं को सुरक्षित बनाएं, जो सरकार ख़रीद सकती है. इसके अलावा उनकी कोशिश ये भी होनी चाहिए कि वो सरकार को अंदरूनी संतुलन बनाने में सहयोग करें. ऐसी कोशिशें लंबी अवधि में ही अच्छे नतीजे दे सकती हैं. क्योंकि अगर सैन्य बल स्वदेशी तकनीक पर आधारित उपकरणों को खुले दिल से अपनाएंगे, तो इससे उनके लिए देश में ही रक्षा उद्योग विकसित करने में मदद मिलेगी. तेजस MK1A बनाने का ठेका हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को देना, इसी दिशा में बढ़ा क़दम है.
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