भारत में लगभग साढ़े 4 करोड़ महिलाएं ग़रीबी में गुजर बसर करती हैं. कम उम्र में शादी की समस्या से विश्व भर में 75 करोड़ महिलाएं प्रभावित हैं, जिनमें से भारत के लिए ये आंकड़ा 22 करोड़ है यानी विश्व भर के कुल आंकड़े का एक तिहाई है. भारत सरकार ने कई नीतियां लागू की हैं, जिनमें एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना और किशोर लड़कियों के लिए किशोरी शक्ति योजना और लड़कियों के भविष्य को बेहतर बनाने और उनके समग्र विकास और पहचान को सुनिश्चित करने के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना आदि शामिल हैं. इन प्रयासों के बावजूद, भारत में लड़कियों के प्रति असमानता एक मुद्दा बनी हुई है.
अभाव और वंचन से भरे वातावरण में किशोरियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिससे उन्हें अपने पूर्ण क्षमता तक पहुंचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. बहुत बड़ी संख्या में लड़कियां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित है, दुनिया भर में लगभग 13 करोड़ लड़कियां स्कूलों से दूर हैं.
अभाव और वंचन से भरे वातावरण में किशोरियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिससे उन्हें अपने पूर्ण क्षमता तक पहुंचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. बहुत बड़ी संख्या में लड़कियां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित है, दुनिया भर में लगभग 13 करोड़ लड़कियां स्कूलों से दूर हैं. इन लड़कियों के कुपोषण, कम उम्र में गर्भधारण और यौन संचारित रोगों जैसे स्वास्थ्य मुद्दों के शिकार होने की संभावनाएं भी कहीं ज़्यादा होती हैं. इसके अलावा, उनके साथ यौन हिंसा, घरेलू हिंसा समेत लैंगिक हिंसा का ख़तरा कहीं ज़्यादा होता है. उन्हें अक्सर रोज़गार के अवसरों की कमी से भी जूझना पड़ता है, जिससे ग़रीबी का दुश्चक्र और भी मज़बूत होता है.
कई नीतियों के साथ एक बड़ी चुनौती ये है कि इनमें 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है. हालांकि, कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने 'वर्ल्ड पल्स' जैसी अनूठी पहल शुरू की है, प्रौद्योगिकी के माध्यम से महिलाओं के लिए सामाजिक पूंजी के निर्माण करने और वैश्विक दक्षिण में सरकार के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने में योगदान दिया है. पाकिस्तान के बलूचिस्तान में, "रोशन - द कैमल ब्रिंग्स बुक्स" नामक एक पहल देश के सबसे पिछड़े और अभावग्रस्त इलाकों को ऊंट के ज़रिए एक चलित पुस्तकालय से जोड़ती है ताकि महामारी के कारण शिक्षा की हुई हानि की भरपाई की जा सके. ऐसी एक और पहल "द गर्ल इफेक्ट" (TGE) आंदोलन है, जिसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी संचालित दृष्टिकोण अपनाकर 'परिवर्तन चक्र' के माध्यम से बदलाव पैदा करना है.
बदलाव का एक चक्र
'द गर्ल इफेक्ट' (TGE) अभियान 2008 में नाइक फाउंडेशन द्वारा शुरू किया गया था, जो लड़कियों, ख़ासकर 12 वर्ष से कम उम्र की छोटी बच्चियों में निवेश को गरीबी को ख़त्म करने के एक प्रभावी तरीक़े के रूप में देखता है. किया है. TGE चार चरणों में परिवर्तन के माध्यम से किशोरियों के लिए ग़रीबी के दुश्चक्र को तोड़ने का लक्ष्य रखता है. ये चरण हैं:
- संसाधन और समर्थन के माध्यम से लड़कियों में निवेश करना
- कौशल और ज्ञान के माध्यम से लड़कियों को सशक्त बनाना
- कहानियों के माध्यम से उनकी आवाज़ों को फैलाना
- मूल समस्याओं के समाधान के माध्यम से व्यवस्थागत परिवर्तन लाना
पहल के माध्यम से लड़कियों के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करके पूरे समुदाय में एक लहर का संचार करना है और सभी के लिए एक बेहतर दुनिया का निर्माण करना है. ये उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों, विशेष रूप से ग़रीबी को ख़त्म करना (लक्ष्य एक), अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण (लक्ष्य 3), गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (लक्ष्य 4), और लिंग समानता (लक्ष्य 5).
