यह संक्षिप्त विवरण Pakistan: The Unravelling श्रृंखला का हिस्सा है.
इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ (PTI) के सदस्यों और नेताओं के विरुद्ध व्यापक पैमाने पर कार्रवाई शुरू की गई है. पूर्व वित्त और योजना मंत्री असद उमर, पूर्व मानवाधिकार मंत्री शिरीन मज़ारी और पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी जैसे पार्टी के दूसरे और तीसरे पायदान के ज़्यादातर नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया है. इस बीच, न्यायपालिका ने PTI के नेताओं और कार्यकर्ताओं को तत्काल राहत देना जारी रखा हुआ है. इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मियांगुल औरंगज़ेब, जो कि पाकिस्तान के पहले सैन्य तानाशाह अयूब ख़ान के पोते और पीटीआई नेता उमर अयूब के क़रीबी रिश्तेदार हैं, गिरफ़्तार किए जाने वाले प्रत्येक पीटीआई नेता को जमानत देते रहे हैं. दरअसल, उन्होंने इमरान ख़ान और पूर्व सूचना मंत्री फवाद चौधरी को ब्लैंकेट बेल यानी पूरी तरह से जमानत देकर एक नया रास्ता खोल दी है. यह लगभग फवाद चौधरी को राष्ट्रपति जैसी छूट देने जैसा है, ज़ाहिर है कि राष्ट्रपति को उनके ख़िलाफ़ किसी भी मामले में गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता है.
इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ (PTI) के सदस्यों और नेताओं के विरुद्ध व्यापक पैमाने पर कार्रवाई शुरू की गई है.
अदालतों की तरफ से मिली इस राहत के बावज़ूद PTI चौतरफा घिरी हुई है. पाकिस्तान में सैन्य तानाशाही (पाकिस्तान में इसे 'एस्टैब्लिश्मैंट' कहा जाता है, इस शब्द का उपयोग सैन्य प्रतिष्ठान को संबोधित करने के लिए किया जाता है.) का दौर वापस आ रहा है. पीटीआई के नेताओं और समर्थकों के साथ ठीक वैसा ही बर्ताव किया जा रहा है, जैसा कि मुत्ताहिदा क़ौमी मूवमेंट (MQM) के सर्वोच्च नेता अल्ताफ़ हुसैन द्वारा लंदन में स्थित अपने ठिकाने से विवादास्पद भाषण दिए जाने के बाद उसके नेताओं और समर्थकों के साथ किया गया था. सीधे शब्दों में कहा जाए, तो जिस प्रकार से MQM को समाप्त कर दिया गया था, ठीक उसी तरह से इन दिनों पाकिस्तान में PTI को खत्म करने और "प्रोजेक्ट इमरान" को तहस-नहस करने की प्रक्रिया चल रही है. 9 मई की घटनाओं के बाद से देखा जाए तो पीटीआई के कुछ वरिष्ठ नेता पहले से ही पार्टी के साथ अपनी दूरी बना रहे हैं. कराची से नेशनल असेंबली के एक सदस्य महमूद मौलवी ने पार्टी छोड़ दी है. वहीं पाकिस्तान के राष्ट्रकवि मोहम्मद इक़बाल के पोते सांसद वालिद इक़बाल ने 9 मई को हुई तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाओं में शामिल लोगों पर आर्मी एक्ट के तहत मुक़दमा चलाने का समर्थन किया है. ऐसा लगता है कि फवाद चौधरी ने भी दो दिनों तक जेल में रहने के बाद अपने सुर बदल दिए हैं और सैन्य प्रतिष्ठानों के ख़िलाफ़ हिंसा की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया है. उम्मीद की जा रही है कि पीटीआई के दूसरे प्रमुख नेता भी आने वाले दिनों में पार्टी छोड़ देंगे, क्योंकि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई तेज़ हो गई है. इतना ही नहीं PTI के सदस्यों और समर्थकों पर सेना की सख़्त कार्रवाई भी शुरू हो चुकी है.
