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Published on Mar 21, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत की अध्यक्षता के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए, 2023 के विशाल केंद्रीय बजट ने G20 के मक़सदों  को मज़बूती से प्राथमिकता दी है.

LiFE, लचीलापन और कल्याण: भारत की अनिवार्यताएं

नवंबर 2022 में भारत को G20 का बहुप्रतीक्षित हथौड़ा मिला था. G20 की शुरुआत के बाद से भारत पहली बार इसका अध्यक्ष बना है. भू-राजनीति के बदलते आयामों के बीच में इस मंच पर भारत की स्थिति न केवल दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश के लिए एक समावेशी मंच का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि उस मंच पर वो पूरी विकासशील दुनिया की एक मज़बूत आवाज़ भी है, जो दुनिया की 85 प्रतिशत GDP और दो तिहाई आबादी की नुमाइंदगी करने वाले देशों का संगठन है.

अध्यक्षता के दौरान, भारत ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ या फिर ‘एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य’ G20 की गतिविधियों की पृष्ठभूमि बनाया है और इस वर्ष की शुरुआत 2023 के ज़बरदस्त बजट को पेश करके की है.

अध्यक्षता के दौरान, भारत ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए वसुधैव कुटुम्बकमया फिर एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य’ G20 की गतिविधियों की पृष्ठभूमि बनाया है और इस वर्ष की शुरुआत 2023 के ज़बरदस्त बजट को पेश करके की है, जिसमें G20 की प्राथमिकताओं को मज़बूती दी गई है. फिर चाहे वो हरित विकास हो, जलवायु वित्त हो या फिर पर्यावरण के लिए जीवनशैली (LiFE), समावेशी और लोचदार तरक़्क़ी, तकनीकी परिवर्तन, स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति के लिए प्रगति को रफ़्तार देना और महिलाओं के नेतृत्व में विकास करने जैसी बातें शामिल है.

LiFE के एजेंडे को प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लासगो पर्यावरण सम्मेलन (COP26) में पेश किया था. इसका मक़सद खपत और उत्पादन के चलन को अधिक टिकाऊ स्तर पर लाना है. जिसके पीछे भारत की विशाल आबादी की ताक़त है. इस साल के बजट में भारत ने अपनी LiFE की प्रतिबद्धताओं के तहत आने वाली परियोजनाओं के लिए भारी रक़म का प्रावधान रखा है. लेकिन, अभी ये देखना बाक़ी है कि ये प्रयास किस तरह, इसके असली लाभार्थियों तक पहुंचते है, जो ख़ास तौर से ग्रामीण और अर्धग्रामीण इलाक़ों में बसते हैं और भारत के विशेष हालात में ये परियोजनाएं कितना अच्छा प्रदर्शन करती है.

पर्यावरण को टिकाऊ बनाने की राह

पूरी दुनिया के ऊर्जा क्षेत्र में हाइड्रोजन से पैदा होने वाली ऊर्जा की बड़ी चर्चा है. हाइड्रोजन को नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के स्रोत के तौर पर विकसित करने, उत्पादन करने और उपयोग बढ़ाने में विश्व के बड़े खिलाड़ियों की बराबरी करने के लिए केंद्रीय बजट में हाइड्रोजन के निर्माण और वितरण के लिए ज़रूरी मूलभूत ढांचे के निर्माण में मदद के लिए ज़रूरी संसाधनों पर आयात शुल्क घटाया है. टैक्स संबंध रियायतें दी ह. हालांकि, इस पहल के लिए सरकार द्वारा आवंटित की गई रक़म, उन कमियों को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जो 2030 तक 50 लाख मीट्रिक टन हाइड्रोजन के उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आवश्यक पूंजी की कमी को दूर कर सकें. इसका एक उदाहरण, 4000MwH बैटरी भंडारण तकनीक के लिए बजट में किया गया प्रावधान है. इसके लिए सरकार ने वायबिलिटी गैप फंडिंगका तरीक़ा अपनाया है. ये सबूत पर आधारित तरीक़ा है. जिसमें सरकार, किसी भी कार्यक्रम के अंतिम आवंटन से पहले उसके प्रदर्शन यानी कामयाबी और असफलता की निगरानी करती है.