विकासशील देशों में महिलाओं की अक्सर ऋण तक सीमित पहुंच होती है, साथ ही उनके कम वेतन वाली नौकरियों पर नियुक्त होने के कारण उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. महिलाएं अपने समय और संसाधन का 90 फीसदी हिस्सा सामाजिक उत्पादन से जुड़ी ज़िम्मेदारियों पर ख़र्च करती हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा महज़ 40 फीसदी है. द गर्ल इफेक्ट पहल 50 से ज़्यादा देशों में भेदभावपूर्ण लैंगिक मानदंडों और सामाजिक धारणाओं में सुधार लाने के लिए मीडिया, प्रौद्योगिकी, और सामुदायिक संपर्क के माध्यम से इन चुनौतियों से निपटने के लिए परियोजनाएं चला रहा है.
यूट्यूब पर "द गर्ल इफेक्ट: द क्लॉक इज टिकिंग" वीडियो लड़कियों को एचआईवी, कम उम्र में शादी और गर्भधारण से बचाने और रोज़गार के जरिए उन्हें ग़रीबी के दुश्चक्र से बाहर निकालने के लिए उनकी शिक्षा की वक़ालत करता है.
गर्ल नेटवर्क और गर्ल कनेक्ट इंटरनेट आधारित प्लेटफॉर्म हैं, जो यूट्यूब के माध्यम से ज्ञान और कौशल के सही उपयोग की शिक्षा देते हैं. यूट्यूब पर "द गर्ल इफेक्ट: द क्लॉक इज टिकिंग" वीडियो लड़कियों को एचआईवी, कम उम्र में शादी और गर्भधारण से बचाने और रोज़गार के जरिए उन्हें ग़रीबी के दुश्चक्र से बाहर निकालने के लिए उनकी शिक्षा की वक़ालत करता है. TGE मोबाइल प्लेटफ़ॉर्म 45 देशों में 26 भाषाओं में जानकारी प्रदान करता है और युवा महिलाओं को टेक्नोलॉजी इनेबल्ड गर्ल एंबेसडर्स (TEGA) के रूप में प्रशिक्षित करता है ताकि वे अपने साथियों के बीच रियल टाइम डेटा एकत्रित कर सकें और उनके जीवन अनुभवों से जुड़ी जानकारियां जुटा सकें. वर्तमान में यह पहल नाइजीरिया, रवांडा, इथोपिया, भारत और इंडोनेशिया में कार्यान्वित की जा रही है और इसका लक्ष्य ग़रीबी के दुश्चक्र को तोड़कर लड़कियों को सशक्त बनाना और उनके जीवन में सुधार लाना है.
इसी तरह, वर्ल्ड पल्स एक स्वतंत्र वैश्विक सामाजिक नेटवर्क है, जिसे महिलाओं के नेतृत्व में सामाजिक बदलाव के लिए स्थापित किया गया है. इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी के उपयोग के ज़रिए सामाजिक बदलाव को गति देना और शिक्षा, व्यापार और नीतिगत बदलाव के लिए नेटवर्क को स्थापित करना है. वर्ल्ड पल्स सह-शिक्षण के लिए एक सुविधाजनक और शिक्षाप्रद मंच के निर्माण के लिए क्लाउड-आधारित ऐप का उपयोग करता है, और इसके माध्यम से वैश्विक स्तर पर सामाजिक पूंजी का निर्माण करके महिलाओं की आवाज़ों को मजबूती प्रदान कर रहा है. इस पहल में 2003 में अपनी शुरुआत के बाद से अब तक दुनिया भर में लगभग 2 करोड़ महिलाओं को लाभान्वित किया है.
