1 सितंबर 2020 को जर्मनी ने इंडो-पैसिफिक के लिए नई नीति का ऐलान किया. ये उस वक़्त किया गया जब चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने यूरोपियन यूनियन (EU)-चीन के बीच शिखर वार्ता शुरू होने के दो हफ़्ते पहले अपना यूरोप दौरा ख़त्म किया. जर्मनी के पास इस वक़्त EU की अध्यक्षता है और ये ऐलान हैरान करने वाला है. 21वीं सदी में अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के निर्धारण में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र महत्वपूर्ण है. जर्मनी चिंतित है कि इंडो-पैसिफिक में अस्थिरता की वजह से उसके आर्थिक संबंध पर असर पड़ेगा. जर्मनी के वैश्विक व्यापार में एशिया का हिस्सा 20 प्रतिशत (420 अरब डॉलर) है. जर्मनी चाहता है कि वो इस कारोबार में यथार्थवादी नहीं काम-काजी दृष्टिकोण रखे. जर्मनी नियमों का समर्थन कर रहा है शक्ति का नहीं, एक देश के बदले बहुउद्देशीय निर्भरता का समर्थन करता है.
फ्रांस, जो ख़ुद को हिंद महासागर के देश के तौर पर देखता है, के बाद जर्मनी दूसरा देश है जिसने इंडो-पैसिफिक नीति बनाई है. जर्मनी चाहता है कि वो इस क्षेत्र में बाहरी संतुलन का हिस्सा बने लेकिन वो इसके लिए असली ताक़त नहीं आज़माना चाहता है. चीन के साथ ‘व्यापार के ज़रिए बदलाव’ की जर्मनी की नाकामी के बावजूद उसका मुख्य ज़ोर चीन के साथ आर्थिक साझेदारी को कायम रखने पर है. इस बीच में जर्मनी नियमों से थोड़ा हटकर इधर-उधर भी कोशिश कर रहा है जैसे हांगकांग के साथ साझेदारी. विश्लेषकों के मुताबिक़ जर्मनी के नये ऐलान में चीन के फैक्टर से ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीद की गई है. इंडो-पैसिफिक का मतलब ‘चीन प्लस’ है न कि चीन के ख़िलाफ़.
जर्मनी की नीति का मक़सद है EU इंडो-पैसिफिक रणनीति को प्रोत्साहन जिसका वो हिस्सा रहेगा. इसके ज़रिए वो निर्भरता कम करेगा, डिजिटिल कनेक्टिविटी बढ़ाएगा, दुष्प्रचार का मुक़ाबला करेगा. आधुनिक तकनीक, जिसके ज़रिए जर्मनी प्रतिस्पर्धा में बना रहेगा, जर्मनी की प्राथमिकता होगी.
जर्मनी इंडो-पैसिफिक के पूरे इलाक़े को हिंद और प्रशांत महासागर की ख़ूबियों वाला समझता है. समुद्री प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन, नियमों के तहत शासन, मानवाधिकार, माइग्रेशन, शिक्षा, संस्कृति और विज्ञान और तकनीक इसकी प्रभावशाली थीम है. सुरक्षा की भी भूमिका है लेकिन कम असरदार. जर्मनी की नीति का मक़सद है EU इंडो-पैसिफिक रणनीति को प्रोत्साहन जिसका वो हिस्सा रहेगा. इसके ज़रिए वो निर्भरता कम करेगा, डिजिटिल कनेक्टिविटी बढ़ाएगा, दुष्प्रचार का मुक़ाबला करेगा. आधुनिक तकनीक, जिसके ज़रिए जर्मनी प्रतिस्पर्धा में बना रहेगा, जर्मनी की प्राथमिकता होगी.
