भारत और इटली के रिश्तों में ये दौर काफ़ी व्यस्तता भरा रहा है. पिछले लगातार दो वर्षों से विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर आयोजित होने वाले ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के रायसीना डायलॉग के मुख्य अतिथि यूरोप से थे- 2022 में यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन और अब मार्च 2023 में इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी. ये आमंत्रण इस बात का सबूत हैं कि भारत की विदेश नीति के समीकरण में यूरोप को प्रमुखता दी जा रही है.
प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी और उनकी ब्रदर्स ऑफ़ इटली पार्टी अक्टूबर 2022 में सत्ता में आई थी. वो इटली की पहली महिला प्रधानमंत्री हैं. उसके बाद से प्रधानमंत्री मोदी और मेलोनी 2022 में बाली में हुए G20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक बार मिले थे.
2012 में इटली के नौसैनिकों द्वारा दो भारतीय मछुआरों की हत्या किए जाने की दु:खद घटना के बाद इटली के साथ भारत के रिश्तों को काफ़ी नुक़सान पहुंचा था. ये रिश्ते तो 2017 में जाकर तब पटरी पर आए, जब इटली के पूर्व प्रधानमंत्री पाओलो जेंटिलोनी भारत के दौरे पर आए थे. ये दौरान 2007 में इटली के तत्कालीन प्रधानमंत्री रोमानो प्रोडी के दौरे के पूरे एक दशक बाद हुआ था.
विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर आयोजित होने वाले ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के रायसीना डायलॉग के मुख्य अतिथि यूरोप से थे- 2022 में यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन और अब मार्च 2023 में इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी. ये आमंत्रण इस बात का सबूत हैं कि भारत की विदेश नीति के समीकरण में यूरोप को प्रमुखता दी जा रही है.
2018 में दोनों देश अपने संबंधों के 70 साल पूरे होने का जश्न मना रहे थे, तो इटली के तत्कालीन प्रधानमंत्री गिउसेप कोंटे भारत आए रहे थे. इसके बाद 2020 में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ वर्चुअल शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया था. तब 2020-2024 का एक्शन प्लान शुरू किया गया था. दोनों देशों के बीच 15 द्विपक्षीय समझौते किए गए थे, जो व्यापार और निवेश से लेकर ऊर्जा परिवर्तन में निवेश से जुड़े थे. ये वर्चुअल सम्मेलन दोनों देशों के संबंधों में एक बड़ा मील का पत्थर साबित हुआ था. 2021 में इटली और भारत के बीच दूसरा संसदीय आदान प्रदान हुआ था. इसके अलावा दोनों देश विदेश विभाग स्तर के सलाह मशविरे भी कर रहे थे. पिछले वर्ष इसका आठवां साल था. इस तरह दोनों देशों के बीच नियमित उच्च स्तरीय बैठकों की वजह से भारत और इटली के रिश्ते ज़्यादा ठोस और संस्थागत संबंधों में तब्दील हुए हैं.
दोनों देश G20 के मंच पर भी आपसी तालमेल कर रहे हैं. 2021 में इटली G20 का अध्यक्ष था और अब भारत भी अध्यक्ष है. 2021 में रोम में हुए G20 के शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, इटली के तत्कालीन प्रधानमंत्री मारियो द्राघी से मिले थे.
व्यापार, रक्षा और ऊर्जा के प्रमुख स्तंभ
इटली, भारत का चौथा सबसे बड़ा यूरोपीय व्यापारिक साझीदार है और वह भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के मामले में 12वें स्थान पर है. 2020 में भारत में इटली का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़कर 2 अरब डॉलर तक पहुंच गया था. 2021 में दोनों देशों का व्यापार 10 अरब डॉलर आंका गया था, जिसका पलड़ा भारत के पक्ष में झुका हुआ था. भारत में इटली की 600 से ज़्यादा कंपनियां कारोबार कर रही हैं, और इटली, पहले ही भारत को कारोबार के मामले में अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता वाले शीर्ष के पांच देशों में शुमार करता है.
भारत की ‘मेक इन इंडिया’ की पहल और आधुनिकीकरण की मुहिम को निर्माण क्षेत्र, हरित तकनीक और रक्षा क्षेत्र में इटली की विशेषज्ञता का लाभ मिल सकता है. इटली से भारत को होने वाले निर्यात में 36 प्रतिशत हिस्सेदारी मशीन उपकरणों की है, और दोनों ही अर्थव्यवस्थाएं छोटे और सूक्ष्म उद्योगों पर आधारित है.