बांग्लादेश में स्कूली नामांकन के आंकड़े 1998 में 39 प्रतिशत से बढ़कर 2017 में 67 प्रतिशत हो गए. फिर भी, लगातार किए जा रहे प्रयासों के बावजूद, स्कूलों में लड़कियों के दाखिले और उनकी जीवनशैली पर बुरा प्रभाव पड़ा है.
इसी तरह, अरमान भारत में आधारित प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित एक गैर-लाभकारी मंच है, जो गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद स्वास्थ्य-देखभाल और आवश्यक सूचनाओं तक पहुंच में सुधार के माध्यम से मुख्य रूप से महिलाओं के मातृत्व स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करता है. अरमान का "टेक प्लस टच" दृष्टिकोण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल के प्रसार का लाभ उठाते हुए दूर-दराज इलाकों की महिलाओं को सरकारी योजनाओं और साझेदार गैर-सरकारी संस्थाओं से जोड़ता है. अरमान स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर भारत का सबसे बड़े मातृ संदेश कार्यक्रम, "किलकारी" और स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों को मोबाइल के माध्यम से प्रशिक्षण देने के लिए "मोबाइल अकादमी" को संचालित कर रहा है.
वैश्विक दक्षिण में गर्ल इफेक्ट की मौजूदगी
जैसा कि विश्व बैंक के आंकड़ों से स्पष्ट है, वैश्विक दक्षिण में लैंगिक असमानता की उच्च दर और तकनीकी बुनियादी ढांचे की ख़राब स्थिति महत्त्वपूर्ण बदलाव लाने का अवसर प्रदान करती है. नाइजीरिया में, नि:शुल्क मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के सरकारी प्रावधान की मौजूदगी के बावजूद 5 से 14 की उम्र के 1 करोड़ से ज़्यादा बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित हैं. लगातार बच्चियों के अपहरण के मामले आने के कारण 6 से 11 की उम्र के केवल 61 प्रतिशत बच्चे प्राथमिक स्कूल जाते हैं. शिक्षा के लिए सुरक्षित माहौल की सुविधा प्रदान करने के लिए द गर्ल इफेक्ट "गर्ल कनेक्ट" पहल के माध्यम दूरस्थ शिक्षा के लिए एक तकनीकी रूप से सहज कार्यक्रम चला रहा है. साल 2018 में अपनी शुरुआत के बाद से, इस प्लेटफॉर्म ने 44,000 से अधिक सेल फोन वितरित किए और प्रतिदिन किए गए फ़ोन संपर्कों में 32 फीसदी संपर्क प्रयास सुरक्षा से जुड़े मसलों और 4,076 संपर्क प्रयास बुनियादी जानकारियां हासिल करने के लिए थे.
बांग्लादेश में स्कूली नामांकन के आंकड़े 1998 में 39 प्रतिशत से बढ़कर 2017 में 67 प्रतिशत हो गए. फिर भी, लगातार किए जा रहे प्रयासों के बावजूद, स्कूलों में लड़कियों के दाखिले और उनकी जीवनशैली पर बुरा प्रभाव पड़ा है. जबकि बांग्लादेश में अभी भी महिलाओं को हिंसा और हमलों का सामना करना पड़ रहा है, TEGA द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़े एक सुरक्षित वातावरण के निर्माण और जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं. द फीमेल सेकेंडरी स्कूल एसिस्टेंस प्रोजेक्ट (FSSAP) ने 1990 के दशक से अब तक देश के 23 लाख छात्रों को लाभान्वित किया है, जिसमें से 66 फीसदी लाभार्थी लड़कियां रही हैं. इस परियोजना के तहत देश के चारों कोनों से 12 युवा लड़कियों को TEGA (टेक्नोलॉजी इनेबल्ड गर्ल एंबेसडर्स) के रूप में काम करने के लिए नियुक्त किया गया है ताकि महिलाओं की समस्याओं के बारे में सूचनाओं का संग्रहण किया जा सके.
