आज के दौर में जब अमेरिका से संवाद करने में चीन के नेतृत्व का दिलचस्पी न दिखाना सुर्ख़ियां बटोर रहा है. वहीं इसके उलट, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनातनी के बीच, चीन ने पिछले कुछ हफ़्तों के दौरान भारत के साथ एक के बाद एक उच्च स्तरीय आदान-प्रदान किए हैं. मार्च महीने की शुरुआत में चीन के विदेश मंत्री चिन गांग, G20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने भारत आए थे. इस दौरान चिन गांग और भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर के साथ भी सीमा विवाद पर द्विपक्षीय बैठक की थी. अप्रैल के आख़िर में चीन और भारत के सैनिक कमांडर्स के बीच 18वें दौर की वार्ता हुई थी. इसके कुछ ही दिनों बाद चीन के स्टेट काउंसलर और रक्षा मंत्री ली शांगफू, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेने भारत आए थे. दिल्ली में उन्होंने भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी मुलाक़ात की थी. मई में ही चीन के विदेश मंत्री चिन गांग एक बार फिर भारत आए, जब उन्हें SCO के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेना था. इस दौरान उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ भी अलग से बात की थी.
चीन के मीडिया और इंटरनेट में हो रही चर्चाओं से संकेत मिलता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव कम करने या शांत करने और चीन और भारत के बीच संबंध सामान्य करके देश की पश्चिमी सीमा पर ‘जल्दी से जल्दी’ स्थिरता लाने में चीन के लोग हड़बड़ी तो नहीं दिखा रहे हैं, मगर दिलचस्पी ख़ूब ले रहे हैं.
यहां इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि G20 और SCO, दोनों ही बैठकों में चीन के नेता वर्चुअल रूप से भाग ले सकते थे. जैसे SCO के रक्षा मंत्रियों की बैठक में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने किया था. हालांकि, चीन ने दूसरा विकल्प चुना. चीन द्वारा भारत से व्यापक संवाद की इस कोशिश के पीछे आख़िर क्या वजह हो सकती है?
चीन के मीडिया और इंटरनेट में हो रही चर्चाओं से संकेत मिलता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव कम करने या शांत करने और चीन और भारत के बीच संबंध सामान्य करके देश की पश्चिमी सीमा पर ‘जल्दी से जल्दी’ स्थिरता लाने में चीन के लोग हड़बड़ी तो नहीं दिखा रहे हैं, मगर दिलचस्पी ख़ूब ले रहे हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि तब चीन अपनी पूर्वी सीमा पर अमेरिका से मुक़ाबला करने पर पूरे मन से ध्यान केंद्रित कर सकेगा और ‘ताइवान में आज़ादी की समर्थक ताक़तों’ के सफ़ाए का काम कर सकेगा.
उच्च तकनीक, रक्षा और तीसरे देश में सहयोग के मामले में भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते सहयोग की ख़बरों पर प्रतिक्रिया देते हुए, चीन में चिंता जताने वाली आवाज़ें बुलंद होती जा रही हैं. इन लोगों का कहना है कि सीमा पर दोनों देशों के बीच का तनाव जितना खिंचेगा, जितनी देर तक टकराव बना रहेगा, उतना ही चीन विरोधी ताक़तें हालात का फ़ायदा उठाने की कोशिश करेंगी. जिससे चीन को आगे चलकर ‘बेवजह की मगर बड़ी दिक़्क़तों’ का सामना करना पड़ेगा. इस मामले में भारत को लेकर दो सबसे बड़ी चिंताएं इस प्रकार हैं: ताइवान में संकट की सूरत में भारत क्या रुख़ अपनाएगा; और, भारत की आबादी की शक्ति, कम लागत और विशाल बाज़ार को देखते हुए मैन्युफैक्चरिंग पावर के तौर पर चीन की जगह ले सकने की भारत की क्षमता. इसके अलावा चीन, भारत को एक अहम विदेशी बाज़ार के तौर पर भी देखता है और ये मानता है कि उसके बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव को आसानी से लागू करने में भारत की भूमिका अहम है. इसके साथ साथ चीन, दुनिया से डॉलर का दबदबा ख़त्म करने और अपनी मुद्रा RMB को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने में भी भारत की अहम भूमिका को समझता है. क्योंकि, भारत BRICS और SCO दोनों का सदस्य है.
