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अब अमेरिका ने भी अफ़्रीका के साथ अपने जुड़ावों में नई जान फूंकने का मन बना लिया है. ऐसे में साफ़ है कि अंतरराष्ट्रीय फ़लक पर अफ़्रीका को कतई नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
पिछले महीने अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने सब-सहारा क्षेत्र के तीन देशों केन्या, नाइजीरिया और सेनेगल का दौरा किया. ब्लिंकेन की यात्रा से अफ़्रीका महादेश को लेकर अमेरिका की नई नीतियों का ख़ुलासा हुआ. नाइजीरिया में ब्लिंकेन के संबोधन से अफ़्रीका के प्रति अमेरिकी नीतियों में आए बदलाव के संकेत मिले. अफ़्रीका को लेकर अमेरिकी नज़रिए और जुड़ावों के तौर-तरीक़ों में पूर्ववर्ती ट्रंप प्रशासन की तुलना में साफ़ तौर से बदलाव आया है. दरअसल बाइडेन के नेतृत्व वाला अमेरिकी प्रशासन अपनी विदेश नीति का फ़ोकस सिर्फ़ चीन पर ही नहीं रखना चाहता. ब्लिंकेन के भाषण में इस बात की झलक साफ़-साफ़ दिखाई दी. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अफ़्रीका को अपने भले-बुरे की पहचान करने और उस हिसाब से फ़ैसले लेने का पूरा हक़ है. ब्लिंकेन ने अफ़्रीका में चीन के साथ आपसी खींचतान वाली प्रतिस्पर्धा में उलझने की बजाए अफ़्रीकी देशों के साथ आपसी हितों वाली भागीदारी बढ़ाने पर ज़ोर दिया.
नई नीति के तहत अफ़्रीका के साथ अपने जुड़ावों को अमेरिका पांच प्रमुख क्षेत्रों में आगे बढ़ाएगा. इनमें कोविड-19 महामारी से निपटना, व्यापार में बढ़ोतरी, लोकतंत्र को बढ़ावा देना और नई जान फूंकना, जलवायु परिवर्तन से निपटना और समान भागीदारी पर ज़ोर देते हुए शांति और स्थिरता सुनिश्चित करना शामिल हैं.
नई नीति के तहत अफ़्रीका के साथ अपने जुड़ावों को अमेरिका पांच प्रमुख क्षेत्रों में आगे बढ़ाएगा. इनमें कोविड-19 महामारी से निपटना, व्यापार में बढ़ोतरी, लोकतंत्र को बढ़ावा देना और नई जान फूंकना, जलवायु परिवर्तन से निपटना और समान भागीदारी पर ज़ोर देते हुए शांति और स्थिरता सुनिश्चित करना शामिल हैं. अफ़्रीका के प्रति अमेरिकी नीति में ये बदलाव बड़े ही माकूल वक़्त पर आया है. आंकड़ों पर ग़ौर करें तो चीन और अफ़्रीका के बीच कारोबार में 2021 के पहले सात महीनों में 40.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. दोनों पक्षों के बीच का कारोबार इस वक़्त 139.1 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है. साल 2020 में कोविड-19 से पैदा हुई अनिश्चितताओं के चलते ‘बड़े आकार’ वाले निवेश में संभावित गिरावट की अटकलों के बावजूद अफ़्रीका में चीन द्वारा किया गया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 4.2 अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. चीन अपने तौर-तरीक़ों से लगातार ख़ुद को अफ़्रीका में सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय किरदार साबित करता आ रहा है. अब अमेरिका ने भी अफ़्रीका के साथ अपने जुड़ावों में नई जान फूंकने का मन बना लिया है. ऐसे में साफ़ है कि अंतरराष्ट्रीय फ़लक पर अफ़्रीका को कतई नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