भारत में द गर्ल इफेक्ट
भारत में द गर्ल इफेक्ट की परियोजनाएं उपलब्ध प्रौद्योगिकी ढांचे की मदद से किशोरियों की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं, जिनसे भारत की किशोरवय लड़कियों के जीवन के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियां जुटाने में मदद मिलती है. एकत्रित आंकड़ों की मदद से "छा जा" परियोजना और "बोल-बहन" चैटबॉट की नींव रखी गई है, जो लड़कियों को शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य-देखभाल और रिश्तों के बारे में आवश्यक सूचनाएं उपलब्ध कराते हैं. कुछ लोकप्रिय हस्तियां हिंदी भाषी समुदाय में बेहतर जीवन शैली और जागरूकता को बढ़ावा देने वाली इस सोशल मीडिया पहल का प्रचार करती हैं. ये सभी पहल बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के उद्देश्यों के साथ साम्यता रखती हैं, जिनके केंद्र में बालिकाओं की शिक्षा और समग्र स्वास्थ्य है. जिसके परिणामस्वरूप, 2022 में जन्म के समय लिंगानुपात (934) और शिशु मृत्यु दर (जो लगभग समान है) के आंकड़ों में सुधार हुआ है.
केंद्रीय बजट 2023-24 में स्थानीय स्तर पर भौतिक पुस्तकालयों की शुरुआत और क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री की उपलब्धता के माध्यम से राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी के प्रसार की योजना से बड़े पैमाने पर ऐसे ही एक मंच की स्थापना की उम्मीद जगी है.
भारत में स्कूल छूटने की दर 15.1 प्रतिशत से कहीं ज़्यादा हो सकती है क्योंकि महामारी के कारण शिक्षा में व्यवधान आया है. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के तहत समावेशी शिक्षा के लिए 2022 में शुरू किए गए STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथमेटिक्स) शिक्षा कार्यक्रम "गैर पारंपरिक आजीविका विकल्प" का उद्देश्य महिलाओं की उन क्षेत्रों में भागीदारी बढ़ाना है जहां उनका ऐतिहासिक रूप से प्रतिनिधित्व बेहद कम रहा है. जून 2022 में भारत सरकार ने 33 सैनिक स्कूलों में महिलाओं को भी प्रवेश देने की घोषणा की. हालांकि इन प्रयासों के बावजूद, भारत में महिलाओं के प्रति भेदभाव सापेक्षिक रूप से बहुत ज़्यादा है. TEGA की पहल उन लड़कियों को दूरस्थ शिक्षा सुविधाएं प्रदान कर रही है, जो स्कूल नहीं जा सकती हैं. केंद्रीय बजट 2023-24 में स्थानीय स्तर पर भौतिक पुस्तकालयों की शुरुआत और क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री की उपलब्धता के माध्यम से राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी के प्रसार की योजना से बड़े पैमाने पर ऐसे ही एक मंच की स्थापना की उम्मीद जगी है.
द गर्ल इफेक्ट के अलावा, कई अन्य कल्याणकारी पहलें बहु-हितधारक दृष्टिकोण के माध्यम से महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी को बढ़ाने के लिए लड़कियों की शिक्षा और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं. उदाहरण के लिए, के.सी महिंद्रा फाउंडेशन द्वारा चलाई जा रही पहल "नन्ही कली" Ei असिस्ट टेक्नोलॉजी के माध्यम भारत के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों को हर रोज़ शैक्षणिक सहायता उपलब्ध कराती है.
द गर्ल इफेक्ट जैसी इन-हैंड टेक्नोलॉजी महिलाओं को उचित महत्त्व देने से भारत जैसे देशों को उनकी वंचना को समझने में मदद कर रही हैं.
निष्कर्ष
विश्व स्तर पर, लोककल्याणकारी पहलें आवश्यक आधारभूत ढांचे के बिना महिलाओं को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से संपर्क जोड़ने में मदद करती हैं, जबकि सरकारी नीतियां आवश्यक व्यवस्थागत तंत्र के निर्माण करती हैं. निजी क्षेत्र की पहलों और सरकारी नीतियों को एक-दूसरे के पूरक के तौर लागू करने से मानव संसाधन विकास और मानव-कल्याण में गुणोत्तर बढ़ोतरी हासिल की जा सकती है.
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