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चीन के साथ अमेरिका के संबंध मानवाधिकार की भूमि पर ही पनप सकते हैं और दोनों देशों के बीच यह एक मुख्य़ घटक रहेगा.
अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन का चुनाव उस वक्त हुआ है, जब मध्य एशियाई देश राजनीतिक और आर्थिक सुधारों के माध्यम से विश्व के लिए अपने द्वार खोल रहे हैं, और वह मुख्य़ रूप से अफ़ग़ानिस्तान, चीन, शासन, कानून के शासन और मानव अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करेंगे. ट्रंप के विपरीत, बाइडेन ने शिनजियांग प्रांत में वीगर मुसलमानों के मुद्दे पर खुल कर बात की है. उन्होंने इस मुद्दे पर चीन की आलोचना की और ज़ोर देकर कहा है, कि चीन के साथ अमेरिका के संबंध मानवाधिकार की भूमि पर ही पनप सकते हैं और दोनों देशों के बीच यह एक मुख्य़ घटक रहेगा.
अपने पूर्ववर्ती के विपरीत, बाइडेन को अमेरिका की मध्य एशियाई नीति के लिए एक दृष्टिकोण तैयार करना होगा. वीगर समुदाय के प्रति चीन के व्यवहार को साधते हुए, उन्हें मध्य एशियाई गणराज्यों के नेताओं का विश्वास भी हासिल करना होगा.
अपने पूर्ववर्ती के विपरीत, बाइडेन को अमेरिका की मध्य एशियाई नीति के लिए एक दृष्टिकोण तैयार करना होगा. वीगर समुदाय के प्रति चीन के व्यवहार को साधते हुए, उन्हें मध्य एशियाई गणराज्यों के नेताओं का विश्वास भी हासिल करना होगा.
हालांकि, ट्रंप की विदेश नीति में “एशिया का दिल” कहे जाने वाले मध्य एशिया के लिए दृष्टिकोण की कमी थी, उन्होंने फरवरी 2020 में सी5 + 1 की उच्च स्तरीय वार्ता में भाग लेने के लिए गृहमंत्री माइक पॉम्पिओ के मध्य एशिया दौरे के बाद चीन को लेकर अमेरिका की रणनीति में फेरबदल करते हुए, चीन को चित्त करने की कोशिश की थी. इसके चलते, अमेरिका ने संप्रभुता, आर्थिक समृद्धि, मानवाधिकारों और कानून के शासन को आगे बढ़ाने की कोशिशों का समर्थन करने वाली रणनीति अपनाई जो साल 2025 तक लागू रहेगी.
ट्रंप प्रशासन मध्य एशियाई देशों को “शिकायती राज्यों” की तरह देखने से इतर दृष्टिकोण नहीं अपना पाया, और इस बात को देखने में विफल रहा कि यह मध्य एशियाई क्षेत्र, अफ़ग़ानिस्तान में शांति व समृद्धि में कई तरह की भूमिका निभा सकता है और चीन पर दबाव बनाने में अमेरिका का साथ दे सकता है.
पॉम्पिओ ने वीगर मामले का उपयोग करने की कोशिश की और यहां तक कि मध्य एशियाई देशों के नेताओं से कहा कि “चीन से सावधान रहें”. हालांकि, ट्रंप प्रशासन मध्य एशियाई देशों को “शिकायती राज्यों” की तरह देखने से इतर दृष्टिकोण नहीं अपना पाया, और इस बात को देखने में विफल रहा कि यह मध्य एशियाई क्षेत्र, अफ़ग़ानिस्तान में शांति व समृद्धि में कई तरह की भूमिका निभा सकता है और चीन पर दबाव बनाने में अमेरिका का साथ दे सकता है.
बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका ईरान के साथ 2015 के परमाणु समझौते में फिर से शामिल हो सकता है. यह समान विचारधारा वाले देशों के लिए इस क्षेत्र में, बहुपक्षीय कूटनीति की शुरुआत करेगा. भारत इस तरह की बहुपक्षीय कूटनीति में न केवल बीजिंग का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, बल्कि इस क्षेत्र में कट्टरपंथी अतिवाद, अवैध नशीले पदार्थों की तस्करी, गलत सूचनाओं के प्रसार और आतंकवाद का मुकाबला करके स्थिरता स्थापित करने में भी मदद कर सकता है.
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Ayjaz Wani (Phd) is a Fellow in the Strategic Studies Programme at ORF. Based out of Mumbai, he tracks China’s relations with Central Asia, Pakistan and ...
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