Author : Sushant Sareen

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 25, 2023 Updated 0 Hours ago

ज़ाहिर है कि इस वक़्त पाकिस्तान, चुनौतियों के जिस बवंडर से घिरा है, उससे निकलने की उम्मीद फिलहाल तो नहीं दिखाई दे रही है.

पाकिस्तान: मौलाना मुंसिफ़ों और फ़ौज के बीच फंसा इस्लामिक देश!

ये लेख हमारी सीरीज़, पाकिस्तान: दि अनरैवेलिंग का ही एक भाग है.


जैसी उम्मीद थी, 15 मई का दिन पाकिस्तान में ख़बरों के तूफ़ान और सियासी उथल-पुथल से भरा हुआ था. मौलाना फ़ज़लुर्रहमान के मुजाहिदों की फ़ौज, अंसार उल इस्लाम ने पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट पर धावा बोला. मौलाना के लड़ाकों ने बैरीकेड तोड़ डाले और वो अदालत परिसर में घुस गए. 1997 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट पर हमला बोला था, तो माननीय न्यायाधीशों को अपनी जान बचाने के लिए कोर्ट से भागना पड़ा था. मगर, इस बार मौलाना के मुजाहिदों ने अपनी ताक़त तो दिखाई. मगर उन्होंने हिंसा या तोड़-फोड़ करने से परहेज़ किया. पाकिस्तान के सत्ताधारी गठबंधन (PDM) में शामिल दूसरे दल भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. सुप्रीम कोर्ट के सामने कंटेनर को मंच बनाकर कुछ तीखी तक़रीरें भी की गईं, जिनके निशाने पर पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश (CJP) उमर अता बंदियाल और उनकी मंडली वाले दूसरे जज थे. दिन भर विरोध प्रदर्शन करने के बाद शाम को मौलाना फ़ज़लुर्रहमन ने धरना ख़त्म करने का एलान किया, मगर इस धमकी के साथ कि ज़रूरत पड़ी, तो उनके समर्थक दोबारा सुप्रीम कोर्ट पर चढ़ाई कर सकते हैं.

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी इमरान ख़ान के पक्के मुरीद हैं. लेकिन, पाकिस्तान की संसद के इरादे बिल्कुल साफ़ हैं. अवामी असेंबली, सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस और दूसरे ‘इंसाफ़ियों’ को करारा जवाब देने से पीछे हटने को तैयार नहीं है.

जिस वक़्त मौलाना फज़लुर्रहमान और उनके समर्थकों ने सुप्रीम कोर्ट पर चढ़ाई की थी, उस वक़्त का पाकिस्तान की संसद यानी अवामी एसेंबली की बैठक भी चल रही थी. वहां पर भी सांसदों ने चीफ जस्टिस बंदियाल और उनके साथी जजों को अपने ग़ुस्से का निशाना बनाया, और नेशनल असेंबली ने तय किया कि वो सुप्रीम जुडिशियल काउंसिल में चीफ जस्टिस के ख़िलाफ़ अपील दायर करेंगे. अभी ये साफ़ नहीं है कि ये याचिका किस तरह दाख़िल की जाएगी. क्योंकि ये संभावना न के बराबर है कि ये अपील पाकिस्तान के राष्ट्रपति के ज़रिए दायर की जा सके. क्योंकि, पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी इमरान ख़ान के पक्के मुरीद हैं. लेकिन, पाकिस्तान की संसद के इरादे बिल्कुल साफ़ हैं. अवामी असेंबली, सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस और दूसरे ‘इंसाफ़ियों’ (इमरान ख़ान के पक्ष में भेदभाव करने वाले जजों) को करारा जवाब देने से पीछे हटने को तैयार नहीं है. ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के जज साहिबान पर सुप्रीम कोर्ट के सामने सड़क पर उतरने की ताक़त की नुमाइश और नेशनल असेंबली के भीतर ज़बरदस्त तक़रीरों का कुछ तो असर हुआ है. ख़बरों के मुताबिक़, चीफ़ जस्टिस उमर अता बंदियाल ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में अंसार उल इस्लाम के कार्यकर्ताओं के दाख़िल होने को लेकर चिंता जताई और कहा कि जिस तरह सियासी ताक़त का इस्तेमाल किया जा रहा है, वो ‘चिंता की बात’ है. सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह सरकार को हिंसा, आग़ज़नी और लूट-पाट करने के ज़िम्मेदार इमरान ख़ान के समर्थकों पर कार्रवाई करने से रोका और उसके हाथ बांध दिए. उसके बाद चीफ़ जस्टिस का ये बयान एक मज़ाक़ ही लगा जब उन्होंने कहा कि हुकूमत हिंसा के आगे ‘असहाय’ है, और वो मुल्क की संपत्तियों, संस्थानों और ठिकानों को जलाए जाने से रोक नहीं सकी.

इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट के जजों ने शहबाज़ सरकार के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना की कार्रवाई करने से परहेज़ किया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावुजूद पाकिस्तान की सरकार ने पंजाब सूबे में चुनाव कराने के लिए संसाधन और सुविधाएं मुहैया नहीं कराए हैं. ये टकराव का मुद्दा हो सकता था, मगर ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के न्यायाधीशों ने हालात को और बिगड़ने से रोकने के लिए ही हुकूमत को रियायत दे दी. अब सुप्रीम कोर्ट ने ये क़दम इसलिए उठाया, ताकि  1997 की घटना दोहराई न जाए और कहीं अंसार उल इस्लाम के कार्यकर्ता अदालत पर हमला न बोल दें. या फिर शहबाज़ हुकूमत को ये सोचकर रियायत दे दी कि अपने फ़रमान को लागू कराने की हैसियत तो ख़ुद सुप्रीम कोर्ट में नहीं है. इस बात का अंदाज़ा लगाना आसान नहीं है. 15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया और चुनाव कराने के मामले की सुनवाई 23 मई तक टाल दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और विपक्ष से ये अपील भी की कि वो आपस में बातचीत करके इस सियासी संकट का कोई समाधान निकालें. ऐसा समाधान, जिससे सुप्रीम कोर्ट को ख़ुद को चुनाव कराने के विवाद से अलग होने में मदद मिल सके. जबकि, इस मामले में ख़ुद सुप्रीम कोर्ट ने ही अपने पैरों में बेड़ियां जकड़ ली हैं. 23 मई को जब इस मामले की फिर से सुनवाई हुई, तो सुप्रीम कोर्ट में क़ानूनी नुक्तों पर ही बहस चलती रही और अदालत ने अगली तारीख़ लगा दी.

कोर कमांडर्स कॉन्फ्रेंस

इसी बीच, पिछले हफ़्ते रावलपिंडी में पाकिस्तानी फ़ौज के मुख्यालय में कोर कमांडर्स की एक स्पेशल कांफ्रेंस आयोजित की गई. फ़ौज के आला अफ़सरों की ये बैठक उन अफ़वाहों के बीच हुई, जिनमें कहा जा रहा था कि पाकिस्तानी फ़ौज इमरान समर्थक और इमरान विरोधी  जनरलों और फ़ौजियों के बीच बंट गई है. इमरान ख़ान के विरोधी जनरल ही मौजूदा आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर का समर्थन कर रहे हैं. इस बैठक का मक़सद शायद मुल्क को ये संदेश देना था कि पाकिस्तानी फ़ौज अपने प्रमुख के पीछे एकजुट होकर खड़ी है. ये बात सच है या नहीं, इसका अंदाज़ा तो अगले कुछ दिनों में हो ही जाएगा. लेकिन, कोर कमांडर्स की कांफ्रेंस के बाद जो बयान जारी किया गया, उसने उन ख़बरों पर मुहर लगा दी कि फ़ौज, 9 मई को इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद अपने ठिकानों पर ‘हमला करने वालों, उन्हें भड़काने वालों और साज़िश की योजना बनाने वालों’ के ख़िलाफ़ फ़ौजी अदालतों में मुक़दमा चलाने की तैयारी कर रही है. पाकिस्तानी फ़ौज ने ये बात बिल्कुल साफ़ कर दी, अब फ़ौजी ठिकानों पर हमला करने वालों से कोई रियायत नहीं बरती जाएगी. पाकिस्तानी सेना ने अपने बयान में कहा कि जो लोग फौज़ के ठिकानों पर हमला करने के मुजरिम हैं, उनके ऊपर आर्मी एक्ट और ऑफ़िशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत मुक़दमा चलाया जाएगा.

पाकिस्तानी फ़ौज ने ये बात बिल्कुल साफ़ कर दी, अब फ़ौजी ठिकानों पर हमला करने वालों से कोई रियायत नहीं बरती जाएगी. पाकिस्तानी सेना ने अपने बयान में कहा कि जो लोग फौज़ के ठिकानों पर हमला करने के मुजरिम हैं, उनके ऊपर आर्मी एक्ट और ऑफ़िशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत मुक़दमा चलाया जाएगा.

इस एलान का विरोध तो पाकिस्तान में वो लोग भी कर रहे हैं, जो इमरान ख़ान के विरोधी हैं. उनका कहना है कि देश के असैन्य नागरिकों के ख़िलाफ़ इन क़ानूनों के तहत मुक़दमा चलाने का मतलब, मुल्क में मॉर्शल लॉ लगने जैसा होगा और इससे आम पाकिस्तानी नागरिकों के मूल अधिकारों और मानव अधिकारों का उ्लघन होगा. पाकिस्तान में ऐसी अटकलें भी ज़ोरों पर हैं कि फ़ौज, इमरान ख़ान का कोर्ट मार्शल करने के बारे में भी सोच रही है. ख़ुद इमरान ख़ान ने भी ट्विटर पर एक लंबा थ्रेड लिखकर ख़ुद के फिर से गिरफ़्तार होने और अपने ऊपर मुल्क से ग़द्दारी करने का मुक़दमा चलाने की आशंका जताई थी. फ़ौज के नज़रिए से देखें, तो कोर कमांडर्स की बैठक में जो फ़ैसला लिया गया, उससे फ़ौज के भीतर उन अफ़सरों और सैनिकों को साफ़ तौर पर चेतावनी दे दी गई है, जिनके बारे में ये माना जा रहा है कि वो सेना की गोपनीय जानकारियां इमरान ख़ान के समर्थकों को लीक कर रहे हैं और इमरान ख़ान के ये समर्थक पश्चिमी देशों- यानी अमेरिका, ब्रिटेन या कनाडा में बैठकर- फ़ौज के ख़िलाफ़ मुहिम चला रहे हैं. अगर पाकिस्तानी फ़ौज बेहद कड़े आर्मी एक्ट के तहत आम नागरिकों पर मुक़दमा चलाएगी, तो सवाल ये है कि पाकिस्तान की अदालतें ख़ामोश रहेंगी या वो इस मामले में दख़ल देंगी? समस्या ये है कि चीफ जस्टिस बंदियाल और उनकी मंडली का विरोध करने वाले जज भी आम नागरिकों के कोर्ट मार्शल का समर्थन शायद ही करें. ज़ाहिर है कि इस वक़्त पाकिस्तान, चुनौतियों के जिस बवंडर से घिरा है, उससे निकलने की उम्मीद फिलहाल तो नहीं दिखाई दे रही है.

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