अपने अफ़्रीका दौरे में ब्लिंकेन ने अफ़्रीकी नेताओं और तमाम संबंधित पक्षों में भरोसा जगाने का पूरा प्रयास किया. ब्लिंकेन ने ज़ोर देकर कहा कि “अफ़्रीका अब भूराजनीति के मंच का बड़ा खिलाड़ी बन गया है. लिहाज़ा अब उसे भूराजनीति के औज़ार की तरह इस्तेमाल करने की क़वायद बंद होनी चाहिए. अफ़्रीका को उसका वाजिब दर्जा मिलना चाहिए.” निश्चित रूप से ये पूरा घटनाक्रम सकारात्मक और स्वागतयोग्य है. हालांकि अफ़्रीका में अमेरिका के भावी जुड़ावों को कथनी की बजाए करनी के हिसाब से आंका जाएगा. ये देखना होगा कि अमेरिका की नीति में आए बदलाव से अफ़्रीका में सचमुच ठोस नतीजे देखने को मिलते हैं या नहीं. केवल बड़ी-बड़ी घोषणाएं और चीन के प्रति शिगूफ़े में नरमी दिखाना ही काफ़ी नहीं है. दरअसल अमेरिका को पूरे अफ़्रीका महादेश के प्रति अपने नज़रिए में बदलाव लाना होगा. फ़िलहाल अफ़्रीका को लेकर अमेरिका का दृष्टिकोण टुकड़ों में बंटा हुआ है. अमेरिकी रुख़ के तहत उत्तर और सब-सहारा अफ़्रीका के बीच एक कृत्रिम विभाजन देखने को मिलता है. अमेरिका को मौजूदा तौर-तरीके बदलने होंगे और समूचे अफ़्रीका को एक ही इलाक़े के तौर पर देखना होगा.
अफ़्रीका को लेकर अमेरिका का दृष्टिकोण टुकड़ों में बंटा हुआ है. अमेरिकी रुख़ के तहत उत्तर और सब-सहारा अफ़्रीका के बीच एक कृत्रिम विभाजन देखने को मिलता है. अमेरिका को मौजूदा तौर-तरीके बदलने होंगे और समूचे अफ़्रीका को एक ही इलाक़े के तौर पर देखना होगा.
ब्लिंकेन ने अपनी यात्रा की शुरुआत केन्या की राजधानी नैरोबी से की. केन्या के नेताओं से उनकी तमाम मुद्दों पर बात हुई. इनमें कोविड-19 महामारी, जलवायु परिवर्तन और क्षेत्रीय सुरक्षा- ख़ासतौर से इथियोपिया, सोमालिया और सूडान जैसे देशों में चल रही मध्यस्थता प्रक्रिया- से जुड़े मुद्दे छाए रहे. केन्या के बाद उनका अगला पड़ाव नाइजीरिया था. यहां उन्होंने 2.17 अरब अमेरिकी डॉलर के समझौते पर दस्तख़त किए. इस विकास सहायता समझौते की मियाद 5 साल की है. नाइजीरिया में ब्लिंकेन ने राष्ट्रपति बाइडेन की एक दिली ख़्वाहिश का भी ज़िक्र किया. उन्होंने ख़ुलासा किया कि राष्ट्रपति बाइडेन अमेरिका और अफ़्रीकी नेताओं के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करना चाहते हैं. हालांकि इसको लेकर कोई पक्की तारीख़ की चर्चा नहीं की गई. सेनेगल में अमेरिका के विकास वित्त निगम ने Institute Pasteur of Dakar को 33 लाख डॉलर का शुरुआती अनुदान मुहैया कराया. इसके साथ ही यूनाइटेट स्टेट्स एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) ने भी 1.48 करोड़ अमेरिकी डॉलर की रकम से एक नए कार्यक्रम का एलान किया. इस पहल का मकसद कारोबार को बढ़ावा देना और ज़रूरी वित्त हासिल करने में युवा महिलाओं और उद्यमियों की मदद करना है.
