कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में छायी हुई है. मामला यह है की क्या पार्टी की लीडरशिप युवा वर्ग करे या कोई वृद्ध अनुभवी राजनेता, जिन्होंने अभी हाल ही में हुए हरियाणा और महाराष्ट्र राज्य के चुनाव में कांग्रेस को उम्मीद से बेहतर परिणाम दिलाये. दरअसल, राजनीति में उम्र को लेकर एक बड़ी बहस रही है और कोई भी दल इससे अछूता नहीं रहा है. हाल ही में आए हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनाव परिणामों ने कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति पर अपना गहरा प्रभाव डाल रहा है. पहले यह माना जा रहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी की वापसी जल्द होगी. सोनिया गांधी के सेहत संबंधी कारणों से कांग्रेस को एक फुलटाइम अध्यक्ष की तुरंत ज़रूरत है. सोनिया गांधी ख़ुद भी फरवरी 2020 से आगे कार्यकारी अध्यक्ष का भार संभालने के लिए तैयार नहीं हैं. राहुल गांधी की वापसी की राह में सबसे बड़ी अड़चन उनका काम करने का तरीका तथा कांग्रेस के एक तबके को [जो वृद्ध व अनुभवी है] लेकर अविश्वास और तिरस्कार भाव है. साल 2008-2009 से ही राहुल गाँधी और उनके साथी कांग्रेस में एक जेनरेशनल चेंज की बात कर रहे हैं और पार्टी की दिशा और दशा के लिए ओल्ड गार्ड को ही कसूरवार ठहराते आये हैं.
दिलचस्प बात यह है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में वही ग्रुप क़ामयाब हुआ है जो बुजुर्ग और अनुभवी हैं. सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी ख़ुद के साथ अपनी कार्य शैली को बदलना चाहेंगे? एक नज़र ज़रा कांग्रेस के इन मुख़्यमंत्रियों के लिस्ट पर डालें — भूपेंद्र सिंह हूडा 72, कैप्टन अमरिंदर सिंह 77, कमलनाथ 72 और अशोक गहलोत 68 साल के हैं. इनमे से कई संजय गाँधी के समय से कांग्रेस में सक्रिय हैं. अब कांग्रेस को कैप्टन अमरिंदर सिंह, कमलनाथ, अशोक गहलोत और भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे स्थानीय दिग्गजों को ज़्यादा महत्व देना चाहिए.
मोरारजी देसाई जब इंदिरा गांधी और संजय गांधी के प्रभाव को तोड़कर भारत के पहले गैर काँग्रेसी प्रधानमंत्री बने तब वो 81 साल के थे. देसाई एक गुजराती थे और अगले दो वर्षों तक उन्होंने कई उपलब्धियां भी हासिल कीं
हालांकि, संविधान और क़ानून उम्र के आधार पर ऐसी किसी तरह की पाबंदी की बात नहीं करता. अगर भारत और विदेशों में बुज़ुर्ग नेताओं पर सरसरी निगाह दौड़ाई जाए तो यह पता चलता है कि उम्र और अनुभव, असल में एक अतिरिक्त गुण ही होता है. मोरारजी देसाई जब इंदिरा गांधी और संजय गांधी के प्रभाव को तोड़कर भारत के पहले गैर काँग्रेसी प्रधानमंत्री बने तब वो 81 साल के थे. देसाई एक गुजराती थे और अगले दो वर्षों तक उन्होंने कई उपलब्धियां भी हासिल कीं. उदाहरण के लिए 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान से बिगड़ चुके संबंधों को पटरी पर लेकर आए और 1962 के युद्ध की खटास को कम करके एक नया मोड़ देते हुए चीन के साथ राजनीतिक संबंध भी स्थापित किए.
देसाई की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि उनकी सरकार ने लोकतंत्र में भरोसे को बढ़ाया. उनकी सरकार ने कुछ क़ानूनों को रद्द कर दिया जिन्हें इमरजेंसी के दौरान पास किया गया था. इसके साथ ही उनकी सरकार ने आने वाली किसी भी सरकार के लिए इमरजेंसी लागू करने को कठिन बना दिया. हालांकि, ये एक अलग कहानी है कि 1979 में चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी के गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया और मोरारजी देसाई को 15 जुलाई 1979 को अपने पद से इस्तीफ़ा देने को मज़बूर कर दिया. चरण सिंह ने जब प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो वो ख़ुद 79 साल के थे. असल में ये पूरा आंदोलन इंदिरा और इमरजेंसी के ख़िलाफ़ 70 वर्षीय जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में चलाया गया था, ठीक उसी तरह जैसे डॉ मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के ख़िलाफ़ इंडिया अगेंस्ट करप्शन का आंदोलन 75 साल के बुजुर्ग अन्ना हज़ारे ने चलाया.
