Author : Sunjoy Joshi

Published on Sep 08, 2020 Updated 0 Hours ago

आज यह एक बहुत बड़ी चुनौती उभरकर के सामने आती है कि कैसे हम वेलफेयर स्टेट की पुनर्स्थापना करे क्योंकि पुराना वेलफेयर स्टेट मज़बूत मध्यम वर्ग के टैक्सेशन पर खड़ा था. इन्हीं के टैक्सेशन पर यूरोप और अमेरिका के हेल्थ केयर और वेलफेयर प्रोग्राम चला करते थे.

‘वैश्विक आर्थिक संकट के दौर में, व्यक्ति नहीं राष्ट्र के जीवनकाल को देनी होगी अहमियत’

भारत का जीडीपी क़रीब 24% गिरा है. और अगर जी-20 देशों को देखें तो यह गिरावट सबसे बड़ी गिरावट है. वैसे सभी देशों में रिकॉर्ड तोड़ गिरावट आई है. ब्रिटेन में 20% की गिरावट देखने को मिली है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि 18वीं शताब्दी के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है. भारत में एक तरह से 2019 के अंत तक तीसरी तिमाही से धीरे धीरे गिरावट देखने को मिली है. कुछ इसी तरह का उतार-चढ़ाव लगातार देखने को मिलती रही है. इस तरह से पहले से ही अर्थव्यवस्था की विकराल स्थिति बनती जा रही थी उसको कोरोना की मार ने एक और धक्का दिया जिससे हमारे जीडीपी और गर्त में चली गई.

कई लोगों का कहना कि वी-शेप रिकवरी अभी होगी. लेकिन हमारा  मानना है  कि वी-शेप रिकवरी नहीं होगी और इसलिए नहीं होगी क्योंकि कोविड के मरीज़ों की संख्य़ा लगातार बढ़ती जा रही है

जैसा कि हमने इस बात का पहले भी ज़िक्र किया था कि कृषि ही एकमात्र सेक्टर है जिसमें गिरावट नहीं आई है, बाकी सभी सेक्टरों में गिरावट देखने को मिली है, जैसे- मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में लगभग 40% की गिरावट आई है, होटल इंडस्ट्रीज़ जो बंद पड़े है और हमारा कंस्ट्रक्शन का क्षेत्र जो एक तरह से हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, यदि इन सब में गिरावट आयी है तो जाहिर है कि हमें इसका प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलेगा. कई लोगों का कहना कि वी-शेप रिकवरी अभी होगी. लेकिन हमारा  मानना है  कि वी-शेप रिकवरी नहीं होगी और इसलिए नहीं होगी क्योंकि कोविड के मरीज़ों की संख्य़ा लगातार बढ़ती जा रही है.

शुरू से ही सप्लाई चेन को लेकर एक बहुत बड़ा ख़तरा बना हुआ था, जो आज भी बरकरार है, और सप्लाई चेन से सभी सर्विसेज़ एक दूसरे से इंटरलिंक्ड है जिसकी वजह से एक का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है. अर्थव्यवस्था बंद करना तो बड़ा आसान होता है लेकिन उसको शुरू करना उतना ही कठिन होता है. यह एक चुनौती है जिसका सामना हमें बड़े सोच समझकर आने वाले तिमाही तक करना होगा.

सरकारों की मदद करने वाले  मॉडल

अप्रैल महीने  में वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट आई थी जिसमें ग़रीबी की बहुत संकीर्ण परिभाषा दी गई थी. उसमें माना गया था कि जो लोग $2 से कम कमाते हैं वो ग़रीब है. अगर 1981 से 2015 तक के बीच का आंकड़ा देखें तो तक़रीबन 70 करोड़ लोग ग़रीबी से बाहर निकले थे इससे पहले लगभग दो अरब लोग ग़रीब थे. यह एक बहुत बड़ा सुधार वैश्वीकरण के कारण देखा गया था. पर अब इस वैश्विक महामारी के चलते फिर से ग़रीबी बढ़ी है. इस प्रकार सब-सहारन अफ्रीका में, एशिया में और भारत जैसे देशों में ग़रीबी की स्थिति बढ़ती जाएगी. किंग्स कॉलेज के शोधकर्ताओं का कहना है कि इस महामारी के कारण दुनिया में 40 करोड़ और ग़रीब लोगों का इज़ाफा हुआ है. पर इस महामारी की वजह से जो मध्यम वर्ग के ग़रीब है अर्थात जिनकी आमदनी $2-$5 के बीच में है, उनमें भी इज़ाफा होगा क्योंकि वैश्वीकरण से इन लोगों को जो एक प्रकार से संबल  मिल रहा था वह धीरे-धीरे ख़त्म होता जा रहा है. अब दुनिया के राष्ट्र अपने लोगों के लिए रोज़गार सुरक्षित करना चाहते हैं. इस प्रकार चुनौती दोहरी है- एक तरफ महामारी का तो दूसरी तरफ डी-ग्लोबलाइज़ेशन का.

अगर 1981 से 2015 तक के बीच का आंकड़ा देखें तो तक़रीबन 70 करोड़ लोग ग़रीबी से बाहर निकले थे इससे पहले लगभग दो अरब लोग ग़रीब थे. यह एक बहुत बड़ा सुधार वैश्वीकरण के कारण देखा गया था.