इटली को भारत के निर्यातों में लोहा और स्टील जैसी धातुएं, चमड़ा, रसायन, जवाहरात और गहने शामिल हैं. रूस पर प्रतिबंध और युद्ध से यूक्रेन के उद्योग तबाह होने के कारण, इटली को भारत से स्टील का निर्यात बढ़ रहा है. जबकि पहले यूक्रेन और रूस ही यूरोप का मुख्य स्टील निर्यातक देश थे. लेकिन, अब यूरोप को अपनी स्टील की ज़रूरतें पूरी करने के लिए नए बाज़ार तलाशने पड़ रहे हैं.
भारत की ‘मेक इन इंडिया’ की पहल और आधुनिकीकरण की मुहिम को निर्माण क्षेत्र, हरित तकनीक और रक्षा क्षेत्र में इटली की विशेषज्ञता का लाभ मिल सकता है. इटली से भारत को होने वाले निर्यात में 36 प्रतिशत हिस्सेदारी मशीन उपकरणों की है, और दोनों ही अर्थव्यवस्थाएं छोटे और सूक्ष्म उद्योगों पर आधारित है. भारत अब फूड प्रोसेसिंग और टिकाऊ खेती पर अधिक ध्यान देने का इरादा रखता है. ये वो क्षेत्र हैं, जिनमें इटली के पास काफ़ी अनुभव है. कुल मिलाकर भारत और इटली का आपसी व्यापार उस सूरत में और बढ़ सकता है, अगर यूरोपीय संघ और भारत के बीच मुक्त व्यापार का समझौता हो जाता है. भारत और यूरोपीय संघ के बीच इस समझौते के लिए वार्ताएं पिछले साल दोबारा शुरू की गई थी.
मेलोनी के भारत दौरे में आपसी रक्षा सहयोग को बढ़ाना भी प्रमुख एजेंडा है. भारत और इटली रक्षा और हवाई क्षेत्र में साझा उत्पादन की संभावनाएं भी तलाश रहे हैं. इसके अलावा तकनीक के ट्रांसफर पर भी ज़ोर दिया जा रहा है, जो इटली की सरकारी कंपनी फिनकेंटियरी और भारत की कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड के बीच हुए समझौते से स्पष्ट है. किसी थल सेना प्रमुख के पिछले दौरे के 14 साल बाद, 2021 में तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे इटली के दौरे पर गए थे, जिससे भारत और इटली के रक्षा संबंधों में नई ऊर्जा डाली जा सके. इसके अलावा, भारत और इटली के बीच आतंकवाद निरोध पर एक साझा कार्यकारी समूह भी है.
दोनों देशों के बीच सहयोग का एक प्रमुख क्षेत्र ऊर्जा परिवर्तन का भी है. 2021 में दोनों देशों ने ग्रीन हाइड्रोजन और जैविक ईंधन जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए ऊर्जा परिवर्तन की सामरिक साझेदारी का समझौता भी किया था. इसके अलावा, भारत और फ्रांस की अगुवाई वाले 90 देशों के इंटरनेशनल सोलर एलायंस में इटली भी सदस्य बना है.
हिंद प्रशांत क्षेत्र में सहयोग
इटली ने मारियो द्राघी की सरकार के दौरान हिंद प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान देना शुरू किया था. फिर भी वो अभी फ्रांस, जर्मनी और यहां तक कि नीदरलैंड के बराबर इस क्षेत्र में सक्रिय नहीं है. जबकि इन देशों ने हिंद प्रशांत को लेकर अपनी अलग रणनीतियां भी जारी की हैं. अब तक इस क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने को लेकर इटली अपनी प्रतिबद्धता यूरोपीय संघ की साझा रणनीति की रूपरेखा के तहत ही जताता रहा है. ये रणनीति 2021 में जारी की गई थी. फिर भी, इस महत्वपूर्ण क्षेत्र से इटली की गैरमौजूदगी साफ़ दिखती है.
इटली एक निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था है और यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता देश है. उसके लिए सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखलाएं और एशिया और यूरोप को जोड़ने वाले समुद्री मार्गों की नियमों पर आधारित सुरक्षा बहुत अहम है.