तैयारी
जर्मनी आसियान रीजनल फोरम का सदस्य नहीं है लेकिन डायलॉग पार्टनर के तौर पर इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) के साथ उसने बातचीत बढ़ाई है. पहली बार जर्मनी 2015 में इंडोनेशिया में हुई IORA के मंत्रियों की बैठक में शामिल हुआ. तब से जर्मनी ने अपने मंत्रालयों के भीतर सामंजस्य बनाना शुरू कर दिया. विदेश मंत्रालय ने जून 2015 में हिंद महासागर कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जहां तत्कालीन विदेश मंत्री फ्रैंक वॉल्टर स्टीनमायर ने हिंद महासागर पर क़रीबी नज़र रखने की बात कही. उनका भाषण काम-काज के मुद्दे पर था और सुरक्षा के बारे में काफ़ी कम कहा गया.
2017 में विश्लेषक गरिमा मोहन के एक रिसर्च पेपर में IORA को मज़बूत करने और भारत के साथ समुद्री सहयोग बढ़ाने की सलाह दी गई. नौसेना कूटनीति और EU आधारित ज़्यादा बातचीत का प्रस्ताव भी दिया गया. पेपर में कहा गया कि जर्मनी की नौसेना इंडो-पैसिफिक में क्षेत्रीय शक्ति नहीं है. 2017 में विदेश मंत्रालय ने अपने निदेशालयों को पुनर्गठित किया और एशिया-पैसिफिक के लिए नये निदेशालय का गठन हुआ. इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए बनी जर्मनी की एजेंसी GIZ ने आपदा प्रबंधन, समुद्री सुरक्षा और समुद्री अर्थव्यवस्था में IORA सचिवालय की मदद के लिए एक परियोजना की शुरुआत की. जर्मनी का इंडो-पैसिफिक नज़रिया पूरी तरह सरकारी दृष्टिकोण है जिसमें कई मंत्रालय शामिल हैं. शायद यही वजह है कि इसे पेश करने में ज़्यादा समय लगा.
हालांकि भारत के साथ जर्मनी ने हिंद महासागर का सिर्फ़ सरसरी तौर पर ज़िक्र किया है. जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल के 2019 के दौरे में दोनों पक्षों ने UNCLOS के तहत नेविगेशन की आज़ादी का समर्थन किया. अप्रैल 2017 में जर्मनी ने हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) के देशों में राजदूतों के पहले सम्मेलन का आयोजन कोलंबो में किया और भारत के तत्कालीन विदेश सचिव डॉ. एस. जयशंकर को इसमें संबोधन के लिए बुलाया. भारत के साथ रक्षा सहयोग भारत को पनडुब्बी देने की जर्मनी की कोशिशों पर निर्भर करता है. जर्मनी 2016 में ऑस्ट्रेलिया में इस तरह का एक कॉन्ट्रैक्ट पहले ही फ्रांस से हार चुका है. जहां दूसरी इंडो-पैसिफिक शक्तियों ने भारत के साथ 2+2 मंत्रिस्तरीय बातचीत शुरू कर दी है, वहीं जर्मनी सिद्धांत के तहत इससे परहेज करता है. वो शिखर वार्ता में भाग लेता है जिसमें कई मंत्री शामिल होते हैं. रक्षा मंत्री इसमें शामिल नहीं रहे हैं. इंडो-पैसिफिक में भारत का महत्व जर्मनी को मालूम है लेकिन वो सिर्फ़ काम-काजी सहयोग के इस्तेमाल से अपनी नीतियों को किस तरह असरदार बनाए, ये साफ़ नहीं है.
जर्मनी अपनी एशिया नीति को चीन से आगे तक ले जाना चाहता है और इसके लिए उसकी नज़र इंडो-पैसिफिक और उसमें शामिल लोकतांत्रिक देशों जैसे भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया पर है.
जर्मनी के इंडो-पैसिफिक दस्तावेज़ में भारत का ज़िक्र 57 बार है जबकि आसियान का 66 बार. जर्मनी के विदेश मंत्री हेइको मास ने इंडो-पैसिफिक नीति पर प्रेस से बात करते हुए कहा कि हिमालय और मलक्का बहुत दूर हैं लेकिन महत्वपूर्ण हैं. इस नीति की मुख्य थीम विविधता है लेकिन इसमें भारत या जापान से ज़्यादा आसियान के समर्थन पर ज़ोर दिया गया है. इस नीति के तहत व्यापार के मुख्य लक्ष्य वियतनाम, चीन और दक्षिण कोरिया हैं. ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते का भी ज़िक्र है. सितंबर 2019 में EU-जापान दीर्घकालिक आधारभूत ढांचा साझेदारी को BRI के विकल्प के तौर पर देखा गया लेकिन इसमें जर्मनी की अपनी भूमिका भी साफ़ नहीं है.