इसमें कोई शक़ नहीं कि अफ़्रीका महादेश एक बड़े बदलाव के दौर से गुज़र रहा है. अफ़्रीका में युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. वहां की आबादी दिन ब दिन घनी होती जा रही है. लोग मोबाइल के ज़रिए एक-दूसरे से जुड़ते जा रहे हैं और शिक्षा का स्तर भी बढ़ रहा है. अनुमानों के मुताबिक 2050 तक पृथ्वी की 25 फ़ीसदी आबादी अफ़्रीका में निवास कर रही होगी. मोबाइल फ़ोन की बढ़ती पहुंच और सस्ते इंटरनेट की वजह से आने वाले समय में अफ़्रीकी महादेश का दुनिया से जुड़ाव भी बढ़ता जाएगा. 1 जनवरी 2021 को अफ़्रीका महादेश मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) समझौते का आग़ाज़ हुआ. इसके तहत वस्तुओं और सेवाओं के कारोबार के ज़रिए कारोबारी लागत में कमी लाने में मदद मिलेगी. साथ ही इससे अफ़्रीका को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के साथ जुड़ने में भी सहूलियत होगी.
अफ़्रीकी महादेश के पास संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तीन ग़ैर-स्थायी सीटें हैं. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र महासभा में अफ़्रीकी देशों की तादाद सबसे ज़्यादा है
अफ़्रीकी महादेश के पास संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तीन ग़ैर-स्थायी सीटें हैं. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र महासभा में अफ़्रीकी देशों की तादाद सबसे ज़्यादा है. भले ही जलवायु परिवर्तन से जुड़े कारक पैदा करने में अफ़्रीका महादेश का योगदान सबसे कम है लेकिन बढ़ते तापमान के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों की मार झेलने के हिसाब से अफ़्रीका की हालत सबसे नाज़ुक है. सभी ये बात मानते हैं कि अगर अफ़्रीका में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ा टिकाऊ ढांचा खड़ा हो जाता है तो आगे चलकर इबोला और कोविड-19 जैसे संक्रामक रोगों और महामारियों के प्रसार को धीमा करने में काफ़ी मदद मिलेगी. कई मायनों में दुनिया की तमाम साझा चुनौतियों से निपटने की क़वायद में अफ़्रीका महादेश की भूमिका अटूट है.
अब तक अफ़्रीका के 43 देशों को अमेरिका कोविड टीके के 5 करोड़ डोज़ मुहैया करवा चुका है. इसके अलावा खाद्य और मानवीय सहायता के तौर पर भी अमेरिका अब तक अफ़्रीका को 1.9 अरब अमेरिकी डॉलर की रकम दे चुका है. हाल ही में ग्लोबल कोविड कोर से जुड़ने वाला केन्या पहला अफ़्रीकी देश बन गया. ये सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच नए किस्म की भागीदारी है. इसके ज़रिए अफ़्रीका में सामाजिक और भौगोलिक तौर पर कोने-कोने तक पहुंचने से जुड़ी दिक़्क़तों से निपटने में अमेरिकी कारोबारियों की मदद हो सकेगी. इन चुनौतियों में डिलीवरी और रसद से जुड़ी रुकावटें शामिल हैं. इसके साथ ही टीकाकरण के प्रयासों में बाधा बनकर खड़े तमाम बिंदुओं की पहचान और उनके निपटारे में भी ये पहल मददगार साबित होगी. ग़ौरतलब है कि अब तक अफ़्रीका में सिर्फ़ 6 फ़ीसदी आबादी का ही पूर्ण टीकाकरण हो सका है. ऐसे में अफ़्रीका में कोरोना टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका को वैक्सीन निर्माताओं द्वारा टीके पर बौद्धिक संपदा अधिकार से छूट दिलाने की पहल करनी चाहिए थी. इससे अफ़्रीका के विकासशील देशों में बड़े पैमाने पर टीके के डोज़ तैयार करने में मदद मिल सकती थी. भारत और दक्षिण अफ़्रीका ऐसे ही क़वायद की अगुवाई करते आ रहे हैं.
ग़ौरतलब है कि अब तक अफ़्रीका में सिर्फ़ 6 फ़ीसदी आबादी का ही पूर्ण टीकाकरण हो सका है. ऐसे में अफ़्रीका में कोरोना टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका को वैक्सीन निर्माताओं द्वारा टीके पर बौद्धिक संपदा अधिकार से छूट दिलाने की पहल करनी चाहिए थी.