चीन के उभार में भारत की भूमिका
चीन के कुछ पर्यवेक्षक ये ज़रूर मानते हैं कि भविष्य में चीन के उभार में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है. इस मामले में भारत सकारात्मक भूमिका निभाएगा या नकारात्मक, इसी बात से अमेरिका और चीन के मुक़ाबले का नतीजा भी निकलेगा. इसीलिए, चीन के रणनीतिकार ये उम्मीद कर रहे हैं कि अगर चीन और भारत के रिश्ते एक हद तक सामान्य बनाए जा सकें (उदाहरण के लिए चीन और भारत की सेनाओं या आला अधिकारियों के बीच संवाद की व्यवस्था को मज़बूत किया जा सके. जनता के बीच नियमित आदान-प्रदान बहाल किया जा सके, वग़ैरह...) या कम से कम ऐसा माहौल ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनाया जा सके, तो इससे अमेरिका की हिंद प्रशांत रणनीति की प्रगति की गति धीमी कर देगी और तब चीन के उभार को रोकने के लिए भारत में अमेरिका की दिलचस्पी को भी कम किया जा सकेगा. ऐसे में हैरानी नहीं होनी चाहिए कि चीन के आधिकारिक और अर्ध आधिकारिक संवादों में इस बात को रेखांकित किया जा रहा है कि चीन और भारत के बीच सीमा पर स्थिति ‘मोटे तौर पर सामान्य’ है.
चीन के कुछ पर्यवेक्षक ये ज़रूर मानते हैं कि भविष्य में चीन के उभार में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है.
हालांकि, चीन के लिए भारत के साथ संबंध सुधारने की बात करना जितना आसान है, असल में उसे हासिल करना उतना ही मुश्किल है. इस वक़्त चीन इस बात से ख़फ़ा है कि भारत ने संबंध सामान्य बनाने के लिए तीन शर्तें उसके सामने रखी हैं. 27 अप्रैल 2023 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत की तरफ़ से संबंध सामान्य बनाने के लिए इन तीन शर्तों का ज़िक्र किया था: 1) भारत और चीन के रिश्तों का विकास सीमा पर शांति और स्थिरता पर निर्भर है; 2) वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मतभेदों को दोनों देशों के बीच मौजूदा संधियों और तय उत्तरदायित्वों के दायरे में दूर किया जाना चाहिए; और 3) अगर चीन LAC पर तनाव कम करना चाहता है, तो उसे सीमावर्ती इलाक़ों से अपने सैनिक और हथियार पीछे लेने होंगे. चीन के सामरिक समुदाय के एक तबक़े ने संबंध सामान्य करने के एवज़ में ‘एक क़ीमत मांगने’ के भारत के दुस्साहस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और कहा कि भारत, चीन से फ़ायदा उठाना चाह रहा है और उस पर दबाव बना रहा है कि चीन सीमा विवाद पर उसे ‘रियायतें’ दे. चीन के मूल्यांकन के मुताबिक़, भारत ने ऐसा सख़्त रुख़ इस वजह से अपनाया हुआ है, क्योंकि आज अमेरिका हो या रूस या फिर ख़ुद चीन, सारे देश मौजूदा भू-राजनीतिक माहौल में सारी बड़ी ताक़तें भारत को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही हैं, ताकि अपने राष्ट्रीय हित साध सकें; आज भारत के पास इस ‘मोल-भाव की क्षमता’ है कि वो चीन के साथ सहयोग की क़ीमत बढ़ा सके.