जर्मनी अपनी एशिया नीति को चीन से आगे तक ले जाना चाहता है और इसके लिए उसकी नज़र इंडो-पैसिफिक और उसमें शामिल लोकतांत्रिक देशों जैसे भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया पर है. जर्मनी की इंडो-पैसिफिक नीति साफ़ तौर पर चीन विरोधी नहीं है और अपनी नीति को चीन विरोधी नहीं होने देने के लिए जर्मनी वास्तव में सचेत है. जर्मनी इंडो-पैसिफिक में अपनी भूमिका बढ़ाने की कोशिश कर रहा है ताकि वो बढ़ते हलचल से अलग-थलग नहीं रहे.
आर्थिक नज़रिया
जर्मनी की नई क्षेत्रीय रणनीति व्यापार नीति के इर्द-गिर्द घूमती है जहां चीन के साथ बहुत ज़्यादा रणनीतिक बदलाव की क़ीमत चुकाने का जोखिम नहीं हो. अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से जर्मनी को परेशानी उठानी पड़ी है और वो अपने बाज़ार का विस्तार करना चाहता है. एशिया-पैसिफिक कॉन्फ्रेंस ऑफ जर्मन बिज़नेस एक पुराना संगठन है जो इलाक़े में आधिकारिक नीति की सुस्ती को दिखाता है लेकिन अब इसमें तेज़ी आई है. 2018 में इसका छमाही सम्मेलन जकार्ता में हुआ था और 2020 में इसके लिए टोक्यो को चुना गया जो मौजूदा दिलचस्पी को दिखाता है.
मुक्त व्यापार समझौते के मुद्दे पर जर्मनी और EU एक साथ हैं. मुक्त व्यापार समझौते किए जाते हैं लेकिन इसमें ज़्यादा मानक पर ज़ोर का विरोध किया जाता है. जिस उत्साह के साथ वियतनाम ने EU को गले लगाया, वैसा फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड ने नहीं किया. उन्हें इस बात का शक है कि EU तक पहुंच से अंदरुनी राजनीतिक और पर्यावरणीय मामलों की वजह से मांग ज़्यादा नहीं बढ़ेगी. कई आसियान देश मानते हैं कि EU असमानता वाली व्यापार नीति का पालन करता है जबकि EU को यकीन है कि उसकी व्यापार नीति उसके मूल्यों का उल्लंघन नहीं कर सकती. ऐसे में सवाल ये है कि आसियान को लेकर जर्मनी की व्यापार नीति कितना कुछ हासिल करेगी?
मुक्त व्यापार समझौते के मुद्दे पर जर्मनी और EU एक साथ हैं. मुक्त व्यापार समझौते किए जाते हैं लेकिन इसमें ज़्यादा मानक पर ज़ोर का विरोध किया जाता है. जिस उत्साह के साथ वियतनाम ने EU को गले लगाया, वैसा फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड ने नहीं किया.
फ्रांस ने सामरिक मुद्दों पर चर्चा के लिए भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक त्रिपक्षीय समूह बनाया है. जर्मनी ने इस तरह का कोई क़दम नहीं उठाया है. जर्मन वार्ताकार कहते हैं कि वो अपनी कंपनियों को रणनीतिक फ़ैसलों के लिए राह नहीं दिखा सकते हैं. इसलिए वो जर्मनी को बहुपक्षीय कोशिश करते नहीं देख सकते. ऐसा लगता है कि जर्मनी चीन के साथ अपने व्यापार समीकरण को उलटना नहीं चाहता है. यूरोप में यूके और फ्रांस में चीन के निवेश पर रोक लगाई गई और हुवावे के 5जी नेटवर्क के ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई लेकिन जर्मनी में ऐसा नहीं हुआ.