G20 की अपनी अध्यक्षता और ‘सबका साथ सबका विकास’ के विचार के साथ 2023 के बजट में समावेशी विकास को अपनी अन्य छह ‘सप्तर्षि’ अथवा सात प्राथमिकता वाली पहलों में शामिल किया है.

इन बड़ी परियोजनाओं के अतिरिक्त सरकार का समुदाय आधारित सिटिज़न सेंट्रिक ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम भी अच्छे प्रशासन की दिशा में उठाया गया क़दम है, जिससे कंपनियों, आम लोगों और स्थानीय निकायों द्वारा पर्यावरण को टिकाऊ बनाने वाले क़दम उठाए जाने को प्रोत्साहन दिया गया है.हालांकि, इस बजट में सरकार ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना को हरित परिवर्तन के प्रयासों में शामिल नहीं किया है, जो एक मौक़ा गंवाने जैसा है. क्योंकि उज्ज्वला योजना केंद्र सरकार के पैसे से चलने वाली ऐसी योजना है जिसमें ग्रामीण इलाक़ों में रहने वालों को सस्ती दरों पर रसोई गैस मुहैया कराई जाती है. इसका मक़सद विशेष रूप से महिलाओं और परिवारों को अब तक इस्तेमाल होते रहे कोयले और लकड़ी से पैदा होने वाले प्रदूषण से बचाना है. इसी तरह 1.2 अरब डॉलर के बजट से शुरू की गई गोबरधन योजना (गैलवनाइजिंग, ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्स धन) के तहत 200 कॉम्प्रेस्ड बायोगैस प्लांट (CBG), ग्रामीण और शहरी, दोनों इलाक़ों में लगाए जाने है. इस योजना से LiFE के तहत स्वदेशी तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.

सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना

समावेशी और प्रभावी स्वास्थ्य सेवा को लेकर भारत का उठा-पटक भरे इतिहास इस बात का सुबूत है कि भारत ने किस तरह समाज के सबसे कमज़ोर तबक़े की सामाजिक भलाई को आगे बढ़ाने के प्रयास किए हैं. ऐसे में इस बात से शायद ही किसी को हैरानी हुई हो कि G20 की अपनी अध्यक्षता और सबका साथ सबका विकासके विचार के साथ 2023 के बजट में समावेशी विकास को अपनी अन्य छह सप्तर्षिअथवा सात प्राथमिकता वाली पहलों में शामिल किया है. भारत सरकार की आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY)- जो सबको सेहत का संरक्षण देने वाली बीमा योजना है- को आवंटन में मौजूदा बजट में 12 प्रतिशत की वृद्धि की गई है, जिससे एक मज़बूत स्वास्थ्य सेवा देने वाली व्यवस्था विकसित की जा सके.

1.8 अरब डॉलर वाली नई शुरू की गई योजना प्रधानमंत्री विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूह (PVTG) विकास मिशन के तहत सबसे कमज़ोर तबक़े के आदिवासियों के लिए सुरक्षित रिहाइश, स्वास्थ्य एवं पोषण के साथ साथ रोज़ी रोटी की टिकाऊ व्यवस्था करने का लक्ष्य रखा गया है. इस आवंटन की सबसे बड़ी ख़ूबी नेशनल टेली मेंटल हेल्थ कार्यक्रम के लिए 1.63 करोड़ डॉलर का आवंटन है; स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों और इस उद्योग के पेशेवरों ने देश की मानसिक कल्याण के क्षेत्र में इस पहल को बहुत शानदार बताया है.