ऐसे हालात में एक तरफ़ तो चीन में ऐसी आवाज़ें बुलंद होती जा रही हैं जो अपनी सरकार से मांग कर रही हैं कि वो LAC में डेपसांग प्लेन जैसे इलाक़ों में तुलनात्मक रूप से चीन की सैन्य बढ़त को गंवाए नहीं. इसके बजाय उनकी मांग है कि चीन की सरकार भारत को एक ‘सबक़ सिखा दे’ और भारत के मुक़ाबले अपनी सैन्य बढ़त में और इज़ाफ़ा करे और 1962 की तरह एक बार फिर से भारत को करारा तमाचा जड़ दे, ताकि सीमा विवाद को लेकर भारत अगले कुछ दशकों तक चीन को चुनौती देने का दुस्साहस न कर पाए. इस मामले में सबसे ताज़ा बयान चीन के विदेश मंत्री चिन गांग का ही रहा था, जब उन्होंने हाल ही के भारत दौरे के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर से कहा था कि वो ‘इतिहास से सबक़ लें’. चीन के जानकारों के मूल्यांकन के मुताबिक़ चिन गांग ने भारत को चेतावनी दी थी कि वो 1962 के युद्ध के सबक़ भूल न जाए. वहीं दूसरी तरफ, चीन के रणनीतिक जानकारों के बीच इस बात को लेकर भी चिंता बढ़ रही है कि भारत के ख़िलाफ़ 1962 जैसा सैन्य अभियान हालात को और भी ख़राब कर देगा. जिसके बाद भारत जैसा विशाल आकार, संभावनाओं और प्रभाव वाला देश स्थायी तौर पर चीन का दुश्मन बन जाएगा और ये बात चीन के दूरगामी विकास के लिहाज़ से ठीक नहीं होगी.
भारत को लेकर चीनी दुविधा
भारत को लेकर अपनी दुविधा से निपटने के लिए कूटनीतिक और सैन्य माध्यमों से भारत के साथ संवाद या वार्ता करने के साथ साथ चीन, एक मज़बूत ‘भू राजनीतिक माहौल’ बनाने में भी लगा है, ताकि भारत के साथ सीमा विवाद को ख़त्म किया जा सके. इस रणनीति के तहत, ख़बरों के मुताबिक़ चीन, भारत के पड़ोसियों जैसे कि पाकिस्तान, म्यांमार और दूसरे दक्षिणी और दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों के साथ संवाद बढ़ा रहा है और इन देशों से अपील कर रहा है कि वो चीन की पश्चिमी सीमा पर स्थिरता क़ायम करने में चीन की मदद करें, ख़ास तौर से भारत पर अलग अलग दिशाओं से दबाव डालें, जिससे चीन के प्रति भारत का रुख़ नरम पड़ जाए. भूटान के प्रधानमंत्री का विवादित इंटरव्यू, हाल के महीनों में एक के बाद एक चीन और पाकिस्तान के नेताओं के दौरे और हाल ही में चीन के विदेश मंत्री का म्यांमार दौरे को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. इसके पीछे चीन की सोच ये है कि वो भारत को संदेश दे कि वो अपनी पश्चिमी सीमा को स्थिर करने के बदले में भारत की मांगें मानने को मजबूर नहीं है और उसके पास भी भारत के ख़िलाफ़ आज़माने के लिए कई दांव हैं.
चीन, भारत के पड़ोसियों जैसे कि पाकिस्तान, म्यांमार और दूसरे दक्षिणी और दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों के साथ संवाद बढ़ा रहा है और इन देशों से अपील कर रहा है कि वो चीन की पश्चिमी सीमा पर स्थिरता क़ायम करने में चीन की मदद करें, ख़ास तौर से भारत पर अलग अलग दिशाओं से दबाव डालें, जिससे चीन के प्रति भारत का रुख़ नरम पड़ जाए.
कुल मिलाकर, भारत के सामरिक समुदाय के बीच चीन की तरफ़ से आ रहे मिले जुले संकेतों को लेकर कोई भ्रम की स्थिति नहीं रहनी चाहिए. एक तरफ़ तो चीन, भारत के नेताओं और समाज के साथ सक्रियता से संवाद करने का प्रयास कर रहा है. लेकिन वो वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हालात बदलने के लिए कोई ख़ास क़दम नहीं उठा रहा है. इसके बजाय चीन, भारत के लिए परेशानियां खड़ी करने के लिए भारत के पड़ोसियों से मदद मांग रहा है, ताकि ख़ुद उसकी पश्चिमी सीमा पर तनाव कम किया जा सके. ऐसे हालात में भारत का ख़ुफ़िया तंत्र, देश के उत्तर पूर्वी इलाक़ों और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में उत्पात खड़ा करने में चीन की बढ़ती दिलचस्पी को उजागर कर रहा है. ये भारत को लेकर चीन के दोमुहेंपन वाली रणनीति का ही हिस्सा है. भविष्य में चीन के साथ किसी भी संवाद के दौरान भारत को चाहिए कि वो इन बातों का ख़ास तौर से ध्यान रखे.
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