अमेरिका के कुल विदेशी व्यापार में अफ़्रीका का हिस्सा 2 प्रतिशत से भी कम है. वैसे अफ़्रीका के साथ कारोबार और निवेश में दोतरफ़ा बढ़ोतरी लाने के मकसद से कई कार्यक्रम चलाए जाते रहे हैं. इस सिलसिले में Prosper Africa (2019) और Africa Growth and Opportunity Act (AGOA) की मिसाल दी जा सकती है. हालांकि इन दोनों ही कार्यक्रमों से उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिल सके हैं. AGOA के तहत अफ़्रीका देशों को अमेरिकी बाज़ार तक पहुंच बनाने में वरीयता दी जाती है. हालांकि इस पहल के परिणाम असमान और अनियमित रहे हैं. अफ़्रीका महादेश के साथ कारोबार को सुविधाजनक बनाने के लिए अमेरिका अब भी काफ़ी कुछ कर सकता है. रसद से जुड़ी दिक़्क़तों और सड़कों और हाईवे के अभाव के चलते अफ़्रीका के अहम गलियारों में वस्तुओं और लोगों के आने-जाने में बाधा पैदा होती है. ज़ाहिर है कि AfCFTA, अफ़्रीकी संघ और अफ़्रीकी देशों के साथ मिलकर अमेरिका इन प्रक्रियाओं में गति लाने के लिए रणनीतिक तौर पर अहम गलियारों के विकास से जुड़ी क़वायद में तेज़ी ला सकता है.
निवेश के मोर्चे पर अमेरिका इस समय अफ़्रीका में बुनियादी ढांचे के अभाव को दूर करने की जुगत में लगा है. इस सिलसिले में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के विकल्प के तौर पर अमेरिका बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) कार्यक्रम चला रहा है. माना जा रहा है कि अमेरिका का तौर-तरीक़ा टिकाऊ, पारदर्शी और मूल्यों पर आधारित है. अमेरिका अपने B3W कार्यक्रम के तहत घाना और सेनेगल जैसे देशों में सुनवाई से जुड़े कार्यक्रम आयोजित कर चुका है.
माना जा रहा है कि अमेरिका का तौर-तरीक़ा टिकाऊ, पारदर्शी और मूल्यों पर आधारित है. अमेरिका अपने B3W कार्यक्रम के तहत घाना और सेनेगल जैसे देशों में सुनवाई से जुड़े कार्यक्रम आयोजित कर चुका है.
अमेरिका एक लंबे अर्से से अफ़्रीका में लोकतंत्र और सुशासन को आगे बढ़ाने के प्रयास करता आ रहा है. ब्लिंकेन की यात्रा के दौरान “लोकतंत्र के पतन” का मुद्दा चर्चा का अहम विषय बना रहा. पिछले 2 वर्षों में अफ़्रीका में जबरन सत्ता हथियाने की कोशिशें और कामयाबी से तख़्तापलट के वाक़ये काफ़ी बढ़ गए हैं. इस सिलसिले में ज़िम्बाब्वे, गिनी और माली की मिसाल दी जा सकती है. इनके अलावा हाल ही में सूडान में भी फ़ौज ने जबरन सत्ता हथिया ली थी. अफ़्रीका के कई देशों में राष्ट्रपति पद के लिए संविधान द्वारा तय की गई मियाद को जबरन बदल देने की घटनाएं सामने आई हैं. कई जगह चुनावों में धांधली भी हुई है. निगरानी से जुड़ी तकनीक का दुरुपयोग हुआ है और झूठी ख़बरें फैलाने और दुष्प्रचार की घटनाएं आम हो गई हैं. हालांकि ब्लिंकेन ने बड़ी बेबाकी से अमेरिका में भी लोकतंत्र के सामने मौजूद चुनौतियों की चर्चा की. दरअसल अफ़्रीकी देशों की राजसत्ता में बढ़ते एकाधिकारवादी रुझानों के बावजूद अफ़्रीकी जनता लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति समर्पित है. Afrobarometer के ताज़ा सर्वेक्षण से पता चला है कि विकास के मॉडल के तौर पर अमेरिका (33 प्रतिशत) ही अफ़्रीकी लोगों की पहली पसंद है. इस पैमाने पर चीन का स्थान दूसरा है. 22 फ़ीसदी अफ़्रीकी लोगों ने चीन के विकास मॉडल को बेहतर माना है. इससे पता चलता है कि अपने महादेश में चीन की भूमिका के प्रति सकारात्मक रुख़ रखने के बावजूद अफ़्रीकी जनता में लोकतंत्र के प्रति भरोसे में कमी नहीं आई है. हालांकि भ्रष्टाचार के बढ़ते मामलों से इस मोर्चे पर गंभीर चुनौतियां पैदा हो गई हैं.