अगर कांग्रेस की कार्यशैली पर नज़र दौड़ाएं तो यह पता चलता है कि कैसे अहमद पटेल, अशोक गहलोत, भूपेंद्र सिंह हूडा, ग़ुलाम नबी आज़ाद, कमल नाथ, अमरिंदर सिंह जैसे पुराने अनुभवी नेता, राहुल गांधी के क़रीब रहने वाले नौजवान नेताओं पर भारी हैं.
विंस्टन चर्चिल संभवत: ब्रिटेन के अब तक के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे. 1951 में चुनावों में कंज़र्वेटिव पार्टी की जीत के बाद जब उन्होंने दोबारा पद संभाला तो उनकी उम्र 76 साल की थी. 1951 से लेकर 1955 तक, जब उन्होंने इस्तीफ़ा दिया तब उन्होंने तबाह हुए यूरोप को पटरी पर लाने में मदद की थी. कभी एकछत्र राज करने वाले ब्रितानी साम्राज्य की लगातार गिरती साख़ को उन्होंने ही बहुत समझदारी से संभाला था. कई लोगों का मानना है कि साढ़े तीन साल के अपने इस कार्यकाल ने 20वीं सदी के महान नेताओं में उन्होंने अपनी जगह पक्की कर ली और ब्रितानी लोगों के दिलों में उन्होंने हमेशा के लिए जगह बना ली. अभिनेता से नेता बने रोनॉल्ड रीगन अमरीका के 239 सालों के इतिहास में सबसे बुज़ुर्ग राष्ट्रपति बने. उस समय उनकी उम्र 69 थी. अगर और पीछे जाएं तो रीगन को अमेरीका का अब तक के सबसे बेहतरीन राष्ट्रपति के रूप में देखा जाता है. साल 2011 में गैलप पोल में 1,015 अमरीकियों से पूछा गया कि वे किस अमेरीकी राष्ट्रपति को महान मानते हैं, तो उनमे से 19 प्रतिशत ने रीगन को वरीयता दी, जबकि अब्राहम लिंकन को 14 प्रतिशत, बिल क्लिंटन को 13 प्रतिशत, जॉन एफ़ केनेडी को 11 प्रतिशत और जॉर्ज वाशिंगटन को 10 प्रतिशत लोगों ने ही वरीयता दी.
यदि भारत में भी देखें तो वीरभद्र सिंह 78 साल के थे जब उन्होंने दिसंबर 2012 में हिमांचल प्रदेश में कांग्रेस को ऐतिहासिक जीत दिलाई. ये उन्होंने तब कर दिखाया जब कांग्रेस की जीत की संभावना बेहद कम थी. निजी तौर पर अधिकांश कांग्रेसियों ने माना था कि इस पहाड़ी राज्य में जीत पार्टी के मुक़ाबले वीरभद्र की ज़्यादा है.
अगर कांग्रेस की कार्यशैली पर नज़र दौड़ाएं तो यह पता चलता है कि कैसे अहमद पटेल, अशोक गहलोत, भूपेंद्र सिंह हूडा, ग़ुलाम नबी आज़ाद, कमल नाथ, अमरिंदर सिंह जैसे पुराने अनुभवी नेता, राहुल गांधी के क़रीब रहने वाले नौजवान नेताओं पर भारी हैं. अगर किसी देश या राज्य के मंत्रिमंडल में शामिल होने या निकलने के लिए उम्र की सीमा वाकई मापदंड बनता है तो इससे सत्तर पार के पार्टी नेताओं को टिकट देने का मुद्दा भी उठ जाता है. क्योंकि हर निर्वाचित विधायक या सांसद मंत्रिपद का दावेदार होता है लेकिन बीजेपी में भी उम्र को लेकर एक लाइन तय की गई है जो मोदी कैबिनेट से लालजी टंडन, नजमा हेपतुल्ला और कई अन्य नेताओं की विदाई की उम्र को ध्यान में रखकर ही की गई है.
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