ये कितना आगे तक पहुंचेगा?
जर्मनी की नौसेना के पास 80 जहाज़ हैं जिनमें नौ युद्धपोत, पांच लड़ाकू जलपोत, दो सुरंग भेदी पोत, 10 माइन हंटर, छह पनडुब्बी, 14 गश्ती जहाज़ शामिल हैं. फ्रांस की नौसेना के पास 180 जहाज़ हैं जिनमें एक एयरक्राफ्ट करियर और परमाणु हथियार क्षमता शामिल हैं. जापान के पास 154 जहाज़ हैं जिनमें हेलीकॉप्टर करियर शामिल हैं और उसकी नौसेना दुनिया की 10 सबसे बड़ी नौसेना में शामिल है. जर्मनी इस लीग में शामिल नहीं है और वास्तविक रक्षा सहयोग क्षमता के मामले में वो पीछे है. इंडो-पैसिफिक नीति के तहत वो अपनी नौसेना को इलाक़े में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए कह सकता है और उन युद्ध अभ्यासों में भी भाग ले सकता है जिन्हें चीन नकारात्मक नहीं मानता है. जर्मनी की नौसेना का एक अधिकारी अब सिंगापुर के इन्फॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर में बैठता है. आने वाले दिनों में सिंगापुर और दूसरे साझेदारों जैसे भारत के साथ साइबर सुरक्षा पर सहयोग बढ़ने की उम्मीद है.
जर्मनी का लक्ष्य EU को अपने साथ रखकर इस इलाक़े में अपना असर बढ़ाना है. साथ ही यूरोप सामूहिक रूप से चीन के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करना चाहता है.
फ्रांस ने अपनी इंडो-पैसिफिक नीति का ऐलान 2019 में किया था. जर्मनी EU के साथ मिलकर इंडो-पैसिफिक पर रणनीति की योजना बना रहा है. जर्मनी का लक्ष्य EU को अपने साथ रखकर इस इलाक़े में अपना असर बढ़ाना है. साथ ही यूरोप सामूहिक रूप से चीन के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करना चाहता है. 2019 में EU ने चीन को “सामरिक प्रतियोगी” कहा था. ऐसा कहने का मतलब चीन के साथ व्यापार और तकनीकी मुक़ाबला था. चीन के साथ यूरोप की साझेदारी में वो गरमाहट नहीं है लेकिन ऐसा लग रहा है कि चीन की वफ़ादारी में लगी अपनी कंपनियों को जर्मनी रास्ता नहीं दिखा रहा है क्योंकि चीन उनके लिए बड़ा बाज़ार है.
एक ध्यान देने योग्य क़दम है UNCLOS को लेकर जर्मनी-यूके-फ्रांस का बयान और संयुक्त राष्ट्र महासचिव के लिए इसका महत्व. ये बयान जर्मनी की इंडो-पैसिफिक नीति के ऐलान से पहले आया. इसमें पंचाट के फ़ैसले और आसियान और चीन के बीच जारी कोड ऑफ कंडक्ट चर्चा की याद दिलाई गई है. जर्मनी EU के लिए आसियान के साथ जल्द साझेदारी चाहता है और फिर जर्मनी-आसियान भागीदारी को EU के स्तर पर चाहता है. मुक्त व्यापार समझौते के मामले मे उसे EU की बात माननी है और यहां तक कि भारत के मामले में भी वो फ़ैसला करने वाले की भूमिका में नहीं आना चाहता. नया इंडो-पैसिफिक दृष्टिकोण चीन को नाराज़ किए बिना इस इलाक़े में जर्मनी की ज़्यादा दिलचस्पी को दिखाता है. ये उसके व्यापार के रास्ते को सुरक्षित रखने की कोशिश है या आर्थिक हिस्सेदारी बढ़ाने की, ये तो वक़्त ही बताएगा.
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