Afrobarometer के ताज़ा सर्वेक्षण से पता चला है कि विकास के मॉडल के तौर पर अमेरिका (33 प्रतिशत) ही अफ़्रीकी लोगों की पहली पसंद है. इस पैमाने पर चीन का स्थान दूसरा है. 22 फ़ीसदी अफ़्रीकी लोगों ने चीन के विकास मॉडल को बेहतर माना है. इससे पता चलता है कि अपने महादेश में चीन की भूमिका के प्रति सकारात्मक रुख़ रखने के बावजूद अफ़्रीकी जनता में लोकतंत्र के प्रति भरोसे में कमी नहीं आई है.
अफ़्रीका महादेश में अपना प्रभुत्व जमाने के लिए बड़ी ताक़तों के बीच मची होड़ आज के दौर की भूराजनीतिक हक़ीक़त है. हालांकि रसूख़ की ये रस्साकशी सिर्फ़ अमेरिका, चीन और रूस तक ही सीमित नहीं है. भारत, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और ब्राज़ील जैसी विकासशील ताक़तें भी अफ़्रीका में कूटनीतिक और वाणिज्यिक मोर्चे पर तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं. दरअसल अफ़्रीका के कई देश अब विश्व पटल पर बेबाकी से अपने फ़ैसले खुलकर लेने लगे हैं. उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों और भागीदारों के चयन में भी विविधता लानी शुरू कर दी है. अफ़्रीका के देश और वहां के नेता हमेशा ‘दूसरों के बनाए क़ायदों के हिसाब से चलने की बजाए’ अपने द्विपक्षीय भागीदारों के सामने दो टूक लहज़े में अपनी मांगें रखने लगे हैं.
राष्ट्रपति बाइडेन के नेतृत्व वाला अमेरिकी प्रशासन अफ़्रीका के साथ अपनी साझेदारी को आगे बढ़ाना चाहता है. अफ़्रीकी नेताओं को किसी एक पक्ष का चुनाव करने पर मजबूर करने की बजाए अमेरिका पारस्परिक हित के रास्ते पर चलने का इरादा रखता है. ब्लिंकेन का दौरा अफ़्रीकी देशों में इस बाबत भरोसा जगाने में कामयाब रहा है. दरअसल बुनियादी ढांचे के लिए रकम मुहैया कराने की प्रक्रिया में प्रतिस्पर्धी परिदृश्य को बढ़ावा देना अमेरिका के अपने हित में है. ब्लिंकेन ने इसे वैश्विक बुनियादी ढांचे में “ऊंचाई तक पहुंचने की होड़” करार दिया है. अमेरिका अपनी इस क़वायद के ज़रिए अफ़्रीका महादेश में सक्रिय चीन समेत तमाम दूसरी ताक़तों के साथ स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे सकेगा. अमेरिका अपनी आर्थिक ताक़तों पर ज़ोर देकर और अपने निजी क्षेत्र के निवेश को टिकाऊ बनाकर अफ़्रीका के साथ अपने जुड़ावों को सकारात्मक रूप से आगे बढ़ा सकेगा.
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Abhishek Mishra is an Associate Fellow with the Manohar Parrikar Institute for Defence Studies and Analysis (MP-IDSA). His research focuses on India and China’s engagement ...
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