2021 में भारत इटली और जापान के बीच त्रिपक्षीय साझेदारी शुरू की गई थी. फिर भी, भारत और जापान के बीच अच्छी संस्थागत साझेदारी और इसमें इटली की मज़बूत पूरक संभावना को पूरी तरह से कारगर नहीं बनाया गया है. ये याद रखना उपयोगी होगा कि जनवरी 2023 में इटली ने जापान के साथ अपने रिश्तों को ‘सामरिक साझेदारी’ का दर्जा दिया था और इससे हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी मज़बूत भागीदारी को आगे। बढ़ाया था. भारत और यूरोपीय संघ की कनेक्टिविटी साझेदारी के ज़रिए, इटली और भारत एक स्थिर मुक्त और नियमों पर आधारित टिकाऊ हिंद प्रशांत क्षेत्र के अपने साझा विज़न के तहत स्थिर कनेक्टिविटी प्रदान करने के क्षेत्र में मिलकर सहयोग कर सकते हैं. दोनों देश, हिंद प्रशांत और भूमध्य सागर के भौगोलिक इलाक़ों के बीच सहयोग को भी मिलकर बढ़ावा दे सकते हैं. क्योंकि हिंद महासागर में भारत की स्थायी मौजूदगी है तो भूमध्य सागर में इटली की यही स्थिति है. हौसला बढ़ाने वाली बात ये है कि 2022 में इटली की संसद ने इस क्षेत्र पर और अधिक ध्यान देने वाला प्रस्ताव पारित किया था. इस संदर्भ में ‘दोस्ताना नौसेनाओं’ के साथ अधिक संपर्क बढ़ाने की योजना के अतिरिक्त, इटली अपने मोरोसिनी जंगी जहाज़ को गश्त लगाने के लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र में भेजने का इरादा रखता है.
इटली एक निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था है और यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता देश है. उसके लिए सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखलाएं और एशिया और यूरोप को जोड़ने वाले समुद्री मार्गों की नियमों पर आधारित सुरक्षा बहुत अहम है. जैसा कि विदेश मंत्रालय में पूर्व क्षेत्र की सचिव रिवा गांगुली ने ज़ोर देते हुए कहा था कि, ‘इटली की उत्पादन क्षमता, वैश्विक मूल्य आधारित श्रृंखलाओं से भरोसेमंद साझीदार के रूप में जुड़ने की भारत की आकांक्षाओं से मेल खाती है.’
ग़ैर महत्वपूर्ण रूस और अहम चीन
अपनी सरकार को लेकर रूस के मामले में यूरोपीय संघ की एकता ख़तरे में डालने की आशंकाओं के बावजूद, मेलोनी की सरकार ने यूरोपीय संघ की नीति के साथ तालमेल बनाया है, और यूक्रेन के साथ अपनी एकजुटता को दोहराया है. इसकी वजह सिर्फ़ यही नहीं है कि महामारी के बाद रिकवरी केफंड से इटली को यूरोपीय संघ से 200 अरब यूरो की रक़म मिलने वाली है.
फिर भी जॉर्जिया मेलोनी और उनकी दक्षिणपंथी गठबंधन सरकार के दूसरे दलों जिसमें साल्विनी की लीग और पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी की फोर्ज़ा इटैलिया भी शामिल है, के रूस को समर्थन देने का लंबा इतिहास रहा है, क्योंकि दोनों देशों के बीच मज़बूत आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं. इसीलिए, यूरोप के दूसरे देशों के उलट, रूस यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत की निरपेक्ष, नीति और रूस से उसके तेल ख़रीदने में बढ़ोत्तरी, इटली के साथ उसके रिश्तों में ख़लल डालने का काम नहीं करेगी.
इसके बजाय भारत और इटली के रिश्तों में चीन फैक्टर ज़्यादा अहमियत वाला हो जाता है.
इटली के पूर्व प्रधानमंत्री मारियो द्राघी यूरोप अमेरिका एकता के कट्टर समर्थक थे. द्राघी ने चीन पर ‘भेदभावपूर्ण’ व्यापारिक नीतियां अपनाने का आरोप लगाया था और वो शिनजियांग में मानव अधिकारों के उल्लंघन के लिए चीन की खुलकर आलोचना करते थे. द्राघी को चीन के प्रति इटली की नीति को कड़ा बनाने का श्रेय दिया जा सकता है. इटली ने चीन की कंपनियों द्वारा इटली की कंपनियों के अधिग्रहण को रोक दिया था और टेलीकॉम इटालिया ने यूरोपीय संघ की नीतियों से तालमेल बिठाते हुए अपने 5G नेटवर्क से चीन की हुआवेई कंपनी को अलग कर दिया था.
उम्मीद है कि मेलोनी का दक्षिणपंथी गठबंधन, चीन के ख़िलाफ़ इस कड़ी नीति को आगे भी जारी रखेगा. चीन के बेल्ट ऐंड रोड इशिएटिव में शामिल होने के लिए इटली ने 2019 में एक सहमति पत्र (MoU) पर दस्तख़त किए थे.