लोचदार आर्थिक व्यवस्थाओं के लिए मानव पूंजी

टिकाऊ विकास के लक्ष्य (SDGs) मज़बूती से समावेशी विकास और मानव पूंजी में निवेश के आधार पर टिके हैं. भारत, शिक्षा और हुनर के नतीजों को बढ़ाने और अपनी विशाल आबादी से फ़ायदा लेने के लिए सबको सस्ती स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने को लेकर समर्पित है. ये एक स्थापित सत्य है कि स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देने और असमानताओं को कम करने के प्रयास ग़रीबी उन्मूलन के प्रयासों से सीधे तौर पर जुड़े हुए है. बच्चे का विकास इस प्रक्रिया का अटूट हिस्सा है. जीवन चक्र के दौरान उसमें सुधार के क़दम और निवेश से तिहरा फ़ायदा होता है, जो आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए फ़ायदेमंद होता है. इनमें वो लोग भी शामिल है, जो आज मौजूद हैं और वो भी है, जो भविष्य में वयस्क होंगे. अर्थशास्त्री जेम्स हेकमैन सलाह देते है कि बच्चों की उत्पादकता, स्वास्थ्य और पढ़ाई के अच्छे नतीजे निकालने के लिए बच्चों में निवेश और बढ़ाने की सलाह देते है.

आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक़ स्वास्थ्य में अपनी जेब से भारी रक़म का ख़र्च (OOPE) भारत की ग़रीबी बढ़ाने का बड़ा कारण है. इसमें सुझाव दिया गया है, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के 2.5 प्रतिशत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश का फिर से मूल्यांकन होना चाहिए.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 ने कुपोषण में वृद्धि और भुखमरी के ख़ात्मे के प्रयासों के लाभ पलटने की चिंताजनक हक़ीक़त को उजागर किया है. महामारी के कारण खाद्य सुरक्षा हासिल करना और भी मुश्किल होता जा रहा है. दुनिया के तीन प्रतिशत मलेरिया और एक चौथाई से अधिक टीबी के मामले भारत में पाए जाते है. भारत अपनी GDP का 1.26 प्रतिशत स्वास्थ्य पर तो केवल 3 प्रतिशत हिस्सा पढ़ाई पर ख़र्च करता है. आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक़ स्वास्थ्य में अपनी जेब से भारी रक़म का ख़र्च (OOPE) भारत की ग़रीबी बढ़ाने का बड़ा कारण है. इसमें सुझाव दिया गया है, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के 2.5 प्रतिशत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश का फिर से मूल्यांकन होना चाहिए. इसके अलावा लोगों को कुल इलाज का एक बड़ा हिस्सा अपनी जेब से देने यानी 65 फ़ीसद ख़र्च को कम करके स्वास्थ्य पर कुल व्यय को 30 प्रतिशत पर लाना ही होगा. आयुष्मान भारत योजना, आत्मनिर्भर भारत योजना, समग्र शिक्षा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति और शहरी शिक्षण कार्यक्रम, भारत सरकार द्वारा उठाए गए उन प्रयासों में शामिल हैं, जिनसे मानवीय पूंजी के आधार को मज़बूत बनाया जा सके. हालांकि, आमदनी की असमानता कम करने और लोचदार आर्थिक व्यवस्था के लिए समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए ये ज़रूरी है कि लोगों की सेहत, पढ़ाई और हुनर सीखने और उसे सुरक्षित बनाने में निवेश करना ज़रूरी है.

महामारी ने अर्थव्यवस्थाओं, स्वास्थ्य एवं शिक्षण व्यवस्था में बाधा डाली है और अभी ये व्यवस्थाएं नई अकादमी और मनोवैज्ञानिक राहें तलाश रही हैं. आज जब अगले साल चुनाव होने वाले है, तो आने वाली आर्थिक सुस्ती, G20 के 200 सम्मेलनों और महंगाई के दबाव पर क़ाबू पाने के प्रयासों को निश्चित रूप से सरकार के बजट में जगह दी गई है, वो भी उस वक़्त पूरे दक्षिणी एशिया में भारत के पड़ोसी देशों में अत्यधिक अपेक्षाओं के कारण आर्थिक और सामाजिक उठा-पटक का सामान करना पड़ रहा है. अगर कोई ये कहता है कि G20 अध्यक्षता वाले साल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए आख़िरी पूर्ण वित्त बजट को हम भारत द्वारा ख़ुद को दुनिया के नक़्शे पर मज़बूती से उभारने के लिए चला गया सबसे महंगा दांव कहा जा सकता है.

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Authors

Shoba Suri

Shoba Suri

Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...

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Soumya Bhowmick

Soumya Bhowmick

Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...

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