जैसा कि हमने पहले ही बात कर चुके है कि ग्लोबल वेल्यू चेन से सबसे ज़्यादा फायदा लगभग 80% अमीर राष्ट्रों को हुआ है. और बनाने वाले देशों की ग्लोबल वेल्यू चेन में हिस्सेदारी महज़ 5% ही है. समस्या यहां भी नहीं है क्योंकि ग्लोबल वेल्यू चेन पहले से ही कमज़ोर हो रही थी. समस्या तब आई जब इन अमीर राष्ट्रों में जो बड़ी वेल्यू आती थी वो सिर्फ़ एक तबक़े के पास सिमट कर रह गई. इस वजह से ओवर डिस्ट्रीब्यूशन की समस्या पैदा हुई . और इसका प्रमुख़ कारण जो हमारा इकोनामिक मॉडल बना उससे वेलफेयर स्टेट लगातार कमज़ोर होते चले गए. और अब कहा जाता है कि सबकुछ मार्केट ओरिएंटेड होना चाहिए. ऐसी स्थिति में लेबर प्रोटेक्शन कमज़ोर होता चला गया. आज यह एक बहुत बड़ी चुनौती उभरकर के सामने आती है कि कैसे हम वेलफेयर स्टेट की पुनर्स्थापना करे क्योंकि पुराना वेलफेयर स्टेट मज़बूत मध्यम वर्ग के टैक्सेशन पर खड़ा था. इन्हीं के टैक्सेशन पर यूरोप और अमेरिका के हेल्थ केयर और वेलफेयर प्रोग्राम चला करते थे लेकिन जब इनकी संख्य़ा कम होती गई तो वेलफेयर स्टेट अपने आप कमज़ोर होता चला गया. आज जब विकसित और विकासशील देशों में अमीर और ग़रीब के बीच में खाई इतनी गहरी हो जाती है कि वास्तव में वेलफेयर स्टेट चला पाना बहुत मुश्किल हो जाता है. डोनाल्ड ट्रंप भी अब टैक्स बढ़ाने की स्थिति में नहीं है, वह इसे कम करना चाहते हैं. इसको लेकर के एक बहुत बड़ी बहस दक्षिणपंथी और वामपंथी के बीच में चली आ रही है. अमेरिका और बाकी अन्य देशों में भी देखने को मिलेगा कि कैसे समाज के विभिन्न वर्गों के बीच में जो और समानताएं व्याप्त हैं उन्हें दूर किया जाए. क्योंकि कोविड-19 से यह खाई और भी बढ़ी है. इस दौर में जो नई औद्योगिक क्रांति सामने आ रही है, जिसमें सभी लोग वर्क फ्रॉम होम या ऑनलाइन एजुकेशन की बात करते हैं, इन सबसे खाई बढ़ती है, क्योंकि वर्क फ्रॉम होम उनके लिए है जो शिक्षित है जिनके पास कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है वह तो कंप्यूटर के सामने बैठकर काम कर सकते हैं, पर जो अकुशल या अर्ध-कुशल हैं या बेरोज़गार हैं उनके लिए वर्क फ्रॉम होम कर पाना संभव नहीं है. ऐसी स्थिति में वो राज्य की तरफ़ देखते हैं.

हम बात करते हैं पोस्ट इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन की, पर आज यह ज़रूरत आन पड़ी है कि कैसे इंडस्ट्रियल इकॉनमी को पुनर्जीवित करके समाज का जो तबका छूटता चला जा रहा है उसको फिर से जीवनदान दिया जा सके.

राष्ट्रवाद और भविष्य की राजनीति

राष्ट्रवाद समाधान नहीं है, समाधान कहीं और है. कहानियां बनाकर आप इससे कुछ ही समय तक काम चला सकते है. यह जो अवधारणा चल गई है कि आप कथानक बना बनाकर राष्ट्र को नियंत्रित तो कर सकते हैं पर यह वास्तव में न राष्ट्र के हित में है न राष्ट्रवासियों के हित में है. क्योंकि तथ्य आपके डेमोग्राफ़िक है और देश में रह रहे 1.3 अरब लोग हैं. अगर उनके पास किसी तरह का काम या नौकरी नहीं है तो आप कोई भी कथानक बना लीजिये,  तथ्य  वह हथौड़ा है जो किसी भी कथानक पर चोट करेगा . यह एक अस्थायी समाधान हैं जो कुछ ही समय तक चल सकता है .

हम बात करते हैं पोस्ट इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन की, पर आज यह ज़रूरत आन पड़ी है कि कैसे इंडस्ट्रियल इकॉनमी को पुनर्जीवित करके समाज का जो तबका छूटता चला जा रहा है उसको फिर से जीवनदान दिया जा सके.

राष्ट्रों का जीवनकाल लंबा होता है और जेनरेशन  यानि की पीढ़ियों का जीवनकाल छोटा होता है. तो राष्ट्र के जीवन काल में राष्ट्र के लिए क्या बेहतर है,  उसके उत्तर कुछ और होते हैं. और अगले चुनाव के लिए क्या प्रासंगिक है, उसके उत्तर कुछ और होते हैं.

इसके लिए सभी राज्यों को आगे आकर, मिल बैठकर समाधान ढूंढने होंगे क्योंकि दुनिया के पास जो समस्या है वह वास्तव में वैश्विक है. और यह राष्ट्र की सीमाओं में सीमित नहीं है. इस तरह से आज दुनिया में एक नए वैश्वीकरण का सृजन करना होगा और अंततः जो नेता इस नए वैश्वीकरण को जन्म देगा उन्हीं के नाम इतिहास के पन्नों पर लिखे जाएंगे, वही लोग याद रखे जाएंगे.

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