सरकार-सेना साथ-साथ
पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार, जिसने इमरान ख़ान और उनकी PTI को कुचलने के लिए न केवल सेना के साथ हाथ मिला लिया है, बल्कि उसने हिंसा की घटनाओं में शामिल रहे नागरिकों पर सैन्य अदालतों में मुक़दमा चलाने के, देश की वास्तविक सरकार यानी पाकिस्तानी सेना के कोर कमांडरों के फैसले पर भी अपनी मुहर लगा दी है. ऐसा नेशनल सिक्योरिटी कमेटी की बैठक के बाद किया गया था. सभी PTI विरोधी राजनीतिक दल देश के राजनीतिक परिदृश्य से इमरान ख़ान को समाप्त करने के लिए गिरोहबंदी कर रहे हैं और यहां तक कि सेना द्वारा जो कुछ भी किया जा रहा है, उसका न केवल समर्थन कर रहे हैं, बल्कि जश्न भी मना रहे हैं. लेकिन नागरिकों का कोर्ट मार्शल किया जाना अगर एक मानक बन जाता है, तो यह निश्चित है कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था, सेना के इस क़दम का समर्थन करने के अपने फैसले को लेकर बाद में ज़रूर पछताएगी. आज इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ पार्टी सेना के निशाने पर है, लेकिन वो दिन दूर नहीं है, जब प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ़ की अगुवाई वाली सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ (PMLN) और गठबंधन में सहयोगी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को भी पाकिस्तानी सेना के क्रोध और बदले का सामना करना पड़ेगा. अतीत में यह विदेश मंत्री बिलावल ज़रदारी के नेतृत्व में हो चुका है. शरीफ भाइयों यानी नवाज़ शरीफ़ और शाहबाज़ शरीफ़ ने अपने विरोधियों पर शिकंजा कसने के लिए जो क़ानून पारित किए थे, जब वो सत्ता में नहीं थे, तो उन्हें खुद उन क़ानूनों का शिकार होना पड़ा था. फिलहाल की बात करें तो यह इमरान ख़ान और पीटीआई हैं, जो कि निशाने पर हैं.
पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार, जिसने इमरान ख़ान और उनकी PTI को कुचलने के लिए न केवल सेना के साथ हाथ मिला लिया है, बल्कि उसने हिंसा की घटनाओं में शामिल रहे नागरिकों पर सैन्य अदालतों में मुक़दमा चलाने के, देश की वास्तविक सरकार यानी पाकिस्तानी सेना के कोर कमांडरों के फैसले पर भी अपनी मुहर लगा दी है.
पंजाब के कार्यवाहक सूचना मंत्री द्वारा जो चेतावनी जारी की गई है, जिसमें उन्होंने इमरान ख़ान पर 9 मई के हमलों में शामिल 30-40 आतंकवादियों को लाहौर में उनके ज़मान पार्क स्थित आवास में पनाह देने का आरोप लगाया गया था, उससे स्पष्ट हो जाता है कि सरकार और सेना इमरान ख़ान को बख़्शने के मूड में नहीं हैं. इमरान ख़ान को इन 'आतंकवादियों' को सौंपने के लिए 24 घंटे का समय दिया गया है, नहीं तो कार्रवाई की चेतावनी दी गई है. ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि पंजाब पुलिस 24 घंटे की समय सीमा बीत जाने के बाद इमरान ख़ान के घर पर छापेमारी के लिए पूरी तरह से तैयार है. दिलचस्प बात यह है कि पंजाब के सूचना मंत्री आमिर मीर पाकिस्तान के सेलिब्रिटी पत्रकार हामिद मीर के छोटे भाई हैं. दोनों भाइयों ने ही अक्सर पाकिस्तान में लोकतंत्र, नागरिक की आज़ादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बहुत बड़े रक्षक होने का दिखावा किया है. हैरानी की बात यह है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की पैरोकारी करने वाले तमाम दूसरे नेता पाकिस्तान सेना द्वारा इमरान ख़ान और पीटीआई के ख़िलाफ की जा रही सख़्त कार्रवाई के विरोध में अपनी आवाज़ बुलंद नहीं कर रहे हैं.
अस्तित्व की इस लड़ाई में एक तरफ इमरान ख़ान एवं पाकिस्तान की न्यायपालिका है और दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना और वहां की सरकार है.
अस्तित्व की इस लड़ाई में एक तरफ इमरान ख़ान एवं पाकिस्तान की न्यायपालिका है और दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना और वहां की सरकार है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि दोनों में से कौन जीतता है, लेकिन एक बात निश्चित है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र हार जाएगा और पाकिस्तानी सेना एक बार फिर से जीत जाएगी.
सुशांत सरीन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.
ये लेखक के निजी विचार हैं.
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