उम्मीद है कि मेलोनी का दक्षिणपंथी गठबंधन, चीन के ख़िलाफ़ इस कड़ी नीति को आगे भी जारी रखेगा. चीन के बेल्ट ऐंड रोड इशिएटिव में शामिल होने के लिए इटली ने 2019 में एक सहमति पत्र (MoU) पर दस्तख़त किए थे. जॉर्जिया मेलोनी इसे इटली की ‘बड़ी भूल’ मानती हैं और वो चाहती हैं कि जब 2024 में इसके नवीनीकरण का समय आए तो इसकी नए सिरे से समीक्षा की जाए. मेलोनी ने शिनजियांग और हॉन्ग कॉन्ग में चीन द्वारा मानव अधिकारों के उल्लंघन की निंदा करने के अलावा ताइवान जलसंधि में चीन की हरकतों की भी कड़ी आलोचना की है. इससे पहले जब वो इटली की खेल मंत्री थीं, तब मेलोनी ने तिब्बत को लेकर चीन की नीतियों के विरोध में 2008 में बीजिंग ओलंपिक के बहिष्कार की अपील की थी. ऐसा लगता है कि मेलोनी के गठबंधन के साझीदार भी रूस के मुक़ाबले चीन को लेकर कड़ा रुख़ रखते हैं. चीन को लेकर भारत के सुरक्षा संबंधी तनावों को देखते हुए मेलोनी सरकार का ये रुख़ भारत के लिए मुफीद है.
इसके बाद भी G20 के बाली शिखर सम्मेलन के दौरान मेलोनी ने 2023 में चीन का दौरान करने का राष्ट्रपति शी जिनपिंग का न्यौता क़ुबूल कर लिया था और चीन को इटली के निर्यात बढ़ाने की इच्छा भी जताई थी. हालांकि, ये रवैया हैरान करने वाला नहीं लगता, क्योंकि इटली लगातार आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहा है, और इसी वजह से उसकी विदेश नीति का केंद्रबिंदु आर्थिक हित बन गए हैं.
इटली की उथल-पुथल भरी विदेश नीति बाधा नहीं है
इटली को लेकर कोई भी चर्चा उसकी घरेलू सियासत के विश्लेषण के बग़ैर पूरी नहीं होती. क्योंकि वहां राजनीतिक अस्थिरता कोई अपवाद नहीं बल्कि एक नियम है. सर्वे दिखाते हैं कि पिछले साल के आम चुनावों में 26 प्रतिशत की तुलना में अब मेलोनी की लोकप्रियता बढ़कर 30 फ़ीसद हो चुकी है. इसके कारणों में संसद से तुरंत बजट पास कराना और उर्सुला वॉन डेर लेयेन और पोप फ्रांसिस के साथ कामयाब बैठक करना शामिल है. फिर भी, इटली की उथल-पुथल भरी सियासत को देखते हुए मेलोनी समेत किसी भी सरकार के अस्तित्व पर सवालिया निशान हमेशा बना रहता है.
हालांकि, इटली में लगातार सरकार बदलने के बाद भी रिश्ते बेहतर करने की मज़बूत इच्छाशक्ति के साथ साथ, भारत और इटली के बीच उच्च स्तर पर संपर्क में नियमितता बरकरार है. इससे 2017 के बाद से दोनों देशों की एक दूसरे पर नज़र रहना सुनिश्चित हो सका है.
इसके अलावा, यूरोपीय संघ में आर्थिक वृद्धि को लेकर पूर्वानुमान बेहद कमज़ोर हैं, क्योंकि महंगाई, ऊर्जा संसाधनों और ब्याज़ दरों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. बाक़ी यूरोपीय देशों की तुलना में इन सबका इटली पर ज़्यादा असर पड़ने की आशंका है क्योंकि वहां पर लंबे समय से आर्थिक चुनौतियां बनी हुई हैं और सरकार पर क़र्ज़ का बोझ भी GDP के 150 फ़ीसद तक पहुंच चुका है. इस संदर्भ में इटली के लिए भारत एक भरोसेमंद कारोबारी अवसर है. क्योंकि आज जब बाक़ी दुनिया सुस्ती के दौर से गुज़र रही है, तो भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से आगे बढ़ रही है.
इटली के साथ भारत की साझेदारी, राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक, हर स्तर पर बढ़ रही है. वैश्विक राजनीतिक के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर मेलोनी का भारत दौरा इन संबंधों को और मज़बूत करेगा और इससे यूरोपीय संघ और भारत की साझेदारी में भी नई जान पड़ेगी. भारत और इटली के रिश्तों के लिए भविष्य उज्जवल और प्रगति वाला है.
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